एक था भोलू। अपने नाम की भांँति भोला-भाला। भोलू अपने खेतों में शकरकंद उगाता और उन्हें बेचकर अपना जीवनयापन करता। भोलू ने अपने खेत के तीन ओर काँटों की बाड़ लगा रखी थी ताकि जंगली सुअर उसके खेत में घुसकर उसके शकरकंद न खोद सकें। खेत के एक ओर दलदल था। दलदल इतनी गहरा तो नहीं था कि कोई जानवर पूरा का पूरा धँस जाए किंतु इतना गहरा अवश्य था कि जो जानवर उसमें फँसे वह निकल न सके। इसीलिए दलदल की ओर से भोलू अपने खेत की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहता था।
दलदल के उस पार एक जंगली सुअर रहता था जिसे शकरकंद बहुत प्रिय थे। वह हर बार प्रयास करता कि भोलू के खेत से शकरकंद खोदकर खा सके लेकिन हर बार वह विफल रहता। सुअर काँटों की बाड़ को पार ही नहीं कर पाता था। एक दिन सुअर ने ठान लिया कि जाहे जो भी हो लेकिन मैं भोलू के खेत के शंकरकंद खाकर रहूँगा। उसने काँटों की बाड़ की ओर से खेत में घुसने का प्रयास किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली, उल्टे उसके शरीर में काँटें लग गए। तब उसने दलदल की ओर से घुसने का विचार किया।
सुअर दलदल के पास पहुँचा। एक बार तो उसे अपना विचार मूर्खतापूर्ण लगा किंतु दूसरे ही पल शकरकंद खाने का लालच उसके मस्तिष्क पर प्रभावी हो गया। सुअर दलदल में उतर गया। अभी वह दो क़दम ही चला था कि दलदल में धँसने लगा। वह दलदल से बाहर आने के लिए जितना प्रयास करता उतना ही धँसता जाता। अब उसे अपने विचार पर पछतावा होने लगा। वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा। संयोगवश उधर एक शेर आ निकला। शेर को देखकर सुअर की बाँछें खिल गईं। इधर शेर ने भी देखा कि एक अच्छा शिकार सामने है। यदि इसे दलदल से निकाल लूँ तो इसे छक कर खाऊँगा।
‘शेर महाराज, शेर महाराज! मुझे बचाइए। मैं दलदल में धँसा जा रहा हूँ। आप मुझे बाहर निकलने में मदद कीजिए अन्यथा मैं मारा जाऊँगा।’ सुअर ने गिड़गिड़ाते हुए शेर से प्रार्थना की।
‘ठीक है, मैं तुम्हें दलदल से निकलने में मदद करता हूँ लेकिन तुमने ये कैसे सोच लिया कि दलदल से निकल कर मैं तुम्हें खाऊँगा नहीं?’ शेर ने कहा।
‘आप मेरे राजा हैं, यदि आप मुझे खाएँगे तो मुझे कोई दुख नहीं होगा किंतु यदि मैं दलदल में धँस कर मर गया तो मुझे बहुत दुख होगा।’ सुअर ने कहा।
शेर यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सुअर को दलदल से निकालने के लिए अपनी पूँछ सुअर की ओर बढ़ा दी।
‘लो, तुम मेरी पूँछ पकड़ लो, मैं तुम्हें दलदल से बाहर खींच लूँगा।’ शेर ने कहा।
सुअर ने शेर की पूँछ पकड़ ली और शेर ने उसे बाहर खींच लिया। सुअर जैसे ही बाहर आया वैसे ही उसने शेर को धक्का देकर दलदल में गिरा दिया।
‘अरे, अरे! ये क्या कर रहे हो? तुमने मुझे दलदल में क्यों गिरा दिया? मैंने तुम्हारे प्राण बचाए और बदले में तुम मेरे साथ ऐसा कृतघ्न व्यवहार कर रहे हो?’ शेर ने घबरा कर सुअर से कहा।
‘आपने मेरे प्राण दलदल से भले ही बचाए किंतु अब तो आप मुझे खाने वाले थे फिर इसमें कृपा की कौन-सी बात हुई जो मुझे आप कृतघ्न कह रहे हैं। मैं तो आपके साथ वही व्यवहार कर रहा हूँ जो आपने मेरे लिए सोचा था।’ कहते हुए सुअर अपने रास्ते चल दिया।
शेर को सुअर पर बहुत क्रोध आ रहा था किंतु वह कर ही क्या सकता था? शेर ने सहायता के लिए पुकारना आरंभ किया। भोलू उस समय अपनी झोपड़ी में बैठा था। उसने जब शेर की पुकार सुनी तो वह दौड़कर अपने खेत में आया। उसने देखा कि उसका खेत तो सुरक्षित है किंतु दलदल में एक शेर धँसा जा रहा हैI
शेर ने भोलू को देखा तो जान में जान आई।
‘भैया मुझे यहाँ से बाहर निकालो नहीं तो मैं मर जाऊँगा।’ शेर ने भोलू से कहा।
‘मैं तुम्हें निकाल तो दूँ लेकिन बाहर निकल कर तम मुझे खा जाओगे।’ भोलू ने कहा।
‘नहीं मैं तुम्हें नहीं खाऊँगा।’ शेर ने कहा।
‘मैं कैसे मान लूँ?’ भोलू ने कहा।
‘तुम मुझे बाहर निकाल कर देखो फिर तुम्हें स्वत: पता चल जाएगा कि मैं सच कह रहा हूँ या नहीं।’ शेर ने कहा।
भोलू शेर की बातों में आ गया। उसने रस्सी का एक छोर एक पेड़ से बँधा और दूसरा छोर शेर की ओर फेंकते हुए कहा, ‘लो, इसे पकड़ लो! मैं तुम्हें बाहर खींच लूँगा।’
शेर ने रस्सी का दूसरा छोर पकड़ लिया। भोलू ने रस्सी को पकड़ कर खींचना शुरू किया। थोड़े-से प्रयास के बाद शेर दलदल से बाहर आ गया। शेर ने दलदल से बाहर आते ही अपना शरीर झटकारा और लपक कर भोलू को धर दबोचा।
‘अरे, तुम ये क्या कर रहे हो? मैंने तुम्हारे प्राण बचाए हैं।’ भोलू चीख़ा।
‘तुम मूर्ख हो जो तुमने मेरे प्राण बचाए किंतु मैं मूर्ख नहीं हूँ कि अपना भोजन को छोड़ दूँ।
तुम मेरे भोजन हो। मैं तुम्हें खाऊँगा।’ शेर ने कहा।
‘लेकिन तुमने कहा था कि तुम मुझे नहीं खाओगे।’ भोलू घिघियाया।
‘ऊँहूँ! मैंने कहा था कि तुम मुझे बाहर निकालकर देखो फिर तुम्हें स्वत: पता चल जाएगा कि मैं सच कह रहा हूँ या नहीं। अब तुम तय कर लो कि मैंने जो कहा था वो सच था या झूठ।’ शेर ने हँसते हुए कहा।
भोलू समझ गया कि शेर ने उसे मूर्ख बनाया है। हिंसक प्राणियों की बातों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। भोलू सोच ही रहा था कि शेर के पंजे से कैसे बचा जाए कि उधर से एक घोड़ा आ निकला।
‘शेर भाई, तुम मुझे खाने जा रहे हो यह अन्याय है। क्यों न हम इस बारे में घोड़े का निर्णय जान लें।’ भोलू ने कहा।
‘ठीक है, जैसा तुम चाहो।’ शेर ने सोचा कि चलो इस मनुष्य की अंतिम इच्छा पूरी कर दी जाए।
भोलू ने घोड़े को वस्तुस्थिति बताई और निर्णय देने का आग्रह किया। घोड़ा मनुष्यों के व्यवहार से दुखी था, उस पर उसे लगा कि यदि उसने शेर के विरुद्ध निर्णय दिया तो शेर उसे भी खा जाएगा।
‘शेर महाराज, आप जो कर रहे हैं वह उचित है। ये मनुष्य बड़े स्वार्थी और अवसरवादी होते हैं। मुझे ही देखिए, जब तक मैं अपने मालिक की सेवा करने योग्य रहा तब तक उसने मेरा ध्यान रखा किंतु मेरे पैर में चोट लगने पर जब मैं लँगड़ा हो गया तो उसने मुझे गोली मारने का आदेश दे दिया। वह तो मैं उस बंदूकची को दुलत्ती मारकर भाग आया अन्यथा मैं अभी तक मर चुका होता। इसलिए आप तो इस मनुष्य को अवश्य खाइए।’ घोड़े ने कहा और लँगड़ाता हुआ चला गया।
घोड़े की बात सुनकर भोलू थरथर काँपने लगा। उसी समय उधर से एक बैल निकला।
‘शेर भाई, किसी एक की बात में नहीं आना चाहिए, अच्छा होगा यदि हम इस बैल का भी निर्णय जान लें।’ भोलू ने कहा।
‘ठीक है, यदि तुम चाहते हो तो ऐसा ही सही।’ शेर ने कहा।
भोलू बैल को रोक कर सारी बात बताई और उससे अपना निर्णय सुनाने को कहा।
‘शेर महाराज, आप जो कर रहे हैं वह उचित है। ये मनुष्य बड़े स्वार्थी और अवसरवादी होते हैं। मुझे ही देखिए, जब तक मैं अपने मालिक की सेवा करने योग्य रहा तब तक उसने मेरा ध्यान रखा किंतु अब मैं बूढ़ा और अशक्त हो गया हूँ और अपने मालिक के खेत में काम करने योग्य नहीं रह गया हूँ तो उसने मुझे भूखे मरने को आवारा छोड़ दिया है। इसलिए आप इस मनुष्य को मारकर अपनी भूख मिटाइए जिससे मुझे भी न्याय मिल जाएगा।’ बैल ने कहा और जंगल की ओर चल दिया।
‘अब कहो? अब तो मैं तुम्हें खा सकता हूँ! या अभी भी किसी और न्यायाधीश का न्याय सुनना शेष है? शेर ने भोलू को ताना मारते हुए कहा।
भोलू समझ गया कि अब उसके प्राण नहीं बच सकते हैं। इतने में उसे एक सियार दिखाई दे गया।
‘शेर भाई, ये दोनों तो मनुष्य के पालतू रह चुके थे इसलिए इनके मन में मनुष्य के प्रति बैर भाव था किंतु सियार कभी किसी मनुष्य का पालतू नहीं बनता है अत: वह जो कहेगा वह निष्पक्षता से कहेगा। इसलिए मेरी यह अंतिम प्रार्थना है कि तुम सियार का निर्णय और जान सुन लो फिर यदि वह भी तुम्हारे पक्ष में निर्णय दे, तो तुम एक पल भी गँवाए बिना मुझे खा लेना।’ भोलू ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं मान लेता हूँ लेकिन इसके बाद मैं तुम्हें और कोई अवसर नहीं दूँगा।’ शेर ने चेतावनी देते हुए कहा।
भोलू ने सियार को निकट बुलाया और उसे सारी बात बताई। भोलू ने सियार से कहा कि अब तुम अपना निर्णय सुनाओ कि शेर ग़लत कर रहा है या सही?
‘देखो भाई मनुष्य! शेर जंगल का राजा है, वह कभी कोई ग़लती कर ही नहीं सकता है। इसलिए वह जो कर रहा है वह सही है लेकिन मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है कि शेर जैसा शक्तिशाली एक दलदल में कैसे धंस सकता है? मुझे तो तुम्हारा पूरा क़िस्सा ही झूठा लग रहा है।’ सियार ने कहा।
वस्तुत: सियार को लगा कि यदि वह शेर के पक्ष में अपना निर्णय देगा तो शेर इस निर्दोष मनुष्य को खा जाएगा और सियार को कोई लाभ नहीं होगा किंतु यदि वह किसी तरह शेर को फँसा ले तो पूरा शेर उसे खाने को मिल सकता है। दूसरी ओर शेर सियार की बात सुनकर चकराया। उसे लगा कि सियार को पूरी घटना पर विश्वास ही नहीं हो रहा है।
‘अरे मूर्ख सियार, तुझे विश्वास क्यों नहीं हो रहा है कि मैं दलदल में फँसा हुआ था और इस मनुष्य ने मुझे निकाला?’ शेर ने ताव खाते हुए कहा।
‘क्षमा करें महाराज! मैं कैसे विश्वास करूँ कि अप जैसा बड़े डील-डौल वाला शेर इतने से दलदल में फँस सकता है?’ सियार ने कहा।
‘यह दलदल उतना उथला नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो।’ शेर ने कहा।
‘मैं नहीं मानता। इस दलदल में तो आपका पंजा भर डूब सकता है, आप नहीं।’ सियार ने हठ करते हुए कहा।
‘क्या तुम्हें मेरे कथन का भी विश्वास नहीं है?’ शेर ने पूछा।
‘अब आप कह रहे हैं तो विश्वास कर लूँगा लेकिन फिर भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।’ सियार मानो मन मारकर बोला।
‘तो ठीक है फिर ये देखो।’ कहते हुए शेर दलदल में कूद गया और बोला, ‘अब तो विश्वास हो गया न कि यह दलदल गहरा है।
‘हाँ, महाराज! अब विश्वास हो गया।’ सियार ने कहा।
‘तो फिर अब मुझे इस दलदल से बाहर निकालो।’ शेर ने सियार से कहा।
‘मैं आपको बाहर निकाल लेता लेकिन सोचता हूँ कि एक धोखेबाज़ और मूर्ख राजा का इस जंगल में क्या काम?’ सियार ने कहा।
भोलू ने सियार को उसके न्याय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। इसके बाद भोलू अपने घर की ओर चल दिया तथा सियार वहीं बैठकर शेर के मरने की प्रतीक्षा करने लगा।
ek tha bholu. apne naam ki bhannti bhola bhala. bholu apne kheton mein shakarkand ugata aur unhen bech kar apna jivanyapan karta. bholu ne apne khet ke teen or kanton ki baaD laga rakhi thi taki jangli suar uske khet mein ghuskar uske shakarkand na khod saken. khet ke ek or daldal tha. daldal itni gahra to nahin tha ki koi janvar pura ka pura dhans jaye kintu itna gahra avashya tha ki jo janvar usmen phanse wo nikal na sake. isiliye daldal ki or se bholu apne khet ki suraksha ko lekar nishchint rahta tha.
daldal ke us paar ek jangli suar rahta tha jise shakarkand bahut priy the. wo har baar prayas karta ki bholu ke khet se shakarkand khodkar kha sake lekin har baar wo viphal rahta. suar kanton ki baaD ko paar hi nahin kar pata tha. ek din suar ne thaan liya ki jahe jo bhi ho lekin main bholu ke khet ke shankarkand khakar rahunga. usne kanton ki baaD ki or se khet mein ghusne ka prayas kiya lekin use saphalta nahin mili, ulte uske sharir mein kanten lag ge. tab usne daldal ki or se ghusne ka vichar kiya.
suar daldal ke paas pahuncha. ek baar to use apna vichar murkhtapurn laga kintu dusre hi pal shakarkand khane ka lalach uske mastishk par prabhavi ho gaya. suar daldal mein utar gaya. abhi wo do qadam hi chala tha ki daldal mein dhansane laga. wo daldal se bahar aane ke liye jitna prayas karta utna hi dhansta jata. ab use apne vichar par pachhtava hone laga. wo sahayata ke liye chillane laga. sanyogvash udhar ek sher aa nikla. sher ko dekhkar suar ki banchhen khil gain. idhar sher ne bhi dekha ki ek achchha shikar samne hai. yadi ise daldal se nikal loon to ise chhak kar khaunga.
‘sher maharaj, sher maharaj! mujhe bachaiye. main daldal mein dhansa ja raha hoon. aap mujhe bahar nikalne mein madad kijiye anyatha main mara jaunga. ’ suar ne giDgiDate hue sher se pararthna ki.
‘theek hai, main tumhein daldal se nikalne mein madad karta hoon lekin tumne ye kaise soch liya ki daldal se nikral kar main tumhein khaunga nahin?’ sher ne kaha.
‘aap mere raja hain, yadi aap mujhe khayenge to mujhe koi dukh nahin hoga kintu yadi main daldal mein dhans kar mar gaya to mujhe bahut dukh hoga. ’ suar ne kaha.
sher ye sunkar bahut prasann hua. usne suar ko daldal se nikalne ke liye apni poonchh suar ki or baDha di.
