बहुत पुरानी बात है, निकोबार द्वीप समूह के प्रमुख द्वीप कारनिकोबार के एकलामेरो नामक स्थान में दो मित्र रहते थे। एक का नाम था असंगीतोसंग और दूसरे का एनालो। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। वे साथ-साथ आखेट करते, साथ-साथ घूमते और साथ-साथ खाते-पीते। आखेट में जो भी शिकार हाथ लगता वे उसे परस्पर बाँटकर खाते। जो कोई उन्हें देखता उसे यही लगता कि वे दोनों सगे भाई हैं।
यूँ तो एकलामेरो में शिकार और फल-फूल की कमी नहीं थी किंतु दुर्भाग्यवश एक बार भयावह अकाल पड़ा। मीठे जल के अभाव में न तो पशु बचे और न फल-फूल। अब असंगीतोसंग और एनालो को भोजन और पानी के लाले पड़ने लगे। द्वीप के चारों ओर हहराता समुद्र था। वे समुद्री मछली पकड़कर भूख तो मिटा लेते थे लेकिन मीठे पानी के बिना जीवित रहना कठिन हो गया। तब असंगीतोसंग और एनालो ने निश्चय किया कि एकलामेरो छोड़कर किसी अन्य जगह चले जाना चाहिए। कारनिकोबार में उस समय एकलामेरो के अलावा कोई दूसरी जगह नहीं थी। इसलिए दोनों मित्रों ने कारनिकोबार छोड़ देने का मन बनाया। द्वीप के अन्य लोग भी द्वीप छोड़कर जा चुके थे।
असंगीतोसंग और एनालो जंगल के रास्ते चल पड़े। जंगल में ऊँची-ऊँची घास थी। उन्होंने घास काट कर रास्ता बनाने के लिए घास काटने का दाब (घास काटने का औज़ार) रख लिया। वे अपने-अपने दाब से घास काटते जाते, रास्ता बनाते जाते और आगे बढ़ते जाते। घास काटते-काटते दाब की धार कुंद होने लगी।
‘असंगीतोसंग मेरे दाब की धार भोथरी होती जा रही है। यदि इसकी धार तेज़ नहीं की गई तो हम आगे रास्ता नहीं बना पाएँगे और इस जंगल में ही फँसकर रह जाएँगे।’ एनालो ने असंगीतोसंग से कहा।
‘हाँ एनालो, मेरे दाब का भी यही हाल है। इससे तो अब एक तिनका भी नहीं काटा जा रहा है। अपने दाबों में धार तो करनी पड़ेगी।’ असंगीतोसंग ने कहा।
‘लेकिन दाब में धार करने के लिए पानी की आवश्यकता पड़ेगी। यहाँ तो दूर-दूर तक पानी नहीं है।’ एनालो ने चिंतित होते हुए कहा।
‘हाँ, तुम कहते तो सही हो फिर भी तुम यहीं ठहरो, मैं आस-पास देखकर आता हूँ शायद कहीं पानी मिल जाए।’ असंगीतोसंग ने कहा।
‘चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। यहाँ अकेला रुककर क्या करूँगा?’ एनालो ने कहा।
‘नहीं, तुम यहीं ठहरो! जब तक मैं पानी लेकर आता हूँ तब तक तुम आराम करो। दोनों एक साथ थक जाएँगे तो आगे घास काटने में कठिनाई होगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो को समझाया और अकेला ही जंगल में आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाने पर असंगीतोसंग को घासविहीन समतल भूमि दिखाई दी। असंगीतोसंग वहीं रुक गया। उसने उस भूमि को अपने कपड़ों से साफ़ किया और फिर घुटनों के बल बैठकर कोई मंत्र पढ़ने लगा। मंत्र पढ़ने के बाद उसने अपनी कोहनी से भूमि को रगड़ा तो भूमि से जल का स्रोत फूट पड़ा। असंगीतोसंग ने एक बड़ी-सी सीप में पानी भरा और फिर मंत्र पढ़ने लगा। देखते ही देखते भूमि फिर पहले जैसी शुष्क हो गई और जल-स्रोत लुप्त हो गया।
असंगीतोसंग पानी से भरी सीप लेकर अपने मित्र एनालो के पास पहुँचा। पानी देखकर एनालो के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
‘ये समुद्र का खारा पानी है या मीठा पानी?’ एनालो ने असंगीतोसंग से पूछा ‘ये मीठा पानी है।’ असंगीतोसंग ने बताया।
‘मीठा पानी? ये कहाँ मिला तुम्हें?’ एनालो चकित रह गया। उसने असंगीतोसंग से पूछा, ‘मेरे प्रिय मित्र, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम सचमुच मीठा पानी लाए हो। जब इस द्वीप में मीठे पानी की एक बूँद नहीं बची है तब तुम्हें यह मीठा पानी कहाँ से मिल गया?’
