Font by Mehr Nastaliq Web

जैसी करनी, वैसी भरनी

jaisi karni, vaisi bharni

बहुत समय पहले की बात है, इंद्रावती नदी के तट पर एक घना वन था। उस वन में एक चिड़िया और एक चिड़वा रहते थे। चिड़िया ने दो अंडे दिए। एक दिन अचानक काले बादल घिर आए और बिजलियाँ तड़कने लगीं। एक बिजली चिड़िया और चिड़वे के घोंसले पर गिरी। आश्चर्य का विषय था कि चिड़िया और चिड़वा अपने दोनों अंडों सहित सुरक्षित बच गए। बादल चले गए बिजलियों का तड़कना भी बंद हो गया। इसके बाद चिड़िया फिर अपने अंडों को सेने लगी।

कई महीने व्यतीत हो गए किंतु अंडे नहीं फूटे और उनमें से चूज़े भी नहीं निकले। तब चिड़िया और चिड़वे को लगा कि उनके अंडे बिजली गिरने के कारण ख़राब हो गए हैं अन्यथा उनमें से बहुत पहले ही चूज़ों को बाहर जाना चाहिए था। चिड़िया और चिड़वा दुखी मन से अपने अंडों को घोंसले में छोड़कर वन के दूसरे छोर पर चले गए और वहीं नया घोंसला बनाकर रहने लगे।

इधर कुछ समय बाद चिड़िया के पुराने अंडों में से एक अंडा फूटा और उसमें से चूज़े के बदले एक बछड़ा पैदा हुआ। दस पल बाद दूसरा अंडा फूटा और उसमें से एक बालक पैदा हुआ। बछड़े और बालक ने एक दूसरे को देखा और एक-दूसरे को अपना भाई समझा। दोनों घोंसला छोड़कर पेड़ से नीचे उतर आए। नीचे आकर दोनों खेलने लगे। जब बछड़े को भूख लगी तो उसने घास चर ली और जब बालक को भूख लगी तो उसने फल तोड़कर खा लिए। उन दिनों वन में हिंसक पशु नहीं पाए जाते थे।

इसलिए दोनों भाई निश्चिंत होकर खेलते, घूमते और खाते-पीते। धीरे-धीरे दोनों बड़े हुए। बछड़ा बड़ा होकर एक स्वस्थ, तगड़ा बैल बन गया और बालक एक सुंदर युवक बन गया। वे जैसे-जैसे बड़े हुए वैसे-वैसे उनके बीच भ्रातृ-भावना और बढ़ गई। बैल युवक से दस पल पहले पैदा हुआ था इसलिए वह स्वयं को बड़ा भाई मानता था और युवक की रक्षा एवं देख-भाल करता था। युवक भी बैल को अपना बड़ा भाई मानता था और उसकी बातों का आदर करता था।

एक दिन बैल को लगा कि मेरी खाल मोटी है, मुझ पर धूप, शीत का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है किंतु मेरे छोटे भाई की चमड़ी कोमल है और वह तेज़ धूप में काली पड़ जाती है तथा शीत में ठिठुरने लगती है। अत: छोटे भाई को एक घर बनाकर रहना चाहिए। बैल ने पहले तो अपने छोटे भाई का नाम रखा—ननकू। फिर उसने ननकू से कहा कि तुम चार लकड़ियों पर पत्तों और घास-फूस की छाजन डालकर अपने लिए झोंपड़ी बना लो। ननकू ने बैल का कहना मानते हुए लकड़ियों और घास-फूस से एक नहीं, दो झोपड़ियाँ बनाईं। एक अपने लिए और दूसरी अपने बड़े भाई बैल के लिए। उसे लगा कि यह तो अन्याय होगा कि छोटा भाई झोपड़ी में रहे और बड़ा खुले आकाश के नीचे पड़ा रहे।

बैल ने देखा कि ननकू ने उसके लिए भी झोपड़ी बनाई है तो उसके मन में अपने छोटे भाई के प्रति अत्यधिक प्रेम उमड़ा। तब बैल ननकू की झोपड़ी में गया और उसने अपनी पूँछ से ननकू की झोपड़ी की लकड़ियों को छुआ। पूँछ से छूते ही चमत्कार हो गया। ननकू की झोपड़ी एक सुंदर घर में बदल गई। उस घर में गृहस्थी का पूरा सामान था। किंतु बैल ने अपनी झोपड़ी वैसी ही रहने दी। उसे लगा कि मैं तो बैल हूँ, मुझे घर अथवा गृहस्थी के सामानों का क्या करना? ननकू ने आपत्ति की तो बैल ने उसे समझाया कि—’मुझे झोपड़ी में रहना अच्छा लगता है। फिर तुम्हारा घर तो है ही, जब मन करेगा तो उसमें रह जाया करूँगा।’

ननकू बैल की इच्छा के सामने चुप रहा।

कुछ दिन बाद बैल को लगा कि अब उसके छोटे भाई का विवाह हो जाना चाहिए। यह विचार करके उसने ननकू को विशेष चारा लाने के बहाने वन में एक पोखर के पास भेजा। बैल को पता था कि परियाँ उस पोखर में नहाने आती हैं। ननकू पोखर के किनारे चारा काटने लगा। उसी समय परियाँ पोखर में नहाने आईं। ननकू ने भी परियों को देखा। वह परियों में से एक परी की सुंदरता पर मोहित हो गया। परी भी ननकू पर मोहित हो गई। तब परी ननकू के पास आई।

‘मैं तुम्हारी पत्नी बनकर तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूँ।’ परी ने कहा।

‘इस बारे में मुझे अपने बड़े भाई से पूछना होगा।’ ननकू ने उत्तर दिया।

‘ठीक है, हम तुम्हारे बड़े भाई के पास चलते हैं।’ परी ने कहा।

ननकू और परी बैल के पास पहुँचे। बैल तो प्रतीक्षा ही कर रहा था। उसने तत्काल सहर्ष अनुमति देते हुए दोनों का विवाह करा दिया। ननकू और परी हँसी-ख़ुशी से रहने लगे।

एक दिन एक राजा भटकता हुआ उस ओर पहुँचा जहाँ ननकू और बैल रहते थे। राजा ने घने वन के बीच सुंदर घर देखा तो वह चकित रह गया। इतने में उसे परी दिखाई दे गई। परी की सुंदरता देखकर वह मूर्छित होते-होते बचा। वह पानी पीने के बहाने परी के निकट जा पहुँचा। उसने परी से पानी माँगा। परी ने उसे पानी पिलाया।

‘हे सुंदरी, तुम यहाँ अकेली वन में क्यों रह रही हो? तुम्हें तो राजमहल में रहना चाहिए।’ राजा ने परी से कहा।

‘मैं यहाँ अकेली नहीं रहती हूँ। मेरा पति और मेरे जेठ मेरे साथ रहते हैं। रहा राजमहल में रहने का प्रश्न तो जहाँ मेरे अपने लोग रहते हैं वहीं मेरा राजमहल है।’ परी ने उत्तर दिया।

अभी राजा परी से बात कर रही था कि ननकू और बैल भी गए। ननकू ने राजा से उसके बारे में पूछताछ की।

‘यह वन मेरे राज्य में ही आता है अत: तुमको मेरी आज्ञा माननी होगी और मेरे लिए सूरज की तरह चमकने वाला लाल पत्थर लाना होगा। यदि तुम लाल पत्थर नहीं ला सकोगे तो मैं तुम्हारी सुंदर पत्नी को अपने साथ ले जाऊँगा।’ राजा ने ननकू को धमकी देते हुए कहा।

‘मुझे आपकी आज्ञा स्वीकार है। मेरे छोटे भाई के बदले मैं आपके लिए सूरज की तरह चमकने वाला लाल पत्थर लाऊँगा।’ ननकू के बदले बैल ने कहा।

‘ठीक है। मैं एक सप्ताह बाद आऊँगा। तब तक तुम लाल पत्थर ले आना।’ यह कहकर राजा चला गया।

राजा के जाने के बाद ननकू चिंतित हो उठा। ‘भैया, तुमने कह तो दिया लेकिन तुम लाल पत्थर लाओगे कहाँ से?’ ननकू ने बैल से पूछा।

‘कहीं से भी लाऊँगा लेकिन लाकर रहूँगा। मेरे रहते हुए तुम दोनों पर कोई आँच नहीं सकती है।’ बैल ने कहा।

‘लेकिन मैं तुमको अकेले नहीं जाने दूँगा। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।’ ननकू ने कहा।

‘आप दोनों को कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मुझे पता है कि सूरज की तरह चमकने वाला लाल पत्थर कहाँ मिलेगा, मैं अभी जाकर वो पत्थर ले आती हूँ।’ परी ने कहा।

‘मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।’ ननकू ने कहा।

‘नहीं, वहाँ परियों के अतिरिक्त और कोई नहीं जा सकता है। आप चिंता करें, मैं अभी गई और अभी आई।’ यह कहते हुए परी अदृश्य हो गई। दूसरे ही पल जब वह प्रकट हुई तो ननकू और बैल की आँखें चकाचौंध हो गईं। परी के हाथ में सूरज की तरह चमकने वाला लाल पत्थर था। ननकू पत्थर देखकर बहुत ख़ुश हुआ। उसे लगा कि अब राजा उसकी पत्नी को उससे छीन नहीं सकेगा। किंतु बैल समझ गया कि राजा की नीयत में खोट है। लाल पत्थर मिलने पर वह कोई और उपाय करेगा जिससे परी को वह ननकू से छीन सके।

‘ननकू, एक बात ध्यान से सुनो कि जब राजा पूछे कि ये पत्थर कौन लाया तो कहना कि मेरा बड़ा भाई लाया है। उसे असली बात कदापि नहीं बताना।’ बैल ने ननकू से कहा।

सप्ताह भर बाद जब राजा लाल पत्थर लेने आया तो ननकू ने उसे पत्थर दे दिया।

‘ये पत्थर कौन लाया?’ राजा ने ननकू से पूछा।

‘मेरा बड़ा भाई पत्थर लाया है।’ ननकू ने कहा।

राजा ने यह इसलिए पूछा था क्योंकि राजा ने सुन रखा था कि जहाँ यह पत्थर मिलता है वहाँ कोई मनुष्य नहीं जा सकता है। अब ननकू का बड़ा भाई मनुष्य नहीं बैल था अत: राजा क्या कहता?

राजा ने सोचा कि जब तक ये बैल जीवित रहेगा तब तक ननकू की पत्नी प्राप्त नहीं हो सकेगी। इसलिए राजा ने दूसरी युक्ति अपनाई। उसने ननकू से कहा कि तुम्हारा भाई तो बहुत बलशाली है इसलिए मैं चाहता हूँ कि वह मेरे सबसे प्रिय भैंसे के साथ युद्ध करे। यदि वह युद्ध में मेरे भैंसे को हरा देगा तो मैं उसे ढेर सारा ईनाम दूँगा किंतु यदि वह मेरे भैंसे से हार जाएगा तो मैं तुम्हारी पत्नी को अपने साथ ले जाऊँगा।

राजा की बात सुनकर ननकू बहुत दुखी हुआ। उसकी पत्नी परी भी बहुत दुखी हुई। तब बैल ने उन्हें धीरज बँधाया।

‘तुम लोग चिंता मत करो। मैं राजा के उस भैंसे को आसानी से हरा दूँगा।’ बैल ने कहा।

इसके बाद निर्धारित दिन को बैल और भैंसे के बीच युद्ध हुआ। बहुत देर तक युद्ध चला। भैंसे ने बैल को हराने का बहुत प्रयास किया किंतु बैल को युद्ध कला आती थी इसलिए उसने भैंसे को पराजित कर दिया। यह देखकर राजा मन मसोस कर रह गया। उसे ननकू की पत्नी तो मिली नहीं, उस पर बैल को ढेर सारा ईनाम भी देना पड़ा।

अपनी योजना की असफलता पर राजा बौखला उठा। उसने एक गुनिया को बुलाया। गुनिया से उसने कहा कि तुम कोई ऐसी बूटी दो कि जिससे बैल मर जाए और किसी को उसके मरने के कारण का पता भी चले। गुनिया था राजा का परम भक्त। उसने एक ऐसी बूटी राजा को लाकर दी जिससे बैल को मारा जा सकता था। बूटी पाने के बाद राजा ने ननकू के पास सूचना भेजी कि मैंने अब तक तुम लोगों को बहुत तंग किया है लेकिन अब में तुम लोगों से मित्रता करना चाहता हूँ। इसलिए मैं तुम लोगों के साथ भोजन करना चाहता हूँ।

ननकू था सीधा-सादा। उसने सोचा कि राजा का हृदय परिवर्तन हो गया होगा और वह सचमुच मित्रता करना चाहता होगा। उसने बैल से सलाह लेकर राजा को भोजन पर आमंत्रित किया। बैल जानता था कि राजा बहुत दुष्ट प्रकृति का है। उसका हृदय इतनी आसानी से परिवर्तित नहीं हो सकता है किंतु यदि कोई भोजन करने आना चाहता हो तो भला उसे मना कैसे किया जाए? अत: राजा को आमंत्रित करने के सिवा और कोई उपाय था।

ननकू का आमंत्रण पाकर राजा ननकू के घर पहुँचा। परी ने अपने हाथों से भोजन पकाया। बैल, ननकू और राजा तीनों भोजन करने बैठे। ननकू की सुरक्षा की दृष्टि से बैल राजा और ननकू के बीच बैठ गया। राजा भी यही चाहता था कि बैल उसके पास बैठे। परी ने तीनों के लिए भोजन परोसा। तीनों ने भोजन करना आरंभ किया। दो कौर खाने के बाद राजा ने बैल से कहा, ‘वो देखो, खिड़की के बाहर उस पेड़ पर कितनी सुंदर चिड़िया बैठी है।

राजा की बात सुनकर बैल ने अपना सिर घुमा कर खिड़की के बाहर की ओर देखा।ननकू और परी का ध्यान भी खिड़की की ओर चला गया। इस प्रकार ध्यान बँटाकर राजा ने अपनी थाली बैल की थाली से बदल दी। थाली बदलने से पहले राजा ने अपनी थाली के भोजन में गुनिया की दी हुई बूटी मिला दी थी।

‘हाँ, बुहत सुंदर चिड़िया है। कहते हुए बैल ने वापस अपना सिर घुमाया और भोजन करने के लिए जैसे ही अपनी थाली की ओर देखा तो उसे संदेह हुआ कि यह उसकी थाली नहीं है। दरअसल, बैल की अपनी अलग थाली थी। वह देखने में तो अन्य थालियों जैसी थी किंतु उसने अपनी थाली में एक छोटा-सा निशान लगा रखा था। परी भी बैल के लिए उसी की थाली में भोजन परोसा करती थी। यह बात राजा को पता थी। बैल ने ध्यान से देखा तो वह जान गया कि उसकी थाली राजा के सामने रखी हुई थी जिसका अर्थ था कि राजा ने उन लोगों का ध्यान बँटाकर बैल की थाली से अपनी थाली बदल ली थी।

अवश्य कोई गड़बड़ है, बैल ने सोचा। बैल चतुर था। उसने राजा से कहा, ‘आज मैंने अपनी पूँछ पर तैल लगाया है जिससे देखिए वह कितनी चमक रही है।’

अब राजा को अपना सिर पीछे घुमाकर बैल की पूँछ की ओर देखना पड़ा। राजा को लगा कि बैल उसकी नक़ल में कुछ दिखाने की चाह में अपनी पूँछ दिखा रहा है। राजा मन ही मन हँसा कि ये मूर्ख नहीं जानता है कि मैंने तो उसे ज़हरीली बूटी देने को इसे चिड़िया दिखाई थी और ये मुझे मेरी नक़ल उतारने के लिए मुझे अपनी पूँछ दिखा रहा है।

‘हाँ, तुम्हारी पूँछ तो आज बहुत चमक रही है।’ राजा ने कहा।

जितनी देर में राजा ने बैल की पूँछ की ओर देखा उतनी देर में बैल ने अपनी थाली राजा की थाली से बदल दी। ये बात राजा को पता नहीं चल पाई। वह स्वाद ले-लेकर भोजन करता रहा। भोजन करने के बाद राजा ने ननकू से विदा ली और अपने महल की ओर चल दिया।

‘मैं कल फिर आऊँगा।’ जाते-जाते राजा ने ननकू से कहा। उसे पता था कि थोड़ी देर में बैल मर जाएगा तब कल उसे ननकू की पत्नी को छीन कर ले जाने से रोकने वाला कोई नहीं रहेगा।

‘चलो, हम राजा का पीछा करते हैं।’ राजा के जाने के बाद बैल ने ननकू से कहा। बैल और ननकू राजा के पीछे-पीछे चल दिए। कुछ दूर जाने पर राजा का सिर चकराने लगा। बूटी अपना प्रभाव दिखाने लगी थी। अब राजा को समझ में आया कि बैल उसकी चालाकी समझ गया था और बैल ने भी उसके साथ वही किया जो राजा बैल के साथ कर रहा था। किंतु राजा अब अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कर सकता था। वह भूमि पर गिर पड़ा और दूसरे ही पल उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

‘भैया, ये राजा को क्या हुआ?’ ननकू ने आश्चर्यचकित होते हुए बैल से पूछा।

‘जैसी करनी, वैसी भरनी।’ कहते हुए बैल ने ननकू को राजा की दुष्टता के बारे में बताया। इसके बाद दोनों भाई ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आए। परी भी राजा के मरने का समाचार सुनकर बहुत ख़ुश हुई।

कुछ समय बाद परी ने दो बच्चों को जन्म दिया। बैल, ननकू, परी और उसके दोनों बच्चे आनंदपूर्वक रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 157)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए