इंद्रवती नदी के पास एक राज्य था जिसका राजा विलासी और अन्यायी था। प्रजा उस राजा से बहुत दुखी थी। उसी राज्य में नदी के तट पर एक छोटा-सा गाँव था। उस गाँव में एक किसान रहता था। किसान था बूढ़ा। उसके परिवार में कुल दो व्यक्ति थे, वह बूढ़ा किसान और उसकी बूढ़ी पत्नी। बूढ़ा-बुढ़िया की कोई संतान नहीं थी। वे दोनों इंद्रवती नदी के तट पर खेती करते और तरबूज़ उगाते। एक दिन बुढ़िया एक तरबूज़ तोड़कर लाई। उसे भूख लगी थी। उसने सोचा कि चलो, इसी तरबूज़ को खा लिया जाए। बुढ़िया ने तरबूज़ काटने के लिए जैसे ही चाकू उठाया वैसे ही तरबूज़ से एक आवाज़ आई।
‘दाई-दाई, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’
बुढ़िया चाकू चलाते-चलाते रुक गई। उसने इधर देखा, उधर देखा। आस-पास कोई नहीं था। बुढ़िया को लगा कि ये उसका भ्रम था। उसने फिर चाकू सँभला।
‘दाई-दाई, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा। फिर आवाज़ आई।
अब बुढ़िया डर गई। उसने तरबूज़ को एक ओर रखा और अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी। थोड़ी देर बाद उसका पति आ गया।
‘देखो, मैं कितना सुंदर तरबूज़ लाई हूँ। हम दोनों मिलकर इसको खाएँगे।’ बुढ़िया ने कहा।
‘तो फिर काटो इसे।’ किसान ने कहा।
‘नहीं, तुम काटो। मेरा तो हाथ दुख रहा है।’ बुढ़िया ने असली बात छिपाते हुए कहा। उसे लगा कि उसका पति उसकी बात सुनकर उसकी खिल्ली उड़ाएगा।
‘ठीक है, मैं ही काटता हूँ।’ यह कहते हुए किसान ने चाकू उठाया और जैसे ही तरबूज़ के ऊपर चलाना चाहा वैसे ही तरबूज़ से एक आवाज़ आई।
‘दादा-दादा, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’
यह सुनकर किसान चकित रह गया। किसान ने भी इसे अपना भ्रम समझकर तरबूज़ को काटने का दुबारा प्रयास किया तो फिर वही आवाज़ आई, ‘दादा-दादा, चाकू सँभलकर चलाना वरना मैं कट जाऊँगा।’
‘ये कैसा चमत्कार है? ये तरबूज़ तो बोलता है।’ किसान कह उठा। इस पर बुढ़िया ने बता दिया कि उसे भी ऐसी ही आवाज़ सुनाई पड़ी थी। किसान को लगा कि इस तरबूज़ के भीतर अवश्य कोई है। उसने तरबूज़ को धीरे-धीरे चारो ओर से छील डाला। फिर बहुत सावधानी से तरबूज़ के दो टुकड़े किए। जैसे ही तरबूज़ के दो टुकड़े हुए वैसे ही तरबूज़ के भीतर से एक गोल-मटोल लड़का लुढ़क कर बाहर आ गया।
‘अरे, तुम कौन हो? इस तरबूज़ के अंदर क्या कर रहे थे?’ किसान ने लड़के से पूछा।
‘दादा, मैं तरबूज़ के अंदर पैदा हुआ लेकिन आपने मुझे तरबूज़ से बाहर निकाला इसलिए अब मैं आपका बेटा हूँ। अब मैं आप लोगों के साथ रहूँगा और आप लोगों की सेवा करूँगा। अब आप लोग मेरा कोई नाम रख दीजिए।’ उस गोल-मटोल लड़के ने कहा।
‘ठीक है, तुम गोल तरबूज़े के भीतर से निकले हो और देखने में भी गोल-मटोल हो इसलिए हम तुम्हें मटोले कहकर पुकारा करेंगे।’ किसान ने कहा।
‘ठीक है दादा!’ मटोले ने कहा।
इसके बाद किसान उसकी पत्नी और मटोले तीनों साथ-साथ रहने लगे। मटोले अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगा। वह पिता के साथ खेत जाता, बैलों को चराने ले जाता और तरबूज़े की बेलों की देखभाल करता। मटोले के आ जाने से किसान और उसकी पत्नी का जीवन सुखमय हो गया। संतान की कमी भी पूरी हो गई।
एक दिन मटोले बैलों को चरा रहा था। उसी समय उधर दो सिपाही निकल आए। उन सिपाहियों ने मटोले के बैलों को देखा तो उनके मन में लालच आ गई। उन्हें लगा कि यदि वे इन सुंदर बैलों को अपने राजा को देंगे तो राजा ख़ुश होकर उन्हें ढेर सारा ईनाम देगा। यह सोचकर सिपाहियों ने मटोले को धक्का दिया और उससे उसके बैलों को छीन कर चल दिए। मटोले ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन उन्होंने मटोले की एक न सुनी। मटोले दुखी होकर भागा-भागा अपने पिता के पास घर पहुँचा।
‘दादा, राजा के सिपाही हमारे बैल छीन कर ले गए।’ मटोले ने अपने पिता से कहा।
‘जाने दे बेटा, दुखी मत हो। राजा अत्याचारी है। उससे हमारे बैल वापस नहीं मिल सकेंगे। तू अब उन बैलों को भूल जा।’ किसान ने कहा।
‘नहीं दादा, मैं तो बैल वापस लाकर रहूँगा। मैं जा रहा हूँ राजा के पास।’ मटोले ने पाँव पटकते हुए कहा।’
‘कोई लाभ नहीं है, बेटा! राजा कहीं तुझे जेल में न डाल दे। तेरे पिता ठीक कहते हैं, तू बैलों को भूल जा।’ बुढ़िया ने भी मटोले को समझाया।
‘नहीं, मैं तो अपने बैल वापस लाकर रहूँगा।’ मटोले ने कहा और बैल लाने राजधानी की ओर चल पड़ा। उसके माता-पिता ने उसके लिए गुड़ और चना बाँध दिया ताकि भूख लगने पर वह खा सके।
मटोले जा रहा था कि रास्ते में उसे किसी के रोने-कराहने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई नहीं दिखा। फिर उसने ज़मीन की ओर देखा। एक नन्हीं चींटी रो रही थी, कराह रही थी।
