Font by Mehr Nastaliq Web

स्वप्न-घोर पिंजरा

svapn ghor pinjra

बहुत पुरानी बात है। एक राजा था। वह अपनी रानी को बहुत प्यार करता था। राजा का एक ही पुत्र था।

संयोग से रानी को किसी रोग ने घेर लिया। राजा ने रोग को दूर करने के लिए अनेक उपचार किए किंतु रोग बढ़ता ही गया।

रानी को बिस्तर पर लेटे-लेटे कई मास हो गए। वह जीवन की आशा छोड़ चुकी थी। किंतु पुत्र के मोह में बिस्तर पर पड़े-पड़े जाने क्या-क्या सोचती रहती थी।

एक दिन रानी ने देखा कि उसके कमरे में एक चिड़िया का घोंसला है। घोंसले में दो बच्चे हैं। चिड़ा और चिड़िया बड़े प्यार से दोनों बच्चों का पालन करते हैं।

दो-तीन दिनों के बाद रानी ने देखा कि चिड़िया की मृत्यु हो गई। बच्चों को पालने के लिए चिड़े ने दूसरी चिड़िया से विवाह कर लिया।

दूसरी चिड़िया थोड़े दिनों तो दोनों बच्चों को पालती रही, परंतु जब उसके भी बच्चे हो गए तो वह अपने बच्चों को पालने लगी और पहली चिड़िया के बच्चों को मारने-पीटने लगी।

फिर एक दिन रानी ने देखा कि दूसरी चिड़िया ने पहली चिड़िया के दोनों बच्चों को मारकर नीचे गिरा दिया।

रानी यह सब देखकर बहुत दुखी हुई और सोचने लगी, “यदि मेरी मृत्यु के बाद राजा ने शादी कर ली तो दूसरी रानी भी मेरे बच्चे को ऐसे ही सताएगी।”

शाम को जब राजा आए तो रानी ने कहा, “महाराज! मेरा जीवन-दीप अब बुझने वाला है। मेरी एक अंतिम इच्छा है। यदि मानें तो कहूँ।”

राजा ने दुखी स्वर में कहा, “रानी! तुम जो कुछ कहना चाहती हो, कहो। मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगा।”

रानी ने कहा, “मेरे मरने के बाद आप दूसरी शादी कीजिएगा, क्योंकि नई रानी मेरे पुत्र को अपने बच्चों जैसा प्यार नहीं करेगी।”

राजा ने वचन दिया, “मैं कदापि दूसरी शादी नहीं करूँगा।”

किंतु रानी की मृत्यु के पश्चात् राजा थोड़े ही दिनों बाद अपनी प्रतिज्ञा नहीं निभा पाया। उसके राज्य की प्रजा बिना रानी के सूना महल नहीं देखना चाहती थी। इसलिए प्रजा के अनुरोध पर राजा को दूसरी शादी करनी ही पड़ी।

राजा के महल में नई रानी गई। राजा राजकुमार को नई रानी के सुपुर्द करके राज-काज में लग गया।

थोड़े दिनों तो नई रानी राजकुमार की देखभाल करती रही, किंतु जब उसके भी दो पुत्र उत्पन्न हुए तो उसका ध्यान अपने बच्चों की सेवा में लग गया। बड़ा राजकुमार अब उसे फूटी आँखों भी नहीं सुहाता था।

किंतु बड़ा राजकुमार राज्य के उत्तराधिकारी की भाँति महल में घूमता-फिरता और चैन से दिन बिताया करता। यह बात नई रानी के लिए असहनीय हो गई।

आख़िर बड़े राजकुमार को मरवाने के लिए नई रानी ने एक उपाय सोचा और झट बिस्तर पर लेटकर कराहना शुरू कर दिया।

राजा को जब रानी की बीमारी की सूचना मिली तो दौड़े-दौड़े महल में आए। राजा ने रानी को बहुत दुखी देखकर राजवैद्य को बुला भेजा, परंतु रानी ने कहा, “नहीं, मेरा रोग राजवैद्य से नहीं ठीक होगा। मेरे कलेजे में बहुत पीड़ा हो रही है, मैं तभी बचूँगी जब बड़े राजकुमार का कलेजा निकालकर मेरे कलेजे पर रखा जाएगा।”

बेचारे राजा, रानी की बातें सुनकर दंग रह गए। किंतु रानी ने हठपूर्वक कहा, “यदि बड़े राजकुमार का कलेजा मेरे कलेजे पर नहीं रखा जाएगा तो निश्चय ही आज मेरा प्राणांत हो जाएगा।”

आख़िर रानी की हठ राजा को माननी ही पड़ी। मंत्री को बुलाकर उन्होंने राजकुमार को मरवाने का हुक्म दे दिया। मंत्री राजा की इस आज्ञा से बहुत दुखी हुए।

उन्होंने प्रकट में तो बड़े राजकुमार को जल्लाद के हवाले कर दिया, परंतु जब जल्लाद मारने के लिए राजकुमार को जंगल में ले गया तो चुपके से घोड़े पर सवार हो मंत्री भी जंगल में जा पहुँचा।

जल्लाद को अच्छी तरह समझा-बुझाकर मंत्री ने राजकुमार को तो अपने घर में ले जाकर छिपा दिया और किसी जानवर का कलेजा जल्लाद के हाथों रानी के पास भिजवा दिया।

बड़े राजकुमार की मृत्यु की सूचना पाकर रानी बहुत प्रसन्न हुई। उसने सोचा—“अब केवल मेरे ही दोनों पुत्र राज्य के उत्तराधिकारी होंगे।”

इसके बाद कुछ दिन और बीते। बड़ा राजकुमार चुपके-चुपके मंत्री के घर में पलने लगा। मंत्री उसे अपने पुत्र से भी अधिक स्नेह करता था। नई रानी के दोनों राजकुमारों की तरह वह भी बड़ा हो गया।

एक रात राजा ने सोते-सोते स्वप्न देखा। स्वप्न बड़ा विचित्र था। सुबह राजा की आँखें खुलीं तो स्वप्न की बातें सोच-सोचकर वे बड़े परेशान हुए और मन-ही-मन में निश्चय किया कि स्वप्न में जो वस्तु मुझे दिखाई दी है, उसे प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयत्न करूँगा। राजा ने मंत्री को बुलाकर कहा, “आज दरबार अच्छी तरह से सजाया जाए। सभी प्रमुख कर्मचारियों के अतिरिक्त आज प्रजा और मेरे दोनों पुत्रों को भी दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दे दो। मुझे आज एक ज़रूरी घोषणा करनी है।”

राजा की आज्ञानुसार दरबार को ख़ूब सजाया गया। सभी मंत्रीगण, प्रजाजन और दोनों राजकुमार भी दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने घोषणा की, “मैंने रात स्वप्न में एक पिंजरा देखा है। उस पिंजरे के भीतर संसार की सभी आकर्षक वस्तुएँ दिखाई देती थीं। ऐसे ‘स्वप्न-घोर पिंजरा’ को जो लाकर मेरे सामने उपस्थित करेगा, उसे आधा राज्य दिया जाएगा।”

इसके बाद थाली में रखे हुए पान के बीड़े की ओर संकेत करके राजा ने कहा, “जो व्यक्ति स्वप्न-घोर पिंजरा को लाना चाहता हो, आगे बढ़कर पान का बीड़ा उठा ले।” किंतु दरबार में बैठे हज़ारों लोगों में से किसी ने भी पान का बीड़ा नहीं उठाया।

उस दिन काफ़ी देर तक दरबार लगा रहा। जब किसी ने भी बीड़ा नहीं उठाया तो राजा ने दूसरे दिन फिर सभी को दरबार में हाज़िर होने को कहा।

दरबार समाप्त होने पर मंत्री जब अपने घर गया तो बड़े राजकुमार ने पूछा, “प्रतिदिन तो आप इससे बहुत पूर्व घर जाते थे, आज इतनी देर कहाँ लगा दी?”

मंत्री ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया और कहा, “बेटा, ये सब राज-काज की बातें हैं। तुम्हें इन बातों से क्या मतलब!”

राजकुमार चुप हो गया, परंतु जब दूसरे दिन भी मंत्री देर से घर पहुँचा तो राजकुमार ने फिर पूछा, “आज फिर आप देर से आए हैं। क्या कारण है जो आप इन दिनों देर से घर लौटते हैं?”

मंत्री ने कहा, “बेटा, बड़ी अजीब बात है। राजा ने स्वप्न में एक पिंजरा देखा है। उनका कहना है कि संसार की सभी आकर्षक वस्तुएँ उस पिंजरे में दिखाई देती हैं। उस स्वप्न-घोर पिंजरा को लाने वाले को राजा आधा राज्य देने को कहते हैं। इसीलिए दो दिन से दरबार लगता है, परंतु कोई भी व्यक्ति स्वप्न-घोर पिंजरा लाने के लिए बीड़ा नहीं उठाता। इसीलिए मुझे लौटने में देर हो जाती है?”

राजकुमार ने पूछा, “तो क्या कल भी राजा दरबार लगाएगा?”

मंत्री ने कहा, “हाँ, कल भी दरबार लगेगा।”

दूसरे दिन दरबार लगते ही राजा के दोनों लड़कों ने बीड़ा उठा लिया और कहा, “हमें एक नाव बनवा दीजिए। सालभर के लिए पूरा प्रबंध करके हम ‘स्वप्न- घोर पिंजरा’ ढूँढ़ने समुद्र-पार जाएँगे।”

इधर बड़ा राजकुमार भी मंत्री के घर से निकलकर दूसरे भेष में दरबार में पहुँचा। परंतु दोनों राजकुमार बीड़ा उठा चुके थे। इसलिए उसे निराश ही लौटना पड़ा।

दरबार समाप्त होने पर जब मंत्री वापस घर आया, तो बड़े राजकुमार ने कहा, “आप मेरे लिए भी एक छोटी-सी नौका बनवाकर साल-भर का प्रबंध कर दें। मैं दोनों राजकुमारों के साथ ‘स्वप्न-घोर पिंजरा’ ढूँढ़ने जाऊँगा।”

मंत्री ने कहा, “उन्हें तो राजा स्वयं खर्च देकर भेज रहा है। मेरे पास इतना धन कहाँ है, जो तुम्हारे लिए व्यवस्था करूँ।”

राजकुमार ने कहा, “अधिक नहीं, केवल तीन मास के लिए व्यवस्था कर दीजिए। इतने समय के भीतर मैं कोशिश करके लौट आऊँगा।”

राजकुमार के बहुत आग्रह करने पर मंत्री ने उसके लिए भी एक छोटी-सी नौका बनवाकर तीन महीने के ख़र्च की व्यवस्था कर दी।

दोनों राजकुमारों के पीछे-पीछे बड़े राजकुमार ने भी अपनी नौका समुद्र में डाल दी।

आगे-आगे दोनों छोटे राजकुमार और पीछे-पीछे बड़ा राजकुमार नौका बढ़ाते समुद्र के किनारे-किनारे चले जा रहे थे।

चलते-चलते जब शाम हो गई तो दोनों छोटे राजकुमारों को समुद्र किनारे कोई सराय-सी दिखाई दी। दोनों राजकुमार वहीं रुककर विश्राम करने का विचार कर ही रहे थे, कि तभी किसी ने ज़ोर से पुकारकर कहा, “आओ, आओ, यहाँ रात को विश्राम करने की अच्छी व्यवस्था है।”

दोनों राजकुमार अपनी-अपनी नौका किनारे बाँधकर उसके पाए गए। वह एक ठग था, जो कि समुद्र के किनारे घर बनाकर रहता था और उधर से आने-जाने वाले व्यापारियों को पासा खेलकर ठग लिया करता था। इन दोनों राजकुमारों से भी उस ठग ने पासा खेलने को कहा।

पहले तो दोनों राजकुमार आनाकानी करते रहे, किंतु जब उसने बड़े-बड़े प्रलोभन दिए तो दोनों भाई पासा खेलने के लिए तैयार हो गए।

ठग बड़ा चालाक था। उसने पहले दाँव में ही एक नाव जीत ली। दूसरे दाँव पर राजकुमारों ने दूसरी नाव लगा दी, परंतु इस बार भी उनकी हार हुई।

अंत में ठग ने कहा, “जब खिलाड़ी के पास कुछ भी नहीं रहता तो वह अपने आप को ही दाँव पर लगा देता है, इसलिए तुम दोनों भी अपने को दाँव पर लगा दो।”

परंतु इस बार भी उनकी हार ही हुई। दोनों राजकुमारों को जीतकर ठग ने उनके कानों और नाक में पाँच-पाँच कौड़ियाँ पहना दीं और जीवन-भर के लिए उन्हें अपना ग़ुलाम बना लिया।

इसके थोड़ी ही देर बाद बड़ा राजकुमार भी अपनी नौका खेता हुए वहाँ पहुँचा। उसी समय ठग ने पुकारकर कहा, “आओ, आओ, यहाँ रात्रि में विश्राम करने के लिए बड़ी अच्छी व्यवस्था है।”

बड़े राजकुमार ने भी नौका किनारे से बाँध दी। धीरे-धीरे चलकर जब वह ठग के पास पहुँचा तो ठग ने कहा, “रात-भर क्या करोगे? आओ, पासा ही खेलें।”

बड़े राजकुमार ने कहा, “हाँ, हाँ, ज़रूर पासा खेलेंगे।” नौकाओं का बहाना बनाकर बड़ा राजकुमार कुछ देर तक वहाँ की दशा का पूरा अध्ययन करना चाहता था और थोड़ी ही देर में उसे सारी बातों का कुछ-कुछ पता चल ही गया।

काफ़ी देर इंतज़ार करने पर भी जब नौकाएँ नहीं आईं, तो ठग ने कहा, “तुम्हारी नौकाएँ तो आई नहीं। आओ, तब तक पासा खेलना शुरू करते हैं।”

परंतु राजकुमार ने कहा, “मैं तुम्हारे साथ सवेरे पासा खेलूँगा। इस समय तो थक गया हूँ। मैं समुद्र के किनारे रेत पर सो जाता हूँ। सवेरा होते ही तुम्हारे साथ पासा खेलकर तब यहाँ से जाऊँगा।”

ठग ने राजकुमार की बात मान ली। रात अधिक बीत जाने के कारण वह अपने घर में जाकर सो गया, तो राजकुमार समुद्र में कमर भर पानी तक जाकर गंगा माता से प्रार्थना करने लगा।

प्रार्थना करते-करते जब ठीक आधी रात हुई तो गंगा माता प्रकट हुईं। राजकुमार ने हाथ जोड़कर कहा, “माँ, मेरे दो भाइयों को इस ठग ने पासे में जीत कर सारा धन-दौलत ले लिया है। अब मुझे भी पासे में जीतकर वह अपना ग़ुलाम बनाना चाहता है। कृपा करके मुझे इस संकट से बचाओ।”

गंगा माता ने हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हुए राजकुमार से कहा, “निश्चित रहो। कल जब तुम पासा खेलोगे तो तुम्हारी जीत होगी। यह मेरा आशीर्वाद है।”

दूसरे दिन प्रातः ही ठग ने बड़े राजकुमार से पासा खेलने के लिए कहा तो राजकुमार तैयार हो गया।

पहले दाँव में राजकुमार ने एक नाव लगा दी। ठग जाने किस बात से चूक गया, हारकर बड़े राजकुमार को एक नाव देनी पड़ी।