‘कहीं से भी मिला हो तुम्हें इससे क्या? तुम्हें पानी की आवश्यकता थी, दाब में धार करने के लिए भी और पीने के लिए भी, सो मैंने कहीं से पानी खोज निकाला। अब तुम पानी पियो, दाब में धार तेज़ करो फिर हम आगे बढ़ेंगे।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।
‘मुझे और कहीं नहीं जाना है, तुम तो मुझे उस स्थान पर ले चलो जहाँ से तुम ये पानी लाए हो।’ एनालो ने हठ करते हुए कहा।
‘अरे, मैं तो भटकते-भटकते अचानक उस स्थान पर पहुँच गया था। मैं फिर से वह स्थान नहीं ढूँढ़ पाऊँगा। हठ मत करो, चलो हमें जल्दी से यहाँ से आगे बढ़ना है।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।
एनालो को लगा कि असंगीतोसंग उसे मीठे पानी का स्रोत दिखाना नहीं चाहता है इसीलिए टाल रहा है। असंगीतोसंग ने आज तक उससे कुछ भी नहीं छिपाया था लेकिन मीठे पानी के स्रोत की जानकारी छिपा रहा था। यह बात एनालो को बहुत बुरी लगी। उसने असंगीतोसंग को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया।
‘मैं समझ गया हूँ कि तुम्हारे मन में खोट आ गया है इसीलिए तुम मुझे मीठे पानी का स्रोत नहीं बता रहे हो। तुम्हें भय है कि मैं उस स्रोत पर अधिकार कर लूँगा। है न!’ एनालो ने क्रोधित होते हुए कहा।
‘नहीं मित्र, ऐसी बात नहीं है।' असंगीतोसंग ने एनालो को समझाने का प्रयास किया। वस्तुत: जिस देवता ने असंगीतोसंग को जादुई शक्तियाँ दी थीं उसने असंगीतोसंग से वादा लिया था कि वह अपनी शक्तियों के बारे में अपने जीते जी किसी को नहीं बताएगा और अपनी शक्तियों को सिर्फ़ अच्छे काम के लिए ही उपयोग में लाएगा। इसलिए असंगीतोसंग चाहकर भी एनालो को सच्चाई नहीं बता पा रहा था।
असंगीतोसंग एनालो को जितना ही समझाने का प्रयास करता, एनालो का क्रोध उतना ही बढ़ता जाता। कहते हैं कि क्रोध में मनुष्य अंधा हो जाता है, उसे भले-बुरे की समझ नहीं रह जाती है। यही एनालो के साथ हुआ। क्रोध की पराकाष्ठा पर पहुँचकर एनालो की मति मारी गई और उसने अपने दाब से असंगीतोसंग की गर्दन काट दी। असंगीतोसंग का सिर कट कर भूमि पर जा गिरा। एनालो को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ। उसने असंगीतोसंग का धड़ वहीं भूमि में गाड़ दिया और सिर लेकर अपने घर लौट आया। एनालो ने असंगीतोसंग के सिर को अपने कमरे में टाँग दिया ताकि वह प्रतिदिन असंगीतोसंग को कोस सके।
मगर हुआ इसके विपरीत। रात होते ही असंगीतोसंग का सिर बोलने लगता। वह अपने मित्र एनालो से हँसी-ठिठोली करता, उसे किस्से-कहानी सुनाने लगता। एनालो को यह सब देखकर डर लगने लगता। वह अपने घर के बाहर सोने जाता तो असंगीतोसंग का सिर उसे पुकार कर अपने पास आने को कहता। धीरे-धीरे एनालो के मन में भय बढ़ता गया और एक दिन उसने अपना घर छोड़ दिया और दूसरे स्थान पर जाकर बस गया। उसने असंगीतोसंग का सिर अपने पुराने घर में ही छोड़ दिया।
कुछ दिन बाद अकाल की स्थिति सुधर गई। वर्षा हुई तो फल-फूल, पशु-पक्षियों की कमी नहीं रही। कारनिकोबार के पुराने निवासी भी अपने पुराने निवास में धीरे-धीरे लौट आए। एनालो को कभी-कभी अपने मित्र असंगीतोसंग की याद आती तो उसका मन कडुवाहट से भर जाता। वह तो असंगीतोसंग को कृतघ्न ही मानता का। इस घटना के बाद से एनाली एकाकी अनुभव करने लगा था। अत: उसने विवाह करने का निश्चय किया।
वैवाहिक जीवन ने एनालो के मन से पुरानी स्मृतियाँ धुँधली कर दीं। कुछ समय बाद एनालो एक सुंदर पुत्री का पिता बना। इसके बाद तो एनालो की सारी दुनिया अपनी बेटी के चारो ओर सिमट गई। बेटी जैसे-जैसे युवा होती गई वैसे-वैसे उसकी सुंदरता में निखार आता गया। एनालो ने विचार किया कि द्वीप के सबसे सुंदर युवक से अपनी बेटी का विवाह किया जाए। उसने द्वीप के सबसे सुंदर युवक से अपनी बेटी का विवाह तय किया और विवाह की तैयारियाँ करने लगा।
दुर्भाग्यवश, विवाह कुछ दिन पहले एनालो की बेटी बीमार पड़ गई। बीमारी थी कि ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एनालो जितनी दवा कराता, बीमारी उतनी बढ़ जाती। कोई भी वैद्य उस बीमारी को ठीक-ठीक पहचान नहीं पा रहा था। अपनी बेटी का निरंतर गिरता स्वास्थ्य देख-देखकर एनालो और उसकी पत्नी का कलेजा मुँह को आता।
‘आप किसी भी तरह से मेरी बेटी के प्राण बचा लीजिए अन्यथा मैं भी अपने प्राण त्याग दूँगी।’ एनालो की पत्नी ने व्याकुल होकर एनालो से कहा।
‘ओह, मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ! देखना, अगर मेरी बेटी को कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूँगा। मैं भी अपने प्राण दे दूँगा।’ एनालो ने हताश होकर कहा।
एनालो अपनी बेटी की शैया के पास बैठा हुआ था कि तभी उसे नींद आ गई। सपने में उसने देखा कि उसका मित्र असंगीतोसंग उसके सामने खड़ा है।
‘मित्र एनालो, तुम चिंता मत करो। तुम्हारी बेटी को कुछ नहीं होगा। वह बिलकुल ठीक हो जाएगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो ढाढ़स बाँधते हुए कहा।
‘वह कैसे ठीक होगी असंगीतोसंग, किसी भी दवा से उसे लाभ नहीं हो रहा है।’ एनालो ने व्यथित स्वर में कहा।
‘सुनो मित्र, मैं जैसा कहता हूँ तुम वैसा करो। देखना, तुम्हारी बेटी अवश्य ठीक हो जाएगी।’ असंगीतोसंग ने एनालो से कहा।
‘बताओ मुझे क्या करना है?’ एनालो ने उद्विग्न होकर असंगीतोसंग से पूछा।
‘तुम्हें करना ये है कि तुम अपने पुराने घर जाओ। वहाँ मेरा सिर तुमने खूँटे पर लटका रखा है। मेरे सिर को खूँटे से उतार कर भूमि में गाड़ दो जिससे मुझे मुक्ति मिल जाएगी। मुझे मुक्ति मिलते ही उस स्थान पर एक पेड़ उग आएगा जहाँ तुम मेरा सिर गाड़ोगे। उस पेड़ पर तुरंत एक फल लगेगा। तुम उस फल को तोड़ लेना। उस फल के बीच में पानी भरा होगा। वह पानी तुम अपनी बेटी को पिलाना। देखना, तुम्हारी बेटी पानी पीते ही स्वस्थ हो जाएगी।’ इतना कहकर असंगीतोसंग अदृश्य हो गया और एनालो की भी नींद टूट गई।
जागने पर एनालो ने अपने स्वप्न पर विचार किया। उसे लगा कि बेटी के प्राण बचाने के लिए यह प्रयास भी करके देख लेना चाहिए।
एनालो उसी समय उठकर अपने पुराने घर की ओर चल पड़ा। अपने पुराने घर में पहुँचकर एनालो ने खूँटे पर टँगे हुए असंगीतोसंग के सिर को खूँटे से उतारा और विधि-विधान पूर्वक भूमि में गाड़ दिया। थोड़ी ही देर में उस जगह एक पेड़ उग आया। देखते ही देखते वह पेड़ ऊँचा, और ऊँचा होता चला गया। जैसे ही पेड़ की ऊँचाई बढ़नी बंद हुई वैसे ही उसमें एक फल दिखाई देने लगा।
एनालो किसी प्रकार उस पेड़ पर चढ़ गया और उसने वह फल तोड़ लिया। फल तोड़कर एनालो उसे अपने नए घर में अपनी बेटी के पास ले आया। एनालो ने फल को सावधानी पूर्वक तोड़ा और उसमें भरे हुए पानी को अपनी बेटी को पिला दिया। जैसा कि असंगीतोसंग ने कहा था वैसा ही हुआ। फल का पानी पीते ही एनालो की बेटी के चेहरे की रौनक लौट आई। उसकी बीमारी दूर हो गई और वह स्वस्थ हो गई।
अपनी बेटी को स्वस्थ देखकर एनालो बहुत ख़ुश हुआ। अब उसे समझ में आया कि उसके मित्र असंगीतोसंग ने उससे कपट नहीं किया था अपितु वह तो जादुई शक्तियों का स्वामी था। इसीलिए उसने मीठे पानी के जादुई स्रोत के बारे में नहीं बताया था।
एनालो को अपनी करनी पर बड़ा पछतावा हुआ कि उसने क्रोध में आकर असंगीतोसंग की हत्या कर दी थी। किंतु असंगीतोसंग ने फिर भी एक सच्चे मित्र की भाँति संकट के समय उसकी सहायता की।
उस दिन के बाद कारनिकोबार में असंगीतोसंग के पेड़ उग आए जो वस्तुत: नारियल के पेड़ थे। आज भी निकोबार के शेम्फेन आदिवासी मानते हैं कि नारियल की उत्पत्ति असंगीतोसंग के कटे हुए सिर से हुई है।
bahut purani baat hai, nikobar dveep samuh ke pramukh dveep karanikobar ke eklamero namak sthaan mein do mitr rahte the. ek ka naam tha asangitosang aur dusre ka enalo. donon mein ghanishth mitrata thi. ve saath saath akhet karte, saath saath ghumte aur saath saath khate pite. akhet mein jo bhi shikar haath lagta ve use paraspar bantakar khate. jo koi unhen dekhta use yahi lagta ki ve donon sage bhai hain.
yoon to eklamero mein shikar aur phal phool ki kami nahin thi kintu durbhagyavash ek baar bhayavah akal paDa. mithe jal ke abhav mein na to pashu bache aur na phal phool. ab asangitosang aur enalo ko bhojan aur pani ke lale paDne lage. dveep ke charon or hahrata samudr tha. ve samudri machhli pakaDkar bhookh to mita lete the lekin mithe pani ke bina jivit rahna kathin ho gaya. tab asangitosang aur enalo ne nishchay kiya ki eklamero chhoDkar kisi anya jagah chale jana chahiye. karanikobar mein us samay eklamero ke alava koi dusri jagah nahin thi. isliye donon mitron ne karanikobar chhoD dene ka man banaya. dveep ke anya log bhi dveep chhoDkar ja chuke the.
asangitosang aur enalo jangal ke raste chal paDe. jangal mein uunchi uunchi ghaas thi. unhonne ghaas kaat kar rasta banane ke liye ghaas katne ka daab (ghaas katne ka aujar) rakh liya. ve apne apne daab se ghaas katte jate, rasta banate jate aur aage baDhte jate. ghaas katte katte daab ki dhaar kund hone lagi.
‘asangitosang mere daab ki dhaar bhothri hoti ja rahi hai. yadi iski dhaar tez nahin ki gai to hum aage rasta nahin bana payenge aur is jangal mein hi phans kar rah jayenge. ’ enalo ne asangitosang se kaha.
‘haan enalo, mere daab ka bhi yahi haal hai. isse to ab ek tinka bhi nahin kata ja raha hai. apne dabon mein dhaar to karni paDegi. ’ asangitosang ne kaha.
‘lekin daab mein dhaar karne ke liye pani ki avashyakta paDegi. yahan to door door tak pani nahin hai. ’ enalo ne chintit hote hue kaha.
‘haan, tum kahte to sahi ho phir bhi tum yahin thahro, main aas paas dekhkar aata hoon shayad kahin pani mil jaye. ’ asangitosang ne kaha.
‘chalo, main bhi tumhare saath chalta hoon. yahan akela rukkar kya karunga?’ enalo ne kaha.
‘nahin, tum yahin thahro! jab tak main pani lekar aata hoon tab tak tum aram karo. donon ek saath thak jayenge to aage ghaas katne mein kathinai hogi. ’ asangitosang ne enalo ko samjhaya aur akela hi jangal mein aage baDh gaya.
kuch door jane par asangitosang ko ghasavihin samtal bhumi dikhai di. asangitosang vahin ruk gaya. usne us bhumi ko apne kapDon se saaf kiya aur phir ghutnon ke bal baithkar koi mantr paDhne laga. mantr paDhne ke baad usne apni kohni se bhumi ko ragDa to bhumi se jal ka srot phoot paDa. asangitosang ne ek baDi si seep mein pani bhara aur phir mantr paDhne laga. dekhte hi dekhte bhumi phir pahle jaisi shushk ho gai aur jal srot lupt ho gaya.
asangitosang pani se bhari seep lekar apne mitr enalo ke paas pahuncha. pani dekhkar enalo ke ashcharya ka thikana nahin raha.
‘ye samudr ka khara pani hai ya mitha pani?’ enalo ne asangitosang se puchha ‘ye mitha pani hai. ’ asangitosang ne bataya.
‘mitha pani? ye kahan mila tumhen?’ enalo chakit rah gaya. usne asangitosang se puchha, ‘mere priy mitr, mujhe vishvas nahin ho raha hai ki tum sachmuch mitha pani laye ho. jab is dveep mein mithe pani ki ek boond nahin bachi hai tab tumhein ye mitha pani kahan se mil gaya?’
‘kahin se bhi mila ho tumhein isse kyaa? tumhein pani ki avashyakta thi, daab mein dhaar karne ke liye bhi aur pine ke liye bhi, so mainne kahin se pani khoj nikala. ab tum pani piyo, daab mein dhaar tez karo phir hum aage baDhenge. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
‘mujhe aur kahin nahin jana hai, tum to mujhe us sthaan par le chalo jahan se tum ye pani laye ho. ’ enalo ne hath karte hue kaha.
‘are, main to bhatakte bhatakte achanak us sthaan par pahunch gaya tha. main phir se wo sthaan nahin DhoonDh paunga. hath mat karo, chalo hamein jaldi se yahan se aage baDhna hai. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
enalo ko laga ki asangitosang use mithe pani ka srot dikhana nahin chahta hai isiliye taal raha hai. asangitosang ne aaj tak usse kuch bhi nahin chhipaya tha lekin mithe pani ke srot ki jankari chhipa raha tha. ye baat enalo ko bahut buri lagi. usne asangitosang ko bura bhala kahna shuru kar diya.
‘main samajh gaya hoon ki tumhare man mein khot aa gaya hai isiliye tum mujhe mithe pani ka srot nahin bata rahe ho. tumhein bhay hai ki main us srot par adhikar kar lunga. hai na!’ enalo ne krodhit hote hue kaha.
‘nahin mitr, aisi baat nahin hai. asangitosang ne enalo ko samjhane ka prayas kiya. vastutah jis devta ne asangitosang ko jadui shaktiyan di theen usne asangitosang se vada liya tha ki wo apni shaktiyon ke bare mein apne jite ji kisi ko nahin batayega aur apni shaktiyon ko sirf achchhe kaam ke liye hi upyog mein layega. isliye asangitosang chaah kar bhi enalo ko sachchai nahin bata pa raha tha.
asangitosang enalo ko jitna hi samjhane ka prayas karta, enalo ka krodh utna hi baDhta jata. kahte hain ki krodh mein manushya andha ho jata hai, use bhale bure ki samajh nahin rah jati hai. yahi enalo ke saath hua. krodh ki parakashtha par pahunchakar enalo ki mati mari gai aur usne apne daab se asangitosang ki gardan kaat di. asangitosang ka sir kat kar bhumi par ja gira. enalo ko itne par bhi santosh nahin hua. usne asangitosang ka dhaD vahin bhumi mein gaaD diya aur sir lekar apne ghar laut aaya. enalo ne asangitosang ke sir ko apne kamre mein taang diya taki wo pratidin asangitosang ko kos sake.
magar hua iske viprit. raat hote hi asangitosang ka sir bolne lagta. wo apne mitr enalo se hansi thitholi karta, use kisse kahani sunane lagta. enalo ko ye sab dekhkar Dar lagne lagta. wo apne ghar ke bahar sone jata to asangitosang ka sir use pukar kar apne paas aane ko kahta. dhire dhire enalo ke man mein bhay baDhta gaya aur ek din usne apna ghar chhoD diya aur dusre sthaan par jakar bas gaya. usne asangitosang ka sir apne purane ghar mein hi chhoD diya.
kuch din baad akal ki sthiti sudhar gai. varsha hui to phal phool, pashu pakshiyon ki kami nahin rahi. karanikobar ke purane nivasi bhi apne purane nivas mein dhire dhire laut aaye. enalo ko kabhi kabhi apne mitr asangitosang ki yaad aati to uska man kaDuvahat se bhar jata. wo to asangitosang ko kritaghn hi manata ka. is ghatna ke baad se enali ekaki anubhav karne laga tha. atah usne vivah karne ka nishchay kiya.
vaivahik jivan ne enalo ke man se purani smritiyan dhundhli kar deen. kuch samay baad enalo ek sundar putri ka pita bana. iske baad to enalo ki sari duniya apni beti ke charo or simat gai. beti jaise jaise yuva hoti gai vaise vaise uski sundarta mein nikhar aata gaya. enalo ne vichar kiya ki dveep ke sabse sundar yuvak se apni beti ka vivah kiya jaye. usne dveep ke sabse sundar yuvak se apni beti ka vivah tay kiya aur vivah ki taiyariyan karne laga.
durbhagyavash, vivah kuch din pahle enalo ki beti bimar paD gai. bimari thi ki theek hone ka naam hi nahin le rahi thi. enalo jitni dava karata, bimari utni baDh jati. koi bhi vaidya us bimari ko theek theek pahchan nahin pa raha tha. apni beti ka nirantar girta svasthya dekh dekhkar enalo aur uski patni ka kaleja munh ko aata.
‘aap kisi bhi tarah se meri beti ke praan bacha lijiye anyatha main bhi apne praan tyaag dungi. ’ enalo ki patni ne vyakul hokar enalo se kaha.
‘oh, main kuch nahin kar pa raha hoon! dekhana, agar meri beti ko kuch ho gaya to main bhi jivit nahin rahunga. main bhi apne praan de dunga. ’ enalo ne hatash hokar kaha.
enalo apni beti ki shaiya ke paas baitha hua tha ki tabhi use neend aa gai. sapne mein usne dekha ki uska mitr asangitosang uske samne khaDa hai.
‘mitr enalo, tum chinta mat karo. tumhari beti ko kuch nahin hoga. wo bilkul theek ho jayegi. ’ asangitosang ne enalo DhaDhas bandhte hue kaha.
‘vah kaise theek hogi asangitosang, kisi bhi dava se use laabh nahin ho raha hai. ’ enalo ne vyathit svar mein kaha.
‘suno mitr, main jaisa kahta hoon tum vaisa karo. dekhana, tumhari beti avashya theek ho jayegi. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
‘batao mujhe kya karna hai?’ enalo ne udvign hokar asangitosang se puchha.
‘tumhen karna ye hai ki tum apne purane ghar jao. vahan mera sir tumne khunte par latka rakha hai. mere sir ko khunte se utaar kar bhumi mein gaaD do jisse mujhe mukti mil jayegi. mujhe mukti milte hi us sthaan par ek peD ug ayega jahan tum mera sir gaDoge. us peD par turant ek phal lagega. tum us phal ko toD lena. us phal ke beech mein pani bhara hoga. wo pani tum apni beti ko pilana. dekhana, tumhari beti pani pite hi svasth ho jayegi. ’ itna kahkar asangitosang adrishya ho gaya aur enalo ki bhi neend toot gai.
jagne par enalo ne apne svapn par vichar kiya. use laga ki beti ke praan bachane ke liye ye prayas bhi karke dekh lena chahiye.
enalo usi samay uth kar apne purane ghar ki or chal paDa. apne purane ghar mein pahunchakar enalo ne khunte par tange hue asangitosang ke sir ko khunte se utara aur vidhi vidhan purvak bhumi mein gaaD diya. thoDi hi der mein us jagah ek peD ug aaya. dekhte hi dekhte wo peD uncha, aur uncha hota chala gaya. jaise hi peD ki uunchai baDhni band hui vaise hi usmen ek phal dikhai dene laga.
enalo kisi prakar us peD par chaDh gaya aur usne wo phal toD liya. phal toDkar enalo use apne ne ghar mein apni beti ke paas le aaya. enalo ne phal ko savadhani purvak toDa aur usmen bhare hue pani ko apni beti ko pila diya. jaisa ki asangitosang ne kaha tha vaisa hi hua. phal ka pani pite hi enalo ki beti ke chehre ki raunak laut aai. uski bimari door ho gai aur wo svasth ho gai.
apni beti ko svasth dekhkar enalo bahut khush hua. ab use samajh mein aaya ki uske mitr asangitosang ne usse kapat nahin kiya tha apitu wo to jadui shaktiyon ka svami tha. isiliye usne mithe pani ke jadui srot ke bare mein nahin bataya tha.
enalo ko apni karni par baDa pachhtava hua ki usne krodh mein aakar asangitosang ki hatya kar di thi. kintu asangitosang ne phir bhi ek sachche mitr ki bhanti sankat ke samay uski sahayata ki.
us din ke baad karanikobar mein asangitosang ke peD ug aaye jo vastutah nariyal ke peD the. aaj bhi nikobar ke shemphen adivasi mante hain ki nariyal ki utpatti asangitosang ke kate hue sir se hui hai.
bahut purani baat hai, nikobar dveep samuh ke pramukh dveep karanikobar ke eklamero namak sthaan mein do mitr rahte the. ek ka naam tha asangitosang aur dusre ka enalo. donon mein ghanishth mitrata thi. ve saath saath akhet karte, saath saath ghumte aur saath saath khate pite. akhet mein jo bhi shikar haath lagta ve use paraspar bantakar khate. jo koi unhen dekhta use yahi lagta ki ve donon sage bhai hain.
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‘haan, tum kahte to sahi ho phir bhi tum yahin thahro, main aas paas dekhkar aata hoon shayad kahin pani mil jaye. ’ asangitosang ne kaha.
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‘ye samudr ka khara pani hai ya mitha pani?’ enalo ne asangitosang se puchha ‘ye mitha pani hai. ’ asangitosang ne bataya.
‘mitha pani? ye kahan mila tumhen?’ enalo chakit rah gaya. usne asangitosang se puchha, ‘mere priy mitr, mujhe vishvas nahin ho raha hai ki tum sachmuch mitha pani laye ho. jab is dveep mein mithe pani ki ek boond nahin bachi hai tab tumhein ye mitha pani kahan se mil gaya?’
‘kahin se bhi mila ho tumhein isse kyaa? tumhein pani ki avashyakta thi, daab mein dhaar karne ke liye bhi aur pine ke liye bhi, so mainne kahin se pani khoj nikala. ab tum pani piyo, daab mein dhaar tez karo phir hum aage baDhenge. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
‘mujhe aur kahin nahin jana hai, tum to mujhe us sthaan par le chalo jahan se tum ye pani laye ho. ’ enalo ne hath karte hue kaha.
‘are, main to bhatakte bhatakte achanak us sthaan par pahunch gaya tha. main phir se wo sthaan nahin DhoonDh paunga. hath mat karo, chalo hamein jaldi se yahan se aage baDhna hai. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
enalo ko laga ki asangitosang use mithe pani ka srot dikhana nahin chahta hai isiliye taal raha hai. asangitosang ne aaj tak usse kuch bhi nahin chhipaya tha lekin mithe pani ke srot ki jankari chhipa raha tha. ye baat enalo ko bahut buri lagi. usne asangitosang ko bura bhala kahna shuru kar diya.
‘main samajh gaya hoon ki tumhare man mein khot aa gaya hai isiliye tum mujhe mithe pani ka srot nahin bata rahe ho. tumhein bhay hai ki main us srot par adhikar kar lunga. hai na!’ enalo ne krodhit hote hue kaha.
‘nahin mitr, aisi baat nahin hai. asangitosang ne enalo ko samjhane ka prayas kiya. vastutah jis devta ne asangitosang ko jadui shaktiyan di theen usne asangitosang se vada liya tha ki wo apni shaktiyon ke bare mein apne jite ji kisi ko nahin batayega aur apni shaktiyon ko sirf achchhe kaam ke liye hi upyog mein layega. isliye asangitosang chaah kar bhi enalo ko sachchai nahin bata pa raha tha.
asangitosang enalo ko jitna hi samjhane ka prayas karta, enalo ka krodh utna hi baDhta jata. kahte hain ki krodh mein manushya andha ho jata hai, use bhale bure ki samajh nahin rah jati hai. yahi enalo ke saath hua. krodh ki parakashtha par pahunchakar enalo ki mati mari gai aur usne apne daab se asangitosang ki gardan kaat di. asangitosang ka sir kat kar bhumi par ja gira. enalo ko itne par bhi santosh nahin hua. usne asangitosang ka dhaD vahin bhumi mein gaaD diya aur sir lekar apne ghar laut aaya. enalo ne asangitosang ke sir ko apne kamre mein taang diya taki wo pratidin asangitosang ko kos sake.
magar hua iske viprit. raat hote hi asangitosang ka sir bolne lagta. wo apne mitr enalo se hansi thitholi karta, use kisse kahani sunane lagta. enalo ko ye sab dekhkar Dar lagne lagta. wo apne ghar ke bahar sone jata to asangitosang ka sir use pukar kar apne paas aane ko kahta. dhire dhire enalo ke man mein bhay baDhta gaya aur ek din usne apna ghar chhoD diya aur dusre sthaan par jakar bas gaya. usne asangitosang ka sir apne purane ghar mein hi chhoD diya.
kuch din baad akal ki sthiti sudhar gai. varsha hui to phal phool, pashu pakshiyon ki kami nahin rahi. karanikobar ke purane nivasi bhi apne purane nivas mein dhire dhire laut aaye. enalo ko kabhi kabhi apne mitr asangitosang ki yaad aati to uska man kaDuvahat se bhar jata. wo to asangitosang ko kritaghn hi manata ka. is ghatna ke baad se enali ekaki anubhav karne laga tha. atah usne vivah karne ka nishchay kiya.
vaivahik jivan ne enalo ke man se purani smritiyan dhundhli kar deen. kuch samay baad enalo ek sundar putri ka pita bana. iske baad to enalo ki sari duniya apni beti ke charo or simat gai. beti jaise jaise yuva hoti gai vaise vaise uski sundarta mein nikhar aata gaya. enalo ne vichar kiya ki dveep ke sabse sundar yuvak se apni beti ka vivah kiya jaye. usne dveep ke sabse sundar yuvak se apni beti ka vivah tay kiya aur vivah ki taiyariyan karne laga.
durbhagyavash, vivah kuch din pahle enalo ki beti bimar paD gai. bimari thi ki theek hone ka naam hi nahin le rahi thi. enalo jitni dava karata, bimari utni baDh jati. koi bhi vaidya us bimari ko theek theek pahchan nahin pa raha tha. apni beti ka nirantar girta svasthya dekh dekhkar enalo aur uski patni ka kaleja munh ko aata.
‘aap kisi bhi tarah se meri beti ke praan bacha lijiye anyatha main bhi apne praan tyaag dungi. ’ enalo ki patni ne vyakul hokar enalo se kaha.
‘oh, main kuch nahin kar pa raha hoon! dekhana, agar meri beti ko kuch ho gaya to main bhi jivit nahin rahunga. main bhi apne praan de dunga. ’ enalo ne hatash hokar kaha.
enalo apni beti ki shaiya ke paas baitha hua tha ki tabhi use neend aa gai. sapne mein usne dekha ki uska mitr asangitosang uske samne khaDa hai.
‘mitr enalo, tum chinta mat karo. tumhari beti ko kuch nahin hoga. wo bilkul theek ho jayegi. ’ asangitosang ne enalo DhaDhas bandhte hue kaha.
‘vah kaise theek hogi asangitosang, kisi bhi dava se use laabh nahin ho raha hai. ’ enalo ne vyathit svar mein kaha.
‘suno mitr, main jaisa kahta hoon tum vaisa karo. dekhana, tumhari beti avashya theek ho jayegi. ’ asangitosang ne enalo se kaha.
‘batao mujhe kya karna hai?’ enalo ne udvign hokar asangitosang se puchha.
‘tumhen karna ye hai ki tum apne purane ghar jao. vahan mera sir tumne khunte par latka rakha hai. mere sir ko khunte se utaar kar bhumi mein gaaD do jisse mujhe mukti mil jayegi. mujhe mukti milte hi us sthaan par ek peD ug ayega jahan tum mera sir gaDoge. us peD par turant ek phal lagega. tum us phal ko toD lena. us phal ke beech mein pani bhara hoga. wo pani tum apni beti ko pilana. dekhana, tumhari beti pani pite hi svasth ho jayegi. ’ itna kahkar asangitosang adrishya ho gaya aur enalo ki bhi neend toot gai.
jagne par enalo ne apne svapn par vichar kiya. use laga ki beti ke praan bachane ke liye ye prayas bhi karke dekh lena chahiye.
enalo usi samay uth kar apne purane ghar ki or chal paDa. apne purane ghar mein pahunchakar enalo ne khunte par tange hue asangitosang ke sir ko khunte se utara aur vidhi vidhan purvak bhumi mein gaaD diya. thoDi hi der mein us jagah ek peD ug aaya. dekhte hi dekhte wo peD uncha, aur uncha hota chala gaya. jaise hi peD ki uunchai baDhni band hui vaise hi usmen ek phal dikhai dene laga.
enalo kisi prakar us peD par chaDh gaya aur usne wo phal toD liya. phal toDkar enalo use apne ne ghar mein apni beti ke paas le aaya. enalo ne phal ko savadhani purvak toDa aur usmen bhare hue pani ko apni beti ko pila diya. jaisa ki asangitosang ne kaha tha vaisa hi hua. phal ka pani pite hi enalo ki beti ke chehre ki raunak laut aai. uski bimari door ho gai aur wo svasth ho gai.
apni beti ko svasth dekhkar enalo bahut khush hua. ab use samajh mein aaya ki uske mitr asangitosang ne usse kapat nahin kiya tha apitu wo to jadui shaktiyon ka svami tha. isiliye usne mithe pani ke jadui srot ke bare mein nahin bataya tha.
enalo ko apni karni par baDa pachhtava hua ki usne krodh mein aakar asangitosang ki hatya kar di thi. kintu asangitosang ne phir bhi ek sachche mitr ki bhanti sankat ke samay uski sahayata ki.
us din ke baad karanikobar mein asangitosang ke peD ug aaye jo vastutah nariyal ke peD the. aaj bhi nikobar ke shemphen adivasi mante hain ki nariyal ki utpatti asangitosang ke kate hue sir se hui hai.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 105)
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