‘चींटी-चींटी, क्या हुआ? क्यों रो रही हो?’ मटोले ने चींटी से पूछा।
‘मैं आज सुबह भोजन की तलाश में अकेली ही निकल पड़ी। भोजन मिला नहीं और अब भूख के मारे मेरे प्राण निकले जा रहे हैं। मेरे साथी दूसरी ओर गए हुए हैं इसलिए कोई मेरी सहायता करने नहीं आ सकता है। आज मैं भूख से मर जाऊँगी।’ चींटी ने रोते हुए कहा।
‘नहीं तुम भूख से नहीं मरोगी। लो ये गुड़ खा लो।’ मटोले ने पोटली में से गुड़ निकाल कर चींटी को दे दिया। गुड़ खाकर चींटी के जान में जान आई।
‘धन्यवाद मटोले भाई! तुमने मेरे प्राण बचाए हैं मगर ये तो बताओ कि तुम अकेले कहाँ जा रहे हो?’ चींटी ने पूछा।
‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।
‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।’ चींटी ने कहा और मटोले के साथ हो ली।
कुछ दूर जाने पर मटोले को एक सियार दिखाई दिया। वह शिकारी के जाल में फँस गया था और जाल से निकलने के लिए छटपटा रहा था। यह देखकर मटोले को सियार पर दया आई। उसने सियार को जाल से मुक्त कर दिया।
‘धन्यवाद मटोले भाई! तुमने मेरी जान बचाई अन्यथा आज शिकारी मुझे मार डालता। लेकिन ये तो बताओ कि तुम इस चींटी के साथ कहाँ जा रहे हो?’ सियार ने मटोले को धन्यवाद देते हुए पूछा।
‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।
‘ठीक है, मैं भी तुम लोगों के साथ चलता हूँ।’ सियार ने कहा और मटोले के साथ हो लिया।
मटोले, चींटी और सियार आपस में बातें करते जा रहे थे कि उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। कोई सहायता के लिए पुकार रहा था। मटोले ने देखा कि दावानल (जंगल की आग) एक गुफ़ा में फँस गई है। मटोले गुफ़ा के पास गया। उसने गुफ़ा के दरवाज़े पर कुछ सूखी लकड़ियाँ रख दीं। दावानल उन लकड़ियों को जलाती हुई गुफ़ा से बाहर निकल आई। गुफ़ा से बाहर आकर दावानल के जान में जान आई।
‘मटोले भाई, तुम बहुत दयालु हो। तुमने मेरी जान बचाई। किंतु ये तो बताओ कि तुम चींटी और सियार के साथ जा कहाँ रहे हो?’ दावानल ने पूछा।
‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।‘ मटोले ने कहा।
‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।’ दावानल ने कहा और मटोले के साथ हो ली।
मटोले, चींटी, सियार और दावानल अभी राजधानी के पास पहुँचे ही थे कि उन्हें किसी के सुबकने की आवाज़ सुनाई दी। मटोले ने देखा कि एक जलस्रोत सुबक रहा है।
‘तुम क्यों सुबक रहे हो? तुम्हें क्या कष्ट है? क्या मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ? मटोले ने जलस्रोत से पूछा।
‘देखो, राजा ने अपने आदमियों से मेरे ऊपर ये ढेर सारी मिट्टी डलवा दी है जिससे मैं सूख जाऊँ और फिर राजा यहाँ अपने लिए एक महल बनवा सके। जबकि मैं यहाँ आस-पास के सभी मनुष्यों और पशु-पक्षियों की प्यास बुझाता हूँ।’ जलस्रोत ने कहा।
जलस्रोत की बात सुनकर मटोले को जलस्रोत के साथ होने वाले अन्याय पर बहुत क्रोध आया। उसने जलस्रोत पर डाली गई सारी मिट्टी निकालकर अलग फेंक दी। इससे जलस्रोत बहुत ख़ुश हुआ।
‘मटोले भाई, तुमने मेरा जीवन बचाया इसके लिए तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद! पर ये तो बताओ कि तुम ये चींटी, सियार और दावानल के साथ कहाँ जा रहे हो? जलस्रोत ने पूछा।
‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए राजा के दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
अब मैं चला पास राजा के, अपने बैल छुड़ाने को
अब प्यारे बैलों को फिर से वापस लाने को...।’ मटोले ने कहा।
‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।’ जलस्रोत ने कहा और मटोले के साथ हो लिया।
मटोले अपने चारों साथियों सहित राजा के दरबार में पहुँचा।
‘कौन हो तुम? क्या चाहिए तुम्हें?’ राजा ने मटोले से पूछा।
‘मैं बूढ़े माँ-बाप का बेटा, चरा रहा था मैं दो बैल
आए आपके के दो-दो सैनिक, छीन ले गए मेरे बैल
मुझे आपसे न्याय चाहिए, और चाहिए अपने बैल
कृपया दिलवा दें मुझको, चला जाऊँगा लेकर बैल।’ मटोले ने राजा से विनती की।
राजा था अन्यायी। उसके सिपाहियों ने मटोले के दोनों बैल राजा को ही भेट किए थे। राजा को लगा कि मटोले ने अपने राजा से बैल माँगकर अपराध किया है।
‘इन पाँचों को ले जाओ और ले जाकर मुर्गियों के दड़बे में बंद कर दो। यदि कल सुबह तक इन्हें बुद्धि नहीं आई तो मैं कल इन्हें कठोर दंड दूँगा।’ राजा ने अपने सिपाहियों को आज्ञा दी।
सिपाहियों ने मटोले और उसके चारों साथियों को मुर्गियों के दड़बे में बंद कर दिया। जैसा राजा, वैसी उसकी मुर्गियाँ। जैसे ही पाँचों दड़बे में बंद किए गए वैसे ही मुर्गियों ने उन्हें चोंच मारनी शुरू कर दी। मटोले ने मुर्गियों को समझाने का प्रयास किया लेकिन राजा की लाड़ली मुर्गियाँ भला क्यों मानतीं?
‘मटोले भाई, ये मुर्गियाँ ऐसे मानने वाली नहीं हैं। अब तो मैं इन्हें खा ही जाऊँगा।’ सियार ने कहा और एक-एक करके सारी मुर्गियाँ चट कर गया। उसके बाद पाँचों ने आराम से दड़बे में रात व्यतीत की।
सुबह होते ही सिपाही पाँचों का हाल-चाल देखने आए। जैसे ही सिपाहियों की दृष्टि दड़बे में गई वे स्तब्ध रह गए। दड़बे में मुर्गियों के पंख बिछे हुए थे और पाँचों उन पंखों पर आराम से सो रहे थे। सिपाही भागे-भागे राजा के पास गए और राजा को पूरा हाल सुनाया। राजा अपनी प्रिय मुर्गियों के मारे जाने का समाचार सुनकर आगबबूला हो उठा। उसने पाँचों को तत्काल दरबार में बुलवाया।
‘इन पाँचों ने पहले हमसे बैल माँगने का अपराध किया और फिर हमारी मुर्गियाँ मारने का महाअपराध किया। इसलिए इन पाँचों को हाथियों से कुचलवा दिया जाए।’ राजा ने आज्ञा दी।
सिपाही पाँचों को हाथियों के पास ले गए। महावत ने हाथियों को तैयार किया। मटोले ने हाथियों को समझाने का प्रयास किया कि उनका कोई दोष नहीं है, वे उन पाँचों को मत मारें। लेकिन जैसा राजा, वैसे उसके हाथी। वे हाथी पाँचों को कुचलने को उतारू हो उठे।
‘ठहरो, मैं देखती हूँ इन हाथियों को तो।’ कहती हुई चींटी ने सीटी बजाई।
सीटी की आवाज़ सुनते ही कई चींटियाँ वहाँ आ गईं। देखते ही देखते वे चींटियाँ उन्मत्त हाथियों की सूँड़ों में घुस गईं। दूसरे ही पल एक-एक करके सभी हाथी ज़मीन पर गिर पड़े और उनके प्राण निकल गए। हाथियों को गिरकर मरते देखकर सिपाही घबरा गए। वे दौड़कर राजा के पास पहुँचे। राजा को सारा हाल सुनाया। राजा ने पाँचों को दरबार में बुलाया।
‘इन पाँचों ने पहले हमसे बैल माँगने का अपराध किया, फिर हमारी मुर्गियाँ मारने का महाअपराध किया और अब हमारे प्रिय हाथियों को मारने का महा से भी महाअपराध किया। इन्हें आग में जीवित जला दिया जाए।’ राजा ने आज्ञा दी।
सिपाहियों ने राजधानी के चौक में लकड़ियाँ इकट्ठी की और आग जला दी।
मटोले और उसके साथियों को उस आग में जीवित जलाने के लिए लाया गया। प्रजा ने यह दृश्य देखा तो त्राहि-त्राहि कर उठी। किंतु राजा के आदेश का विरोध करने का साहस किसी में नहीं था।
मटोले ने आग को समझाने का प्रयास किया लेकिन जैसा राजा, वैसी उसकी आग। आग उन पाँचों को जलाकर भस्म कर देने को आतुर हो उठी।
‘तुम लोग चिंता मत करो, मैं हूँ न!’ जैसे ही पाँचों को आग के पास ले जाया गया वैसे ही जलस्रोत ने कहा।
इसके बाद जलस्रोत ने पलक झपकते ही आग को बुझा दिया। सिपाहियों ने फिर आग जलाई। जलस्रोत ने फिर आग बुझा दी। अंतत: सिपाही थक गए और दौड़कर राजा के पास पहुँचे।
‘महाराज, उन पाँचों को कोई भी दंड देना कठिन है। इसलिए आपसे विनती है कि उन्हें जाने दें।’ सिपाहियों ने राजा से कहा।
‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ ऐसी बात कहने का? अरे मूर्खो, यदि उन पाँचों को दंड नहीं दिया जा सकता है तो उनके बदले मटोले के बूढ़े माँ-बाप को पकड़ लाओ और उन्हें दंड दो।’ राजा ने क्रोधोन्मत्त होते हुए आज्ञा दी।
जैसे ही मटोले को राजा की आज्ञा का पता चला, वह चिंतित हो उठा।
‘मटोले भाई, मेरे रहते हुए तुम क्यों चिंता करते हो?’ दावानल ने कहा और उसने देखते-ही-देखते राजा को उसके महल सहित जलाकर ख़ाक कर दिया।
प्रजा ने देखा तो वह बहुत ख़ुश हुई। वह मटोले की जय-जयकार करने लगी। प्रजा ने मटोले को अपना राजा घोषित कर दिया। मटोले ने तो राजा बनने से मना किया लेकिन उसके साथियों ने उसे समझाया कि इस राज्य को तुम्हारे जैसे दयालु और न्यायप्रिय राजा की आवश्यकता है अत: मना मत करो। मटोले अपने साथियों की बात मान गया।
राजा बनने के बाद मटोले ने एक नया महल बनवाया और अपने माता-पिता को भी अपने साथ रहने के लिए बुला लिया। उसने जलस्रोत के आस-पास घाट बनवा दिया ताकि जलस्रोत सदा सुरक्षित रहे। मटोले ने चींटियों के लिए एक बाग़ बनवाया जहाँ वे स्वच्छंद विचरण कर सकें और उस बाग़ में उनके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था की। मटोले ने सियार से वादा किया कि जब भी उसे सहायता की आवश्यकता हो, मटोले सदा उसकी सहायता करेगा। इसी प्रकार मटोले ने जंगल के चारों ओर तारों का घेरा बनवा दिया ताकि दावानल फिर किसी गुफ़ा में न फँस सके और जंगल में निश्चिंत होकर घूम सके।
मटोले के राजा बनने के बाद समूचे राज्य में ख़ुशहाली छा गई।
indravti nadi ke paas ek rajya tha jiska raja vilasi aur anyayi tha. praja us raja se bahut dukhi thi. usi rajya mein nadi ke tat par ek chhota sa gaanv tha. us gaanv mein ek kisan rahta tha. kisan tha buDha. uske parivar mein kul vyakti the, wo buDha kisan aur uski buDhi patni. buDha buDhiya ki koi santan nahin thi. ve donon indravti nadi ke tat par kheti karte aur tarbuz ugate. ek din buDhiya ek tarbuz toDkar lai. use bhookh lagi thi. usne socha ki chalo, isi tarbuz ko kha liya jaye. buDhiya ne tarbuz katne ke liye jaise hi chaku uthaya vaise hi tarbuz se ek avaz aai.
‘dai dai, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
buDhiya chaku chalate chalate ruk gai. usne idhar dekha, udhar dekha. aas paas koi nahin tha. buDhiya ko laga ki ye uska bhram tha. usne phir chaku samhala.
‘dai dai, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. phir avaz aai.
ab buDhiya Dar gai. usne tarbuz ko ek or rakha aur apne pati ki prtiksha karne lagi. theDi der baad uska pati aa gaya.
‘dekho, main kitna sundar tarbuz lai hoon. hum donon milkar isko khayenge. ’ buDhiya ne kaha.
‘to phir kato ise. ’ kisan ne kaha.
‘nahin, tum kato. mera to haath dukh raha hai. ’ buDhiya ne asli baat chhipate hue kaha. use laga ki uska pati uski baat sunkar uski khilli uDayega.
‘theek hai, main hi katta hoon. ’ ye kahte hue kisan ne chaku uthaya aur jaise hi tarbuz ke uupar chalana chaha vaise hi tarbuz se ek avaz aai.
‘dada dada, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
ye sunkar kisan chakit rah gaya. kisan ne bhi ise apna bhram samajhkar tarbuz ko katne ka dubara prayas kiya to phir vahi avaz aai, ‘dada dada, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
‘ye kaisa chamatkar hai? ye tarbuz to bolta hai. ’ kisan kah utha. is par buDhiya ne bata diya ki use bhi aisi hi avaz sunai paDi thi. kisan ko laga ki is tarbuz ke bhitar avashya koi hai. usne tarbuz ko dhire dhire charo or se chheel Dala. phir bahut savadhani se tarbuz ke do tukDe kiye. jaise hi tarbuz ke do tukDe hue vaise hi tarbuz ke bhitar se ek gol matol laDka luDhak kar bahar aa gaya.
‘are, tum kaun ho? is tarbuz ke andar kya kar rahe the?’ kisan ne laDke se puchha.
‘dada, main tarbuz ke andar paida hua lekin aapne mujhe tarbuz se bahar nikala isliye ab main aapka beta hoon. ab main aap logon ke saath rahunga aur aap logon ki seva karunga. ab aap log mera koi naam rakh dijiye. ’ us gol matol laDke ne kaha.
‘theek hai, tum gol tarbuze ke bhitar se nikle ho aur dekhne mein bhi gol matol ho isliye hum tumhein matole kahkar pukara karenge. ’ kisan ne kaha.
‘theek hai dada!’ matole ne kaha.
iske baad kisan uski patni aur matole tinon saath saath rahne lage. matole apne pita ke kaam mein haath bantane laga. wo pita ke saath khet jata, bailon ko charane le jata aur tarbuze ki belon ki dekhbhal karta. matole ke aa jane se kisan aur uski patni ka jivan sukhmay ho gaya. santan ki kami bhi puri ho gai.
ek din matole bailon ko chara raha tha. usi samay udhar do sipahi nikal aaye. un sipahiyon ne matole ke bailon ko dekha to unke man mein lalach aa gai. unhen laga ki yadi ve in sundar bailon ko apne raja ko denge to raja khush hokar unhen Dher sara iinam dega. ye sochkar sipahiyon ne matole ko dhakka diya aur usse uske bailon ko chheen kar chal diye. matole ne unhen rokne ka bahut prayas kiya lekin unhonne matole ki ek na suni. matole dukhi hokar bhaga bhaga apne pita ke paas ghar pahuncha.
‘dada, raja ke sipahi hamare bail chheen kar le ge. ’ matole ne apne pita se kaha.
‘jane de beta, dukhi mat ho. raja atyachari hai. usse hamare bail vapas nahin mil sakenge. tu ab un bailon ko bhool ja. ’ kisan ne kaha.
‘nahin dada, main to bail vapas lakar rahunga. main ja raha hoon raja ke paas. ’ matole ne paanv patakte hue kaha. ’
‘koi laabh nahin hai, beta! raja kahin tujhe jel mein na Daal de. tere pita theek kahte hain, tu bailon ko bhool ja. ’ buDhiya ne bhi matole ko samjhaya.
‘nahin, main to apne bail vapas lakar rahunga. ’ matole ne kaha aur bail lane rajdhani ki or chal paDa. uske mata pita ne uske liye guD aur chana baandh diya taki bhookh lagne par wo kha sake.
matole ja raha tha ki raste mein use kisi ke rone karahne ki avaz sunai di. usne idhar udhar dekha, koi nahin dikha. phir usne zamin ki or dekha. ek nanhin chinti ro rahi thi, karah rahi thi.
‘chinti chinti, kya hua? kyon ro rahi ho?’ matole ne chinti se puchha.
‘main aaj subah bhojan ki talash mein akeli hi nikal paDi. bhojan mila nahin aur ab bhookh ke mare mere praan nikle ja rahe hain. mere sathi dusri or ge hue hain isliye koi meri sahayata karne nahin aa sakta hai. aaj main bhookh se mar jaungi. ’ chinti ne rote hue kaha.
‘nahin tum bhookh se nahin marogi. lo ye guD kha lo. ’ matole ne potli mein se guD nikal kar chinti ko de diya.
guD khakar chinti ke jaan mein jaan aai.
‘dhanyavad matole bhai! tumne mere praan bachaye hain magar ye to batao ki tum akele kahan ja rahe ho?’ chinti ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalti hoon. ’ chinti ne kaha aur matole ke saath ho li.
kuch door jane par matole ko ek siyar dikhai diya. wo shikari ke jaal mein phans gaya tha aur jaal se nikalne ke liye chhatapta raha tha. ye dekhkar matole ko siyar par daya aai. usne siyar ko jaal se mukt kar diya.
‘dhanyavad matole bhai! tumne meri jaan bachai anyatha aaj shikari mujhe maar Dalta. lekin ye to batao ki tum is chinti ke saath kahan ja rahe ho?’ siyar ne matole ko dhanyavad dete hue puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tum logon ke saath chalta hoon. ’ siyar ne kaha aur matole ke saath ho liya.
matole, chinti aur siyar aapas mein baten karte ja rahe the ki unhen ek avaz sunai di. koi sahayata ke liye pukar raha tha. matole ne dekha ki davanal (jangal ki aag) ek gufa mein phans gai hai. matole gufa ke paas gaya. usne gufa ke darvaze par kuch sukhi lakDiyan rakh deen. davanal un lakaDiyon ko jalati hui gufa se bahar nikal aai. gufa se bahar aakar davanal ke jaan mein jaan aai.
‘matole bhai, tum bahut dayalu ho. tumne meri jaan bachai. kintu ye to batao ki tum chinti aur siyar ke saath ja kahan rahe ho?’ davanal ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ‘ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalti hoon. ’ davanal ne kaha aur matole ke saath ho li.
matole, chinti, siyar aur davanal abhi rajdhani ke paas pahunche hi the ki unhen kisi ke subakne ki avaz sunai di. matole ne dekha ki ek jalasrot subak raha hai.
‘tum kyon subak rahe ho? tumhein kya kasht hai? kya main tumhari sahayata kar sakta hoon? matole ne jalasrot se puchha.
‘dekho, raja ne apne adamiyon se mere uupar ye Dher sarir mitti Dalva di hai jisse main sookh jaun aur phir raja yahan apne liye ek mahl banva sake. jabki main yahan aas paas ke sabhi manushyon aur pashu pakshiyon ki pyaas bujhata hoon. ’ jalasrot ne kaha.
jalasrot ki baat sunkar matole ko jalasrot ke saath hone vale anyay par bahut krodh aaya. usne jalasrot par Dali gai sari mitti nikal kar alag phenk di. isse jalasrot bahut khush hua.
‘matole bhai, tumne mera jivan bachaya iske liye tumhein bahut bahut dhanyavad! par ye to batao ki tum ye chinti, siyar aur davanal ke saath kahan ja rahe ho? jalasrot ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalta hoon. ’ jalasrot ne kaha aur matole ke saath ho liya.
matole apne charon sathiyon sahit raja ke darbar mein pahuncha.
‘kaun ho tum? kya chahiye tumhen?’ raja ne matole se puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye aapke ke do do sainik, chheen le ge mere bail
mujhe aapse nyaay chahiye, aur chahiye apne bail
kripaya dilva den mujhko, chala jaunga lekar bail. ’ matole ne raja se vinti ki.
raja tha anyayi. uske sipahiyon ne matole ke donon bail raja ko hi bhet kiye the. raja ko laga ki matole ne apne raja se bail mangakar apradh kiya hai.
‘in panchon ko le jao aur le jakar murgiyon ke daDbe mein band kar do. yadi kal subah tak inhen buddhi nahin aai to main kal inhen kathor danD dunga. ’ raja ne apne sipahiyon ko aagya di.
sipahiyon ne matole aur uske charon sathiyon ko murgiyon ke daDbe mein band kar diya. jaisa raja, vaisi uski murgiyan. jaise hi panchon daDbe mein band kiye ge vaise hi murgiyon ne unhen chonch marni shuru kar di. matole ne murgiyon ko samjhane ka prayas kiya lekin raja ki laDli murgiyan bhala kyon mantin?
‘matole bhai, ye murgiyan aise manne vali nahin hain. ab to main inhen kha hi jaunga. ’ siyar ne kaha aur ek ek karke sari murgiyan chat kar gaya. uske baad panchon ne aram se daDbe mein raat vyatit ki.
subah hote hi sipahi panchon ka haal chaal dekhne aaye. jaise hi sipahiyon ki drishti daDbe mein gai ve stabdh rah ge. daDbe mein murgiyon ke pankh bichhe hue the aur panchon un pankhon par aram se so rahe the. sipahi bhage bhage raja ke paas ge aur raja ko pura haal sunaya. raja apni priy murgiyon ke mare jane ka samachar sunkar agabbula ho utha. usne panchon ko tatkal darbar mein bulvaya.
‘in panchon ne pahle hamse bail mangne ka apradh kiya aur phir hamari murgiyan marne ka mahaapradh kiya. isliye in panchon ko hathiyon se kuchalva diya jaye. ’ raja ne aagya di.
sipahi panchon ko hathiyon ke paas le ge. mahavat ne hathiyon ko taiyar kiya. matole ne hathiyon ko samjhane ka prayas kiya ki unka koi dosh nahin hai, ve un panchon ko mat maren. lekin jaisa raja, vaise uske hathi. ve hathi panchon ko kuchalne ko utaru ho uthe.
‘thahro, main dekhti hoon in hathiyon ko to. ’ kahti hui chinti ne siti bajai.
siti ki avaz sunte hi kai chintiyan vahan aa gain. dekhte hi dekhte ve chintiyan unmatt hathiyon ki sunDon mein ghus gain. dusre hi pal ek ek karke sabhi hathi zamin par gir paDe aur unke praan nikal ge. hathiyon ko girkar marte dekhkar sipahi ghabra ge. ve dauDkar raja ke paas pahunche. raja ko sara haal sunaya. raja ne panchon ko darbar mein bulaya.
‘in panchon ne pahle hamse bail mangne ka apradh kiya, phir hamari murgiyan marne ka mahaapradh kiya aur ab hamare priy hathiyon ko marne ka maha se bhi maha apradh kiya. inhen aag mein jivit jala diya jaye. ’ raja ne aagya di.
sipahiyon ne rajdhani ke chauk mein lakDiyan ikatthi ki aur aag jala di.
matole aur uske sathiyon ko us aag mein jivit jalane ke liye laya gaya. praja ne ye drishya dekha to trahi trahi kar uthi. kintu raja ke adesh ka virodh karne ka sahas kisi mein nahin tha.
matole ne aag ko samjhane ka prayas kiya lekin jaisa raja, vaisi uski aag. aag un panchon ko jalakar bhasm kar dene ko aatur ho uthi.
‘tum log chinta mat karo, main hoon na!’ jaise hi panchon ko aag ke paas le jaya gaya vaise hi jalasrot ne kaha.
iske baad jalasrot ne palak jhapakte hi aag ko bujha diya. sipahiyon ne phir aag jalai. jalasrot ne phir aag bujha di. anttah sipahi thak ge aur dauDkar raja ke paas pahunche.
‘maharaj, un panchon ko koi bhi danD dena kathin hai. isliye aapse vinti hai ki unhen jane den. ’ sipahiyon ne raja se kaha.
‘tumhara sahas kaise hua aisi baat kahne ka? are murkho, yadi un panchon ko danD nahin diya ja sakta hai to unke badle matole ke buDhe maan baap ko pakaD lao aur unhen danD do. ’ raja ne krodhonmatt hote hue aagya di.
jaise hi matole ko raja ki aagya ka pata chala, wo chintit ho utha.
‘matole bhai, mere rahte hue tum kyon chinta karte ho?’ davanal ne kaha aur usne dekhte hi dekhte raja ko uske mahl sahit jalakar khaak kar diya.
praja ne dekha to wo bahut khush hui. wo matole ki jay jaykar karne lagi. praja ne matole ko apna raja ghoshit kar diya. matole ne to raja banne se mana kiya lekin uske sathiyon ne use samjhaya ki is rajya ko tumhare jaise dayalu aur nyayapriy raja ki avashyakta hai atah mana mat karo. matole apne sathiyon ki baat maan gaya.
raja banne ke baad matole ne ek naya mahl banvaya aur apne mata pita ko bhi apne saath rahne ke liye bula liya. usne jajlasrot ke aas paas ghaat banva diya taki jalasrot sada surakshit rahe. matole ne chintiyon ke liye ek baagh banvaya jahan ve svachchhand vichran kar saken aur us baagh mein unke khane pine ki samuchit vyavastha ki. matole ne siyar se vada kiya ki jab bhi use sahayata ki avashyakta ho, matole sada uski sahayata karega. isi prakar matole ne jangal ke charon or taron ka ghera banva diya taki davanal phir kisi gufa mein na phans sake aur jangal mein nishchint hokar ghoom sake.
matole ke raja banne ke baad samuche rajya mein khushhali chha gai.
indravti nadi ke paas ek rajya tha jiska raja vilasi aur anyayi tha. praja us raja se bahut dukhi thi. usi rajya mein nadi ke tat par ek chhota sa gaanv tha. us gaanv mein ek kisan rahta tha. kisan tha buDha. uske parivar mein kul vyakti the, wo buDha kisan aur uski buDhi patni. buDha buDhiya ki koi santan nahin thi. ve donon indravti nadi ke tat par kheti karte aur tarbuz ugate. ek din buDhiya ek tarbuz toDkar lai. use bhookh lagi thi. usne socha ki chalo, isi tarbuz ko kha liya jaye. buDhiya ne tarbuz katne ke liye jaise hi chaku uthaya vaise hi tarbuz se ek avaz aai.
‘dai dai, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
buDhiya chaku chalate chalate ruk gai. usne idhar dekha, udhar dekha. aas paas koi nahin tha. buDhiya ko laga ki ye uska bhram tha. usne phir chaku samhala.
‘dai dai, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. phir avaz aai.
ab buDhiya Dar gai. usne tarbuz ko ek or rakha aur apne pati ki prtiksha karne lagi. theDi der baad uska pati aa gaya.
‘dekho, main kitna sundar tarbuz lai hoon. hum donon milkar isko khayenge. ’ buDhiya ne kaha.
‘to phir kato ise. ’ kisan ne kaha.
‘nahin, tum kato. mera to haath dukh raha hai. ’ buDhiya ne asli baat chhipate hue kaha. use laga ki uska pati uski baat sunkar uski khilli uDayega.
‘theek hai, main hi katta hoon. ’ ye kahte hue kisan ne chaku uthaya aur jaise hi tarbuz ke uupar chalana chaha vaise hi tarbuz se ek avaz aai.
‘dada dada, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
ye sunkar kisan chakit rah gaya. kisan ne bhi ise apna bhram samajhkar tarbuz ko katne ka dubara prayas kiya to phir vahi avaz aai, ‘dada dada, chaku samhal kar chalana varna main kat jaunga. ’
‘ye kaisa chamatkar hai? ye tarbuz to bolta hai. ’ kisan kah utha. is par buDhiya ne bata diya ki use bhi aisi hi avaz sunai paDi thi. kisan ko laga ki is tarbuz ke bhitar avashya koi hai. usne tarbuz ko dhire dhire charo or se chheel Dala. phir bahut savadhani se tarbuz ke do tukDe kiye. jaise hi tarbuz ke do tukDe hue vaise hi tarbuz ke bhitar se ek gol matol laDka luDhak kar bahar aa gaya.
‘are, tum kaun ho? is tarbuz ke andar kya kar rahe the?’ kisan ne laDke se puchha.
‘dada, main tarbuz ke andar paida hua lekin aapne mujhe tarbuz se bahar nikala isliye ab main aapka beta hoon. ab main aap logon ke saath rahunga aur aap logon ki seva karunga. ab aap log mera koi naam rakh dijiye. ’ us gol matol laDke ne kaha.
‘theek hai, tum gol tarbuze ke bhitar se nikle ho aur dekhne mein bhi gol matol ho isliye hum tumhein matole kahkar pukara karenge. ’ kisan ne kaha.
‘theek hai dada!’ matole ne kaha.
iske baad kisan uski patni aur matole tinon saath saath rahne lage. matole apne pita ke kaam mein haath bantane laga. wo pita ke saath khet jata, bailon ko charane le jata aur tarbuze ki belon ki dekhbhal karta. matole ke aa jane se kisan aur uski patni ka jivan sukhmay ho gaya. santan ki kami bhi puri ho gai.
ek din matole bailon ko chara raha tha. usi samay udhar do sipahi nikal aaye. un sipahiyon ne matole ke bailon ko dekha to unke man mein lalach aa gai. unhen laga ki yadi ve in sundar bailon ko apne raja ko denge to raja khush hokar unhen Dher sara iinam dega. ye sochkar sipahiyon ne matole ko dhakka diya aur usse uske bailon ko chheen kar chal diye. matole ne unhen rokne ka bahut prayas kiya lekin unhonne matole ki ek na suni. matole dukhi hokar bhaga bhaga apne pita ke paas ghar pahuncha.
‘dada, raja ke sipahi hamare bail chheen kar le ge. ’ matole ne apne pita se kaha.
‘jane de beta, dukhi mat ho. raja atyachari hai. usse hamare bail vapas nahin mil sakenge. tu ab un bailon ko bhool ja. ’ kisan ne kaha.
‘nahin dada, main to bail vapas lakar rahunga. main ja raha hoon raja ke paas. ’ matole ne paanv patakte hue kaha. ’
‘koi laabh nahin hai, beta! raja kahin tujhe jel mein na Daal de. tere pita theek kahte hain, tu bailon ko bhool ja. ’ buDhiya ne bhi matole ko samjhaya.
‘nahin, main to apne bail vapas lakar rahunga. ’ matole ne kaha aur bail lane rajdhani ki or chal paDa. uske mata pita ne uske liye guD aur chana baandh diya taki bhookh lagne par wo kha sake.
matole ja raha tha ki raste mein use kisi ke rone karahne ki avaz sunai di. usne idhar udhar dekha, koi nahin dikha. phir usne zamin ki or dekha. ek nanhin chinti ro rahi thi, karah rahi thi.
‘chinti chinti, kya hua? kyon ro rahi ho?’ matole ne chinti se puchha.
‘main aaj subah bhojan ki talash mein akeli hi nikal paDi. bhojan mila nahin aur ab bhookh ke mare mere praan nikle ja rahe hain. mere sathi dusri or ge hue hain isliye koi meri sahayata karne nahin aa sakta hai. aaj main bhookh se mar jaungi. ’ chinti ne rote hue kaha.
‘nahin tum bhookh se nahin marogi. lo ye guD kha lo. ’ matole ne potli mein se guD nikal kar chinti ko de diya.
guD khakar chinti ke jaan mein jaan aai.
‘dhanyavad matole bhai! tumne mere praan bachaye hain magar ye to batao ki tum akele kahan ja rahe ho?’ chinti ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalti hoon. ’ chinti ne kaha aur matole ke saath ho li.
kuch door jane par matole ko ek siyar dikhai diya. wo shikari ke jaal mein phans gaya tha aur jaal se nikalne ke liye chhatapta raha tha. ye dekhkar matole ko siyar par daya aai. usne siyar ko jaal se mukt kar diya.
‘dhanyavad matole bhai! tumne meri jaan bachai anyatha aaj shikari mujhe maar Dalta. lekin ye to batao ki tum is chinti ke saath kahan ja rahe ho?’ siyar ne matole ko dhanyavad dete hue puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tum logon ke saath chalta hoon. ’ siyar ne kaha aur matole ke saath ho liya.
matole, chinti aur siyar aapas mein baten karte ja rahe the ki unhen ek avaz sunai di. koi sahayata ke liye pukar raha tha. matole ne dekha ki davanal (jangal ki aag) ek gufa mein phans gai hai. matole gufa ke paas gaya. usne gufa ke darvaze par kuch sukhi lakDiyan rakh deen. davanal un lakaDiyon ko jalati hui gufa se bahar nikal aai. gufa se bahar aakar davanal ke jaan mein jaan aai.
‘matole bhai, tum bahut dayalu ho. tumne meri jaan bachai. kintu ye to batao ki tum chinti aur siyar ke saath ja kahan rahe ho?’ davanal ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ‘ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalti hoon. ’ davanal ne kaha aur matole ke saath ho li.
matole, chinti, siyar aur davanal abhi rajdhani ke paas pahunche hi the ki unhen kisi ke subakne ki avaz sunai di. matole ne dekha ki ek jalasrot subak raha hai.
‘tum kyon subak rahe ho? tumhein kya kasht hai? kya main tumhari sahayata kar sakta hoon? matole ne jalasrot se puchha.
‘dekho, raja ne apne adamiyon se mere uupar ye Dher sarir mitti Dalva di hai jisse main sookh jaun aur phir raja yahan apne liye ek mahl banva sake. jabki main yahan aas paas ke sabhi manushyon aur pashu pakshiyon ki pyaas bujhata hoon. ’ jalasrot ne kaha.
jalasrot ki baat sunkar matole ko jalasrot ke saath hone vale anyay par bahut krodh aaya. usne jalasrot par Dali gai sari mitti nikal kar alag phenk di. isse jalasrot bahut khush hua.
‘matole bhai, tumne mera jivan bachaya iske liye tumhein bahut bahut dhanyavad! par ye to batao ki tum ye chinti, siyar aur davanal ke saath kahan ja rahe ho? jalasrot ne puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye raja ke do sainik, chheen le ge mere bail
ab main chala paas raja ke, apne bail chhuDane ko
ab pyare bailon ko phir se vapas lane ko. . . . ’ matole ne kaha.
‘theek hai, main bhi tumhare saath chalta hoon. ’ jalasrot ne kaha aur matole ke saath ho liya.
matole apne charon sathiyon sahit raja ke darbar mein pahuncha.
‘kaun ho tum? kya chahiye tumhen?’ raja ne matole se puchha.
