सिंहभूमि में एक राज्य था। उस राज्य का राजा विलासी प्रवृत्ति का था। उसी राज्य में एक ग़रीब जुलाहा रहता था। उस जुलाहे की पत्नी बहुत सुंदर थी। एक दिन राजा अपने राज्य में भ्रमण पर निकला। उसकी दृष्टि जुलाहे की पत्नी पर पड़ी जो उस समय पानी भरकर लौट रही थी। जुलाहे की पत्नी को देखकर राजा के मन में वासना जाग उठी। उसने जुलाहे और उसकी पत्नी के बारे में पता लगवाया। राजा को जब पता चला कि जुलाहा बहुत ग़रीब है किंतु उसके गाँव के सभी लोग उसे बहुत प्रेम करते हैं तो राजा को लगा कि यदि वह जुलाहे की पत्नी को बलात् अपने राजमहल में ले जाएगा तो गाँव के लोग क्रुद्ध हो उठेंगे। अत: राजा ने युक्ति से काम लेने का निश्चय किया।
राजा ने जुलाहे को अपने महल में बुलाया। जुलाहा राजा का आदेश भला कैसे ठुकराता? वह राजा के सामने उपस्थित हो गया।
‘मैंने सुना है कि तुम बहुत साहसी हो इसलिए मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण काम के लिए चुना है। तुम अभी जाओ और तीन दिन में तीस सियारों के सिर काटकर ले आओ। मुझे एक विशेष अनुष्ठान करना है जिसके लिए मुझे सियारों के सिर की आवश्यकता है।’ राजा ने जुलाहे को आदेश दिया।
‘लेकिन मालिक...।’ जुलाहे ने विनती करना चाहा।
‘यदि तुम हमारे आदेश का पालन नहीं करोगे तो हम तुम्हारा सिर कटवा देंगे।’ राजा ने जुलाहे को टोकते हुए कहा।
मरता क्या न करता। जुलाहा समझ गया कि राजा ने उसकी पत्नी को देख लिया है और इसीलिए उसके मन में खोट आ गया है। अब वह जुलाहे को मरवा कर उसकी पत्नी हड़प लेना चाहता है। जुलाहा दुखी मन से घर लौटा। पत्नी ने जुलाहे को देखा तो उसके दुख का कारण पूछा। जुलाहे ने राजा के आदेश और उसकी कुदृष्टि के बारे में पत्नी को बताया।
‘आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा।’ पत्नी ने जुलाहे को ढाढ़स बंधाया।
‘क्या ठीक हो जाएगा? मैंने आज तक एक ख़रगोश तक तो मारा नहीं है, तीन दिन में तीस सियारों का सिर कैसे हासिल कर पाऊँगा।’ जुलाहे ने चिंतित होते हुए कहा, ‘राजा मुझे मरवाए बिना नहीं छोड़ेगा।’
‘आपको कुछ नहीं होगा। जैसा-जैसा मैं कहूँ, वैसा-वैसा आप करते जाइए।’ जुलाहे की पत्नी ने कहा। वह बहुत समझदार स्त्री थी।
पत्नी के कहने पर जुलाहा जंगल में गया और उसने एक इतनी लंबी सुरंग खोद डाली कि जिसमें तीस सियार आ सकें। इसके बाद दूसरी सुरंग खोदने का अभिनय करने लगा। सियारों का मुखिया बहुत देर से जुलाहे को सुरंग खोदते देख रहा था। जब जुलाहा दूसरी सुरंग खोदने लगा तो वह उत्सुकतावश झाड़ियों से बाहर निकल आया।
‘तुम ये सुरंगें क्यों खोद रहे हो?’ मुखिया सियार ने जुलाहे से पूछा।
‘अरे? तुम्हें पता नहीं है क्या कि आकाश से आग बरसने वाली है? इसीलिए मैं सुरंग खोद रहा हूँ। जब आग बरसेगी तो मैं इसमें छिपकर बच जाऊँगा।’ जुलाहे ने कहा।
‘लेकिन तुम्हारे लिए तो ये एक सुरंग पर्याप्त है फिर ये दूसरी सुरंग क्यों खोद रहे हो?’ मुखिया सियार ने पूछा।
‘मुझे बोंगा देव (देवता) ने आदेश दिया है कि पहले दूसरों के लिए सुरंग खोदो फिर अपने लिए। इसीलिए मैंने ये एक सुरंग खोद ली और अब ये दूसरी खोद रहा हूँ।’ जुलाहे ने कहा।
‘भैया, तुम तो बड़े परोपकारी जीव हो। मैं सियारों का मुखिया हूँ। क्या हम सियार तुम्हारी इस सुरंग में छिप सकते हैं?' मुखिया सियार ने पूछा।
‘क्यों नहीं? ख़ुशी से इसमें छिपो।’ जुलाहे ने कहा। उसी समय जुलाहे की पत्नी जो एक पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठी थी और जिसने एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से अँगारे रखे हुए थे, ऊपर से अँगारे बरसाने शुरू कर दिए।
‘भागो! छिपो! आकाश से आग बरसने लगी।’ जुलाहा चिल्लाया और अपनी छोटी-सी सुरंग में घुस गया। यह देखकर मुखिया सियार को विश्वास हो गया कि आकाश से आग बरसने लगी है। उसने ‘हुआ-हुआ’ करके अपने सभी सियारों को बुलाया और वह भी अपने साथियों सहित जुलाहे द्वारा खोदी गई बड़ी सुरंग में घुस गया। जैसे ही सारे सियार सुरंग में घुसे, वैसे ही जुलाहा अपनी छोटी सुरंग से बाहर निकला और उसने सियारों वाली सुरंग के मुँह को बड़े-से पत्थर से ढाँक दिया।
थोड़ी देर बाद जुलाहे ने सुरंग के मुँह से पत्थर को तनिक सरकाया और सियारों से बोला, ‘अब आकाश से आग बरसना बंद हो गई है। अब तुम लोग एक-एक करके सुरंग से बाहर आ जाओ।
सियार एक-एक करके बाहर आते गए और जुलाहा उनका सिर काटता गया।
इस प्रकार कुल तीस सियारों के सिर इकट्ठे हो गए। इसके बाद जुलाहे की पत्नी पेड़ से नीचे उतर आई। जुलाहे ने उसकी टोकरी में सियारों के सिर रखे और चल पड़ा अपने गाँव की ओर। उसने पहले अपनी पत्नी को अपने घर छोड़ा और फिर सियारों के सिर लेकर राजा के पास पहुँचा। राजा ने सिरों की गिनती की। पूरे तीस के तीस निकले। राजा झुँझला उठा। उसकी योजना विफल हो गई थी। इस पर राजा ने दूसरी योजना बनाई और जुलाहे को अपने पास बुलाया।
‘जुलाहे, तुम बहुत बहादुर हो। तुमने मेरे लिए तीस सियारों के सिर लाए। अब मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए एक लोटा शेरनी का दूध ला दो जिससे मैं एक और अनुष्ठान कर सकूँ।’ राजा ने जुलाहे से कहा।
‘लेकिन महाराज...।’
‘लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, यदि तुम मेरे आदेश का पालन नहीं करोगे तो मैं तुम्हें मृत्युदंड दूँगा और तुम्हारे परिवार को राजसात कर लूँगा।’ राजा ने धमकी दी।
जुलाहा एक बार फिर मुँह लटकाए अपने घर पहुँचा। जुलाहे की पत्नी ने उससे उसके दुख का कारण पूछा। जुलाहे ने राजा के नए आदेश के बारे में बताया।
‘आप चिंता मत करिए। सब ठीक हो जाएगा।’ पत्नी ने जुलाहे को ढाढ़स बंधाया।
‘क्या ठीक हो जाएगा? पिछली बार तो फिर भी सियारों का मामला था किंतु इस बार शेरनी का दूध लाने का प्रश्न है। यह मुझसे नहीं हो सकेगा।’ जुलाहे ने चिंतित होकर कहा।
‘बोंगा देव सब ठीक करेंगे! अब तो बस वैसा ही करिए, जैसा मैं कहूँ।’ जुलाहे की पत्नी ने कहा। इसके बाद जुलाहे की पत्नी ने दूध डालकर मीठे पुए पकाए और कपड़े की एक पोटली में बाँधकर जुलाहे को दे दिया। उसने वह सब कुछ जुलाहे को समझा दिया जो उसे करना था।
जुलाहा मीठे पुए की पोटली लेकर चल पड़ा। जंगल में पहुँचकर उसे एक शेरनी दिखाई दी जो अपने शावकों को दुलार कर शिकार पर चली गई। शेरनी के जाने के बाद जुलाहा शावकों के पास पहुँचा।
‘आप कौन हैं?' शावकों ने पूछा।
‘मैं तुम्हारा मामा हूँ।’ जुलाहे ने कहा।
‘अरे वाह! आप तो दो पैरों वाले हैं फिर भी हमारे मामा हैं। आप हमारे लिए क्या लाए हैं?’ शावकों ने मचलते हुए पूछा।
‘मैं तुम लोगों के लिए पुए लाया हूँ। लो, खा लो!’ जुलाहे ने पुए शावकों को दे दिए। शावकों ने कभी पुए नहीं खाए थे। उन्हें पुए अत्यंत स्वादिष्ट लगे। उन्होंने पेट भरकर पूए खा लिए और जुलाहे के साथ खेलने लगे। थोड़ी देर में शेरनी शिकार करके लौटी। शेरनी को आते देखकर जुलाहा एक पेड़ के पीछे छिप गया।
‘आओ बच्चों, दूध पी लो।‘ शेरनी ने शावकों से कहा।
‘नहीं, पुए खाकर हमारा पेट भर गया है।’ शावकों ने उत्तर दिया। ‘पुए? कौन लाया था पुए?’ शेरनी ने चकित होकर पूछा।
‘दो पैर वाले मामा लाए थे। वे हैं उधर पेड़ के पीछे।’ शावकों ने उत्साहित होकर बताया। तब तक जुलाहा भी पेड़ के पीछे से निकल आया।
‘मैंने तुम्हारे बच्चों को भूखे देखा तो मैंने इन्हें पुए खिला दिए। बच्चों ने पूछा कि मैं कौन हूँ तो मैंने उन्हें कह दिया कि तुम्हारा मामा हूँ ताकि वे डरे नहीं।’ जुलाहे ने शेरनी को बताया।
‘तुमने मेरे बच्चों की भूख शांत करके बड़ा नेक काम किया है। बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूँ?; शेरनी ने पूछा।
‘मुझे अपनी जान बचाने के लिए तुम्हारा दूध चाहिए।’ जुलाहे ने राजा के आदेश के बारे में शेरनी को बताया। शेरनी ने प्रसन्नतापूर्वक एक लोटा दूध दे दिया। जुलाहा दूध लेकर राजा के पास पहुँचा। राजा ने शेरनी का दूध देखा तो वह झल्ला उठा।
उसकी दूसरी योजना भी विफल हो गई। अब राजा ने सोचा कि इस जुलाहे को सीधे-सीधे मरवाना ही होगा।
उधर जुलाहा अपने घर पहुँचा तो उसकी पत्नी ने उसे समझाया कि राजा से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है। वह अतंत: जुलाहे को मरवाकर ही मानेगा।
अत: राजा कोई नया दाँव खेले इसके पहले राजा को मारना होगा। इसके लिए जुलाहे की पत्नी ने एक योजना बनाई और जुलाहे को सिखा-पढ़ा कर राजा के पास भेज दिया।
‘महाराज! मैं आज आपसे अंतिम विदा लेने आया हूँ।’ जुलाहे ने राजा से कहा। ‘हैं? अंतिम विदा?’ राजा चकित रह गया।
‘हाँ, महाराज! मुझे सशरीर स्वर्ग जाने का रास्ता मिल गया है। अब मैं स्वर्ग में जाकर रहूँगा। वहाँ एक से बढ़कर एक सुंदर अप्सराएँ हैं। मैं उनके साथ जीवन बिताऊँगा।’ जुलाहे ने चटखारे लेते हुए कहा।
‘एक से बढ़कर एक सुंदर अप्सराएँ?’ विलासी राजा सुंदर अप्सराओं की चर्चा सुनकर लालायित हो उठा।
‘जी महाराज!’
‘प्रत्येक सुंदर वस्तु पर राजा का अधिकार पहले होता है अत: मैं तुमसे पहले वहाँ जाऊँगा। तुम मुझे स्वर्ग जाने का रास्ता बताओ।’ राजा ने जुलाहे से कहा।
‘किंतु महाराज...’
‘चुप रहो! तुमने यदि मुझे स्वर्ग का रास्ता नहीं दिखाया तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।’ राजा ने जुलाहे को डाँटते हुए कहा।
‘जैसी आपकी आज्ञा।’ जुलाहे ने प्रत्यक्षत: दुखी होते हुए बोला।
इसके बाद जुलाहा राजा को लेकर जंगल में बने एक कुएँ के पास पहुँचा।
‘महाराज! इसी कुएँ से होकर जाता है स्वर्ग का रास्ता।’ जुलाहे ने राजा से कहा।
राजा ने आव देखा न ताव और कुएँ में छलाँग लगा दी। कुआँ था अथाह गहरा।
राजा जैसे ही कुएँ में कूदा वैसे ही जुलाहे की पत्नी भी कुएँ के पास आ गई और पति-पत्नी दोनों ने मिलकर कुएँ को एक बड़े पत्थर से ढाँक दिया। इसके बाद दोनों घर लौटकर ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।
sinhbhumi mein ek rajya tha. us rajya ka raja vilasi prvritti ka tha. usi rajya mein ek gharib julaha rahta tha. us julahe ki patni bahut sundar thi. ek din raja apne rajya mein bhrman par nikla. uski drishti julahe ki patni par paDi jo us samay pani bharkar laut rahi thi. julahe ki patni ko dekhkar raja ke man mein vasana jaag uthi. usne julahe aur uski patni ke bare mein pata lagvaya. raja ko jab pata chala ki julaha bahut gharib hai kintu uske gaanv ke sabhi log use bahut prem karte hain to raja ko laga ki yadi wo julahe ki patni ko balat apne rajamhal mein le jayega to gaanv ke log kruddh ho uthenge. atah raja ne yukti se kaam lene ka nishchay kiya.
raja ne julahe ko apne mahl mein bulaya. julaha raja ka adesh bhala kaise thukrata? wo raja ke samne upasthit ho gaya.
‘mainne suna hai ki tum bahut sahasi ho isliye mainne tumhein ek mahatvpurn kaam ke liye chuna hai. tum abhi jao aur teen din mein tees siyaron ke sir kaat kar le aao. mujhe ek vishesh anushthan karna hai jiske liye mujhe siyaron ke sir ki avashyakta hai. ’ raja ne julahe ko adesh diya.
‘yadi tum hamare adesh ka palan nahin karoge to hum tumhara sir katva denge. ’ raja ne julahe ko tokte hue kaha.
marta kya na karta. julaha samajh gaya ki raja ne uski patni ko dekh liya hai aur isiliye uske man mein khot aa gaya hai. ab wo julahe ko marva kar uski patni haDap lena chahta hai. julaha dukhi man se ghar lauta. patni ne julahe ko dekha to uske dukh ka karan puchha. julahe ne raja ke adesh aur uski kudrishti ke bare mein patni ko bataya.
‘aap chinta na karen, sab theek ho jayega. ’ patni ne julahe ko DhaDhas bandhaya.
‘kya theek ho jayega? mainne aaj tak ek khargosh tak to mara nahin hai, teen din mein tees siyaron ka sir kaise hasil kar paunga. ’ julahe ne chintit hote hue kaha, ‘raja mujhe marvaye bina nahin chhoDega. ’
‘apko kuch nahin hoga. jaisa jaisa main kahun, vaisa vaisa aap karte jaiye. ’ julahe ki patni ne kaha. wo bahut samajhdar stri thi.
patni ke kahne par julaha jangal mein gaya aur usne ek itni lambi surang khod Dali ki jismen tees siyar aa saken. iske baad dusri surang khodne ka abhinay karne laga. siyaron ka mukhiya bahut der se julahe ko surang khodte dekh raha tha. jab julaha dusri surang khodne laga to wo utsuktavash jhaDiyon se bahar nikal aaya.
‘tum ye surangen kyon khod rahe ho?’ mukhiya siyar ne julahe se puchha.
‘are? tumhein pata nahin hai kya ki akash se aag barasne vali hai? isiliye main
surang khod raha hoon. jab aag barsegi to main ismen chhip kar bach jaunga. ’ julahe ne kaha.
‘lekin tumhare liye to ye ek surang paryapt hai phir ye dusri surang kyon khod rahe ho?’ mukhiya siyar ne puchha.
‘mujhe bonga dev (devta) ne adesh diya hai ki pahle dusron ke liye surang khodo phir apne liye. isiliye mainne ye ek surang khod li aur ab ye dusri khod raha
hoon. ’ julahe ne kaha.
‘bhaiya, tum to baDe paropakari jeev ho. main siyaron ka mukhiya hoon. kya hum siyar tumhari is surang mein chhip sakte hain? mukhiya siyar ne puchha.
‘kyon nahin? khushi se ismen chhipo. ’ julahe ne kaha. usi samay julahe ki patni jo ek peD ke uupar chaDhkar baithi thi aur jisne ek mitti ke bartan mein thoDe se angare rakhe hue the, uupar se angare barsane shuru kar diye.
‘bhago! chhipo! akash se aag barasne lagi. ’ julaha chillaya aur apni chhoti si surang mein ghus gaya. ye dekhkar mukhiya siyar ko vishvas ho gaya ki akash se aag barasne lagi hai. usne ‘hua hua’ karke apne sabhi siyaron ko bulaya aur wo bhi apne sathiyon sahit julahe dvara khodi gai baDi surang mein ghus gaya. jaise hi sare siyar surang mein ghuse, vaise hi julaha apni chhoti surang se bahar nikla aur usne siyaron vali surang ke munh ko baDe se patthar se Dhaank diya.
thoDi der baad julahe ne surang ke munh se patthar ko tanik sarkaya aur siyaron se bola,‘ab akash se aag barasna band ho gai hai. ab tum log ek ek karke surang se bahar aa jao.
siyar ek ek karke bahar aate ge aur julaha unka sir katta gaya.
is prakar kul tees siyaron ke sir ikatthe ho ge. iske baad julahe ki patni peD se niche utar aai. julahe ne uski tokari mein siyaron ke sir rakhe aur chal paDa apne gaanv ki or. usne pahle apni patni ko apne ghar chhoDa aur phir siyaron ke sir lekar raja ke paas pahuncha. raja ne siron ki ginti ki. pure tees ke tees nikle. raja jhunjhla utha. uski yojna viphal ho gai thi. is par raja ne dusri yojna banai aur julahe ko apne paas bulaya.
‘julahe, tum bahut bahadur ho. tumne mere liye tees siyaron ke sir laye. ab main chahta hoon ki tum mere liye ek lota sherni ka doodh la do jisse main ek aur
anushthan kar sakun. ’ raja ne julahe se kaha.
‘lekin maharaj. . . . ’
‘lekin vekin kuch nahin, yadi tum mere adesh ka palan nahin karoge to main tumhein mrityudanD dunga aur tumhare parivar ko rajsat kar lunga. ’ raja ne dhamki di.
julaha ek baar phir munh latkaye apne ghar pahuncha. julahe ki patni ne usse uske dukh ka karan puchha. julahe ne raja ke ne adesh ke bare mein bataya.
‘aap chinta mat kariye. sab theek ho jayega. ’ patni ne julahe ko DhaDhas bandhaya.
‘kya theek ho jayega? pichhli baar to phir bhi siyaron ka mamla tha kintu is baar sherni ka doodh lane ka parashn hai. ye mujhse nahin ho sakega. ’ julahe ne chintit hokar kaha.
‘bonga dev sab theek karenge! ab to bas vaisa hi kariye, jaisa main kahun. ’ julahe ki patni ne kaha. iske baad julahe ki patni ne doodh Dalkar mithe pue pakaye aur kapDe ki ek potli mein baandh kar julahe ko de diya. usne wo sab kuch julahe ko samjha diya jo use karna tha.
julaha mithe pue ki potli lekar chal paDa. jangal mein pahunchakar use ek sherni dikhai di jo apne shavkon ko dular kar shikar par chali gai. sherni ke jane ke baad julaha shavkon ke paas pahuncha.
‘aap kaun hain? shavkon ne puchha.
‘main tumhara mama hoon. ’ julahe ne kaha.
‘are vaah! aap to do pairon vale hain phir bhi hamare mama hain. aap hamare liye kya laye hain?’ shavkon ne machalte hue puchha.
‘main tum logon ke liye pue laya hoon. lo, kha lo!’ julahe ne pue shavkon ko de diye. shavkon ne kabhi pue nahin khaye the. unhen pue atyant svadisht lage. unhonne pet bharkar pue kha liye aur julahe ke saath khelne lage. thoDi der mein sherni shikar karke lauti. sherni ko aate dekhkar julaha ek peD ke pichhe chhip gaya.
‘ao bachchon, doodh pi lo. ‘ sherni ne shavkon se kaha.
‘nahin, pue khakar hamara pet bhar gaya hai. ’ shavkon ne uttar diya. ‘pue? kaun laya tha pue?’ sherni ne chakit hokar puchha.
‘do pair vale mama laye the. ve hain udhar peD ke pichhe. ’ shavkon ne utsahit hokar bataya. tab tak julaha bhi peD ke pichhe se nikal aaya.
‘mainne tumhare bachchon ko bhukhe dekha to mainne inhen pue khila diye. bachchon ne puchha ki main kaun hoon to mainne unhen kah diya ki tumhara mama hoon taki ve Dare nahin. ’ julahe ne sherni ko bataya.
‘tumne mere bachchon ki bhookh shaant karke baDa nek kaam kiya hai. batao main tumhare liye kya kar sakti hoon?; sherni ne puchha.
‘mujhe apni jaan bachane ke liye tumhara doodh chahiye. ’ julahe ne raja ke adesh ke bare mein sherni ko bataya. sherni ne prasannatapurvak ek lota doodh de diya. julaha doodh lekar raja ke paas pahuncha. raja ne sherni ka doodh dekha to wo jhalla utha.
uski dusri yojna bhi viphal ho gai. ab raja ne socha ki is julahe ko sidhe sidhe marvana hi hoga.
udhar julaha apne ghar pahuncha to uski patni ne use samjhaya ki raja se pichha chhuDana itna asan nahin hai. wo atantah julahe ko marva kar hi manega.
atah raja koi naya daanv khele iske pahle raja ko marana hoga. iske liye julahe ki patni ne ek yojna banai aur julahe ko sikha paDha kar raja ke paas bhej diya.
‘maharaj! main aaj aapse antim vida lene aaya hoon. ’ julahe ne raja se kaha. ‘hain? antim vida?’ raja chakit rah gaya.
‘haan, maharaj! mujhe sashrir svarg jane ka rasta mil gaya hai. ab main svarg mein jakar rahunga. vahan ek se baDhkar ek sundar apsarayen hain. main unke saath jivan bitaunga. ’ julahe ne chatkhare lete hue kaha.
‘ek se baDhkar ek sundar apsarayen\?’ vilasi raja sundar apsraon ki charcha sunkar lalayit ho utha.
‘ji maharaj!’
‘pratyek sundar vastu par raja ka adhikar pahle hota hai atah main tumse pahle vahan jaunga. tum mujhe svarg jane ka rasta batao. ’ raja ne julahe se kaha.
‘kintu maharaj. . . ’
‘chup raho! tumne yadi mujhe svarg ka rasta nahin dikhaya to main tumhein maar Dalunga. ’ raja ne julahe ko Dantte hue kaha.
iske baad julaha raja ko lekar jangal mein bane ek kuen ke paas pahuncha.
‘maharaj! isi kuen se hokar jata hai svarg ka rasta. ’ julahe ne raja se kaha.
raja ne aav dekha na taav aur kuen mein chhalang laga di. kuan tha athah gahra.
raja jaise hi kuen mein kuda vaise hi julahe ki patni bhi kuen ke paas aa gai aur pati patni donon ne milkar kuen ko ek baDe patthar se Dhaank diya. iske baad donon ghar lautkar khushi khushi rahne lage.
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‘are? tumhein pata nahin hai kya ki akash se aag barasne vali hai? isiliye main
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hoon. ’ julahe ne kaha.
‘bhaiya, tum to baDe paropakari jeev ho. main siyaron ka mukhiya hoon. kya hum siyar tumhari is surang mein chhip sakte hain? mukhiya siyar ne puchha.
‘kyon nahin? khushi se ismen chhipo. ’ julahe ne kaha. usi samay julahe ki patni jo ek peD ke uupar chaDhkar baithi thi aur jisne ek mitti ke bartan mein thoDe se angare rakhe hue the, uupar se angare barsane shuru kar diye.
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thoDi der baad julahe ne surang ke munh se patthar ko tanik sarkaya aur siyaron se bola,‘ab akash se aag barasna band ho gai hai. ab tum log ek ek karke surang se bahar aa jao.
siyar ek ek karke bahar aate ge aur julaha unka sir katta gaya.
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‘julahe, tum bahut bahadur ho. tumne mere liye tees siyaron ke sir laye. ab main chahta hoon ki tum mere liye ek lota sherni ka doodh la do jisse main ek aur
anushthan kar sakun. ’ raja ne julahe se kaha.
‘lekin maharaj. . . . ’
‘lekin vekin kuch nahin, yadi tum mere adesh ka palan nahin karoge to main tumhein mrityudanD dunga aur tumhare parivar ko rajsat kar lunga. ’ raja ne dhamki di.
julaha ek baar phir munh latkaye apne ghar pahuncha. julahe ki patni ne usse uske dukh ka karan puchha. julahe ne raja ke ne adesh ke bare mein bataya.
‘aap chinta mat kariye. sab theek ho jayega. ’ patni ne julahe ko DhaDhas bandhaya.
‘kya theek ho jayega? pichhli baar to phir bhi siyaron ka mamla tha kintu is baar sherni ka doodh lane ka parashn hai. ye mujhse nahin ho sakega. ’ julahe ne chintit hokar kaha.
‘bonga dev sab theek karenge! ab to bas vaisa hi kariye, jaisa main kahun. ’ julahe ki patni ne kaha. iske baad julahe ki patni ne doodh Dalkar mithe pue pakaye aur kapDe ki ek potli mein baandh kar julahe ko de diya. usne wo sab kuch julahe ko samjha diya jo use karna tha.
julaha mithe pue ki potli lekar chal paDa. jangal mein pahunchakar use ek sherni dikhai di jo apne shavkon ko dular kar shikar par chali gai. sherni ke jane ke baad julaha shavkon ke paas pahuncha.
‘aap kaun hain? shavkon ne puchha.
‘main tumhara mama hoon. ’ julahe ne kaha.
‘are vaah! aap to do pairon vale hain phir bhi hamare mama hain. aap hamare liye kya laye hain?’ shavkon ne machalte hue puchha.
‘main tum logon ke liye pue laya hoon. lo, kha lo!’ julahe ne pue shavkon ko de diye. shavkon ne kabhi pue nahin khaye the. unhen pue atyant svadisht lage. unhonne pet bharkar pue kha liye aur julahe ke saath khelne lage. thoDi der mein sherni shikar karke lauti. sherni ko aate dekhkar julaha ek peD ke pichhe chhip gaya.
‘ao bachchon, doodh pi lo. ‘ sherni ne shavkon se kaha.
‘nahin, pue khakar hamara pet bhar gaya hai. ’ shavkon ne uttar diya. ‘pue? kaun laya tha pue?’ sherni ne chakit hokar puchha.
‘do pair vale mama laye the. ve hain udhar peD ke pichhe. ’ shavkon ne utsahit hokar bataya. tab tak julaha bhi peD ke pichhe se nikal aaya.
‘mainne tumhare bachchon ko bhukhe dekha to mainne inhen pue khila diye. bachchon ne puchha ki main kaun hoon to mainne unhen kah diya ki tumhara mama hoon taki ve Dare nahin. ’ julahe ne sherni ko bataya.
‘tumne mere bachchon ki bhookh shaant karke baDa nek kaam kiya hai. batao main tumhare liye kya kar sakti hoon?; sherni ne puchha.
‘mujhe apni jaan bachane ke liye tumhara doodh chahiye. ’ julahe ne raja ke adesh ke bare mein sherni ko bataya. sherni ne prasannatapurvak ek lota doodh de diya. julaha doodh lekar raja ke paas pahuncha. raja ne sherni ka doodh dekha to wo jhalla utha.
uski dusri yojna bhi viphal ho gai. ab raja ne socha ki is julahe ko sidhe sidhe marvana hi hoga.
udhar julaha apne ghar pahuncha to uski patni ne use samjhaya ki raja se pichha chhuDana itna asan nahin hai. wo atantah julahe ko marva kar hi manega.
atah raja koi naya daanv khele iske pahle raja ko marana hoga. iske liye julahe ki patni ne ek yojna banai aur julahe ko sikha paDha kar raja ke paas bhej diya.
‘maharaj! main aaj aapse antim vida lene aaya hoon. ’ julahe ne raja se kaha. ‘hain? antim vida?’ raja chakit rah gaya.
‘haan, maharaj! mujhe sashrir svarg jane ka rasta mil gaya hai. ab main svarg mein jakar rahunga. vahan ek se baDhkar ek sundar apsarayen hain. main unke saath jivan bitaunga. ’ julahe ne chatkhare lete hue kaha.
‘ek se baDhkar ek sundar apsarayen\?’ vilasi raja sundar apsraon ki charcha sunkar lalayit ho utha.
‘ji maharaj!’
‘pratyek sundar vastu par raja ka adhikar pahle hota hai atah main tumse pahle vahan jaunga. tum mujhe svarg jane ka rasta batao. ’ raja ne julahe se kaha.
‘kintu maharaj. . . ’
‘chup raho! tumne yadi mujhe svarg ka rasta nahin dikhaya to main tumhein maar Dalunga. ’ raja ne julahe ko Dantte hue kaha.
iske baad julaha raja ko lekar jangal mein bane ek kuen ke paas pahuncha.
‘maharaj! isi kuen se hokar jata hai svarg ka rasta. ’ julahe ne raja se kaha.
raja ne aav dekha na taav aur kuen mein chhalang laga di. kuan tha athah gahra.
raja jaise hi kuen mein kuda vaise hi julahe ki patni bhi kuen ke paas aa gai aur pati patni donon ne milkar kuen ko ek baDe patthar se Dhaank diya. iske baad donon ghar lautkar khushi khushi rahne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 45)
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