जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वह छोटे-मोटे जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरती। एक बार वह शिकार की खोज में घूमती-भटकती एक गाँव के निकट जा पहुँची। गाँव में पहुँचकर उसने देखा कि वहाँ लोग बड़े आराम से रहते हैं और उनके पालतू पशुओं को भी बढ़िया चारा पानी मिलता रहता है। वहाँ उसे अनेक मुर्गियाँ दिखाई दीं। मुर्गियाँ देखकर लोमड़ी की नीयत में खोट आ गई। इसके बाद तो लोमड़ी ने गाँव की मुर्गियों पर मानो धावा बोल दिया। लोमड़ी प्रतिदिन गाँव में जाती और दो-चार मुर्गियाँ खाकर चली आती। गाँव वाले लोमड़ी से तंग आ गए। उन्होंने मुर्गियों की पहरेदारी के लिए कुत्ते पाल लिए।
एक रात जब लोमड़ी मुर्गियाँ खाने गाँव में पहुँची तो कुत्तों ने लोमड़ी को घेर लिया। लोमड़ी डरकर भाग खड़ी हुई। भागते-भागते उसे ज़ोर की प्यास लग आई। लोमड़ी ने आस-पास पानी ढूँढ़ा किंतु उसे कहीं भी पानी दिखाई नहीं दिया। अब प्यास के मारे लोमड़ी का बुरा हाल था। लोमड़ी सोचने लगी कि वहाँ गाँव में पालतू पशुओं का जीवन कितना सुखद है, उन्हें खाने-पीने की चिंता नहीं करनी पड़ती है और न ही उन्हें कहीं भटकना पड़ता है।
लोमड़ी को लगने लगा कि वह भूख-प्यास से दम तोड़ देगी, तभी उसे एक हाथी दिखाई दे गया। लोमड़ी की बुरी दशा देखकर हाथी रुक गया।
‘क्या बात है लोमड़ी बहन, तुम बहुत थकी हुई दिख रही हो। तबीयत तो ठीक है। न?’ हाथी ने लोमड़ी से पूछा।
‘मेरी तबीयत की क्या पूछते हो, हाथी भैया, प्यास के मारे मेरा दम निकला जा रहा है। अब तो मैं दो-चार घड़ी की मेहमान हूँ।’ लोमड़ी हाँफते हुए बोली। प्यास के कारण उसकी जीभ बाहर लटक गई थी।
‘यहाँ आस-पास पानी का कोई स्रोत नहीं है।’ हाथी ने कहा।
‘हाँ, इसीलिए तो मैं कह रही हूँ कि अब मेरा अंतकाल निकट आ गया है।’ लोमड़ी ने लड़खड़ाते हुए कहा।
‘देखो बहन, मैं तो सदा महीने भर के लायक पानी पीकर निकलता हूँ इसलिए मेरे पेट में अभी भी ढेर सारा पानी है। तुम ऐसा करो कि मेरे पेट में घुस जाओ और पानी पीकर निकल आना।’ हाथी ने कहा।
‘तुम बहुत दयालु हो हाथी भैया!' कहती हुई लोमड़ी हाथी के पेट में घुस गई।
हाथी के पेट में सचमुच बहुत पानी था। लोमड़ी ने जब जी भर पानी पी लिया तो उसने सिर उठाकर इधर-उधर देखा। उसे हाथी का कलेजा दिखाई दे गया। हाथी का कलेजा देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया। उसने यह भी नहीं सोचा कि जिस हाथी ने उसके प्राण बचाए हैं, उस हाथी का कलेजा उसे नहीं खाना चाहिए। लोमड़ी ने हाथी का कलेजा खा लिया जिससे हाथी मर गया। हाथी के मरने पर उसका मुँह बंद हो गया और लोमड़ी हाथी के पेट में बंद रह गई। लोमड़ी को उस समय तक कोई चिंता नहीं हुई जब तक हाथी के पेट में पानी और शरीर के अंदर मांस रहा। जब पानी और मांस समाप्त हो गया तब लोमड़ी को हाथी के पेट से बाहर निकलने की चिंता होने लगी। तब तक हाथी की खाल इतनी कड़ी हो चुकी थी कि लोमड़ी उसे काट कर बाहर नहीं निकल सकती थी। वह घबरा कर उछल-कूद करने लगी।
उसी समय उधर से गाँव का मुखिया अपने साथियों के साथ निकला। उसने देखा कि मरे हुए हाथी के पेट से कोई आवाज़ आ रही है। मुखिया को बहुत आश्चर्य हुआ।
‘हाथी के पेट के भीतर कौन है?’ मुखिया ने पूछा।
‘मुझसे ये पूछने वाला कौन है?’ लोमड़ी ने कड़कते हुए स्वर में प्रत्युत्तर में प्रश्न किया।
‘मैं गाँव का मुखिया हूँ।’ मुखिया ने कहा। यह सुनकर लोमड़ी को लगा कि यदि उसने अपनी सच्चाई बता दी तो मुखिया उसे हाथी के पेट से नहीं निकालेगा। वह अपने गाँव की मुर्गियों को मारने वाले से बदला अवश्य लेगा।
‘अरे मूर्ख, तू मुझे पहचानता नहीं है क्या? मैं तेरी दादी हूँ।’ लोमड़ी ने मुखिया को डाँटते हुए कहा। मुखिया डाँट खाकर सिटपिटा गया।
‘मगर दादी, आप मरे हुए हाथी के पेट में क्या कर रही हैं?’ मुखिया ने पूछा।
‘मैं तो इस हाथी के पेट में बैठकर तुझसे मिलने आ रही थी लेकिन रास्ते में इसे एक शेर दिख गया। शेर को देखकर डर के मारे इसकी घड़कन बंद हो गई और ये मर गया। अब तुम इसका मुँह खोलो जिससे मैं बाहर आ जाऊँ और तुम्हें आशीर्वाद दूँ।’
लोमड़ी ने झूठा क़िस्सा सुनाते हुए कहा।
‘ठीक है दादी, मैं हाथी का मुँह खोलता हूँ, आप बाहर निकल आएँ।’ कहते हुए मुखिया ने हाथी का मुँह खोल दिया।
हाथी का मुँह खुलते ही लोमड़ी हाथी के पेट से निकल कर बाहर आई और पलक झपकते ही घने जंगल की ओर भाग खड़ी हुई। हाथी के मुँह से लोमड़ी को निकलकर भागते देखकर मुखिया सन्न रह गया किंतु उसके साथी हँस-हँसकर उसका मज़ाक उड़ाने लगे, ‘वो देखो तुम्हारी दादी भागी जा रही है।’
अपने साथियों द्वारा मज़ाक उड़ाए जाने पर मुखिया को लोमड़ी पर बहुत क्रोध आया। उसने तय कर लिया कि चाहे जो भी हो लेकिन वह लोमड़ी को पकड़कर उसे सज़ा देकर रहेगा। मुखिया ने गाँव लौटते ही मुनादी करा दी कि जो भी व्यक्ति लोमड़ी को पकड़ लेगा उसे ढेर सारा ईनाम दिया जाएगा। मुखिया की यह तरकीब काम कर गई।
एक बहेलिए ने ऐसा जाल बिछाया कि उसमें चिड़िया के समान लोमड़ी आ फँसी। उसने लोमड़ी को पकड़कर एक पिंजरे में बंद किया और मुखिया को सौंप दिया। मुखिया ने बहेलिए को ईनाम दिया और लोमड़ी के पिंजरे को गाँव के बीचो-बीच रखवा दिया। फिर मुखिया ने गाँव वालों को आदेश दिया कि गाँव का प्रत्येक आदमी उस लोमड़ी को प्रतिदिन एक डंडा मारा करे। गाँव वाले तो पहले से ही उस लोमड़ी से नाराज़ थे इसलिए उन लोगों ने प्रतिदिन लोमड़ी को डंडे मारना प्रारंभ कर दिया। डंडे की मार खा-खाकर लोमड़ी का शरीर सूज गया।
एक रात एक भूखा-प्यासा भेड़िया भटकते-भटकते गाँव में आ गया। उसने मुर्गियाँ देखीं तो उसके मुँह में पानी आ गया। भेड़िया सोचने लगा कि किस प्रकार मुर्गियों को खाया जाए? लोमड़ी ने भेड़िए को देखा तो उसे एक चालाकी सूझी।
‘भेड़िए भाई, भेड़िए भाई! क्या करने की सोच रहे हो?’ लोमड़ी ने भेड़िए से पूछा।
‘अरे, शोर मत करो। मैं मुर्गियाँ पकड़ने का उपाय सोच रहा हूँ।’ भेड़िए ने कहा।
‘ठीक है-ठीक है, तुम उपाय सोचो। मुझे तो आज कल कुछ करना ही नहीं पड़ता है, मुझे तो यहाँ बैठे-बैठे ढेर सारी मुर्गियाँ खाने को मिल जाती हैं।’ लोमड़ी ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘अरे, इस गाँव का प्रत्येक व्यक्ति मुझे खाने को रोज़ एक मुर्गी देता है। तुम्हें मेरी बात का विश्वास न हो रहा हो तो मेरा शरीर देख लो। क्या तुमने कभी इतनी मोटी लोमड़ी देखी है?’ लोमड़ी ने अपना शरीर दिखाते हुए कहा।
‘हाँ, तुम खा-खाकर मोटी तो हो गई हो लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि गाँव वाले मुर्गियाँ क्यों खिलाते हैं?’ भेड़िए को लोमड़ी की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
‘वह इसलिए क्यों कि गाँव के मुखिया को एक बार हाथी निगल गया था तब मैंने हाथी को मारकर मुखिया के प्राण बचाए थे। तब से मुखिया मेरा मित्र हो गया है और वह नहीं चाहता है कि मैं खाना ढूँढ़ने के लिए यहाँ-वहाँ भटकूँ।’ लोमड़ी ने कहा।
‘लेकिन तुमने हाथी को मारा कैसे?’ भेड़िए ने पूछा।
‘हुआ यूँ कि जब हाथी ने मुखिया को मारने के लिए अपनी सूँड़ उठाकर चिंघाड़ने के लिए मुँह खोला तो मैं उसके मुँह के रास्ते उसके पेट में जा घुसी और उसका कलेजा खाकर उसे मार डाली। इसके बाद मैं हाथी के मुँह के रास्ते बाहर निकल आई।’ लोमड़ी ने गर्व से कहा।
इतना सब सुनकर भेड़िए को विश्वास हो गया कि लोमड़ी सच कह रही है। ‘लोमड़ी बहन, मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ। मेरे लिए भी कोई व्यवस्था करो न!’ भेड़िए ने अनुनय-विनय करते हुए कहा।
‘ठीक है। मुझे तुम्हारी दशा पर दया आ रही है इसलिए तुम ऐसा करो कि मेरे बदले इस पिंजरे में बैठ जाओ और मैं एक-दो दिन के लिए जंगल में घूम आती हूँ।’ लोमड़ी ने अहसान जताते हुए कहा।
‘तुम बहुत अच्छी हो लोमड़ी बहन।’ भेड़िया गद्गद् होते हुए बोला।
इसके बाद भेड़िए ने पिंजरे का दरवाज़ा खोलकर लोमड़ी को बाहर निकाल दिया और स्वयं पिंजरे में जा बैठा।
‘देखो, दो दिन बाद मैं लौट आऊँगी।’ कहते हुए लोमड़ी ने पिंजरे का दरवाज़ा बंद किया और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गई।
इधर जब भोर हुई तो गाँव वालों ने भेड़िए को लोमड़ी समझकर डंडे मारने शुरू कर दिए। तब भेड़िए को असली बात समझ में आ गई किंतु अब वह कर भी क्या सकता था, वह तो पिंजरे में फँस चुका था और चतुर लोमड़ी वहाँ से बहुत दूर जा चुकी थी।
jangal mein ek lomDi rahti thi. wo chhote mote janavron ka shikar karke apna pet bharti. ek baar wo shikar ki khoj mein ghumti bhatakti ek gaanv ke nikat ja pahunchi. gaanv mein pahunchakar usne dekha ki vahan log baDe aram se rahte hain aur unke paltu pashuon ko bhi baDhiya chara pani milta rahta hai. vahan use anek murgiyan dikhai deen. murgiyan dekhkar lomDi ki niyat mein khot aa gai. iske baad to lomDi ne gaanv ki murgiyon par mano dhava bol diya. lomDi pratidin gaanv mein jati aur do chaar murgiyan khakar chali aati. gaanv vale lomDi se tang aa ge. unhonne murgiyon ki pahredari ke liye kutte paal liye.
ek raat jab lomDi murgiyan khane gaanv mein pahunchi to kutton ne lomDi ko gher liya. lomDi Darkar bhaag khaDi hui. bhagte bhagte use zor ki pyaas lag aai. lomDi ne aas paas pani DhunDha kintu use kahin bhi pani dikhai nahin diya. ab pyaas ke mare lomDi ka bura haal tha. lomDi sochne lagi ki vahan gaanv mein paltu pashuon ka jivan kitna sukhad hai, unhen khane pine ki chinta nahin karni paDti hai aur na hi unhen kahin bhatakna paDta hai.
lomDi ko lagne laga ki wo bhookh pyaas se dam toD degi, tabhi use ek hathi dikhai de gaya. lomDi ki buri dasha dekhkar hathi ruk gaya.
‘kya baat hai lomDi bahan, tum bahut thaki hui dikh rahi ho. tabiyat to theek hai. na?’ hathi ne lomDi se puchha.
‘meri tabiyat ki kya puchhte ho, hathi bhaiya, pyaas ke mare mera dam nikla ja raha hai. ab to main do chaar ghaDi ki mehman hoon. ’ lomDi hanphate hue boli. pyaas ke karan uski jeebh bahar latak gai thi.
‘yahan aas paas pani ka koi srot nahin hai. ’ hathi ne kaha.
‘haan, isiliye to main kah rahi hoon ki ab mera antkal nikat aa gaya hai. ’ lomDi ne laDkhaDate hue kaha.
‘dekho bahan, main to sada mahine bhar ke layak pani pikar nikalta hoon isliye mere pet mein abhi bhi Dher sara pani hai. tum aisa karo ki mere pet mein ghus jao aur pani pikar nikal aana. ’ hathi ne kaha.
‘tum bahut dayalu ho hathi bhaiya! kahti hui lomDi hathi ke pet mein ghus gai.
hathi ke pet mein sachmuch bahut pani tha. lomDi ne jab ji bhar pani pi liya to usne sir uthakar idhar udhar dekha. use hathi ka kaleja dikhai de gaya. hathi ka kaleja dekhkar lomDi ke munh mein pani aa gaya. usne ye bhi nahin socha ki jis hathi ne uske praan bachaye hain, us hathi ka kaleja use nahin khana chahiye. lomDi ne hathi ka kaleja kha liya jisse hathi mar gaya. hathi ke marne par uska munh band ho gaya aur lomDi hathi ke pet mein band rah gai. lomDi ko us samay tak koi chinta nahin hui jab tak hathi ke pet mein pani aur sharir ke andar maans raha. jab pani aur maans samapt ho gaya tab lomDi ko hathi ke pet se bahar nikalne ki chinta hone lagi. tab tak hathi ki khaal itni kaDi ho chuki thi ki lomDi use kaat kar bahar nahin nikal sakti thi. wo ghabra kar uchhal kood karne lagi.
usi samay udhar se gaanv ka mukhiya apne sathiyon ke saath nikla. usne dekha ki mare hue hathi ke pet se koi avaz aa rahi hai. mukhiya ko bahut ashcharya hua.
‘hathi ke pet ke bhitar kaun hai?’ mukhiya ne puchha.
‘mujhse ye puchhne vala kaun hai?’ lomDi ne kaDakte hue svar mein pratyuttar mein parashn kiya.
‘main gaanv ka mukhiya hoon. ’ mukhiya ne kaha. ye sunkar lomDi ko laga ki yadi usne apni sachchai bata di to mukhiya use hathi ke pet se nahin nikalega. wo apne gaanv ki murgiyon ko marne vale se badla avashya lega.
‘are moorkh, tu mujhe pahchanta nahin hai kyaa? main teri dadi hoon. ’ lomDi ne mukhiya ko Dantte hue kaha. mukhiya Daant khakar sitapita gaya.
‘magar dadi, aap mare hue hathi ke pet mein kya kar rahi hain?’ mukhiya ne puchha.
‘main to is hathi ke pet mein baithkar tujhse milne aa rahi thi lekin raste mein ise ek sher dikh gaya. sher ko dekhkar Dar ke mare iski ghaDkan band ho gai aur ye mar gaya. ab tum iska munh kholo jisse main bahar aa jaun aur tumhein ashirvad doon. ’
lomDi ne jhutha qissa sunate hue kaha.
‘theek hai dadi, main hathi ka munh kholta hoon, aap bahar nikal ayen. ’ kahte hue mukhiya ne hathi ka munh khol diya.
hathi ka munh khulte hi lomDi hathi ke pet se nikal kar bahar aai aur palak jhapakte hi ghane jangal ki or bhaag khaDi hui. hathi ke munh se lomDi ko nikalkar bhagte dekhkar mukhiya sann rah gaya kintu uske sathi hans hansakar uska mazak uDane lage, ‘vo dekho tumhari dadi bhagi ja rahi hai. ’
apne sathiyon dvara mazak uDaye jane par mukhiya ko lomDi par bahut krodh aaya. usne tay kar liya ki chahe jo bhi ho lekin wo lomDi ko pakaDkar use saza dekar rahega. mukhiya ne gaanv lautte hi munadi kara di ki jo bhi vyakti lomDi ko pakaD lega use Dher sara iinam diya jayega. mukhiya ki ye tarkib kaam kar gai.
ek baheliye ne aisa jaal bichhaya ki usmen chiDiya ke saman lomDi aa phansi. usne lomDi ko pakaD kar ek pinjre mein band kiya aur mukhiya ko saump diya. mukhiya ne baheliye ko iinam diya aur lomDi ke pinjre ko gaanv ke bicho beech rakhva diya. phir mukhiya ne gaanv valon ko adesh diya ki gaanv ka pratyek adami us lomDi ko pratidin ek DanDa mara kare. gaanv vale to pahle se hi us lomDi se naraz the isliye un logon ne pratidin lomDi ko DanDe marana prarambh kar diya. DanDe ki maar kha khakar lomDi ka sharir sooj gaya.
ek raat ek bhukha pyasa bheDiya bhatakte bhatakte gaanv mein aa gaya. usne murgiyan dekhin to uske munh mein pani aa gaya. bheDiya sochne laga ki kis prakar murgiyon ko khaya jaye? lomDi ne bheDiye ko dekha to use ek chalaki sujhi.
‘bheDiye bhai, bheDiye bhai! kya karne ki soch rahe ho?’ lomDi ne bheDiye se puchha.
‘are, shor mat karo. main murgiyan pakaDne ka upaay soch raha hoon. ’ bheDiye ne kaha.
‘theek hai theek hai, tum upaay socho. mujhe to aaj kal kuch karna hi nahin paDta hai, mujhe to yahan baithe baithe Dher sari murgiyan khane ko mil jati hain. ’ lomDi ne muskurate hue kaha.
‘tumhen kaun dega murgiyan? tum jhooth bolti ho. ’ bheDiye ne kaha.
‘are, is gaanv ka pratyek vyakti mujhe khane ko roz ek murgi deta hai. tumhein meri baat ka vishvas na ho raha ho to mera sharir dekh lo. kya tumne kabhi itni moti lomDi dekhi hai?’ lomDi ne apna sharir dikhate hue kaha.
‘haan, tum kha khakar moti to ho gai ho lekin mujhe ye samajh mein nahin aa raha hai ki gaanv vale murgiyan kyon khilate hain?’ bheDiye ko lomDi ki baton par vishvas nahin ho raha tha.
‘vah isliye kyon ki gaanv ke mukhiya ko ek baar hathi nigal gaya tha tab mainne hathi ko markar mukhiya ke praan bachaye the. tab se mukhiya mera mitr ho gaya hai aur wo nahin chahta hai ki main khana DhunDhane ke liye yahan vahan bhatkun. ’ lomDi ne kaha.
‘lekin tumne hathi ko mara kaise?’ bheDiye ne puchha.
‘hua yoon ki jab hathi ne mukhiya ko marne ke liye apni soonD uthakar chinghaDne ke liye munh khola to main uske munh ke raste uske pet mein ja ghusi aur uska kaleja khakar use maar Dali. iske baad main hathi ke munh ke raste bahar nikal aai. ’ lomDi ne garv se kaha.
itna sab sunkar bheDiye ko vishvas ho gaya ki lomDi sach kah rahi hai. ‘lomDi bahan, main bahut dinon se bhukha hoon. mere liye bhi koi vyavastha karo na!’ bheDiye ne anunay vinay karte hue kaha.
‘theek hai. mujhe tumhari dasha par daya aa rahi hai isliye tum aisa karo ki mere badle is pinjre mein baith jao aur main ek do din ke liye jangal mein ghoom aati hoon. ’ lomDi ne ahsan jatate hue kaha.
iske baad bheDiye ne pinjre ka darvaza kholkar lomDi ko bahar nikal diya aur svayan pinjre mein ja baitha.
‘dekho, do din baad main laut auungi. ’ kahte hue lomDi ne pinjre ka darvaza band kiya aur vahan se nau do gyarah ho gai.
idhar jab bhor hui to gaanv valon ne bheDiye ko lomDi samajh kar DanDe marne shuru kar diye. tab bheDiye ko asli baat samajh mein aa gai kintu ab wo kar bhi kya sakta tha, wo to pinjre mein phans chuka tha aur chatur lomDi vahan se bahut door ja chuki thi.
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‘bheDiye bhai, bheDiye bhai! kya karne ki soch rahe ho?’ lomDi ne bheDiye se puchha.
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‘theek hai theek hai, tum upaay socho. mujhe to aaj kal kuch karna hi nahin paDta hai, mujhe to yahan baithe baithe Dher sari murgiyan khane ko mil jati hain. ’ lomDi ne muskurate hue kaha.
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‘are, is gaanv ka pratyek vyakti mujhe khane ko roz ek murgi deta hai. tumhein meri baat ka vishvas na ho raha ho to mera sharir dekh lo. kya tumne kabhi itni moti lomDi dekhi hai?’ lomDi ne apna sharir dikhate hue kaha.
‘haan, tum kha khakar moti to ho gai ho lekin mujhe ye samajh mein nahin aa raha hai ki gaanv vale murgiyan kyon khilate hain?’ bheDiye ko lomDi ki baton par vishvas nahin ho raha tha.
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‘lekin tumne hathi ko mara kaise?’ bheDiye ne puchha.
‘hua yoon ki jab hathi ne mukhiya ko marne ke liye apni soonD uthakar chinghaDne ke liye munh khola to main uske munh ke raste uske pet mein ja ghusi aur uska kaleja khakar use maar Dali. iske baad main hathi ke munh ke raste bahar nikal aai. ’ lomDi ne garv se kaha.
itna sab sunkar bheDiye ko vishvas ho gaya ki lomDi sach kah rahi hai. ‘lomDi bahan, main bahut dinon se bhukha hoon. mere liye bhi koi vyavastha karo na!’ bheDiye ne anunay vinay karte hue kaha.
‘theek hai. mujhe tumhari dasha par daya aa rahi hai isliye tum aisa karo ki mere badle is pinjre mein baith jao aur main ek do din ke liye jangal mein ghoom aati hoon. ’ lomDi ne ahsan jatate hue kaha.
iske baad bheDiye ne pinjre ka darvaza kholkar lomDi ko bahar nikal diya aur svayan pinjre mein ja baitha.
‘dekho, do din baad main laut auungi. ’ kahte hue lomDi ne pinjre ka darvaza band kiya aur vahan se nau do gyarah ho gai.
idhar jab bhor hui to gaanv valon ne bheDiye ko lomDi samajh kar DanDe marne shuru kar diye. tab bheDiye ko asli baat samajh mein aa gai kintu ab wo kar bhi kya sakta tha, wo to pinjre mein phans chuka tha aur chatur lomDi vahan se bahut door ja chuki thi.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 142)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।