‘main buDhe maan baap ka beta, chara raha tha main do bail
aaye aapke ke do do sainik, chheen le ge mere bail
mujhe aapse nyaay chahiye, aur chahiye apne bail
kripaya dilva den mujhko, chala jaunga lekar bail. ’ matole ne raja se vinti ki.
raja tha anyayi. uske sipahiyon ne matole ke donon bail raja ko hi bhet kiye the. raja ko laga ki matole ne apne raja se bail mangakar apradh kiya hai.
‘in panchon ko le jao aur le jakar murgiyon ke daDbe mein band kar do. yadi kal subah tak inhen buddhi nahin aai to main kal inhen kathor danD dunga. ’ raja ne apne sipahiyon ko aagya di.
sipahiyon ne matole aur uske charon sathiyon ko murgiyon ke daDbe mein band kar diya. jaisa raja, vaisi uski murgiyan. jaise hi panchon daDbe mein band kiye ge vaise hi murgiyon ne unhen chonch marni shuru kar di. matole ne murgiyon ko samjhane ka prayas kiya lekin raja ki laDli murgiyan bhala kyon mantin?
‘matole bhai, ye murgiyan aise manne vali nahin hain. ab to main inhen kha hi jaunga. ’ siyar ne kaha aur ek ek karke sari murgiyan chat kar gaya. uske baad panchon ne aram se daDbe mein raat vyatit ki.
subah hote hi sipahi panchon ka haal chaal dekhne aaye. jaise hi sipahiyon ki drishti daDbe mein gai ve stabdh rah ge. daDbe mein murgiyon ke pankh bichhe hue the aur panchon un pankhon par aram se so rahe the. sipahi bhage bhage raja ke paas ge aur raja ko pura haal sunaya. raja apni priy murgiyon ke mare jane ka samachar sunkar agabbula ho utha. usne panchon ko tatkal darbar mein bulvaya.
‘in panchon ne pahle hamse bail mangne ka apradh kiya aur phir hamari murgiyan marne ka mahaapradh kiya. isliye in panchon ko hathiyon se kuchalva diya jaye. ’ raja ne aagya di.
sipahi panchon ko hathiyon ke paas le ge. mahavat ne hathiyon ko taiyar kiya. matole ne hathiyon ko samjhane ka prayas kiya ki unka koi dosh nahin hai, ve un panchon ko mat maren. lekin jaisa raja, vaise uske hathi. ve hathi panchon ko kuchalne ko utaru ho uthe.
‘thahro, main dekhti hoon in hathiyon ko to. ’ kahti hui chinti ne siti bajai.
siti ki avaz sunte hi kai chintiyan vahan aa gain. dekhte hi dekhte ve chintiyan unmatt hathiyon ki sunDon mein ghus gain. dusre hi pal ek ek karke sabhi hathi zamin par gir paDe aur unke praan nikal ge. hathiyon ko girkar marte dekhkar sipahi ghabra ge. ve dauDkar raja ke paas pahunche. raja ko sara haal sunaya. raja ne panchon ko darbar mein bulaya.
‘in panchon ne pahle hamse bail mangne ka apradh kiya, phir hamari murgiyan marne ka mahaapradh kiya aur ab hamare priy hathiyon ko marne ka maha se bhi maha apradh kiya. inhen aag mein jivit jala diya jaye. ’ raja ne aagya di.
sipahiyon ne rajdhani ke chauk mein lakDiyan ikatthi ki aur aag jala di.
matole aur uske sathiyon ko us aag mein jivit jalane ke liye laya gaya. praja ne ye drishya dekha to trahi trahi kar uthi. kintu raja ke adesh ka virodh karne ka sahas kisi mein nahin tha.
matole ne aag ko samjhane ka prayas kiya lekin jaisa raja, vaisi uski aag. aag un panchon ko jalakar bhasm kar dene ko aatur ho uthi.
‘tum log chinta mat karo, main hoon na!’ jaise hi panchon ko aag ke paas le jaya gaya vaise hi jalasrot ne kaha.
iske baad jalasrot ne palak jhapakte hi aag ko bujha diya. sipahiyon ne phir aag jalai. jalasrot ne phir aag bujha di. anttah sipahi thak ge aur dauDkar raja ke paas pahunche.
‘maharaj, un panchon ko koi bhi danD dena kathin hai. isliye aapse vinti hai ki unhen jane den. ’ sipahiyon ne raja se kaha.
‘tumhara sahas kaise hua aisi baat kahne ka? are murkho, yadi un panchon ko danD nahin diya ja sakta hai to unke badle matole ke buDhe maan baap ko pakaD lao aur unhen danD do. ’ raja ne krodhonmatt hote hue aagya di.
jaise hi matole ko raja ki aagya ka pata chala, wo chintit ho utha.
‘matole bhai, mere rahte hue tum kyon chinta karte ho?’ davanal ne kaha aur usne dekhte hi dekhte raja ko uske mahl sahit jalakar khaak kar diya.
praja ne dekha to wo bahut khush hui. wo matole ki jay jaykar karne lagi. praja ne matole ko apna raja ghoshit kar diya. matole ne to raja banne se mana kiya lekin uske sathiyon ne use samjhaya ki is rajya ko tumhare jaise dayalu aur nyayapriy raja ki avashyakta hai atah mana mat karo. matole apne sathiyon ki baat maan gaya.
raja banne ke baad matole ne ek naya mahl banvaya aur apne mata pita ko bhi apne saath rahne ke liye bula liya. usne jajlasrot ke aas paas ghaat banva diya taki jalasrot sada surakshit rahe. matole ne chintiyon ke liye ek baagh banvaya jahan ve svachchhand vichran kar saken aur us baagh mein unke khane pine ki samuchit vyavastha ki. matole ne siyar se vada kiya ki jab bhi use sahayata ki avashyakta ho, matole sada uski sahayata karega. isi prakar matole ne jangal ke charon or taron ka ghera banva diya taki davanal phir kisi gufa mein na phans sake aur jangal mein nishchint hokar ghoom sake.
matole ke raja banne ke baad samuche rajya mein khushhali chha gai.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 150)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।