Font by Mehr Nastaliq Web

लालची का दुखद अंत

lalchi ka dukhad ant

एक गाँव में दो भाई रहते थे। पूरी तरह से निठल्ले थे दोनों। उनके निठल्लेपन के कारण गाँव में कोई उन्हें काम नहीं देना चाहता था। दोनों भाई काम के अभाव में आवारा होते जा रहे थे अत: एक दिन उनके पिता ने उन्हें अपने पास बुलाया।

‘देखो, तुम दोनों को इस गाँव में तो काम मिलने से रहा इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम दोनों किसी दूसरे गाँव में जाकर काम करो।’ पिता ने अपने दोनों निठल्ले बेटों को समझाया।

दोनों भाइयों को अपने पिता का सुझाव अच्छा लगा। दोनों काम की तलाश में दूसरे गाँव की ओर निकल पड़े। रास्ते में एक नदी पड़ी। दोनों थककर चूर हो चुके थे अत: उन्होंने विचार किया कि यदि नदी के जल में स्नान कर लिया जाए तो थकान मिट जाएगी और इसी बहाने सुस्ताना भी हो जाएगा। इसी बीच छोटे भाई के मन में एक दुष्टतापूर्ण विचार गया कि यदि बड़े भाई को दिखना बंद हो जाए तो वह साथ में लाई हुई पूरी रोटियाँ खा सकता है। अपने इस विचार पर अमल करते हुए कहा, ‘बड़े भैया, यदि तुम अपनी एक आँख फोड़ लो तो मैं चार रोटियों में से तीन रोटियाँ तुम्हें दे दूँगा और यदि तुम अपनी दोनों आँख फोड़ लो तो मैं चारो रोटियाँ तुम्हें दे दूँगा।’

बड़ा भाई भी था पूरा लालची। उसने सोचा कि यदि मैं अपनी दोनों आँखें फोड़ लूँगा तो मुझे चारो रोटियाँ मिल जाएँगी। बस, फिर क्या था। बड़े भाई ने लालच के वशीभूत अपनी दोनों आँखें फोड़ लीं। जैसे ही बड़े भाई ने अपनी दोनों आँखें फोड़ीं वैसे ही छोटे भाई ने चारो रोटियाँ गपक लीं और बड़े भाई को वहीं छोड़कर चलता बना। बड़ा भाई घने जंगल में अकेला छूट गया। वह अंधा भी हो चुका था। उसे अपनी लालची प्रवृति पर पछतावा हो रहा था। संध्या होते ही वन्य पशुओं के भयानक स्वरों से बड़े भाई का दिल काँपने लगा। वह जैसे-तैसे टटोलता हुआ पास ही एक पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ की शाखा पर बैठ गया।

जिस पेड़ पर बड़ा भाई बैठा था उसके नीचे एक राक्षस, एक शेर और एक भालू रहता था। रात को तीनों पेड़ के नीचे इकट्ठे हुए। वे आपस में बातें करने लगे।

‘मुझे इस पेड़ का एक रहस्य पता है। यदि कोई अंधा इस पेड़ के पत्ते के रस को अपनी आँखों में लगा ले तो उसे दिखाई देने लगेगा।’ राक्षस ने कहा।

‘अरे? यदि ऐसा हुआ तो कोई अंधा भी आँख वाला बनकर मेरी गुफ़ा में रहे हीरे-जवाहरात ले जा सकता है।’ शेर ने हँस कर कहा।

इसके बाद वे भाँति-भाँति की बातें करते रहे और आधी रात के बाद शिकार को ख़ोज में कहीं चले गए। अंधे बड़े भाई ने उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनी थीं। उनके जाते ही बड़े भाई ने पेड़ का पत्ता तोड़कर उसे अपनी हथेलियों पर मसला और उसका रस अपनी आँखों पर लगा लिया। राक्षस की बात सोलह आने सही निकली।

बड़े भाई को दिखाई देने लगा। इसके बाद वह पेड़ से नीचे उतरा और शेर की गुफ़ा में पहुँचा। शेर की गुफ़ा हीरे-जवाहरात से भरी हुई थी। बड़े भाई ने अपना कुर्ता उतारा और उसमें हीरे-जवाहरात भर लिए। इसके बाद वह अपने गाँव लौट आया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगा। सब यही समझते रहे कि बड़ा भाई हीरे-जवाहरात कमा कर लाया है। बड़े भाई ने भी वास्तविकता किसी को नहीं बताई।

कुछ दिन बाद छोटा भाई थोड़ा-बहुत धन कमा कर लौटा। उसने जब बड़े भाई को ठीक-ठाक और धनसंपन्न देखा तो वह चकित रह गया। वह समझ गया कि उसके बड़े भाई के साथ अवश्य कोई चमत्कार हुआ है अन्यथा उसकी दोनों आँखें कैसे ठीक हो जातीं और उसके पास इतना सारा हीरा-जवाहरात कहाँ से जाता बहुत सोच-विचार के बाद छोटे भाई ने बड़े भाई से गिड़गिड़ाते हुए अपने किए की क्षमा माँगी और आँखें ठीक होने का रहस्य पूछा। बड़ा भाई अब तक समझदार और उदारमना हो चुका था। उसने अपने छोटे भाई को सबकुछ सच-सच बता दिया। बड़े भाई की बातें सुनकर छोटे भाई के मन में लालच जाग उठी।

‘बड़े भैया, चलो हम एक बार फिर से चलते हैं और शेर की हीरे-जवाहरात ले आते हैं।’ छोटे भाई ने बड़े से कहा।

‘नहीं छोटे, अधिक लालच करना ठीक नहीं है। हमारे पास इतना है कि हम दोनों सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।’ बड़े भाई ने समझाया।

‘बस एक बार और चलते हैं, फिर नहीं जाएँगे।’ छोटा भाई अनुनय-विनय करता हुआ बोला।

‘जाने से कोई लाभ नहीं होगा क्यों कि भालू ने शेर से यह कहा था कि जब कोई अंधा होकर पेड़ के पत्ते का रस लगाकर नेत्रज्योति पाएगा तभी उसे तुम्हारी गुफ़ा के हीरे-जवाहरात दिखेंगे। सामान्य आँखों वालों को तो यह वैसे भी दिखाई नहीं देंगे। इसलिए छोटे, तुम इस बारे में सोचना छोड़ दो।’ बड़े ने छोटे को समझाया।

‘ठीक है। जैसा तुम कहो।’ छोटे ने बड़े से कह तो दिया किंतु मन ही मन उसने अकेले जाने का फ़ैसला कर लिया।

दूसरे दिन भोर होते ही वह जंगल की ओर निकल पड़ा। शाम होते-होते उसी नदी के किनारे जा पहुँचा जहाँ वह पेड़ था। छोटे भाई ने अपनी दोनों आँखें फोड़ लीं और पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। राक्षस, शेर और भालू आए। उन्होंने ने उसी तरह से बातें कीं और आधी रात के बाद चले गए। छोटे भाई ने पेड़ के पत्ते का रस अपनी आँखों में लगाया जिससे उसकी नेत्रज्योति वापस गई। फिर वह शेर की गुफ़ा में पहुँचा। वह अपने साथ बड़े-बड़े बोरे ले गया था। जैसे ही वह हीरे-जवाहरात बोरों में भरने लगा वैसे ही राक्षस, शेर और भालू गए।

‘मैं जानता था कि एक एक दिन वह लालची अवश्य फँसेगा जिसने हमारी बातें सुनकर मेरी गुफ़ा का खजाना चुराया था। अब मैं तुम्हें नहीं छोडूँगा।’ कहते हुए शेर ने छोटे भाई पर झपट्टा मारा। दूसरे ही पल राक्षस और भालू भी छोटे भाई पर टूट पड़े। इस प्रकार एक लालची का दुखद अंत हुआ।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 85)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए