एक गाँव में एक किसान रहता था। वह धनवान तो नहीं था किंतु निर्धन भी नहीं था। वह अपने खेत में मेहनत-मज़दूरी करके जितना अनाज उगाता उतने में उसका और उसकी पत्नी का आराम से गुज़ारा हो जाता। इसके बाद भी जो अनाज बचता उसे हाट में बेचकर पैसे कमा लेता, जो उसके अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के काम आते।
यूँ तो पति-पत्नी का जीवन सुखमय और शांत था किंतु उन्हें एक दुख सताता रहता। वह दुख था संतान का अभाव। उस किसान दंपत्ति की एक भी संतान नहीं थी।
एक दिन किसान दुपहर का भोजन करके अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सो रहा था तभी उसे सपने में बड़े देव दिखाई पड़े। किसान सपने में ही झट से उठ बैठा और उसने बड़े देव को प्रणाम किया।
‘तुम इतने दुखी क्यों हो, भाई?’ बड़े देव ने पूछा।
‘मेरी कोई संतान नहीं है बड़े देव!’ किसान ने उत्तर दिया। ‘हूँ! तो तुम ऐसा करो कि जिस पेड़ के नीचे तुम सोए हो उसी पेड़ के नीचे की मिट्टी से एक घड़ा बनाओ। उस घड़े को आग में पका लो और उसे अपना बेटा समझो।’ इतना कहकर बड़े देव अदृश्य हो गए।
किसान जाग गया। उसे अपना सपना बड़ा विचित्र लगा। फिर भी उसे बड़े देव पर अगाध विश्वास था। उसने अपने सपने को याद करते हुए पेड़ के नीचे की मिट्टी खोदी, उसमें पानी डाला और एक घड़ा बना लिया। इसके बाद किसान ने घड़े को गोबर के कंडों की आग में रखकर पका लिया। घड़ा पक कर पहले लाल हुआ फिर ठंडा होकर काला हो गया। किसान ने उस घड़े का नाम रखा, ‘कालू।’
किसान घड़ा लेकर अपने घर पहुँचा। उसकी पत्नी ने देखा तो कहने लगी कि ‘घर में तो कई घड़े थे फिर ये एक और क्यों ले आए?’
‘ये घड़ा मैंने अपने हाथों से बनाया है।’ किसान ने अपनी पत्नी से कहा। उसे लगा कि यदि वह अपने सपने की बात अपनी पत्नी को बताएगा तो वह उस पर हँसेगी।
‘ठीक है, फिर मैं इसमें तुम्हारे लिए पानी भरकर रख देती हूँ। तुम अपने हाथों से बनाए घड़े का पानी पिया करना।’ किसान की पत्नी ने कहा और घड़े को उठाकर आँगन में ले गई।
किसान की पत्नी ने सोचा कि पानी भरने से पहले घड़े को अच्छे से रगड़ कर धो लेना चाहिए। यह विचार करके किसान की पत्नी ने घड़े पर पानी डाला और नारियल के रेशों से रगड़ने लगी।
‘ही-ही-ही, मुझे गुदगुदी लगती है।’ अचानक कहीं से आवाज़ आई।
किसान की पत्नी ने चौंककर इधर-उधर देखा। उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसे लगा कि उसे कोई भ्रम हुआ है। उसने फिर घड़े पर नारियल के रेशे रगड़ने शुरू किए।
‘ही-ही-ही, मुझे गुदगुदी लगती है।’ फिर वही आवाज़ आई।
इस बार किसान की पत्नी के हाथ से घड़ा छूटते-छूटते बचा। वह डर गई। फिर भी साहस बटोर कर उसने ललकारा, ‘कौन है? जो कोई भी है सामने आओ।’
‘मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ।’ किसी ने कहा।
अब किसान की पत्नी हड़बड़ा कर इधर-उधर देखने लगी। उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया।
‘तुम्हारा नाम क्या है? तुम किसके बेटे हो?’ किसान की पत्नी ने हिम्मत करके पूछा।
‘मेरा नाम कालू है। तुम्हारा बेटा हूँ।’ उत्तर मिला।
‘मेरा कोई बेटा-वेटा नहीं है। किसान की पत्नी झल्लाकर बोली। उसे लगा कि कोई शैतान लड़का उससे मज़ाक कर रहा है।
‘मैं तुम्हारा ही बेटा हूँ। मेरे पिता ने मिट्टी खोदकर मुझे बनाया और फिर आग में पकाया। पहले मैं लाल हुआ फिर काला। इसीलिए मैं अपने पिता से कालू नाम पाया।’ फिर उत्तर मिला।
यह सुनकर किसान की पत्नी ने घड़े की ओर देखा। उसे लगा कि वह काला घड़ा ही उससे बातें कर रहा है। वह भागकर अपने पति के पास पहुँची और उसने बताया कि जो घड़ा वह बनाकर लाया है, वह बातें करता है। इस पर किसान ने अपनी पत्नी को बड़े देव द्वारा सपने में दर्शन देने से लेकर घड़ा पकाकर घर लाने तक का पूरा क़िस्सा कह सुनाया। अपने पति की बात सुनकर किसान की पत्नी बहुत ख़ुश हुई। वह आँगन में गई और घड़े को उठा लाई। उसने घड़े को अपने पुत्र के समान लाड़-दुलार किया और उसके सोने के लिए नर्म मखमली गद्दा बिछा दिया।
उस दिन के बाद से किसान दंपत्ति के जीवन में ख़ुशियाँ आ गईं। वे उस काले घड़े को अपने पुत्र की भाँति पालने लगे। किसान की पत्नी उसे कभी दूध-भात खिलाती तो कभी पानी-भात। कालू भी अपने माता-पिता से बोलता-बतियाता। धीरे-धीरे कालू बड़ा होने लगा। उसका पेट भी बड़ा हो गया। वह और अधिक गोल-मटोल दिखने लगा।
एक बार खेत में फसल पकने पर किसान और उसकी पत्नी अनाज काट रहे थे। उसी समय बादल घिर आए। तेज़ वर्षा होने की संभावना दिखाई देने लगी। किसान जल्दी-जल्दी अनाज बटोरने लगा। वह अनाज बटोरता और दौड़कर अपने घर में अनाज के कोठे में रख आता। किंतु इस प्रकार वह थोड़ा-थोड़ा अनाज पहुँचा पा रहा था। उसे लगा कि इस तरह वह पूरा अनाज सुरक्षित नहीं कर पाएगा।
‘आज अगर मेरा सचमुच का बेटा होता तो मेरा हाथ बंटाता।’ किसान दुखी होकर बड़बड़ाया।
‘आप चिंता न करें पिता जी, मैं हूँ न आपका बेटा। आप मेरे पेट में अनाज भर दें और मेरे मुँह को कपड़े से बाँध दें। फिर देखिए कि अनाज पहुँचाता हूँ।’ कालू घड़े ने किसान से कहा।
‘तुम ऐसा कर सकोगे?’ किसान ने अविश्वास से कहा।
‘आप मुझ पर भरोसा रखें। अनाज का एक दाना भी ख़राब नहीं होगा।’ कालू घड़े ने कहा।
किसान ने कालू की बात मानते हुए उसके पेट में अनाज भर दिया और उसके मुँह को कपड़े से अच्छी तरह बाँध दिया। इसके बाद कालू लुढ़कने लगा। वह लुढ़कता-लुढ़कता घर जा पहुँचा। किसान भी उसके पीछे-पीछे घर गया और उसने घड़े से अनाज निकालकर कोठे में रख दिया। इस प्रकार एक ही बार में सारा अनाज खेत से कोठे में पहुँच गया। कालू घड़े के इस काम से किसान और उसकी पत्नी बहुत ख़ुश हुए। वे कालू को पहले से भी अधिक पुत्रवत् प्यार करने लगे।
उसी गाँव में परसू भी रहता था। उसे दूसरों के काम में टाँग अड़ाने में बहुत आनंद आता था। वह जिसके पास जाता उसे कोई न कोई चिंता का विषय सौंप आता। एक दिन परसू किसान के पास पहुँचा।
‘भैया, तुम्हारा बेटा तो अब बड़ा हो गया है।’ परसू ने किसान से कहा।
‘हाँ, परसू!’
‘तो अब इसका विवाह नहीं करोगे क्या? इसका घर बसाने का विचार नहीं है क्या?’ परसू ने किसान से पूछा जबकि परसू जानता था कि कालू तो एक घड़ा है, वह भी काला घड़ा। भला काले घड़े से कौन लड़की विवाह करती?
‘करना तो चाहता हूँ लेकिन कोई लड़की इससे विवाह नहीं करेगी।’ किसान ने दुखी होते हुए कहा। बस, परसू यही तो चाहता था कि किसान को दुख पहुँचे और वह अपने उद्देश्य में सफल हो गया। ‘बात तो तुम ठीक कहते हो भैया, मुझे तो यह सोचकर बुरा लगता है कि तुम पोते-पोतियों का सुख नहीं पा सकोगे।’ परसू ने कहा और अपने रास्ते चलता बना।
परसू तो चला गया लेकिन किसान के मन में फाँस चुभो गया। किसान को यह सोच-सोचकर दुख लगने लगा कि एक तो उसे पोते-पोतियों का सुख नहीं मिलेगा और दूसरे उसके मरने के बाद कालू की देख-भाल कौन करेगा?
इसी चिंता में किसान बीमार पड़ गया। उसने कालू से कुछ नहीं कहा किंतु कालू घड़ा समझ गया कि उसका पिता किस चिंता में बीमार पड़ गया है।
‘पिता जी आप किसी प्रकार की चिंता न करें। कुछ दिन में सब कुछ ठीक हो जाएगा।’ कालू ने पिता को समझाया।
‘नहीं मैं चिंतित नहीं हूँ।’ किसान ने कालू का मन रखने को झूठ बोल दिया।
इसी तरह एक सप्ताह व्यतीत हो गया। किसान का स्वास्थ्य सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक रात किसान अपने बिस्तर पर सो रहा था कि उसे एक सपना दिखा। सपने में बड़े देव दिखाई दिए।
‘तुम चिंता में क्यों घुले जा रहे हो? तुम्हारा बेटा कालू भोर होते ही एक युवक में परिवर्तित हो जाएगा। वास्तव में वह एक युवक ही है जो पिछले जन्म में बहुत आलसी था। वह अपने माता-पिता की सेवा भी नहीं करता था। उसके माता-पिता उसके आलसी और कामचोर होने के दुख में घुल-घुल कर मर गए इसीलिए दंड के रूप में इस जन्म में उसे घड़ा बनना पड़ा। किंतु इस जन्म में उसने घड़ा होकर भी तुम दोनों की बहुत सेवा की है इसलिए मैं उसे इस जन्म में भी युवक बना दूँगा।’ यह कहकर बड़े देव अदृश्य हो गए।
बड़े देव के अदृश्य होते ही किसान की नींद खुल गई। उस समय रात्रि का अंतिम पहर था। किसान व्याकुलतापूर्वक भोर होने की प्रतीक्षा करने लगा। भोर होते ही किसान उठकर कालू के बिस्तर के पास गया। कालू चादर ओढ़ कर सो रहा था। किसान ने जैसे ही चादर उठाई वैसे ही उसे कालू के बिस्तर पर एक सुंदर युवक सोता हुआ दिखाई पड़ा। किसान समझ गया कि बड़े देव ने कालू को सुंदर युवक में परिवर्तित कर दिया है। किसान ने अपनी पत्नी को बुलाकर सारी बात बताई। उसकी पत्नी भी बहुत प्रसन्न हुई। इतने में कालू जाग गया। उसने बिस्तर से उठकर अपने माता-पिता के चरण छुए। उसके माता-पिता ने गद्गद् होकर उसे अपने गले से लगा लिया।
कालू घड़े के युवक में बदलने पर किसान ने कालू के लिए एक सुंदर-सी कन्या ढूँढ़कर कालू का विवाह कर दिया। समय के साथ कालू की संतानें हुई। इस प्रकार किसान और उसकी पत्नी अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियों के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।
ek gaanv mein ek kisan rahta tha. wo dhanvan to nahin tha kintu nirdhan bhi nahin tha. wo apne khet mein mehnat mazduri karke jitna anaj ugata utne mein uska aur uski patni ka aram se guzara ho jata. iske baad bhi jo anaj bachta use haat mein bechkar paise kama leta, jo uske anya avashyaktaon ko pura karne ke kaam aate.
yoon to pati patni ka jivan sukhmay aur shaant tha kintu unhen ek dukh satata rahta. wo dukh tha santan ka abhav. us kisan dampatti ki ek bhi santan nahin thi.
ek din kisan dopahar ka bhojan karke apne khet mein ek peD ke niche so raha tha tabhi use sapne mein baDe dev dikhai paDe. kisan sapne mein hi jhat se uth baitha aur usne baDe dev ko prnaam kiya.
‘tum itne dukhi kyon ho, bhai?’ baDe dev ne puchha.
‘meri koi santan nahin hai baDe dev!’ kisan ne uttar diya. ‘hoon! to tum aisa karo ki jis peD ke niche tum soe ho usi peD ke niche ki mitti se ek ghaDa banao. us ghaDe ko aag mein paka lo aur use apna beta samjho. ’ itna kahkar baDe dev adrishya ho ge.
kisan jaag gaya. use apna sapna baDa vichitr laga. phir bhi use baDe dev par agadh vishvas tha. usne apne sapne ko yaad karte hue peD ke niche ki mitti khodi, usmen pani Dala aur ek ghaDa bana liya. iske baad kisan ne ghaDe ko gobar ke kanDon ki aag mein rakhkar paka liya. ghaDa pak kar pahle laal hua phir thanDa hokar kala ho gaya. kisan ne us ghaDe ka naam rakha, ‘kalu. ’
kisan ghaDa lekar apne ghar pahuncha. uski patni ne dekha to kahne lagi ki ‘ghar mein to kai ghaDe the phir ye ek aur kyon le aye?’
‘ye ghaDa mainne apne hathon se banaya hai. ’ kisan ne apni patni se kaha. use laga ki yadi wo apne sapne ki baat apni patni ko batayega to wo us par hansegi.
‘theek hai, phir main ismen tumhare liye pani bharkar rakh deti hoon. tum apne hathon se banaye ghaDe ka pani piya karna. ’ kisan ki patni ne kaha aur ghaDe ko uthakar angan mein le gai.
kisan ki patni ne socha ki pani bharne se pahle ghaDe ko achchhe se ragaD kar dho lena chahiye. ye vichar karke kisan ki patni ne ghaDe par pani Dala aur nariyal ke reshon se ragaDne lagi.
‘hi hi hi, mujhe gudgudi lagti hai. ’ achanak kahin se avaz aai.
kisan ki patni ne chaunkkar idhar udhar dekha. use koi dikhai nahin diya. use laga ki use koi bhram hua hai. usne phir ghaDe par nariyal ke reshe ragaDne shuru kiye.
is baar kisan ki patni ke haath se ghaDa chhutte chhutte bacha. wo Dar gai. phir bhi sahas bator kar usne lalkara, ‘kaun hai? jo koi bhi hai samne aao. ’
‘main to tumhare samne hi hoon. ’ kisi ne kaha.
ab kisan ki patni haDbaDa kar idhar udhar dekhne lagi. use koi bhi dikhai nahin diya.
‘tumhara naam kya hai? tum kiske bete ho?’ kisan ki patni ne himmat karke puchha.
‘mera naam kalu hai. tumhara beta hoon. ’ uttar mila.
‘mera koi beta veta nahin hai. kisan ki patni jhallakar boli. use laga ki koi shaitan laDka usse mazak kar raha hai.
‘main tumhara hi beta hoon. mere pita ne mitti khod kar mujhe banaya aur phir aag mein pakaya. pahle main laal hua phir kala. isiliye main apne pita se kalu naam paya. ’ phir uttar mila.
ye sunkar kisan ki patni ne ghaDe ki or dekha. use laga ki wo kala ghaDa hi usse baten kar raha hai. wo bhaag kar apne pati ke paas pahunchi aur usne bataya ki jo ghaDa wo banakar laya hai, wo baten karta hai. is par kisan ne apni patni ko baDe dev dvara sapne mein darshan dene se lekar ghaDa pakakar ghar lane tak ka pura qissa kah sunaya. apne pati ki baat sunkar kisan ki patni bahut khush hui. wo angan mein gai aur ghaDe ko utha lai. usne ghaDe ko apne putr ke saman laaD dular kiya aur uske sone ke liye narm makhamli gadda bichha diya.
us din ke baad se kisan dampatti ke jivan mein khushiyan aa gain. ve us kale ghaDe ko apne putr ki bhanti palne lage. kisan ki patni use kabhi doodh bhaat khilati to kabhi pani bhaat. kalu bhi apne mata pita se bolta batiyata. dhire dhire kalu baDa hone laga. uska pet bhi baDa ho gaya. wo aur adhik gol matol dikhne laga.
ek baar khet mein phasal pakne par kisan aur uski patni anaj kaat rahe the. usi samay badal ghir aaye. tez varsha hone ki sambhavna dikhai dene lagi. kisan jaldi jaldi anaj batorne laga. wo anaj batorta aur dauD kar apne ghar mein anaj ke kothe mein rakh aata. kintu is prakar wo thoDa thoDa anaj pahuncha pa raha tha. use laga ki is tarah wo pura anaj surakshit nahin kar payega.
‘aaj agar mera sachmuch ka beta hota to mera haath bantata. ’ kisan dukhi hokar baDabDaya.
‘aap chinta na karen pita ji, main hoon na aapka beta. aap mere pet mein anaj bhar den aur mere munh ko kapDe se baandh den. phir dekhiye ki anaj pahunchata hoon. ’ kalu ghaDe ne kisan se kaha.
‘tum aisa kar sakoge?’ kisan ne avishvas se kaha.
‘aap mujh par bharosa rakhen. anaj ka ek dana bhi kharab nahin hoga. ’ kalu ghaDe ne kaha.
kisan ne kalu ki baat mante hue uske pet mein anaj bhar diya aur uske munh ko kapDe se achchhi tarah baandh diya. iske baad kalu luDhakne laga. wo luDhakta luDhakta ghar ja pahuncha. kisan bhi uske pichhe pichhe ghar gaya aur usne ghaDe se anaj nikal kar kothe mein rakh diya. is prakar ek hi baar mein sara anaj khet se kothe mein pahunch gaya. kalu ghaDe ke is kaam se kisan aur uski patni bahut khush hue. ve kalu ko pahle se bhi adhik putrvat pyaar karne lage.
usi gaanv mein parsu bhi rahta tha. use dusron ke kaam mein taang aDane mein bahut anand aata tha. wo jiske paas jata use koi na koi chinta ka vishay saump aata. ek din parsu kisan ke paas pahuncha.
‘bhaiya, tumhara beta to ab baDa ho gaya hai. ’ parsu ne kisan se kaha.
‘haan, parsu!’
‘to ab iska vivah nahin karoge kyaa? iska ghar basane ka vichar nahin hai kyaa?’ parsu ne kisan se puchha jabki parsu janta tha ki kalu to ek ghaDa hai, wo bhi kala ghaDa. bhala kale ghaDe se kaun laDki vivah karti?
‘karna to chahta hoon lekin koi laDki isse vivah nahin karegi. ’ kisan ne dukhi hote hue kaha. bas, parsu yahi to chahta tha ki kisan ko dukh pahunche aur wo apne uddeshya mein saphal ho gaya. ‘baat to tum theek kahte ho bhaiya, mujhe to ye sochkar bura lagta hai ki tum pote potiyon ka sukh nahin pa sakoge. ’ parsu ne kaha aur apne raste chalta bana.
parsu to chala gaya lekin kisan ke man mein phaans chubho gaya. kisan ko ye soch sochkar dukh lagne laga ki ek to use pote potiyon ka sukh nahin milega aur dusre uske marne ke baad kalu ki dekh bhaal kaun karega?
isi chinta mein kisan bimar paD gaya. usne kalu se kuch nahin kaha kintu kalu ghaDa samajh gaya ki uska pita kis chinta mein bimar paD gaya hai.
‘pita ji aap kisi prakar ki chinta na karen. kuch din mein sab kuch theek ho jayega. ’ kalu ne pita ko samjhaya.
‘nahin main chintit nahin hoon. ’ kisan ne kalu ka man rakhne ko jhooth bol diya.
isi tarah ek saptah vyatit ho gaya. kisan ka svasthya sudharne ka naam hi nahin le raha tha. ek raat kisan apne bistar par so raha tha ki use ek sapna dikha. sapne mein baDe dev dikhai diye.
‘tum chinta mein kyon ghule ja rahe ho? tumhara beta kalu bhor hote hi ek yuvak mein parivartit ho jayega. vastav mein wo ek yuvak hi hai jo pichhle janm mein bahut aalsi tha. wo apne mata pita ki seva bhi nahin karta tha. uske mata pita uske aalsi aur kamachor hone ke dukh mein ghul ghul kar mar ge isiliye danD ke roop mein is janm mein use ghaDa banna paDa. kintu is janm mein usne ghaDa hokar bhi tum donon ki bahut seva ki hai isliye main use is janm mein bhi yuvak bana dunga. ’ ye kahkar baDe dev adrishya ho ge.
baDe dev ke adrishya hote hi kisan ki neend khul gai. us samay ratri ka antim pahar tha. kisan vyakultapurvak bhor hone ki prtiksha karne laga. bhor hote hi kisan uthkar kalu ke bistar ke paas gaya. kalu chadar oDh kar so raha tha. kisan ne jaise hi chadar uthai vaise hi use kalu ke bistar par ek sundar yuvak sota hua dikhai paDa. kisan samajh gaya ki baDe dev ne kalu ko sundar yuvak mein parivartit kar diya hai. kisan ne apni patni ko bulakar sari baat batai. uski patni bhi bahut prasann hui. itne mein kalu jaag gaya. usne bistar se uthkar apne mata pita ke charan chhue. uske mata pita ne gadgad hokar use apne gale se laga liya.
kalu ghaDe ke yuvak mein badalne par kisan ne kalu ke liye ek sundar si kanya DhunDhakar kalu ka vivah kar diya. samay ke saath kalu ki santanen hui. is prakar kisan aur uski patni apne bete bahu aur pote potiyon ke saath khushi khushi rahne lage.
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isi chinta mein kisan bimar paD gaya. usne kalu se kuch nahin kaha kintu kalu ghaDa samajh gaya ki uska pita kis chinta mein bimar paD gaya hai.
‘pita ji aap kisi prakar ki chinta na karen. kuch din mein sab kuch theek ho jayega. ’ kalu ne pita ko samjhaya.
‘nahin main chintit nahin hoon. ’ kisan ne kalu ka man rakhne ko jhooth bol diya.
isi tarah ek saptah vyatit ho gaya. kisan ka svasthya sudharne ka naam hi nahin le raha tha. ek raat kisan apne bistar par so raha tha ki use ek sapna dikha. sapne mein baDe dev dikhai diye.
‘tum chinta mein kyon ghule ja rahe ho? tumhara beta kalu bhor hote hi ek yuvak mein parivartit ho jayega. vastav mein wo ek yuvak hi hai jo pichhle janm mein bahut aalsi tha. wo apne mata pita ki seva bhi nahin karta tha. uske mata pita uske aalsi aur kamachor hone ke dukh mein ghul ghul kar mar ge isiliye danD ke roop mein is janm mein use ghaDa banna paDa. kintu is janm mein usne ghaDa hokar bhi tum donon ki bahut seva ki hai isliye main use is janm mein bhi yuvak bana dunga. ’ ye kahkar baDe dev adrishya ho ge.
baDe dev ke adrishya hote hi kisan ki neend khul gai. us samay ratri ka antim pahar tha. kisan vyakultapurvak bhor hone ki prtiksha karne laga. bhor hote hi kisan uthkar kalu ke bistar ke paas gaya. kalu chadar oDh kar so raha tha. kisan ne jaise hi chadar uthai vaise hi use kalu ke bistar par ek sundar yuvak sota hua dikhai paDa. kisan samajh gaya ki baDe dev ne kalu ko sundar yuvak mein parivartit kar diya hai. kisan ne apni patni ko bulakar sari baat batai. uski patni bhi bahut prasann hui. itne mein kalu jaag gaya. usne bistar se uthkar apne mata pita ke charan chhue. uske mata pita ne gadgad hokar use apne gale se laga liya.
kalu ghaDe ke yuvak mein badalne par kisan ne kalu ke liye ek sundar si kanya DhunDhakar kalu ka vivah kar diya. samay ke saath kalu ki santanen hui. is prakar kisan aur uski patni apne bete bahu aur pote potiyon ke saath khushi khushi rahne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 137)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।