‘lo, tum meri poonchh pakaD lo, main tumhein daldal se bahar kheench lunga. ’ sher ne kaha.
suar ne sher ki poonchh pakaD li aur sher ne use bahar kheench liya. suar jaise hi bahar aaya vaise hi usne sher ko dhakka dekar daldal mein gira diya.
‘are, are! ye kya kar rahe ho? tumne mujhe daldal mein kyon gira diya? mainne tumhare praan bachaye aur badle mein tum mere saath aisa kritaghn vyvahar kar rahe ho?’ sher ne ghabra kar suar se kaha.
‘apne mere praan daldal se bhale hi bachaye kintu ab to aap mujhe khane vale the phir ismen kripa ki kaun si baat hui jo mujhe aap kritaghn kah rahe hain. main to aapke saath vahi vyvahar kar raha hoon jo aapne mere liye socha tha. ’ kahte hue suar apne raste chal diya.
sher ko suar par bahut krodh aa raha tha kintu wo kar hi kya sakta tha? sher ne sahayata ke liye pukarna arambh kiya. bholu us samay apni jhopDi mein baitha tha. usne jab sher ki pukar suni to wo dauDkar apne khet mein aaya. usne dekha ki uska khet to surakshit hai kintu daldal mein ek sher dhansa ja raha haii
sher ne bholu ko dekha to jaan mein jaan aai.
‘bhaiya mujhe yahan se bahar nikalo nahin to main mar jaunga. ’ sher ne bholu se kaha.
‘main tumhein nikal to doon lekin bahar nikal kar tam mujhe kha jaoge. ’ bholu ne kaha.
‘nahin main tumhein nahin khaunga. ’ sher ne kaha.
‘main kaise maan loon?’ bholu ne kaha.
‘tum mujhe bahar nikal kar dekho phir tumhein svtah pata chal jayega ki main sach kah raha hoon ya nahin. ’ sher ne kaha.
bholu sher ki baton mein aa gaya. usne rassi ka ek chhor ek peD se bandha aur dusra chhor sher ki or phenkte hue kaha, ‘la, ise pakaD lo! main tumhein bahar kheench lunga. ’
sher ne rassi ka dusra chhor pakaD liya. bholu ne rassi ko pakaD kar khinchna shuru kiya. thoDe se prayas ke baad sher daldal se bahar aa gaya. sher ne daldal se bahar aate hi apna sharir jhatkara aur lapak kar bholu ko dhar dabocha.
‘are, tum ye kya kar rahe ho? mainne tumhare praan bachaye hain. ’ bholu chikha.
‘tum moorkh ho jo tumne mere praan bachaye kintu main moorkh nahin hoon ki apna bhojan ko chhoD doon.
tum mere bhojan ho. main tumhein khaunga. ’ sher ne kaha.
‘lekin tumne kaha tha ki tum mujhe nahin khaoge. ’ bholu ghighiyaya.
‘uunhun! mainne kaha tha ki tum mujhe bahar nikalkar dekho phir tumhein svtah pata chal jayega ki main sach kah raha hoon ya nahin. ab tum tay kar lo ki mainne jo kaha tha wo sach tha ya jhooth. ’ sher ne hanste hue kaha.
bholu samajh gaya ki sher ne use moorkh banaya hai. hinsak praniyon ki baton par kabhi vishvas nahin karna chahiye. bholu soch hi raha tha ki sher ke panje se kaise bacha jaye ki udhar se ek ghoDa aa nikla.
‘sher bhai, tum mujhe khane ja rahe ho ye anyay hai. kyon na hum is bare mein ghoDe ka nirnay jaan len. ’ bholu ne kaha.
‘theek hai, jaisa tum chaho. ’ sher ne socha ki chalo is manushya ki antim ichchha puri kar di jaye.
bholu ne ghoDe ko vastusthiti batai aur nirnay dene ka agrah kiya. ghoDa manushyon ke vyvahar se dukhi tha, us par use laga ki yadi usne sher ke viruddh nirnay diya to sher use bhi kha jayega.
‘sher maharaj, aap jo kar rahe hain wo uchit hai. ye manushya baDe svarthi aur avsarvadi hote hain. mujhe hi dekhiye, jab tak main apne malik ki seva karne yogya raha tab tak usne mera dhyaan rakha kintu mere pair mein chot lagne par jab main langDa ho gaya to usne mujhe goli marne ka adesh de diya. wo to main us bandukchi ko dulatti markar bhaag aaya anyatha main abhi tak mar chuka hota. isliye aap to is manushya ko avashya khaiye. ’ ghoDe ne kaha aur langData hua chala gaya.
ghoDe ki baat sunkar bholu tharthar kanpne laga. usi samay udhar se ek bail nikla.
‘sher bhai, kisi ek ki baat mein nahin aana chahiye, achchha hoga yadi hum is bail ka bhi nirnay jaan len. ’ bholu ne kaha.
‘theek hai, yadi tum chahte ho to aisa hi sahi. ’ sher ne kaha.
bholu bail ko rok kar sari baat batai aur usse apna nirnay sunane ko kaha.
‘sher maharaj, aap jo kar rahe hain wo uchit hai. ye manushya baDe svarthi aur avsarvadi hote hain. mujhe hi dekhiye, jab tak main apne malik ki seva karne yogya raha tab tak usne mera dhyaan rakha kintu ab main buDha aur ashakt ho gaya hoon aur apne malik ke khet mein kaam karne yogya nahin rah gaya hoon to usne mujhe bhukhe marne ko avara chhoD diya hai. isliye aap is manushya ko markar apni bhookh mitaiye jisse mujhe bhi nyaay mil jayega. ’ bail ne kaha aur jangal ki or chal diya.
‘ab kaho? ab to main tumhein kha sakta hoon! ya abhi bhi kisi aur nyayadhish ka nyaay sunna shesh hai? sher ne bholu ko tana marte hue kaha.
bholu samajh gaya ki ab uske praan nahin bach sakte hain. itne mein use ek siyar dikhai de gaya.
‘sher bhai, ye donon to manushya ke paltu rah chuke the isliye inke man mein manushya ke prati bair bhaav tha kintu siyar kabhi kisi manushya ka paltu nahin banta hai atah wo jo kahega wo nishpakshata se kahega. isliye meri ye antim pararthna hai ki tum siyar ka nirnay aur jaan sun lo phir yadi wo bhi tumhare paksh mein nirnay de, to tum ek pal bhi ganvaye bina mujhe kha lena. ’ bholu ne giDgiDate hue kaha.
‘theek hai, tum kahte ho to main maan leta hoon lekin iske baad main tumhein aur koi avsar nahin dunga. ’ sher ne chetavni dete hue kaha.
bholu ne siyar ko nikat bulaya aur use sari baat batai. bholu ne siyar se kaha ki ab tum apna nirnay sunao ki sher ghalat kar raha hai ya sahi?
‘dekho bhai manushya! sher jangal ka raja hai, wo kabhi koi ghalati kar hi nahin sakta hai. isliye wo jo kar raha hai wo sahi hai lekin meri samajh mein ek baat nahin aa rahi hai ki sher jaisa shaktishali ek daldal mein kaise dhans sakta hai? mujhe to tumhara pura qissa hi jhutha lag raha hai. ’ siyar ne kaha.
vastutah siyar ko laga ki yadi wo sher ke paksh mein apna nirnay dega to sher is nirdosh manushya ko kha jayega aur siyar ko koi laabh nahin hoga kintu yadi wo kisi tarah sher ko phansa le to pura sher use khane ko mil sakta hai. dusri or sher siyar ki baat sunkar chakraya. use laga ki siyar ko puri ghatna par vishvas hi nahin ho raha hai.
‘are moorkh siyar, tujhe vishvas kyon nahin ho raha hai ki main daldal mein phansa hua tha aur is manushya ne mujhe nikala?’ sher ne taav khate hue kaha.
‘kshama karen maharaj! main kaise vishvas karun ki ap jaisa baDe Deel Daul vala sher itne se daldal mein phans sakta hai?’ siyar ne kaha.
‘yah daldal utna uthla nahin hai jitna ki tum samajh rahe ho. ’ sher ne kaha.
‘main nahin manata. is daldal mein to aapka panja bhar Doob sakta hai, aap nahin. ’ siyar ne hath karte hue kaha.
‘kya tumhein mere kathan ka bhi vishvas nahin hai?’ sher ne puchha.
‘ab aap kah rahe hain to vishvas kar lunga lekin phir bhi mujhe vishvas nahin ho raha hai. ’ siyar mano man markar bola.
‘to theek hai phir ye dekho. ’ kahte hue sher daldal mein kood gaya aur bola, ‘ab to vishvas ho gaya na ki ye daldal gahra hai.
‘haan, maharaj! ab vishvas ho gaya. ’ siyar ne kaha.
‘to phir ab mujhe is daldal se bahar nikalo. ’ sher ne siyar se kaha.
‘main aapko bahar nikal leta lekin sochta hoon ki ek dhokhebaz aur moorkh raja ka is jangal mein kya kaam?’ siyar ne kaha.
bholu ne siyar ko uske nyaay ke liye bahut bahut dhanyavad diya. iske baad bholu apne ghar ki or chal diya tatha siyar vahin baithkar sher ke marne ki prtiksha karne laga.
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sher ne bholu ko dekha to jaan mein jaan aai.
‘bhaiya mujhe yahan se bahar nikalo nahin to main mar jaunga. ’ sher ne bholu se kaha.
‘main tumhein nikal to doon lekin bahar nikal kar tam mujhe kha jaoge. ’ bholu ne kaha.
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bholu sher ki baton mein aa gaya. usne rassi ka ek chhor ek peD se bandha aur dusra chhor sher ki or phenkte hue kaha, ‘la, ise pakaD lo! main tumhein bahar kheench lunga. ’
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‘tum moorkh ho jo tumne mere praan bachaye kintu main moorkh nahin hoon ki apna bhojan ko chhoD doon.
tum mere bhojan ho. main tumhein khaunga. ’ sher ne kaha.
‘lekin tumne kaha tha ki tum mujhe nahin khaoge. ’ bholu ghighiyaya.
‘uunhun! mainne kaha tha ki tum mujhe bahar nikalkar dekho phir tumhein svtah pata chal jayega ki main sach kah raha hoon ya nahin. ab tum tay kar lo ki mainne jo kaha tha wo sach tha ya jhooth. ’ sher ne hanste hue kaha.
bholu samajh gaya ki sher ne use moorkh banaya hai. hinsak praniyon ki baton par kabhi vishvas nahin karna chahiye. bholu soch hi raha tha ki sher ke panje se kaise bacha jaye ki udhar se ek ghoDa aa nikla.
‘sher bhai, tum mujhe khane ja rahe ho ye anyay hai. kyon na hum is bare mein ghoDe ka nirnay jaan len. ’ bholu ne kaha.
‘theek hai, jaisa tum chaho. ’ sher ne socha ki chalo is manushya ki antim ichchha puri kar di jaye.
bholu ne ghoDe ko vastusthiti batai aur nirnay dene ka agrah kiya. ghoDa manushyon ke vyvahar se dukhi tha, us par use laga ki yadi usne sher ke viruddh nirnay diya to sher use bhi kha jayega.
‘sher maharaj, aap jo kar rahe hain wo uchit hai. ye manushya baDe svarthi aur avsarvadi hote hain. mujhe hi dekhiye, jab tak main apne malik ki seva karne yogya raha tab tak usne mera dhyaan rakha kintu mere pair mein chot lagne par jab main langDa ho gaya to usne mujhe goli marne ka adesh de diya. wo to main us bandukchi ko dulatti markar bhaag aaya anyatha main abhi tak mar chuka hota. isliye aap to is manushya ko avashya khaiye. ’ ghoDe ne kaha aur langData hua chala gaya.
ghoDe ki baat sunkar bholu tharthar kanpne laga. usi samay udhar se ek bail nikla.
‘sher bhai, kisi ek ki baat mein nahin aana chahiye, achchha hoga yadi hum is bail ka bhi nirnay jaan len. ’ bholu ne kaha.
‘theek hai, yadi tum chahte ho to aisa hi sahi. ’ sher ne kaha.
bholu bail ko rok kar sari baat batai aur usse apna nirnay sunane ko kaha.
‘sher maharaj, aap jo kar rahe hain wo uchit hai. ye manushya baDe svarthi aur avsarvadi hote hain. mujhe hi dekhiye, jab tak main apne malik ki seva karne yogya raha tab tak usne mera dhyaan rakha kintu ab main buDha aur ashakt ho gaya hoon aur apne malik ke khet mein kaam karne yogya nahin rah gaya hoon to usne mujhe bhukhe marne ko avara chhoD diya hai. isliye aap is manushya ko markar apni bhookh mitaiye jisse mujhe bhi nyaay mil jayega. ’ bail ne kaha aur jangal ki or chal diya.
‘ab kaho? ab to main tumhein kha sakta hoon! ya abhi bhi kisi aur nyayadhish ka nyaay sunna shesh hai? sher ne bholu ko tana marte hue kaha.
bholu samajh gaya ki ab uske praan nahin bach sakte hain. itne mein use ek siyar dikhai de gaya.
‘sher bhai, ye donon to manushya ke paltu rah chuke the isliye inke man mein manushya ke prati bair bhaav tha kintu siyar kabhi kisi manushya ka paltu nahin banta hai atah wo jo kahega wo nishpakshata se kahega. isliye meri ye antim pararthna hai ki tum siyar ka nirnay aur jaan sun lo phir yadi wo bhi tumhare paksh mein nirnay de, to tum ek pal bhi ganvaye bina mujhe kha lena. ’ bholu ne giDgiDate hue kaha.
‘theek hai, tum kahte ho to main maan leta hoon lekin iske baad main tumhein aur koi avsar nahin dunga. ’ sher ne chetavni dete hue kaha.
bholu ne siyar ko nikat bulaya aur use sari baat batai. bholu ne siyar se kaha ki ab tum apna nirnay sunao ki sher ghalat kar raha hai ya sahi?
‘dekho bhai manushya! sher jangal ka raja hai, wo kabhi koi ghalati kar hi nahin sakta hai. isliye wo jo kar raha hai wo sahi hai lekin meri samajh mein ek baat nahin aa rahi hai ki sher jaisa shaktishali ek daldal mein kaise dhans sakta hai? mujhe to tumhara pura qissa hi jhutha lag raha hai. ’ siyar ne kaha.
vastutah siyar ko laga ki yadi wo sher ke paksh mein apna nirnay dega to sher is nirdosh manushya ko kha jayega aur siyar ko koi laabh nahin hoga kintu yadi wo kisi tarah sher ko phansa le to pura sher use khane ko mil sakta hai. dusri or sher siyar ki baat sunkar chakraya. use laga ki siyar ko puri ghatna par vishvas hi nahin ho raha hai.
‘are moorkh siyar, tujhe vishvas kyon nahin ho raha hai ki main daldal mein phansa hua tha aur is manushya ne mujhe nikala?’ sher ne taav khate hue kaha.
‘kshama karen maharaj! main kaise vishvas karun ki ap jaisa baDe Deel Daul vala sher itne se daldal mein phans sakta hai?’ siyar ne kaha.
‘yah daldal utna uthla nahin hai jitna ki tum samajh rahe ho. ’ sher ne kaha.
‘main nahin manata. is daldal mein to aapka panja bhar Doob sakta hai, aap nahin. ’ siyar ne hath karte hue kaha.
‘kya tumhein mere kathan ka bhi vishvas nahin hai?’ sher ne puchha.
‘ab aap kah rahe hain to vishvas kar lunga lekin phir bhi mujhe vishvas nahin ho raha hai. ’ siyar mano man markar bola.
‘to theek hai phir ye dekho. ’ kahte hue sher daldal mein kood gaya aur bola, ‘ab to vishvas ho gaya na ki ye daldal gahra hai.
‘haan, maharaj! ab vishvas ho gaya. ’ siyar ne kaha.
‘to phir ab mujhe is daldal se bahar nikalo. ’ sher ne siyar se kaha.
‘main aapko bahar nikal leta lekin sochta hoon ki ek dhokhebaz aur moorkh raja ka is jangal mein kya kaam?’ siyar ne kaha.
bholu ne siyar ko uske nyaay ke liye bahut bahut dhanyavad diya. iske baad bholu apne ghar ki or chal diya tatha siyar vahin baithkar sher ke marne ki prtiksha karne laga.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 163)
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