बात बहुत पुरानी है। एक राजा था जिसकी चार रानियाँ थीं। राजा और चारों रानियों को यह दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा इस विचार से अवसाद में डूबा रहता कि उत्तराधिकारी के अभाव में उसके बाद राज्य का भार कौन सँभालेगा? एक दिन राजा की सभा में एक आदमी आया और उसने बताया कि अमुक स्थान पर एक ओझा रहता है जो झाड़-फूँक, जादू-टोना जानता है और उसके मंत्रों के प्रभाव से कई बाँझ स्त्रियों को संतान सुख प्राप्त हो चुका है। राजा को उस आदमी की बातों पर विश्वास तो नहीं हुआ किंतु उसने सोचा कि उस ओझा से मिल लेने में कोई हानि भी तो नहीं है। यह विचार करके राजा अपने साथ कुछ सिपाहियों को लेकर ओझा से मिलने चल पड़ा।
सघन वन के मध्य ओझा की झोपड़ी थी। राजा ने ओझा के पास पहुँचकर उसे अपनी समस्या बताई।
‘राजन्! आपकी चारों रानियाँ संतान उत्पन्न करने योग्य नहीं हैं किंतु आपकी पाँचवी रानी से आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी। वह पुत्र शूरवीर होगा और आपके राज्य के लिए एक योग्य शासक सिद्ध होगा।’ ओझा ने कहा।
‘किंतु मेरी पाँचवीं रानी तो है ही नहीं।’ राजा ने कहा।
‘आपको अभी लौटते समय वन में एक अनाथ बैगा युवती मिलेगी। आप उससे विवाह करिएगा। वही बैगा युवती आपकी रानी बनकर आपको उत्तराधिकारी प्रदान करेगी।’ ओझा ने कहा।
राजा ने ओझा को प्रणाम किया और अपने महल की ओर लौट चला। रास्ते में उसे किसी युवती के रोने का स्वर सुनाई दिया।
‘पता करो कि ये कौन रो रहा है?’ राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया।
सिपाही ढूँढ़-खोज में लग गए। अंतत: उन्हें एक युवती दिखाई दी जो एक पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी। सिपाही उसे पकड़कर राजा के सामने ले आए।
‘तुम कौन हो? यहाँ घने वन में क्यों रो रही हो?’ राजा ने उस युवती से पूछा।
‘मैं एक अनाथ हूँ। मैं अपने दूर के संबंधियों के साथ रहती थी किंतु आज उन लोगों ने मुझे यहाँ वन में लाकर छोड़ दिया। अब मेरा इस दुनिया में अपना कहने वाला कोई नहीं है।’ इतना कहकर वह युवती पुन: रोने लगी।
‘क्या तुम बैगा हो?’ राजा ने युवती से पूछा।
‘जी हाँ! किंतु आपने ये कैसे जाना?’ युवती को आश्चर्य हुआ।
‘तुम इतनी सुंदर हो। इतनी सुंदर तो कोई बैगा युवती ही हो सकती है। तुम घबराओ नहीं। यदि तुमको स्वीकार हो तो मैं तुमसे विवाह करके तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ।’ राजा ने उस युवती से कहा। राजा समझ गया था कि ये वही युवती है जिसके बारे में ओझा ने बताया था।
युवती को भला क्या आपत्ति होती? हर युवती रानी बनना चाहती है, उस युवती ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी। राजा युवती को लेकर अपने महल लौट आया। उसी दिन उसने बैगा युवती से विवाह कर लिया और उसे अपनी पाँचवी रानी बना लिया। वह युवती बैगा रानी कहलाने लगी।
बैगा रानी के आने से शेष चारों रानियों को अच्छा नहीं लगा। वे बैगा रानी से चिढ़ने लगीं। जब रानियों को पता चला कि बैगा रानी गर्भवती है तो वे चिंतित हो उठीं। उन्हें लगा कि यदि बैगा रानी ने संतान को जन्म दिया तो उन सब की अपेक्षा बैगा रानी का महत्व बढ़ जाएगा। जबकि राजा को बैगा रानी के गर्भवती होने का समचार मिला तो वह फूला नहीं समाया। उसे लगा कि ओझा का कथन अक्षरश: सत्य हो रहा है। उसे अब अपना उत्तराधिकारी मिल जाएगा।
चारों रानियों ने तय किया कि बैगा रानी की संतान को जीवित ही नहीं रहने देंगी और इस बात की भनक राजा को भी नहीं लगने देंगी कि बैगा रानी ने संतान को जन्म दिया है। षड्यंत्र रचकर चारों रानियाँ बैगा रानी की देखभाल का नाटक करने लगीं। संतान के जन्म का समय आया तो पहली रानी राजा के पास पहुँची।
‘महाराज! अब वो शुभ घड़ी आ गई है जब इस राज्य को भावी राजा मिलेगा।
ऐसे शुभ अवसर पर आपको महल से बाहर जाकर दीन-दुखियों को दान-दक्षिणा देनी चाहिए।’ पहली रानी ने कहा।
‘तुम ठीक कहती हो!’ राजा को अपनी पहली रानी की बात उचित लगी। उसने अपने सेवकों को बुलाया और दान-दक्षिणा देने महल से बाहर चला गया।
चारों रानियाँ यही तो चाहती थीं कि बैगा रानी जब संतान को जन्म दे, उस समय राजा महल में न रहे। राजा के जाने के बाद दूसरी रानी बैगा रानी के पास पहुँची।
‘बहन, हम चाहती हैं कि तुम्हारी संतान को जन्म लेते समय कोई कष्ट न हो इसलिए तुम ऐसा करो कि धान के कोठे के छेद में अपना सिर डालकर बैठ जाओ। इससे तुम्हारी संतान स्वस्थ रहेगी।’ दूसरी रानी ने बैगा रानी से कहा।
बैगा रानी थी भोली और फिर भला कौन-सी माँ ऐसी होगी जो अपनी संतान का भला न चाहेगी? बैगा रानी ने दूसरी रानी की बात मान ली और धान के कोठे के छेद में अपना सिर डालकर बैठ गई। जैसे ही बैगा रानी बैठी वैसे ही उसकी कोख में हलचल हुई और संतान का जन्म हो गया। तीसरी रानी पहले से ही तैयार खड़ी थी। उसने बैगा रानी की संतान को जो कि एक सुंदर पुत्र था, उठाकर चौथी रानी को सौंप दिया और पुत्र के स्थान पर एक गोल पत्थर रख दिया। चौथी रानी ने बैगा रानी के पुत्र को अपनी दासी को दिया कि वह उसे ले जाकर वन में भूमि में गाड़ आए।
दासी के जाते ही चारों रानियों ने बैगा रानी का सिर धान के कोठे से निकाला और विलाप करने लगीं कि बैगा रानी ने तो पुत्र को नहीं बल्कि पत्थर को जन्म दिया है। तत्काल राजा को बुलवा लिया। राजा ने पुत्र के स्थान पर पत्थर देखा तो वह आगबबूला हो उठा। उसे लगा कि ओझा ने उसे मूर्ख बनाया और किसी डायन या चुड़ैल को उसके मत्थे मढ़ दिया है अन्यथा कभी कोई स्त्री किसी पत्थर को जन्म कैसे दे सकती है?
राजा ने बैगा रानी को महल से निकाल दिया और वापस वन में भेज दिया। बैगा रानी के पास पुत्र के पैदा होने का कोई साक्ष्य नहीं था अत: वह क्या कर सकती थी?
उसने भी राजा की आज्ञा को चुपचाप स्वीकार कर लिया और दुखी मन से वन में चली गई। इसके बाद चारों रानियों ने राजा को समझाया कि हमें प्रजा को यह नहीं बताना चाहिए कि उसने एक पत्थर को जन्म दिया था अन्यथा प्रजा के मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। हमें यह घोषित कर देना चाहिए कि बैगा रानी बच्चे को जन्म देते समय मर गई और उसका बच्चा भी नहीं बचा।
‘लेकिन हम बैगा रानी के शव के बदले किसका अंतिम संस्कार करेंगे? राजा ने पूछा।
‘बैगा रानी के शव के बदले मैं अपनी दासी का शव रख दूँगी।’ चौथी रानी ने कहा। चारों रानियाँ षड्यंत्र में सहायता देने वाली उस दासी को भी जीवित नहीं छोड़ना चाहती थीं ताकि वास्तविक बात किसी को कभी भी पता न चल सके।
चारों रानियों ने ऐसा ही किया। बैगा रानी के शव के बदले दासी का शव रख दिया और धूम-धाम से उसका अंतिम संस्कार करा दिया।
उधर, जब दासी बैगा रानी के पुत्र को भूमि में गाड़ रही थी तो उसका यह कृत्य एक शेरनी ने देख लिया था। दासी के जाने के बाद शेरनी ने भूमि से बैगा रानी के पुत्र को निकाला और अपने साथ अपनी गुफ़ा में ले गई।
‘लो, मैं तुम लोगों के लिए एक छोटा भाई लाई हूँ।’ शेरनी ने अपने शावकों से कहा।
शेरनी के चार शावक थे। चारों अपने छोटे भाई के रूप में बैगा राजकुमार को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। शेरनी भी अपने शावकों के साथ बैगा राजकुमार का लालन-पालन करने लगी। धीरे-धीरे बैगा राजकुमार और शावक बड़े हो गए। बैगा राजकुमार एक सुंदर युवक बन गया और शावक बलशाली शेरों के रूप में विकसित हो गए।
एक दिन बैगा राजकुमार ने अपनी शेरनी माँ से कहा कि मुझे एक धनुष-बाण दिला दो जिससे मैं पूरे परिवार के लिए शिकार किया करूँगा। शेरनी बैगा राजकुमार के लिए धनुष-बाण बनवाने लोहार के पास पहुँची। लोहार ने एक बहुत बड़ा और भारी-भरकम धनुष-बाण बना दिया। शेरनी ने धनुष-बाण बैगा राजकुमार को दे दिया। उस दिन से बैगा राजकुमार अपने पूरे परिवार के लिए शिकार करने लगा।
एक दिन राजा का एक सिपाही भटकता हुआ वन में आ पहुँचा। उसने बैगा राजकुमार को धनुष-बाण से शिकार करते देखा। इतना बड़ा धनुष-बाण उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसने विचार किया कि यदि यह धनुष-बाण मैं अपने राजा को भेंट करूँ तो वह मुझे बहुत सारा ईनाम देगा। इस लोभ में पड़कर सिपाही ने बैगा राजकुमार का पीछा किया। शिकार करते-करते जब बैगा राजकुमार थककर सुस्ताने बैठ गया और उसे झपकी लग गई तो सिपाही ने चुपके से उसका धनुष-बाण अपनी पीठ पर लादा और भाग खड़ा हुआ। जब बैगा राजकुमार की आँख खुली तो उसे अपना धनुष-बाण नहीं दिखा। उसने बहुत ढूँढ़ा किंतु उसे नहीं मिला। वह दुखी मन से अपनी गुफ़ा में लौट आया।
उधर, सिपाही ने धनुष-बाण ले जाकर राजा को भेंट किया।
‘जब धनुष-बाण इतना बड़ा और भारी है तो इसे चलाने वाला भी बहुत बड़ा होगा।’ राजा ने सिपाही से पूछा ।
‘नहीं, महाराज वह तो एक सुकोमल युवक था।’ सिपाही के मुख से असली बात निकल गई।
यह सुनकर राजा को सिपाही पर बहुत क्रोध आया कि वह उसे चोरी का समान भेंट कर रहा है। साथ ही उसे यह जिज्ञासा हुई कि वह युवक कौन है, देखने में कैसा है? जिसका यह धनुष-बाण है। राजा ने विचार किया कि यह धनुष-वाण उस युवक को वापस कर देना चाहिए और जब वह युवक इसे लेने आएगा तो उसे वे देख भी लेंगे।
राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि एक घनुष-बाण उसे मिला है, जिसका भी हो वह आकर उसे ले जाए। किंतु असली मालिक की पहचान के लिए उसे चलाकर दिखाना होगा।
यह समाचार पक्षियों के द्वारा शेरनी के पास पहुँचा। चारो शेरों ने भी सुना। वे अपने छोटे भाई का धनुष-बाण वापस लाने को उद्यत हो उठे। किंतु शेरनी ने उन्हें समझाया कि उनका मनुष्यों के बीच जाना उचित नहीं है। बैगा राजकुमार को ही जाना होगा। इसके बाद बैगा राजकुमार राजा से मिलने अकेले चल पड़ा। राजा के महल के पास पहुँचकर उसे प्यास लग आई। बैगा राजकुमार महल के पास स्थित पोखर में पानी पीने को रुका। जिस समय वह पानी पी रहा था, उसी समय महल की अटारी से राजा की चारों रानियों ने झाँककर नीचे देखा। उन्हें बैगा राजकुमार दिखाई दे गया। चारों रानियों को बैगा राजकुमार की वेश-भूषा बड़ी विचित्र लगी। वे बैगा राजकुमार का उपहास करने लगीं।
‘देखो-देखो, हमारे महल के पास ये कैसा पशु आया है?’ एक रानी ने बैगा राजकुमार का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
‘हाँ, मुझे तो यह पशु बड़ा विचित्र दिखाई पड़ता है। दूसरी रानी हाँ में हाँ मिलाती हुई बोली।
‘इसे तो राजा से कहकर किसी पिंजरे में बंद करवा देना चाहिए।’ तीसरी रानी ने हँसते हुए कहा।
‘नहीं-नहीं, इसे तो वापस जंगल में भगा देना चाहिए।’ चौथी रानी खिलखिलाती हुई बोली।
रानियों के ताने सुनकर बैगा राजकुमार ने अपना सिर उठाकर रानियों की ओर देखा फिर मुस्कुराते हुए बोला, ‘मैं पशु की तरह भले ही दिख रहा हूँ किंतु उन रानियों से तो अच्छा हूँ जिन्होंने अपनी पाँचवीं रानी की संतान को पत्थर का बता दिया था।’
इतना कहकर बैगा राजकुमार महल के द्वार की ओर बढ़ गया किंतु उसकी यह बात सुनकर चारों रानियों सन्न रह गईं।
‘हमने तो यह बात सबसे छिपाई थी। राजाजी ने भी किसी को नहीं बताया। हमने अपनी उस दासी को भी मरवा दिया था जो यह भेद जानती थी। फिर इस युवक को कैसे यह भेद मालूम है?’ पहली रानी चिंतित होकर बोली।
‘हाँ, यह तो बड़े संकट का विषय है। हमें इस युवक की गतिविधियों पर ध्यान देना होगा।’ दूसरी रानी ने कहा। इसके बाद चारों रानियों ने अपनी विश्वस्त दासी को राजकुमार के पीछे लगा दिया।
कुछ देर बाद दासी ने आकर रानियों बताया कि वह युवक धनुष-बाण चलाने आया है। रानियों ने यह सुना तो उन्होंने योजना बनाई कि वह युवक चाहे धनुष-बाण चला पाए या न चला पाए किंतु इस परीक्षा के बाद उसे मरवा देना होगा ताकि रानियों का भेद वह किसी और को न बता सके। बैगा राजकुमार को मरवाने के लिए रानियों ने दो सिपाही उस स्थान पर भेज दिए जहाँ बैगा राजकुमार को धनुष-बाण की परीक्षा देनी थी। उन्हें निर्देश दे दिया कि जैसे ही बैगा राजकुमार बाण चलाकर धनुष नीचे टिकाए वैसे ही वे दोनों उसे मार डालें। रानियाँ बैगा राजकुमार को अपने सामने मरता हुआ देखने के उद्देश्य से परीक्षा-स्थल पर जा पहुँची।
‘युवक! धनुष पर बाण चढ़ाकर चलाओ। यदि तुम ऐसा कर सके तो हमें विश्वास हो जाएगा कि यह धनुष-बाण तुम्हारा है। हम तुम्हें तुम्हारा धनुष-बाण ही नहीं देंगे अपितु ढेर सारा ईनाम भी देंगे!’ राजा ने बैगा राजकुमार से कहा।
‘महाराज! यह धनुष-बाण मेरा ही है! मैं अभी इसे चलाकर यह बात सिद्ध कर दूँगा किंतु मुझे किसी ईनाम की लालसा नहीं है। यदि आप मुझे ईनाम के रूप में कुछ देना ही चाहते हों तो मुझे न्याय दीजिएगा।’ बैगा राजकुमार ने कहा।
‘न्याय? यह कैसा ईनाम माँग रहे हो युवक?’ राजा ने चकित होकर कहा।
‘पहले आप मेरा धनुष-बाण चलाना देख लें फिर मैं अपनी बात स्पष्ट कर दूँगा।’
बैगा राजकुमार ने कहा और धनुष पर बाण चढ़ाकर प्रत्यंचा खींच कर बाण चला दिया। बाण गर्जन-ध्वनि करता हुआ आकाश की ओर उठा और फिर बादलों को भेदता हुआ वापस आकर उन दोनों सिपाहियों के सिरों को भेदता हुआ निकल गया जो बैगा राजकुमार को मारने वाले थे।
यह दृश्य देखकर चारों रानियाँ डर गईं। जबकि राजा बैगा राजकुमार का कौशल देखकर अभीभूत हो उठा।
‘माँगो युवक! जो भी माँगना चाहते हो, वह माँगो!’ राजा ने बैगा राजकुमार से कहा।
‘महाराज! मुझे अपनी माँ के लिए न्याय चाहिए’ बैगा राजकुमार ने कहा।
‘न्याय अवश्य मिलेगा, युवक! तुम्हारी माँ कहाँ है? मैं स्वयं उस माता का सम्मान करना चाहूँगा जिसने तुम जैसी वीर संतान को जन्म दिया।’ राजा ने कहा।
‘महाराज! यही तो न्याय और अन्याय की बात है कि मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया किंतु आपकी चारों रानियों ने आपसे यह कह दिया कि मेरी माँ ने एक पत्थर को जन्म दिया है।’ बैगा राजकुमार ने कहा।
‘क्या?’ राजा ने चकित होकर रानियों की ओर देखा। रानियाँ समझ गई कि अब उनका भेद छिपा नहीं रह सकता है। उसी समय शेरनी अपने शेर पुत्रों के साथ वहाँ आ गई और उन्होंने रानियों को घेर लिया। भय से थरथर काँपती रानियों ने राजा के सामने सच्चाई उगल दी। राजा ने अपनी चारों रानियों की करतूत के बारे में सुना तो वह अवाक् रह गया।
‘इन चारों रानियों के सिर मुंडाकर इन्हें हमारे राज्य से बाहर निकाल दो!’ राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया। सिपाहियों ने रानियों को बंदी बना लिया और उनके सिर मूँड़कर उन्हें राज्य से बाहर कर आए। इसके बाद राजा ने अपनी पाँचवी रानी अर्थात् बैगा राजकुमार की माँ की खोज में सिपाही दौड़ा दिए। दूसरे दिन पाँचवी रानी एक घने जंगल में मिल गई जहाँ वह झोपड़ी बनाकर रह रही थी।
‘पुत्र! मैंने अपनी रानियों के बहकावे में आकर तुम्हारी माँ के साथ घोर अन्याय किया। अतः एक अन्यायी राजा को राजा बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। आज से मैं तुम्हें राजा घोषित करता हूँ!’ राजा ने बैगा राजकुमार को अपनी राजसिंहासन सौंपते हुए कहा।
इस प्रकार बैगा राजकुमार बैगा राजा बन गया। एक दिन राजा ने बैगा राजा ने पूछा कि यह सच्चाई उसे कैसे पता चली थी? इस पर बैगा राजा ने बताया कि यह बात उसे उसकी शेरनी माँ ने बताई थी किंतु यह भी समझाया था कि उचित समय आने पर ही मैं इस बात को प्रकट करूँ जिससे आपको विश्वास हो सके। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शेरनी और उसके पुत्रों को धन्यवाद दिया। बैगा राजा ने भी अपनी शेरनी माँ और शेर भाइयों की सुरक्षा के लिए उस जंगल में शिकार करने की मनाही करा दी जहाँ वे लोग रहते थे। इसके बाद बैगा राजा न्यायपूर्वक राज्य करने लगा।
baat bahut purani hai. ek raja tha jiski chaar raniyan theen. raja aur charon raniyon ko ye dukh tha ki unki koi santan nahin thi. raja is vichar se avsad mein Duba rahta ki uttaradhikari ke abhav mein uske baad rajya ka bhaar kaun samhalega? ek din raja ki sabha mein ek adami aaya aur usne bataya ki amuk sthaan par ek ojha rahta hai jo jhaaD phoonk, jadu tona janta hai aur uske mantron ke prabhav se kai baanjh striyon ko santan sukh praapt ho chuka hai. raja ko us adami ki baton par vishvas to nahin hua kintu usne socha ki us ojha se mil lene mein koi hani bhi to nahin hai. ye vichar karke raja apne saath kuch sipahiyon ko lekar ojha se milne chal paDa.
saghan van ke madhya ojha ki jhopDi thi. raja ne ojha ke paas pahunchakar use apni samasya batai.
‘rajan! apaki charon raniyan santan utpann karne yogya nahin hain kintu apaki panchavi rani se aapko ek putr ki prapti hogi. wo putr shurvir hoga aur aapke rajya ke liye ek yogya shasak siddh hoga. ’ ojha ne kaha.
‘kintu meri panchavin rani to hai hi nahin. ’ raja ne kaha.
‘apko abhi lautte samay van mein ek anath baiga yuvati milegi. aap usse vivah kariyega. vahi baiga yuvati apaki rani bankar aapko uttaradhikari pradan karegi. ’ ojha ne kaha.
raja ne ojha ko prnaam kiya aur apne mahl ki or laut chala. raste mein use kisi yuvati ke rone ka svar sunai diya.
‘pata karo ki ye kaun ro raha hai?’ raja ne apne sipahiyon ko adesh diya.
sipahi DhoonDh khoj mein lag ge. anttah unhen ek yuvati dikhai di jo ek peD ke niche baithi ro rahi thi. sipahi use pakaDkar raja ke samne le aaye.
‘tum kaun ho? yahan ghane van mein kyon ro rahi ho?’ raja ne us yuvati se puchha.
‘main ek anath hoon. main apne door ke sambandhiyon ke saath rahti thi kintu aaj un logon ne mujhe yahan van mein lakar chhoD diya. ab mera is duniya mein apna kahne vala koi nahin hai. ’ itna kahkar wo yuvati punah rone lagi.
‘kya tum baiga ho?’ raja ne yuvati se puchha.
‘ji haan! kintu aapne ye kaise jana?’ yuvati ko ashcharya hua.
‘tum itni sundar ho. itni sundar to koi baiga yuvati hi ho sakti hai. tum ghabrao nahin. yadi tumko svikar ho to main tumse vivah karke tumhein apni rani banana chahta hoon. ’ raja ne us yuvati se kaha. raja samajh gaya tha ki ye vahi yuvati hai jiske bare mein ojha ne bataya tha.
yuvati ko bhala kya apatti hoti? har yuvati rani banna chahti hai, us yuvati ne bhi saharsh svikriti de di. raja yuvati ko lekar apne mahl laut aaya. usi din usne baiga yuvati se vivah kar liya aur use apni panchvi rani bana liya. wo yuvati baiga rani kahlane lagi.
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‘maharaj! ab wo shubh ghaDi aa gai hai jab is rajya ko bhavi raja milega.
aise shubh avsar par aapko mahl se bahar jakar deen dukhiyon ko daan dakshina deni chahiye. ’ pahli rani ne kaha.
‘tum theek kahti ho!’ raja ko apni pahli rani ki baat uchit lagi. usne apne sevkon ko bulaya aur daan dakshina dene mahl se bahar chala gaya.
charon raniyan yahi to chahti theen ki baiga rani jab santan ko janm de, us samay raja mahl mein na rahe. raja ke jane ke baad dusri rani baiga rani ke paas pahunchi.
‘bahan, hum chahti hain ki tumhari santan ko janm lete samay koi kasht na ho isliye tum aisa karo ki dhaan ke kothe ke chhed mein apna sir Dalkar baith jao. isse tumhari santan svasth rahegi. ’ dusri rani ne baiga rani se kaha.
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usne bhi raja ki aagya ko chupchap svikar kar liya aur dukhi man se van mein chali gai. iske baad charon raniyon ne raja ko samjhaya ki hamein praja ko ye nahin batana chahiye ki usne ek patthar ko janm diya tha anyatha praja ke man par iska bura prabhav paDega. hamein ye ghoshit kar dena chahiye ki baiga rani bachche ko janm dete samay mar gai aur uska bachcha bhi nahin bacha.
‘lekin hum baiga rani ke shav ke badle kiska antim sanskar karenge? raja ne puchha.
‘baiga rani ke shav ke badle main apni dasi ka shav rakh dungi. ’ chauthi rani ne kaha. charon raniyan shaDyantr mein sahayata dene vali us dasi ko bhi jivit nahin chhoDna chahti theen taki vastavik baat kisi ko kabhi bhi pata na chal sake.
charon raniyon ne aisa hi kiya. baiga rani ke shav ke badle dasi ka shav rakh diya aur dhoom dhaam se uska antim sanskar kara diya.
udhar, jab dasi baiga rani ke putr ko bhumi mein gaaD rahi thi to uska ye kritya ek sherni ne dekh liya tha. dasi ke jane ke baad sherni ne bhumi se baiga rani ke putr ko nikala aur apne saath apni gufa mein le gai.
‘lo, main tum logon ke liye ek chhota bhai lai hoon. ’ sherni ne apne shavkon se kaha.
sherni ke chaar shavak the. charon apne chhote bhai ke roop mein baiga rajakumar ko dekhkar bahut prasann hue. sherni bhi apne shavkon ke saath baiga rajakumar ka lalan palan karne lagi. dhire dhire baiga rajakumar aur shavak baDe ho ge. baiga rajakumar ek sundar yuvak ban gaya aur shavak balshali sheron ke roop mein viksit ho ge.
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udhar, sipahi ne dhanush baan le jakar raja ko bhent kiya.
‘jab dhanush baan itna baDa aur bhari hai to ise chalane vala bhi bahut baDa hoga. ’ raja ne sipahi se puchha.
‘nahin, maharaj wo to ek sukomal yuvak tha. ’ sipahi ke mukh se asli baat nikal gai.
ye sunkar raja ko sipahi par bahut krodh aaya ki wo use chori ka saman bhent kar raha hai. saath hi use ye jigyasa hui ki wo yuvak kaun hai, dekhne mein kaisa hai? jiska ye dhanush baan hai. raja ne vichar kiya ki ye dhanush vaan us yuvak ko vapas kar dena chahiye aur jab wo yuvak ise lene ayega to use ve dekh bhi lenge.
raja ne DhinDhora pitva diya ki ek ghanush baan use mila hai, jiska bhi ho wo aakar use le jaye. kintu asli malik ki pahchan ke liye use chalakar dikhana hoga.
ye samachar pakshiyon ke dvara sherni ke paas pahuncha. charo sheron ne bhi suna. ve apne chhote bhai ka dhanush baan vapas lane ko udyat ho uthe. kintu sherni ne unhen samjhaya ki unka manushyon ke beech jana uchit nahin hai. baiga rajakumar ko hi jana hoga. iske baad baiga rajakumar raja se milne akele chal paDa. raja ke mahl ke paas pahunchakar use pyaas lag aai. baiga rajakumar mahl ke paas sthit pokhar mein pani pine ko ruka. jis samay wo pani pi raha tha, usi samay mahl ki atari se raja ki charon raniyon ne jhankakar niche dekha. unhen baiga rajakumar dikhai de gaya. charon raniyon ko baiga rajakumar ki vesh bhusha baDi vichitr lagi. ve baiga rajakumar ka uphaas karne lagin.
‘dekho dekho, hamare mahl ke paas ye kaisa pashu aaya hai?’ ek rani ne baiga rajakumar ka mazak uDate hue kaha.
‘haan, mujhe to ye pashu baDa vichitr dikhai paDta hai. dusri rani haan mein ho milati hui boli.
‘ise to raja se kahkar kisi pinjre mein band karva dena chahiye. ’ tisri rani ne hanste hue kaha.
‘nahin nahin, ise to vapas jangal mein bhaga dena chahiye. ’ chauthi rani khilkhilati hui boli.
raniyon ke tane sunkar baiga rajakumar ne apna sir uthakar raniyon ki or dekha phir muskurate hue bola, ‘main pashu ki tarah bhale hi dikh raha hoon kintu un raniyon se to achchha hoon jinhonne apni panchavin rani ki santan ko patthar ka bata diya tha. ’
itna kahkar baiga rajakumar mahl ke dvaar ki or baDh gaya kintu uski ye baat sunkar charon raniyon sann rah gain.
‘hamne to ye baat sabse chhipai thi. rajaji ne bhi kisi ko nahin bataya. hamne apni us dasi ko bhi marva diya tha jo ye bhed janti thi. phir is yuvak ko kaise ye bhed malum hai?’ pahli rani chintit hokar boli.
‘haan, ye to baDe sankat ka vishay hai. hamein is yuvak ki gatividhiyon par dhyaan dena hoga. ’ dusri rani ne kaha. iske baad charon raniyon ne apni vishvast dasi ko rajakumar ke pichhe laga diya.
kuch der baad dasi ne aakar raniyon bataya ki wo yuvak dhanush baan chalane aaya hai. raniyon ne ye suna to unhonne yojna banai ki wo yuvak chahe dhanush baan chala pae ya na chala pae kintu is pariksha ke baad use marva dena hoga taki raniyon ka bhed wo kisi aur ko na bata sake. baiga rajakumar ko marvane ke liye raniyon ne do sipahi us sthaan par bhej diye jahan baiga rajakumar ko dhanush baan ki pariksha deni thi. unhen nirdesh de diya ki jaise hi baiga rajakumar baan chalakar dhanush niche tikaye vaise hi ve donon use maar Dalen. raniyan baiga rajakumar ko apne samne marta hua dekhne ke uddeshya se pariksha sthal par ja pahunchi.
‘yuvak! dhanush par baan chaDhakar chalao. yadi tum aisa kar sake to hamein vishvas ho jayega ki ye dhanush baan tumhara hai. hum tumhein tumhara dhanush baan hi nahin denge apitu Dher sara iinam bhi denge!’ raja ne baiga rajakumar se kaha.
‘maharaj! ye dhanush baan mera hi hai! main abhi ise chalakar ye baat siddh kar dunga kintu mujhe kisi iinam ki lalsa nahin hai. yadi aap mujhe iinam ke roop mein kuch dena hi chahte hon to mujhe nyaay dijiyega. ’ baiga rajakumar ne kaha.
‘nyaay? ye kaisa iinam maang rahe ho yuvak?’ raja ne chakit hokar kaha.
‘pahle aap mera dhanush baan chalana dekh len phir main apni baat aspasht kar dunga. ’
baiga rajakumar ne kaha aur dhanush par baan chaDhakar pratyancha kheench kar baan chala diya. baan garjan dhvani karta hua akash ki or utha aur phir badlon ko bhedata hua vapas aakar un donon sipahiyon ke siron ko bhedata hua nikal gaya jo baiga rajakumar ko marne vale the.
ye drishya dekhkar charon raniyan Dar gain. jabki raja baiga rajakumar ka kaushal dekhkar abhibhut ho utha.
‘mango yuvak! jo bhi mangna chahte ho, wo mango!’ raja ne baiga rajakumar se kaha.
‘maharaj! mujhe apni maan ke liye nyaay chahiye’ baiga rajakumar ne kaha.
‘nyaay avashya milega, yuvak! tumhari maan kahan hai? main svayan us mata ka samman karna chahunga jisne tum jaisi veer santan ko janm diya. ’ raja ne kaha.
‘maharaj! yahi to nyaay aur anyay ki baat hai ki meri maan ne mujhe janm diya kintu apaki charon raniyon ne aapse ye kah diya ki meri maan ne ek patthar ko janm diya hai. ’ baiga rajakumar ne kaha.
‘kyaa?’ raja ne chakit hokar raniyon ki or dekha. raniyan samajh gai ki ab unka bhed chhipa nahin rah sakta hai. usi samay sherni apne sher putron ke saath vahan aa gai aur unhonne raniyon ko gher liya. bhay se tharthar kanpti raniyon ne raja ke samne sachchai ugal di. raja ne apni charon raniyon ki kartut ke bare mein suna to wo avak rah gaya.
‘in charon raniyon ke sir munDakar inhen hamare rajya se bahar nikal do!’ raja ne sipahiyon ko adesh diya. sipahiyon ne raniyon ko bandi bana liya aur unke sir munDakar unhen rajya se bahar kar aaye. iske baad raja ne apni panchavi rani arthat baiga rajakumar ki maan ki khoj mein sipahi dauDa diye. dusre din panchavi rani ek ghane jangal mein mil gai jahan wo jhopDi banakar rah rahi thi.
‘putr! mainne apni raniyon ke bahkave mein aakar tumhari maan ke saath ghor anyay kiya. atः ek anyayi raja ko raja bane rahne ka koi adhikar nahin hai. aaj se main tumhein raja ghoshit karta hoon!’ raja ne baiga rajakumar ko apni rajsinhasan saumpte hue kaha.
is prakar baiga rajakumar baiga raja ban gaya. ek din raja ne baiga raja ne puchha ki ye sachchai use kaise pata chali thee? is par baiga raja ne bataya ki ye baat use uski sherni maan ne batai thi kintu ye bhi samjhaya tha ki uchit samay aane par hi main is baat ko prakat karun jisse aapko vishvas ho sake. ye sunkar raja bahut prasann hua. usne sherni aur uske putron ko dhanyavad diya. baiga raja ne bhi apni sherni maan aur sher bhaiyon ki suraksha ke liye us jangal mein shikar karne ki manahi kara di jahan ve log rahte the. iske baad baiga raja nyaypurvak rajya karne laga.
baat bahut purani hai. ek raja tha jiski chaar raniyan theen. raja aur charon raniyon ko ye dukh tha ki unki koi santan nahin thi. raja is vichar se avsad mein Duba rahta ki uttaradhikari ke abhav mein uske baad rajya ka bhaar kaun samhalega? ek din raja ki sabha mein ek adami aaya aur usne bataya ki amuk sthaan par ek ojha rahta hai jo jhaaD phoonk, jadu tona janta hai aur uske mantron ke prabhav se kai baanjh striyon ko santan sukh praapt ho chuka hai. raja ko us adami ki baton par vishvas to nahin hua kintu usne socha ki us ojha se mil lene mein koi hani bhi to nahin hai. ye vichar karke raja apne saath kuch sipahiyon ko lekar ojha se milne chal paDa.
saghan van ke madhya ojha ki jhopDi thi. raja ne ojha ke paas pahunchakar use apni samasya batai.
‘rajan! apaki charon raniyan santan utpann karne yogya nahin hain kintu apaki panchavi rani se aapko ek putr ki prapti hogi. wo putr shurvir hoga aur aapke rajya ke liye ek yogya shasak siddh hoga. ’ ojha ne kaha.
‘kintu meri panchavin rani to hai hi nahin. ’ raja ne kaha.
‘apko abhi lautte samay van mein ek anath baiga yuvati milegi. aap usse vivah kariyega. vahi baiga yuvati apaki rani bankar aapko uttaradhikari pradan karegi. ’ ojha ne kaha.
raja ne ojha ko prnaam kiya aur apne mahl ki or laut chala. raste mein use kisi yuvati ke rone ka svar sunai diya.
‘pata karo ki ye kaun ro raha hai?’ raja ne apne sipahiyon ko adesh diya.
sipahi DhoonDh khoj mein lag ge. anttah unhen ek yuvati dikhai di jo ek peD ke niche baithi ro rahi thi. sipahi use pakaDkar raja ke samne le aaye.
‘tum kaun ho? yahan ghane van mein kyon ro rahi ho?’ raja ne us yuvati se puchha.
‘main ek anath hoon. main apne door ke sambandhiyon ke saath rahti thi kintu aaj un logon ne mujhe yahan van mein lakar chhoD diya. ab mera is duniya mein apna kahne vala koi nahin hai. ’ itna kahkar wo yuvati punah rone lagi.
‘kya tum baiga ho?’ raja ne yuvati se puchha.
‘ji haan! kintu aapne ye kaise jana?’ yuvati ko ashcharya hua.
‘tum itni sundar ho. itni sundar to koi baiga yuvati hi ho sakti hai. tum ghabrao nahin. yadi tumko svikar ho to main tumse vivah karke tumhein apni rani banana chahta hoon. ’ raja ne us yuvati se kaha. raja samajh gaya tha ki ye vahi yuvati hai jiske bare mein ojha ne bataya tha.
yuvati ko bhala kya apatti hoti? har yuvati rani banna chahti hai, us yuvati ne bhi saharsh svikriti de di. raja yuvati ko lekar apne mahl laut aaya. usi din usne baiga yuvati se vivah kar liya aur use apni panchvi rani bana liya. wo yuvati baiga rani kahlane lagi.
baiga rani ke aane se shesh charon raniyon ko achchha nahin laga. ve baiga rani se chiDhne lagin. jab raniyon ko pata chala ki baiga rani garbhavti hai to ve chintit ho uthin. unhen laga ki yadi baiga rani ne santan ko janm diya to un sab ki apeksha baiga rani ka mahatv baDh jayega. jabki raja ko baiga rani ke garbhavti hone ka samchar mila to wo phula nahin samaya. use laga ki ojha ka kathan aksharshah satya ho raha hai. use ab apna uttaradhikari mil jayega.
charon raniyon ne tay kiya ki baiga rani ki santan ko jivit hi nahin rahne dengi aur is baat ki bhanak raja ko bhi nahin lagne dengi ki baiga rani ne santan ko janm diya hai. shaDyantr rachkar charon raniyan baiga rani ki dekhbhal ka naatk karne lagin. santan ke janm ka samay aaya to pahli rani raja ke paas pahunchi.
‘maharaj! ab wo shubh ghaDi aa gai hai jab is rajya ko bhavi raja milega.
aise shubh avsar par aapko mahl se bahar jakar deen dukhiyon ko daan dakshina deni chahiye. ’ pahli rani ne kaha.
‘tum theek kahti ho!’ raja ko apni pahli rani ki baat uchit lagi. usne apne sevkon ko bulaya aur daan dakshina dene mahl se bahar chala gaya.
charon raniyan yahi to chahti theen ki baiga rani jab santan ko janm de, us samay raja mahl mein na rahe. raja ke jane ke baad dusri rani baiga rani ke paas pahunchi.
‘bahan, hum chahti hain ki tumhari santan ko janm lete samay koi kasht na ho isliye tum aisa karo ki dhaan ke kothe ke chhed mein apna sir Dalkar baith jao. isse tumhari santan svasth rahegi. ’ dusri rani ne baiga rani se kaha.
baiga rani thi bholi aur phir bhala kaun si maan aisi hogi jo apni santan ka bhala na chahegi? baiga rani ne dusri rani ki baat maan li aur dhaan ke kothe ke chhed mein apna sir Dalkar baith gai. jaise hi baiga rani baithi vaise hi uski kokh mein halchal hui aur santan ka janm ho gaya. tisri rani pahle se hi taiyar khaDi thi. usne baiga rani ki santan ko jo ki ek sundar putr tha, uthakar chauthi rani ko saump diya aur putr ke sthaan par ek gol patthar rakh diya. chauthi rani ne baiga rani ke putr ko apni dasi ko diya ki wo use le jakar van mein bhumi mein gaaD aaye.
dasi ke jate hi charon raniyon ne baiga rani ka sir dhaan ke kothe se nikala aur vilap karne lagin ki baiga rani ne to putr ko nahin balki patthar ko janm diya hai. tatkal raja ko bulva liya. raja ne putr ke sthaan par patthar dekha to wo agabbula ho utha. use laga ki ojha ne use moorkh banaya aur kisi Dayan ya chuDail ko uske matthe maDh diya hai anyatha kabhi koi stri kisi patthar ko janm kaise de sakti hai?
raja ne baiga rani ko mahl se nikal diya aur vapas van mein bhej diya. baiga rani ke paas putr ke paida hone ka koi sakshya nahin tha atah wo kya kar sakti thee?
usne bhi raja ki aagya ko chupchap svikar kar liya aur dukhi man se van mein chali gai. iske baad charon raniyon ne raja ko samjhaya ki hamein praja ko ye nahin batana chahiye ki usne ek patthar ko janm diya tha anyatha praja ke man par iska bura prabhav paDega. hamein ye ghoshit kar dena chahiye ki baiga rani bachche ko janm dete samay mar gai aur uska bachcha bhi nahin bacha.
‘lekin hum baiga rani ke shav ke badle kiska antim sanskar karenge? raja ne puchha.
‘baiga rani ke shav ke badle main apni dasi ka shav rakh dungi. ’ chauthi rani ne kaha. charon raniyan shaDyantr mein sahayata dene vali us dasi ko bhi jivit nahin chhoDna chahti theen taki vastavik baat kisi ko kabhi bhi pata na chal sake.
charon raniyon ne aisa hi kiya. baiga rani ke shav ke badle dasi ka shav rakh diya aur dhoom dhaam se uska antim sanskar kara diya.
udhar, jab dasi baiga rani ke putr ko bhumi mein gaaD rahi thi to uska ye kritya ek sherni ne dekh liya tha. dasi ke jane ke baad sherni ne bhumi se baiga rani ke putr ko nikala aur apne saath apni gufa mein le gai.
‘lo, main tum logon ke liye ek chhota bhai lai hoon. ’ sherni ne apne shavkon se kaha.
sherni ke chaar shavak the. charon apne chhote bhai ke roop mein baiga rajakumar ko dekhkar bahut prasann hue. sherni bhi apne shavkon ke saath baiga rajakumar ka lalan palan karne lagi. dhire dhire baiga rajakumar aur shavak baDe ho ge. baiga rajakumar ek sundar yuvak ban gaya aur shavak balshali sheron ke roop mein viksit ho ge.
ek din baiga rajakumar ne apni sherni maan se kaha ki mujhe ek dhanush baan dila do jisse main pure parivar ke liye shikar kiya karunga. sherni baiga rajakumar ke liye dhanush baan banvane lohar ke paas pahunchi. lohar ne ek bahut baDa aur bhari bharkam dhanush baan bana diya. sherni ne dhanush baan baiga rajakumar ko de diya. us din se baiga rajakumar apne pure parivar ke liye shikar karne laga.
ek din raja ka ek sipahi bhatakta hua van mein aa pahuncha. usne baiga rajakumar ko dhanush baan se shikar karte dekha. itna baDa dhanush baan usne pahle kabhi nahin dekha tha. usne vichar kiya ki yadi ye dhanush baan main apne raja ko bhent karun to wo mujhe bahut sara iinam dega. is lobh mein paDkar sipahi ne baiga rajakumar ka pichha kiya. shikar karte karte jab baiga rajakumar thakkar sustane baith gaya aur use jhapki lag gai to sipahi ne chupke se uska dhanush baan apni peeth par lada aur bhaag khaDa hua. jab baiga rajakumar ki ankh khuli to use apna dhanush baan nahin dikha. usne bahut DhunDha kintu use nahin mila. wo dukhi man se apni gufa mein laut aaya.
udhar, sipahi ne dhanush baan le jakar raja ko bhent kiya.
‘jab dhanush baan itna baDa aur bhari hai to ise chalane vala bhi bahut baDa hoga. ’ raja ne sipahi se puchha.
‘nahin, maharaj wo to ek sukomal yuvak tha. ’ sipahi ke mukh se asli baat nikal gai.
ye sunkar raja ko sipahi par bahut krodh aaya ki wo use chori ka saman bhent kar raha hai. saath hi use ye jigyasa hui ki wo yuvak kaun hai, dekhne mein kaisa hai? jiska ye dhanush baan hai. raja ne vichar kiya ki ye dhanush vaan us yuvak ko vapas kar dena chahiye aur jab wo yuvak ise lene ayega to use ve dekh bhi lenge.
raja ne DhinDhora pitva diya ki ek ghanush baan use mila hai, jiska bhi ho wo aakar use le jaye. kintu asli malik ki pahchan ke liye use chalakar dikhana hoga.
ye samachar pakshiyon ke dvara sherni ke paas pahuncha. charo sheron ne bhi suna. ve apne chhote bhai ka dhanush baan vapas lane ko udyat ho uthe. kintu sherni ne unhen samjhaya ki unka manushyon ke beech jana uchit nahin hai. baiga rajakumar ko hi jana hoga. iske baad baiga rajakumar raja se milne akele chal paDa. raja ke mahl ke paas pahunchakar use pyaas lag aai. baiga rajakumar mahl ke paas sthit pokhar mein pani pine ko ruka. jis samay wo pani pi raha tha, usi samay mahl ki atari se raja ki charon raniyon ne jhankakar niche dekha. unhen baiga rajakumar dikhai de gaya. charon raniyon ko baiga rajakumar ki vesh bhusha baDi vichitr lagi. ve baiga rajakumar ka uphaas karne lagin.
‘dekho dekho, hamare mahl ke paas ye kaisa pashu aaya hai?’ ek rani ne baiga rajakumar ka mazak uDate hue kaha.
‘haan, mujhe to ye pashu baDa vichitr dikhai paDta hai. dusri rani haan mein ho milati hui boli.
‘ise to raja se kahkar kisi pinjre mein band karva dena chahiye. ’ tisri rani ne hanste hue kaha.
‘nahin nahin, ise to vapas jangal mein bhaga dena chahiye. ’ chauthi rani khilkhilati hui boli.
raniyon ke tane sunkar baiga rajakumar ne apna sir uthakar raniyon ki or dekha phir muskurate hue bola, ‘main pashu ki tarah bhale hi dikh raha hoon kintu un raniyon se to achchha hoon jinhonne apni panchavin rani ki santan ko patthar ka bata diya tha. ’
itna kahkar baiga rajakumar mahl ke dvaar ki or baDh gaya kintu uski ye baat sunkar charon raniyon sann rah gain.
‘hamne to ye baat sabse chhipai thi. rajaji ne bhi kisi ko nahin bataya. hamne apni us dasi ko bhi marva diya tha jo ye bhed janti thi. phir is yuvak ko kaise ye bhed malum hai?’ pahli rani chintit hokar boli.
‘haan, ye to baDe sankat ka vishay hai. hamein is yuvak ki gatividhiyon par dhyaan dena hoga. ’ dusri rani ne kaha. iske baad charon raniyon ne apni vishvast dasi ko rajakumar ke pichhe laga diya.
kuch der baad dasi ne aakar raniyon bataya ki wo yuvak dhanush baan chalane aaya hai. raniyon ne ye suna to unhonne yojna banai ki wo yuvak chahe dhanush baan chala pae ya na chala pae kintu is pariksha ke baad use marva dena hoga taki raniyon ka bhed wo kisi aur ko na bata sake. baiga rajakumar ko marvane ke liye raniyon ne do sipahi us sthaan par bhej diye jahan baiga rajakumar ko dhanush baan ki pariksha deni thi. unhen nirdesh de diya ki jaise hi baiga rajakumar baan chalakar dhanush niche tikaye vaise hi ve donon use maar Dalen. raniyan baiga rajakumar ko apne samne marta hua dekhne ke uddeshya se pariksha sthal par ja pahunchi.
‘yuvak! dhanush par baan chaDhakar chalao. yadi tum aisa kar sake to hamein vishvas ho jayega ki ye dhanush baan tumhara hai. hum tumhein tumhara dhanush baan hi nahin denge apitu Dher sara iinam bhi denge!’ raja ne baiga rajakumar se kaha.
‘maharaj! ye dhanush baan mera hi hai! main abhi ise chalakar ye baat siddh kar dunga kintu mujhe kisi iinam ki lalsa nahin hai. yadi aap mujhe iinam ke roop mein kuch dena hi chahte hon to mujhe nyaay dijiyega. ’ baiga rajakumar ne kaha.
‘nyaay? ye kaisa iinam maang rahe ho yuvak?’ raja ne chakit hokar kaha.
‘pahle aap mera dhanush baan chalana dekh len phir main apni baat aspasht kar dunga. ’
baiga rajakumar ne kaha aur dhanush par baan chaDhakar pratyancha kheench kar baan chala diya. baan garjan dhvani karta hua akash ki or utha aur phir badlon ko bhedata hua vapas aakar un donon sipahiyon ke siron ko bhedata hua nikal gaya jo baiga rajakumar ko marne vale the.
ye drishya dekhkar charon raniyan Dar gain. jabki raja baiga rajakumar ka kaushal dekhkar abhibhut ho utha.
‘mango yuvak! jo bhi mangna chahte ho, wo mango!’ raja ne baiga rajakumar se kaha.
‘maharaj! mujhe apni maan ke liye nyaay chahiye’ baiga rajakumar ne kaha.
‘nyaay avashya milega, yuvak! tumhari maan kahan hai? main svayan us mata ka samman karna chahunga jisne tum jaisi veer santan ko janm diya. ’ raja ne kaha.
‘maharaj! yahi to nyaay aur anyay ki baat hai ki meri maan ne mujhe janm diya kintu apaki charon raniyon ne aapse ye kah diya ki meri maan ne ek patthar ko janm diya hai. ’ baiga rajakumar ne kaha.
‘kyaa?’ raja ne chakit hokar raniyon ki or dekha. raniyan samajh gai ki ab unka bhed chhipa nahin rah sakta hai. usi samay sherni apne sher putron ke saath vahan aa gai aur unhonne raniyon ko gher liya. bhay se tharthar kanpti raniyon ne raja ke samne sachchai ugal di. raja ne apni charon raniyon ki kartut ke bare mein suna to wo avak rah gaya.
‘in charon raniyon ke sir munDakar inhen hamare rajya se bahar nikal do!’ raja ne sipahiyon ko adesh diya. sipahiyon ne raniyon ko bandi bana liya aur unke sir munDakar unhen rajya se bahar kar aaye. iske baad raja ne apni panchavi rani arthat baiga rajakumar ki maan ki khoj mein sipahi dauDa diye. dusre din panchavi rani ek ghane jangal mein mil gai jahan wo jhopDi banakar rah rahi thi.
‘putr! mainne apni raniyon ke bahkave mein aakar tumhari maan ke saath ghor anyay kiya. atः ek anyayi raja ko raja bane rahne ka koi adhikar nahin hai. aaj se main tumhein raja ghoshit karta hoon!’ raja ne baiga rajakumar ko apni rajsinhasan saumpte hue kaha.
is prakar baiga rajakumar baiga raja ban gaya. ek din raja ne baiga raja ne puchha ki ye sachchai use kaise pata chali thee? is par baiga raja ne bataya ki ye baat use uski sherni maan ne batai thi kintu ye bhi samjhaya tha ki uchit samay aane par hi main is baat ko prakat karun jisse aapko vishvas ho sake. ye sunkar raja bahut prasann hua. usne sherni aur uske putron ko dhanyavad diya. baiga raja ne bhi apni sherni maan aur sher bhaiyon ki suraksha ke liye us jangal mein shikar karne ki manahi kara di jahan ve log rahte the. iske baad baiga raja nyaypurvak rajya karne laga.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 176)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।