दूसरे दाँव में बड़े राजकुमार ने फिर एक नाव लगाई। इस बार भी ठग की हार हुई और राजकुमार के हवाले दूसरी नाव करनी पड़ी।

तीसरे दाँव में बड़े राजकुमार से कहा, “अब तुम सारे धन के साथ स्वयं को दाँव पर लगाओ।”

ठग से तीसरा दाँव लगाया तो हारकर बड़े राजकुमार का ग़ुलाम बनना पड़ा। पासा जीतने के तुरंत बाद ही बड़े राजकुमार ने कहा, “अपने घर की चाबी देकर अब तुम यहाँ से चले जाओ। मैं तुम्हें ग़ुलाम नहीं बनाता। किंतु आज से ऐसा बुरा कर्म करना।”

मकान की चाबी देकर ठग वहाँ से भाग गया। राजकुमार ने उसके मकान का ताला खोला तो उसमें दोनों राजकुमारों की तरह पचासों ग़ुलाम नाक-कान में कौड़ियाँ पहने घूम रहे थे। उन सबको मुक्त कराकर बड़े राजकुमार ने दोनों राजकुमारों को भी मुक्त कराया और उनके नाक-कान की कौड़ियों को थैले में रख लिया।

दोनों राजकुमारों को मुक्त करा बड़े राजकुमार ने कहा, “तुम दोनों यदि चाहो तो इस ठग के घर का सारा माल नाव पर लादकर ले जा सकते हो।” परंतु दोनों राजकुमारों ने कहा, “धन की हमें क्या ज़रूरत है? हम दोनों राजा के लड़के हैं। हम पिता के लिए ‘स्वप्न-घोर पिंजरा’ ढूँढ़ने जा रहे हैं। वही हमारे लिए सबसे बड़ा धन है।”

इतना कहकर दोनों राजकुमार अपनी-अपनी नौका लेकर आगे बढ़ गए।

अब बड़ा राजकुमार ठग के घर के एक-एक कमरे को खोल-खोलकर देखने लगा। देखते-देखते उसे एक कमरे में चिड़ियों के तीन पंख रखे हुए दिखाई दिए। राजकुमार ने तीनों पंखों को हाथ में उठाया। जब वह एक पंख को अलग हाथ में लेकर ध्यान से देखने लगा तो उसकी सुगंधि से वह अस्सी साल का बूढ़ा हो गया।

राजकुमार को अपनी यह दशा देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने तुरंत ही दूसरा पंख सूँघकर देखा तो वह एकदम अट्ठारह वर्ष का युवक बन गया।

इसके बाद उसने तीसरा पंख सूँघकर देखा तो वह बिल्कुल छोटा-सा बच्चा बन गया।

ऐसे गुणकारी पंखों को पाकर बड़ा राजकुमार बहुत ही प्रसन्न हुआ। केवल उन तीनों पंखों को ही लेकर वह भी अपनी नौका पर सवार हुआ और किनारे-किनारे आगे बढ़ा।

चलते-चलते जब शाम हुई तो बड़े राजकुमार ने दोनों राजकुमारों की नौका एक पेड़ से बँधी हुई देखी। दोनों राजकुमार पेड़ के नीचे भोजन बनाने की तैयारी कर रहे थे। उनके साथ ही बड़े राजकुमार ने भी पेड़ के नीचे रात बिताने का निश्चय किया।

दोनों राजकुमारों के साथ बड़े राजकुमार ने भी अपना भोजन बनाया और खा-पीकर वृक्ष के नीचे लेट गया।

धीरे-धीरे रात बीत रही थी। तीनों राजकुमार वृक्ष के नीचे लेटे हुए थे। उनमें से दोनों छोटे राजकुमार तो सो गए थे, परंतु बड़ा राजकुमार कई प्रकार की चिंताओं में जागता रहा।

जब आधी रात का समय हुआ तो उस वृक्ष के ऊपर से विधि और विधाता उड़ते चले जा रहे थे। तीनों राजकुमारों को किनारे पर नौका बाँधकर वृक्ष के नीचे सोते देखकर विधि ने विधाता से पूछा, “ये तीनों राजकुमार इस वृक्ष के नीचे क्यों सोए हैं?”

विधाता ने कहा, “यह तो संसार है। इसमें जाने कौन कहाँ सोता है, तुम्हें इन बातों से क्या लेना! तुम अपनी राह चलो।”

परंतु विधि ने वहीं रुककर कहा, “जब तक आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे, मैं आगे नहीं जाऊँगी।”

विधाता ने कहा, “अच्छा सुनो, ये तीनों राजकुमार एक बहुत ही धनी राजा के पुत्र हैं। इनके पिता ने स्वप्न में स्वप्न-घोर पिंजरा देखा है। उसे प्राप्त करने के लिए ही ये तीनों राजकुमार निकले हैं। परंतु इन तीनों को पता नहीं है कि वह पिंजरा कहाँ है।”

विधि ने कहा, “कहाँ है वह पिंजरा?”

विधाता ने कहा, “वह पिंजरा पाताल लोक में सब्जपरी और लालपरी के पास है।”

विधि ने कहा, “वह पिंजरा इन्हें कैसे मिल सकता है?”

विधाता ने कहा, “जिस पेड़ के नीचे ये राजकुमार सोए हैं, उसी पेड़ की जड़ नीचे पाताल लोक में सब्जपरी के कमरे तक गई है। पेड़ के पास एक मोटा छिद्र है। उसमें होकर यदि कोई पेड़ की जड़ के सहारे पाताल लोक में जाए तो उसे अवश्य स्वप्न-घोर पिंजरा प्राप्त होगा।”

ऐसा कह विधि और विधाता अपनी राह चले गए। दोनों छोटे राजकुमार तो सो रहे थे, परंतु बड़े राजकुमार ने विधि-विधाता की सारी बातें सुन लीं।

प्रातः होते ही बड़े राजकुमार ने कहा, “भाई, तुम दोनों जिस वस्तु की तलाश में जा रहे हो, वह तो इसी पेड़ के नीचे पाताल लोक में है। पेड़ के पास यह देखो, एक छिद्र है। इसी के सहारे तुम में से एक पाताल लोक में जाकर उसे ला सकता है।” परंतु उनमें से कोई भी पाताल लोक जाने के लिए तैयार हुआ। बड़े राजकुमार ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों यहीं बैठे रहो, मैं पाताल लोक में जाकर स्वप्न-घोर पिंजरा लाता हूँ।” इतना कहकर बड़ा राजकुमार छिद्र में से होकर जड़ के सहारे उतरता-उतरता सब्जपरी के कमरे में जा पहुँचा। सब्जपरी उस समय सो रही थी। राजकुमार सब्जपरी के कमरे में पहुँचते ही इधर-उधर चौकन्ना होकर देखने लगा। उसने परी के पलंग के पास एक थाल में सिंदूर और पान रखा हुआ देखा। इनके साथ ही थाल में एक पत्र भी रखा हुआ था, जिसमें लिखा हुआ था, “जो व्यक्ति सबसे पहले इस कमरे में आएगा वही मेरा पति होगा। उसे चाहिए कि थाल का पान खाकर मेरी माँग में सिंदूर भर दे। मैं उसकी पत्नी बन जाऊँगी।”

बड़े राजकुमार ने पत्र पढ़कर वैसा ही किया। माँग में सिंदूर पड़ते ही सब्जपरी जाग उठी और राजकुमार की सेवा-सत्कार में लग गई।

कुछ देर विश्राम करने के बाद राजकुमार ने सब्जपरी से पूछा, “क्या तुम जानती हो कि स्वप्न-घोर पिंजरा कहाँ है?”

सब्जपरी ने कहा, “वह मेरी बड़ी बहन लालपरी के पास है। वह मुझसे थोड़ी ही दूर एक भयंकर जंगल में रहती है। तुम यदि उसे प्राप्त करना चाहते हो तो वहाँ अवश्य जाओ। मैं तुम्हें एक पत्र देती हूँ। यदि तुम्हें कोई हिंसक पशु रास्ते में सताए तो तुम यह पत्र दिखा देना। फिर वह तुमसे कुछ नहीं कहेगा। इस भयंकर जंगल में हम दोनों बहनों का ही राज है।”

बड़ा राजकुमार सब्जपरी से पत्र लेकर लालपरी के महल की ओर चल पड़ा। जब वह थोड़ी ही दूर गया था तो मार्ग में अनेक हिंसक पशु मुँह फैलाकर उसे खाने दौड़े। उन सबको राजकुमार ने सब्जपरी का पत्र दिखाया तो उन्होंने एकदम डरकर अपना-अपना मुँह बंद कर लिया और उनका सरदार राजकुमार के साथ जाकर उसे लालपरी के महल तक पहुँचा आया।

लालपरी के कमरे में भी राजकुमार ने वही पान, सिंदूर और पत्र देखा जो सब्जपरी के कमरे में देखा था। राजकुमार ने पत्र पढ़ा और पान खाकर सोती हुई लालपरी की माँग में सिंदूर भर दिया।

माँग में सिंदूर पड़ते ही लालपरी जाग उठी। उसने भी सब्जपरी की भाँति राजकुमार को अपना पति माना और सेवा-सत्कार में जुट गई।

कुछ देर विश्राम करने के बाद राजकुमार ने लालपरी से पूछा, “क्या तुम्हारे पास स्वप्न-घोर पिंजरा है?”

लालपरी ने कहा, “हाँ, स्वप्न-घोर पिंजरा मेरे पास है। जब मैं तुम्हारी पत्नी बन चुकी तो वह तुम्हारा ही हो गया। मेरे साथ-साथ तुम उसे जहाँ चाहो ले जा सकते हो।”

राजकुमार ने कहा, “अच्छा स्वप्न-घोर पिंजरा मेरे सामने खोलकर दिखाओ और उसे लेकर मेरे साथ चलो।”

लालपरी ने पिंजरा उसके सामने रखकर कहा, “इसे लेकर मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ, परंतु यहाँ नहीं, सब्जपरी के घर इसे खोलकर दिखा दूँगी।”

स्वप्न-घोर पिंजरा और लालपरी को राजकुमार सब्जपरी के पास ले आया। यहाँ पहुँचने पर लालपरी ने राजकुमार को पिंजरा खोलकर दिखाया तो वह मूर्छित हो गया। उस पिंजरे में सारे संसार की अच्छी-अच्छी वस्तुएँ एक साथ ही दिखाई देती थीं।

कुछ देर बाद जब राजकुमार को होश आया तो वह दोनों परियों से बोला, “अब तुम दोनों मेरे साथ चलो। मेरे पिता ने स्वप्न-घोर पिंजरा को स्वप्न में देखा था। उसी की खोज में मैं आया हूँ।”

दोनों परियों को साथ ले बड़ा राजकुमार जैसे ही वृक्ष की जड़ के सहारे ऊपर आया, वैसे ही वृक्ष की जड़ टूटकर नीचे गिर गई। ऊपर दोनों राजकुमार बैठे उसका इंतज़ार कर रहे थे। किंतु जब परियों के साथ राजकुमार ऊपर आया और स्वप्न-घोर पिंजरा को संभालना चाहा तो उन्हें मालूम हुआ कि स्वप्न-घोर पिंजरा तो सब्जपरी के कमरे में ही रह गया।

अब तो बड़ा राजकुमार बड़ी चिंता में पड़ गया। दोनों परियों ने कहा, “पेड़ की जड़ तो केवल एक बार आने-जाने के लिए थी। नीचे पाताल लोक में अब कैसे कोई जा सकता है?”

बड़े राजकुमार ने दोनों राजकुमारों को कहा, “यदि पिंजरा को ऊपर लाना चाहते हो तो मेरे साथ आओ और घास काटकर खूब लंबी रस्सी बनाओ। उसके सहारे मैं फिर पाताल लोक में जाकर पिंजरा लाऊँगा।”

तीनों राजकुमारों ने मिलकर घास काटी और दिन-भर बाँटकर बहुत लंबी रस्सी तैयार की। रस्सी तैयार हो जाने के बाद बड़े राजकुमार ने कहा, “तुम दोनों मज़बूती से रस्सी का सिरा पकड़े रहो। मैं इसके सहारे पाताल लोक में जाता हूँ। जब मैं नीचे से रस्सी को हिलाऊँ तो तुम दोनों उसे ऊपर खींच लेना।”

दोनों राजकुमारों ने रस्सी का सिरा पकड़ा और बड़ा राजकुमार उसके सहारे सब्जपरी के कमरे में गया। वहाँ से पिंजरा उठाकर उसने रस्सी हिला दी। ऊपर से दोनों राजकुमारों ने रस्सी खींच ली। छिद्र के पास जब बड़ा राजकुमार पिंजरा लेकर पहुँचा तो दोनों राजकुमारों ने कहा, “पहले पिंजरा दे दो, फिर तुम ऊपर जाना।”

बड़े राजकुमार ने पिंजरा दे दिया। दोनों राजकुमारों ने पिंजरे को हाथ में पकड़कर रस्सी काट दी। बड़ा राजकुमार फिर पाताल लोक में गिर गया और दोनों राजकुमार परियों-सहित पिंजरे को ले राजमहल में वापस गए।

बेचारा बड़ा राजकुमार पाताल लोक में जल के किनारे बैठा-बैठा अपने भाग्य पर रो रहा था। उसकी की-कराई सारी मेहनत मिट्टी में मिल गई। स्वप्न-घोर पिंजरा हाथ से गया, अब पाताल लोक से निकलकर पृथ्वी पर जाना कठिन है यही सोच-सोचकर राजकुमार बड़े करुण स्वर में रो रहा था। उसका रोना सुनकर एक पीले मेंढक ने जल में से निकलकर पूछा, “क्या बात है, भाई? तुम रो क्यों रहे हो?”

राजकुमार ने मेंढक से सारी व्यथा कह सुनाई। मेंढक ने बड़ी सहृदयता से कहा, “रोओ नहीं भाई! मैं अपने सभी साथियों को बुला लाता हूँ। हम एक के ऊपर एक चढ़कर पृथ्वी लोक तक तुम्हें पहुँचा देंगे।” इतना कहकर मेंढक जल के भीतर गया और अपने सभी साथियों को बुला लाया। जब सभी मेंढक इकट्ठे हो गए तो एक मेंढक ने राजकुमार को अपनी पीठ पर बैठा लिया। शेष सभी मेंढक बारी-बारी से उस मेंढक के नीचे आते गए। हर मेंढक नीचे आने पर अपना पेट फुलाकर ऊपर वाले मेंढक को ऊँचा उठा देता। इसी तरह से लाखों मेंढकों ने मिलकर राजकुमार को पाताल-लोक से पृथ्वी-लोक तक पहुँचा दिया। पृथ्वी तल पर जाने के बाद राजकुमार जितने मेंढकों को हाथ से खींच सकता था, खींचकर पृथ्वी तल पर पहुँचा दिया। कहते हैं तभी से पृथ्वी पर मेंढक होने लगे। इससे पहले पृथ्वी-तल पर मेंढक नहीं थे।

बड़े राजकुमार की नाव पेड़ से बँधी थी। उसने जल्दी-जल्दी नाव को खोला और तेज़ी से महल की ओर चल दिया।

कुछ समय के बाद जब वह महल के पास पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि दोनों राजकुमार स्वप्न-घोर पिंजरा और दोनों परियों को लेकर पहुँच गए हैं। राजा दूसरे दिन दरबार में सबके सामने पिंजरा लेकर दोनों राजकुमारों का साहसिक कार्य सबको दिखाना चाहता था। इसलिए दूसरे दिन बड़े ठाट-बाट से दरबार लगाया गया। सारी प्रजा बड़ी उत्सुकता से स्वप्न-घोर पिंजरा देखने के लिए बैठी थी। राजा ने दोनों राजकुमारों को स्वप्न-घोर पिंजरा दरबार के सामने पेश करने को कहा।

दोनों राजकुमार स्वप्न-घोर पिंजरा लाकर बड़े गर्व से राजा के सामने रख ही रहे थे कि दोनों परियों ने कहा, “यह पिंजरा इन्हें नहीं बल्कि हमारे पति को मिला था।”

सारी प्रजा के साथ ही राजा भी चौंके और बोले, “यह तुम क्या कह रही हो? तुम्हारा पति और कौन है?”

परियों ने कहा, “इस पिंजरे को घोर संकटों का सामना करके पाताल-लोक से लाने वाला हमारा पति है जिसे इन्होंने पाताल लोक में गिराकर पिंजरे सहित हम दोनों को बंदी बना लिया है।”

दोनों राजकुमारों ने कहा, “नहीं, पिताजी, ये परियाँ झूठ बोल रही हैं। पाताल लोक से इस पिंजरे को हम दोनों ही लाए हैं। वहीं ये दोनों परियाँ भी हमें मिली थीं।”

दोनों परियों ने कहा, “यदि तुम दोनों इस पिंजरे को पाताल लोक से लाए हो तो बताओ कि तुम्हें कहाँ-कहाँ जाना पड़ा और किन-किन घोर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?”

परंतु दोनों राजकुमार पाताल-लोक के विषय में कुछ भी बताने को तैयार हुए। तब राजा ने परियों से कहा, “तुम्हारे पति का पता कैसे लग सकता है?”

परियों ने कहा, “जो व्यक्ति पाताल-लोक की सारी घटनाएँ बताकर स्वप्न-घोर पिंजरा लाने की पूरी कहानी बता दे, वही हमारा पति है। आप सारे राज्य में इस बात की घोषणा करा दीजिए। यदि हमारा पति कहीं होगा तो पता लगते ही अवश्य आएगा।”

परियों के कथनानुसार राजा ने सारे राज्य में घोषणा करा दी कि जो व्यक्ति पाताल-लोक से स्वप्न-घोर पिंजरा लाने की कहानी सुनाएगा, वही आधे राज्य का स्वामी और दोनों परियों का पति माना जाएगा।

बड़ा राजकुमार यह सारी लीला देखने के लिए राजमहल के पास एक झोंपड़ी में रह रहा था। उसके पास ठग के घर में मिले तीनों पंख मौजूद थे। पहला पंख सूँघकर उसने अपने को बूढ़ा बना लिया था।

शाम को सब सिपाही घूम-घूमकर राजा की घोषणा सुना रहे थे तो बड़े राजकुमार ने एक सिपाही को बुलाकर कहा, “भाई, स्वप्न-घोर पिंजरा को पाताल-लोक से लाने की थोड़ी कहानी तो मैं जानता हूँ। यदि राजा मुझे आज्ञा दें तो मैं सुना सकता हूँ।”

बूढ़े की बात सुनकर सिपाही राजा के पास गया और बोला, “महाराज, स्वप्न-घोर पिंजरा की थोड़ी कहानी सुनाने को एक बूढ़ा कह रहा था। आप कहें तो उसे दरबार में पेश किया जाए।”

राजा ने हुक्म दे दिया। दूसरे दिन दरबार लगा तो बूढ़े को दरबार में पेश किया गया। राजा ने जब कहानी सुनाने को कहा तो वह बोला, “मैं केवल इतना जानता हूँ कि विधि और विधाता की बातचीत से एक राजकुमार को पिंजरे का पता मिला। वह पिंजरा लेने के लिए वृक्ष की जड़ के सहारे पाताल लोक में गया। वहाँ पहले उसे सब्जपरी मिली, जिसने राजकुमार को अपना पति मान लिया, इसके आगे मैं कुछ नहीं जानता।”

दोनों परियाँ भी दरबार में उपस्थित थीं। वे आपस में कानाफूसी करके कभी कहतीं, “यही वह राजकुमार है,” कभी कहतीं, “नहीं, यह तो कोई बूढ़ा है। किंतु इसे इतनी कहानी कैसे मालूम हुई?”

केवल इतनी-सी कहानी सुनाकर बूढ़ा जब चुप हो गया, तो राजा ने परियों से पूछा, “क्या इतनी कहानी सच है?”

परियों ने कहा, “हाँ, सच है, पर यह बूढ़ा हमारा पति नहीं है।”

राजा ने थोड़ी-सी कहानी सुनाने के बदले में बूढ़े को इनाम दे दिया। दूसरे दिन फिर दरबार में पूरी कहानी सुनाने वाले के लिए इनाम की घोषणा करके राजा ने दरबार समाप्त किया।

राजकुमार ने झोंपड़ी में आते ही दूसरे पंख को सूँघकर अपना रूप बूढ़े से बदलकर एक बालक का बना लिया।

शाम को फिर घोषणा करने वाले सिपाही को बुलाकर उसने कहा, “भाई, मैं स्वप्न-घोर पिंजरा की थोड़ी-सी आगे की कहानी जानता हूँ। यदि राजा आज्ञा दें तो मैं सुनाने को तैयार हूँ।”

सिपाही ने यह बात राजा से बताई तो राजा ने उस बालक को दरबार में पेश करने को कहा।

दूसरे दिन बीच सभा में खड़े होकर बालकरूपी राजकुमार ने कहा, “मैं केवल इतना जानता हूँ कि सब्जपरी से शादी करके वह लालपरी के पास गया। रास्ते में उसे कई हिंसक जंतु मुँह फैलाकर खाने को दौड़े थे किंतु सब्जपरी का पत्र दिखाकर उसने अपनी जान बचा ली थी।

“लालपरी के पास पहुँचकर उस राजकुमार ने उससे भी अपनी शादी कर ली और उसके पास से स्वप्न-घोर पिंजरा प्राप्त करके वह फिर कहाँ गया, इसके आगे मैं कुछ नहीं जानता।”

दोनों परियाँ उस बालक की बातें सुनकर बहुत चकित हो रही थीं। राजा ने परियों से पूछा, “क्या इस बालक की बताई हुई बातें सच हैं?”

परियों ने कहा, “हाँ, इसकी बताई हुई बातें सच तो अवश्य हैं, परंतु यह भी हमारा पति नहीं है।”

राजा ने बालक को इनाम दिया और दूसरे दिन फिर कहानी सुनाने वाले को दरबार में पेश होने की घोषणा की गई।

राजकुमार इनाम लेकर अपनी झोंपड़ी में आया। इस बार उसने तीसरा पंख सूँघकर अपना रूप अट्ठारह वर्ष के नवयुवक-सा बना लिया।

शाम को घोषणा करते समय राजकुमार ने फिर एक सिपाही से कहा, “भाई, मैं स्वप्न-घोर पिंजरा की थोड़ी-सी कहानी जानता हूँ। यदि राजा आज्ञा दें तो मैं सुनाने को तैयार हूँ।”

यह ख़बर जब सिपाही ने राजा के पास पहुँचाई तो राजा ने उस युवक को भी दरबार में पेश करने को कहा।

दरबार में पेश होने पर युवकरूपी राजकुमार ने कहा, “लालपरी के साथ स्वप्न-घोर पिंजरा लेकर राजकुमार सब्जपरी के पास आया। वहाँ से दोनों परियों को साथ लेकर वृक्ष की जड़ के सहारे बाहर आया। वहाँ ये दोनों राजकुमार भी बैठे उसकी राह देख रहे थे। परंतु बाहर आने पर राजकुमार को मालूम हुआ कि स्वप्न-घोर पिंजरा तो सब्जपरी के कमरे में ही रह गया। उनके बाहर आने के बाद वृक्ष की जड़ कटकर नीचे गिर गई थी। इसलिए इन दोनों राजकुमारों की सहायता से उसने घास की एक रस्सी तैयार की। जब उसके सहारे पाताल लोक में उतरकर राजकुमार पिंजरे के साथ वापस आया तो नीचे से ही स्वप्न-घोर पिंजरा लेकर इन दोनों राजकुमारों ने रस्सी काट दी और वह राजकुमार फिर पाताल-लोक में गिर गया। वही यह पिंजरा है, और वही ये परियाँ हैं जिसे इन दोनों राजकुमारों ने लाकर दरबार में आपके सामने पेश किया है?”

परियाँ उस नवयुवक की बातें सुनकर बहुत ही हैरान हो रही थीं। राजा ने परियों से पूछा, “क्या यह कहानी बिलकुल ठीक है?”

परियों ने कहा, “हाँ, कहानी तो बिलकुल ठीक है, परंतु यह नवयुवक हमारा पति नहीं है।”

उसी समय राजकुमार ने अपनी वास्तविक शक्ल में आकर कहा, “मैं ही तुम्हारा पति हूँ और मैं ही इस पिंजरे को घोर संकट झेलकर पृथ्वी पर लाया था।”

बड़े राजकुमार का वास्तविक रूप देखकर परियाँ बहुत प्रसन्न हुईं और आनंद से गदगद होकर राजा से बोलीं, “हाँ, यही हमारे पति हैं। इन्हें ही इन दोनों राजकुमारों ने रस्सी काटकर पाताल में गिरा दिया था। स्वप्न-घोर पिंजरा इन्हीं को प्राप्त हुआ था।”

राजा ने भी परियों की बातों पर विश्वास कर लिया। इसके बाद राजा ने राजकुमार से अपना परिचय बताने को कहा, तो बड़ा राजकुमार बोला, “महाराज, मैं आपका ज्येष्ठ पुत्र हूँ मुझे आपने जल्लादों द्वारा जान से मार डालने की आज्ञा दे दी थी। मंत्री जी की कृपा से मेरे प्राण बच गए और मैं आपकी इच्छा पूरी करने में सफल रहा।”

राजा अपने ज्येष्ठ पुत्र को जीवित देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने स्वप्न-घोर पिंजरा लाने के उपलक्ष्य में उसे आधे राज्य का अधिकारी बना दिया। उसी दिन से लालपरी और सब्जपरी के साथ राजकुमार महल में रहने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 96)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY