Font by Mehr Nastaliq Web

जुलाहा स्वर्ग कैसे गया

julaha svarg kaise gaya

अन्य

अन्य

किसी जुलाहे के खेत में हर रात देवराज इंद्र का हाथी ऐरावत आता था। वह आकाश से उतरता और रात भर उसके खेत में चरता। सुबह अपने खेत की हालत देखकर जुलाहे के कलेजे पर आघात लगता। उसने भाई लोगों से पूछा कि उसके खेत को कौन बर्बाद कर जाता है। उन्होंने कहा, “यह गाँव की चक्कियों की करतूत हो सकती है। शायद उनके पाट रात को तुम्हारे खेत में जाते हों।” सो जुलाहे ने गाँव की तमाम चक्कियों के पाट रस्सी से बाँध दिए, पर उसके खेत की बर्बादी नहीं रुकी। उसने फिर बिरादरी वालों से सलाह ली। बिरादरी वालों ने कहा, “यह धान कूटने की ओखलियों का काम लगता है। हो सकता है सबके सो जाने के बाद गाँव की ओखलियाँ चुपके से तुम्हारे खेत में जाती हों।” सो उसने गाँव की सारी ओखलियों को रस्सी से बाँध दिया, पर वही ढाक के तीन पात! उलटे खेत की बर्बादी और बढ़ गई।

सो एक रात वह अपने खेत में जाकर लेट गया और इंतज़ार करने लगा। वह क्या देखता है कि एक हाथी उड़ता हुआ आया और फसल चरने लगा! जब हाथी वापस जाने लगा तो उसने उसकी पूँछ पकड़ ली और उसके साथ स्वर्ग चला गया। वहाँ इंद्र का अखाड़ा लगा हुआ था। अप्सराएँ नाच-गा रही थीं। किसी ने जुलाहे की ओर ध्यान नहीं दिया। भूख लगने पर वह देवताओं की रसोई में गया और जमकर दिव्य व्यंजन खाए। अगली रात को जब ऐरावत पृथ्वी पर जाने लगा तो उसकी पूँछ से लटककर जुलाहा वापस घर गया।

धरती पर वापस आते ही जुलाहे ने घर वालों और मित्रों को अपनी रोमाँचक यात्रा के बारे में बताया और कहा, “इस घटिया जगह पर रहने से क्या फ़ायदा! चलो, सब इंद्रलोक चलें!” सब राज़ी हो गए। पृथ्वी की फसल का भोजन करके ऐरावत वापस जाने लगा तो जुलाहे ने उसकी पूँछ पकड़ ली और उसकी पत्नी ने पति के पाँव पकड़ लिए। इसी तरह बाक़ी जुलाहे भी एक-दूसरे के पाँव पकड़कर लटक गए। ऐरावत ने संभवतः इस मानव शृंखला पर कोई ध्यान नहीं दिया और ऊपर उड़ चला। देखते-देखते वे काफ़ी ऊपर गए। जुलाहे ने सोचा, “मैं भी कैसा मूर्ख हूँ! अपना करघा लाना ही भूल गया!” यह सोचते हुए उसने अफ़सोस से अपने हाथ मले। सो हाथी की पूँछ उसके हाथों से छूट गई और सब वापस धरती पर गिरे।

इसीलिए यह कहा जाता है कि जुलाहा कभी स्वर्ग नहीं जा सकता।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 350)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY