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छोटा राजकुमार और स्वप्न-वृक्ष

chhota rajakumar aur svapn vriksh

 

एक राजा की दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी के चार पुत्र थे और छोटी रानी का एक पुत्र था।

राजा अपने पाँचों पुत्रों को समान दृष्टि से देखता था। किंतु सबसे छोटा पुत्र कुछ साधू-स्वभाव का था, इसलिए राजा उससे अधिक प्रभावित रहता था।

एक रात सोते समय राजा ने सपना देखा। सपना बड़ा विचित्र था। आँखें खुलने पर राजा बहुत देर तक सपने के बारे में सोचता रहा। अंत में राजा ने अपने पाँचों पुत्रों को बुलाकर कहा, “बेटा! आज सपने में मैंने एक वृक्ष देखा है जिसका जड़ों से तने तक का भाग चाँदी का बना हुआ था। उसकी शाखें सोने की थीं और उसमें हीरे की पत्तियाँ लगी थीं। उसमें मोतियों के गुच्छे फल की तरह लटक रहे थे।”

“उस वृक्ष पर मैंने एक सुग्गी को बैठे देखा। जब सुग्गी प्रसन्न रहती थी, तो वृक्ष हरा-भरा रहता था, पर जैसे ही सुग्गी के चेहरे पर उदासी छाती, वृक्ष कुम्हला जाता। यह स्वप्न-वृक्ष देखकर मैं बहुत प्रभावित हूँ और इसे पाने के लिए बेचैन हूँ। तुम पाँचों में से जो इस वृक्ष को दो वर्ष के भीतर-भीतर मेरे सामने लाकर उपस्थित करेगा, वही मेरे बाद राजगद्दी का हक़दार होगा। जितनी भी धन-दौलत की ज़रूरत हो, मैं दूँगा।”

बड़ी रानी के चारों पुत्रों ने राजा से काफी धन-दौलत लिया और सपने में जो वृक्ष देखा था, उसकी खोज में निकल पड़े। उन्हीं के साथ सबसे छोटा राजकुमार भी कुछ रुपये-पैसे लेकर निकल पड़ा।

चलते-चलते जब पाँचों राजकुमार राज्य से दूर जंगल में पहुँचे तो चारों बड़े राजकुमारों ने सबसे छोटे राजकुमार से सारा रुपया-पैसा छीनकर उसे कुएँ में धकेल दिया।

इसके बाद चारों भाई आगे बढ़े। चलते-चलते वे किसी बहुत बड़े नगर में पहुँचे। उस नगर के सबसे चतुर सुनार को बुलाकर चारों राजकुमारों ने स्वप्न-वृक्ष बनाने को कहा। सुनार ने कई लाख रुपयों में स्वप्न-वृक्ष बनाने का ठेका ले लिया। चारों राजकुमार उसी नगर में रहने लगे।

इधर छोटा राजकुमार कुएँ में तड़प रहा था। तभी कई चरवाहे कुएँ पर पानी पीने आए। कुएँ में किसी को गिरा देखकर चरवाहों ने रस्सी डाली। बाहर निकलने पर छोटे राजकुमार ने कहा, “भाइयो, तुम सब ने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की है। मुझे मेरे भाइयों ने इस कुएँ में धकेल दिया था।”

चरवाहों को धन्यवाद देकर छोटा राजकुमार स्वप्न-वृक्ष की खोज में आगे बढ़ा। चलते-चलते जब छोटा राजकुमार वन के बीच में पहुँचा तो वहाँ उसने एक साधू को सोते हुए देखा।

उस साधू का नियम छह मास सोने और छह मास जागने का था। छोटा राजकुमार साधुओं से बड़ा स्नेह करता था। सोते हुए साधू के इधर-उधर लंबी-लंबी घास उपजी हुई थी। राजकुमार ने घास को काटकर स्थान को साफ़ बनाया और साधू के पैर बाने बैठ गया।

साधू के जागने में केवल तीन-चार ही दिन रहते थे। उतने दिनों तक राजकुमार बैठा-बैठा साधू के पैर दबाता रहा।

जब साधू की आँखें खुलीं तो प्रसन्न होकर राजकुमार से बोला, “बेटा, तुम न जाने कितने दिनों से मेरी सेवा में लगे हो। मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ। मेरी इच्छा है कि तुम मुझसे कोई वरदान माँगो।”

राजकुमार ने कहा, “महाराज, मैं आपसे क्या वरदान माँगू! यदि आप मेरी मनचाही वस्तु दें तो वरदान माँगू।” साधू ने कहा, “तुम जो कुछ भी माँगोगे, दूँगा।”

राजकुमार ने साधू से तीन वचन लेने के बाद कहा, “महाराज, मुझे अपने पिता के लिए स्वप्न-वृक्ष चाहिए, जिसका तना और जड़ चाँदी की, डालें सोने की, पत्तियाँ हीरों की और मोतियों के गुच्छों के फल हों। वृक्ष पर एक सुग्गी बैठी हो, जिसके प्रसन्न रहने से वृक्ष हरा-भरा रहे और उदास होने से मुरझा जाए।”

साधू ने कहा, “बेटा, मैंने नहीं सोचा था कि तुम इतना कठिन वर माँगोगे। यह वर देना मेरी शक्ति से बिलकुल बाहर है। तुम मेरे गुरु के पास चले जाओ। यहाँ से थोड़ी ही दूर उनकी कुटिया है। वह साल-भर सोते और साल भर जागते हैं। उनसे तुम्हें अवश्य स्वप्न-वृक्ष मिल जाएगा।”

साधू को प्रणाम कर छोटा राजकुमार चलते-चलते दूसरे साधू के पास पहुँचा। इस साधू के आस-पास तो बहुत अधिक झाड़-झंखाड़ उपज आए थे। राजकुमार ने उन सबको काटकर स्थान को ख़ूब साफ़ बनाया और साधू के पैर दबाने बैठ गया।

इस साधू को भी सोते-सोते साल होने को आया था। केवल तीन-चार दिन ही रहते थे। वे दिन भी जब पूरे हो गए तो उसकी आँखें खुलीं। राजकुमार को पैर दबाते देखकर साधू बड़ा प्रसन्न हुआ। बोला, “बेटा, तुम न जाने कितने दिनों से मेरी सेवा कर रहे हो। मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे कोई वरदान माँगो।”

राजकुमार ने कहा, “महाराज, मैं आपसे क्या वरदान माँगू! यदि आप मेरी मनचाही वस्तु दें तो वरदान माँगू?”

साधू ने कहा, “तुम जो माँगोगे, मैं अवश्य दूँगा।”

इस साधू से भी तीन वचन लेने के बाद राजकुमार ने कहा, “महाराज, मेरे पिता ने मुझे स्वप्न-वृक्ष की खोज में भेजा है। यदि आप वही वृक्ष मुझे दे सकें तो आपकी बड़ी कृपा होगी।”

साधू ने कहा, “ओह, तुमने तो बहुत बड़ी चीज़ माँगी! मुझे नहीं मालूम था, किंतु फिर भी मैं तुम्हारी इस इच्छा की पूर्ति में मदद करूँगा। यहाँ से थोड़ी ही दूर मेरे गुरु रहते हैं। तुम उनके पास जाओ। वह तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूरी करेंगे। वह दो साल सोते और दो साल जागते हैं। उनके जागने में केवल तीन-चार दिन ही रह गए हैं।”

साधू को प्रणाम करके राजकुमार आगे बढ़ा। थोड़ी दूर पर राजकुमार ने तीसरे साधू को सोते हुए देखा। इस साधू के आस-पास तो बहुत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ उग आई थीं। राजकुमार ने पहुँचते ही झाड़ियों और घास को काटकर स्थान को ख़ूब साफ़ बना दिया। फिर उस साधू के भी पैर दबाने शुरू कर दिए।

तीन-चार दिनों के बाद जब साधू की आँखें खुलीं तो राजकुमार को पैर दबाते देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, “बेटा, मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम न जाने कितने दिनों से मेरे पैर दबा रहे हो। तुम मुझसे कोई वरदान माँग लो।”

राजकुमार ने कहा, “महाराज, मैं आपसे क्या वरदान माँगू! यदि आप मेरी मनचाही वस्तु देने को तैयार हों तो वरदान माँगू।”

साधू ने कहा, “तुम जो भी माँगोगे, तुम्हें अवश्य मिलेगा।”

राजकुमार ने कहा, “महाराज, हम पाँच भाई हैं। पाँचों भाई पिता के स्वप्न-वृक्ष की खोज में निकले हैं। उस स्वप्न-वृक्ष की जड़ें और तना चाँदी का बना है, डालें सोने की, पत्तियाँ हीरे की और फलों के रूप में मोतियों के गुच्छे लटकते दिखाई देते हैं। इसी स्वप्न-वृक्ष पर कोई सुग्गी कहीं से उड़कर आती है। डाली पर बैठकर सुग्गी जब प्रसन्न रहती है तो स्वप्न-वृक्ष हरा-भरा रहता है, किंतु जब सुग्गी उदास हो जाती है तो वृक्ष भी मुरझा जाता है। इसी वृक्ष को यदि आप मुझे वरदान स्वरूप दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।”

साधू ने कहा, “बेटा, वरदान तो तुमने बहुत कठिन माँगा है, किंतु फिर भी चिंता की कोई बात नहीं है। समीप ही एक मंदिर है। तुम उसमें जाकर देवता की पूजा करो। देवता प्रसन्न होकर तुम्हें एक मणि देंगे। उस मणि को लेकर तुम पाताल-लोक चले जाना। पाताल लोक में तुम्हें एक सुंदर महल दिखाई देगा। उसी महल में स्वप्न-वृक्ष है।”

साधू को प्रणाम करके छोटा राजकुमार देवता के मंदिर में गया। घोर निष्ठा से पूजा करने के बाद देवता प्रकट हुए और प्रसन्न होकर राजकुमार को मणि दे दी।

राजकुमार मणि पाते ही पाताल लोक पहुँचा। पाताल लोक में एक बहुत ही सुंदर महल देखकर राजकुमार उसमें घुसने लगा। किंतु फाटक पर ही प्रहरी ने उसे रोककर पूछा, “तुम कौन हो? इस महल में परी की आज्ञा के बिना कोई नहीं घुस सकता।”

राजकुमार ने कहा, “मैं पृथ्वी-लोक से आया हूँ। गुरु की आज्ञानुसार मुझे इस महल में अवश्य जाना है। तुम जाकर महल में रहने वाले को सूचित करो। प्रहरी ने महल के भीतर जाकर परी को बताया कि कोई पृथ्वी-लोक से आया है और महल में आना चाहता है।

परी ने कहा, “बुला लाओ।”

प्रहरी वापस फाटक पर गया और आदर से राजकुमार को महल के भीतर ले गया। सबसे शुरू के कमरे के दरवाज़े पर लिखा था, ‘चाँदी परी।’ उसके कमरे की हर वस्तु चाँदी की बनी हुई थी।

राजकुमार निःसंकोच भाव से चाँदी परी के कमरे में चला गया। चाँदी परी पलंग पर लेटी थी। राजकुमार को देखते ही चाँदी परी झट से उठी और बोली, “ओह, आप हैं! आप ही को पति रूप में पाने के लिए मैं पता नहीं कितने दिनों से प्रतीक्षा कर रही हूँ। आज मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आप देवता की मणि प्राप्त करके मेरे पास आ गए।”

राजकुमार ने कहा, “मैं देवता की मणि प्राप्त कर तुम्हारे पास आ तो गया किंतु तुम्हारे भीतर क्या गुण है, इसका पता मुझे नहीं है।”

चाँदी परी ने कहा, “मैं स्वप्न-वृक्ष की जड़ और तना चाँदी का बनाकर खड़ी हो जाती हूँ।”

राजकुमार ने कहा, “अच्छा, मेरे पास अधिक समय यहाँ रुकने का नहीं है, इसलिए अब मैं थोड़ा और घूम-फिरकर वापस गुरु के पास पहुँचना चाहता हूँ।”

चाँदी परी के पास एक दिन रुककर राजकुमार ने महल के दूसरे भागों को देखना चाहा तो प्रहरी उसे दूसरे कमरे में ले गया। उस कमरे के दरवाज़े पर लिखा था, ‘स्वर्ण परी’। स्वर्ण परी के कमरे की सभी वस्तुएँ सोने की बनी हुई थीं। राजकुमार उस कमरे में भी निःसंकोच भाव से चला गया। सोने की परी पलंग पर लेटी थी।

राजकुमार को देखते ही वह प्रसन्न होकर उठी और बोली, “ओह, आप आ गए! आप ही को तो पति रूप में पाने के लिए मैं न जाने कितने दिनों से प्रतीक्षा कर रही हूँ। यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आप देवता की मणि प्राप्त करके मेरे पास आ गए।”

सोने की परी ने भी राजकुमार को बड़े आदर से बैठाया और अपने साथ रहने के लिए कहा। किंतु राजकुमार बोला, “मेरे पास समय थोड़ा है। मुझे अपने पिता के पास शीघ्र ही पहुँचना है। देवता की मणि प्राप्त करके मैं तुम्हारे पास आ तो गया पर तुम्हारे अंदर क्या गुण है, इसका पता नहीं चला।”

सोने की परी ने कहा, “मेरे अंदर यही गुण है कि जब चाँदी परी स्वप्न-वृक्ष की जड़ और तना बनकर खड़ी हो जाती है, तो मैं सोने की शाखाएँ बनकर लग जाती हूँ।”

राजकुमार को चाँदी और सोने की परियों के गुणों को सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उसकी आशा कुछ-कुछ पूरी होती दिखाई दी।
कुछ दिन स्वर्ण परी के भी पास रहने के बाद राजकुमार ने महल के अन्य भागों को देखने की इच्छा प्रकट की। स्वर्ण परी ने उसे तीसरे कमरे में भिजवा दिया। तीसरे कमरे के दरवाज़े पर लिखा था, ‘हीरा परी’। हीरा परी के कमरे की सारी वस्तुएँ हीरे की बनी हुई थीं। राजकुमार उसके कमरे में भी निःसंकोच भाव से चला गया। हीरा परी पलंग पर लेटी थी। राजकुमार को देखते ही वह भी तेज़ी से उठी और राजकुमार का स्वागत करते हुए बोली, “ओह, आप आ गए! मैं तो आपको पति रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रही थी। आज मेरा सौभाग्य है, जो आप देवता की मणि प्राप्त करके मेरे पास आ गए।”

राजकुमार ने कहा, “देवता की मणि प्राप्त करके मैं तुम्हारे पास आ तो गया, किंतु तुम्हारे भीतर क्या गुण है, इसका पता मुझे नहीं चला।”

हीरा परी ने कहा, “मेरे अंदर यह गुण है कि जब चाँदी परी स्वप्न वृक्ष की जड़ और तना बनती है तो स्वर्ण परी उसकी शाखाएँ बन जाती है और मैं शाखाओं में हीरे की पत्तियाँ बन जाती हूँ।”

छोटा राजकुमार हीरा परी के गुण सुनकर और भी प्रसन्न हुआ। कुछ दिन उसके पास रहने के बाद उसने हीरा परी से कहा, “मेरे पास बहुत कम समय है। मुझे शीघ्र ही अपने गुरु के पास पहुँचना है। इसलिए शीघ्र ही महल का शेष भाग भी देख लेना चाहता हूँ।”

हीरा परी ने राजकुमार को मोती परी के कमरे में भेज दिया। मोती परी के दरवाज़े पर लिखा हुआ था, ‘मोती परी’। मोती परी के कमरे की सभी वस्तुएँ मोती की बनी हुई थीं।

राजकुमार निःसंकोच भाव से मोती परी के कमरे में चला गया। मोती परी पलंग पर लेटी थी। राजकुमार को देखते ही वह भी प्रसन्नता से उठकर बोली, “ओह, आप आ गए! मैं तो बहुत दिनों से आपको पति रूप में प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रही थी। यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आप देवता की मणि प्राप्त करके मेरे पास आ गए।”

राजकुमार ने कहा, “देवता की मणि प्राप्त कर मैं तुम्हारे पास आ तो गया किंतु तुम्हारे भीतर क्या गुण है, इसका पता मुझे नहीं है।”

मोती परी ने कहा, “मुझमें यह गुण है कि जब चाँदी परी स्वप्न-वृक्ष की जड़ और तना बनती है तो स्वर्ण परी शाखाएँ बनती है, हीरा परी पत्तियाँ बनती है और मैं मोती के गुच्छे बनकर फलों के रूप में लटकने लगती हूँ।”

राजकुमार मोती परी के गुणों से और भी प्रसन्न हुआ। कुछ दिन उसके पास भी रुकने के बाद राजकुमार ने कहा, “मेरे पास अधिक समय नहीं है। मुझे गुरु जी के पास वापस जाना है, इसलिए शीघ्र ही मैं महल का शेष भाग भी देख लेना चाहता हूँ।”

मोती परी ने राजकुमार को सुग्गी परी के कमरे में भेज दिया। उसके दरवाज़े पर लिखा हुआ था, ‘सुग्गी परी’। उसके कमरे की सभी वस्तुएँ हरे रंग की थीं।

राजकुमार सुग्गी परी के कमरे में भी निःसंकोच भाव से चला गया। सुग्गी परी पलंग पर लेटी हुई थी। 
राजकुमार को देखते ही वह तेज़ी से उठी और आदर से बोली, “ओह, आप आ गए! आपको पति रूप में प्राप्त करने के लिए पता नहीं मैं कितने दिनों से प्रतीक्षा कर रही हूँ। यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आप देवता की मणि प्राप्त करके मेरे पास आ गए।”

राजकुमार ने कहा, “मैं देवता की मणि प्राप्त करके तुम्हारे पास आ तो गया किंतु तुममें क्या गुण है, इसका पता मुझे नहीं चला।”

सुग्गी परी ने कहा, “मुझमें यह गुण है कि जब चाँदी परी, स्वर्ण परी, हीरा परी और मोती परी मिलकर स्वप्न-वृक्ष तैयार करती हैं तो मैं सुग्गी बनकर उस वृक्ष पर जा बैठती हूँ। जब तक मैं वृक्ष पर प्रसन्न-चित्त बैठी रहती हूँ, तब तक वृक्ष हरा-भरा रहता है, किंतु जब मैं उदास हो जाती हूँ तो वृक्ष भी मुरझा जाता है।”

राजकुमार सुग्गी परी के गुण सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ। कुछ दिन उसके भी पास रुकने के बाद उसने कहा, “मेरे पास समय बहुत कम है। मुझे अपने गुरु के पास पहुँचना है।”

सुग्गी परी ने कहा, “अब तुम मेरे पति हो, इसलिए जहाँ तुम जाओ, मुझे भी साथ ले चलो।”

सुग्गी परी को साथ ले राजकुमार मोती परी के पास आया। मोती परी से भी जब उसने वापस जाने की बात कही तो मोती परी ने कहा, “आप मेरे पति हैं, इसलिए मैं भी आपके साथ चलूँगी।”

मोती परी को भी साथ ले राजकुमार हीरा परी के पास आया। उससे भी राजकुमार ने वापस जाने की बात बताई तो उसने भी साथ चलने के लिए आग्रह किया। उसे भी साथ लेकर राजकुमार स्वर्ण परी के पास आया। अन्य परियों की तरह स्वर्ण परी ने भी साथ चलने का आग्रह किया।

अंत में राजकुमार इन सबको लेकर चाँदी परी के कमरे में आया। पाँचों परियों को सामने खड़ी करके राजकुमार ने कहा, “मैं अपने पिता के स्वप्न-वृक्ष की खोज करते-करते तुम सबके पास आया हूँ। तुम पाँचों परी मुझे अपना पति बना चुकी हो। मैं भी तुम सबको पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूँ। मेरे पास यहाँ ठहरने के लिए अधिक समय नहीं है। इसलिए तुब सबसे पहले अपने-अपने गुणों का प्रदर्शन करके मुझे दिखाओ, फिर मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो जाओ।”

फिर क्या था! एक ही क्षण में चाँदी परी स्वप्न-वृक्ष की जड़ और तना बन गई। दूसरे क्षण में स्वर्ण परी उसकी शाखाएँ बन गई। तीसरे क्षण में हीरा परी सोने की शाखाओं में पत्तियाँ बनकर लग गई। इसके बाद मोती परी स्वप्न वृक्ष की शाखाओं में फल के रूप में मोती के गुच्छे बन-बनकर लटक गई।

जब स्वप्न-वृक्ष बनकर तैयार हो गया तो अंत में सुग्गी परी उड़कर आई और एक शाखा पर बैठ गई। पाँचों परियों के गुण-प्रदर्शन से राजकुमार बहुत ही प्रसन्न हुआ और उन्हें साथ लेकर गुरु जी के पास पहुँचा।

गुरु जी ने राजकुमार को पाँचों परियों के साथ देखा तो बड़े प्रसन्न हुए। राजकुमार की सफलता पर बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “बेटा, देव-मंदिर से तुम्हें जो मणि मिली थी, उसे ले जाकर वहीं रख आओ। मणि का उपयोग बस इतना ही था। देव की मणि होने से ही इन परियों के पास तक तुम जा सके और उसी के कारण इन परियों ने तुम्हें अपना पति चुन लिया। अब तुम बड़ी ख़ुशी से पिता के पास जाकर उनकी अभिलाषा पूरी कर सकते हो। लेकिन मेरी इच्छा है कि स्वप्न-वृक्ष का रूप एक बार मैं भी देखूँ।”

छोटे राजकुमार ने उसी क्षण पाँचों परियों को आज्ञा देकर स्वप्न-वृक्ष तैयार करने को कहा। दूसरे ही क्षण परियों ने मिलकर स्वप्न-वृक्ष तैयार कर दिया। साधू ऐसे आश्चर्यजनक वृक्ष को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ और राजकुमार को आशीर्वाद देकर बोला, “बेटा, अवश्य तुम्हारे पिता तुम्हारे पराक्रम से प्रसन्न होंगे। लो, यह लाठी और रस्सा मैं तुम्हें अपनी ओर से देता हूँ। यदि कोई शत्रु तुम से इन परियों को छीनना चाहेगा तो तुम इस लाठी और रस्से की सहायता से इन्हें वापस मँगा सकोगे।”

साधू को प्रणाम कर छोटा राजकुमार परियों और रस्से-लाठी को ले दूसरे साधू के पास पहुँचा। उस साधू ने राजकुमार को आशीर्वाद देकर सफलता के लिए बधाई दी और कहा, “बेटा, तुम इस स्वप्न-वृक्ष का प्रदर्शन करके मुझे भी दिखाओ।”

राजकुमार ने जब स्वप्न-वृक्ष का रूप परियों द्वारा तैयार कराया तो साधू के मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि इतने दिन मुझे तपस्या करते हो गए किंतु इतनी महान वस्तु नहीं प्राप्त कर सका। अतः किसी तरह प्रलोभन देकर राजकुमार से इन परियों को हथियाना चाहिए।

यह सोचकर साधू ने राजकुमार से कहा, “बेटा, परियों को साथ ले जाकर तू क्या करेगा? ले, मैं तुझे एक जादू का कटोरा देता हूँ। इसमें करामात यह है कि इससे तू जब भी कहेगा, स्वर्गिक भोजन मिल जाएगा। परियों को मेरे पास छोड़ जा।”

राजकुमार ने कहा, “महाराज, स्वप्न-वृक्ष को पाने के लिए तो मैं इतने दिनों तक चक्कर मारता रहा। अब किसी तरह से इन्हें प्राप्त करके पिता के पास ले जाना चाहता था तो आपने इन्हें अपने पास रखने की बात कह दी।”

परंतु साधू लोभ के वश में इतना अधिक आ चुका था कि राजकुमार की कुछ भी बात सुनने को तैयार न हुआ। आख़िर बेचारा राजकुमार क्या करता! पाँचों परियों को वहीं छोड़ चल पड़ा। रस्सा, लाठी और कटोरा उसके पास थे ही। परियों को साधू के पास छोड़ देने की व्यथा को वह सह नहीं पा रहा था। इसलिए उसने रस्से और डंडे को आज्ञा दी कि साधू से तुरंत पाँचों परियाँ छीन लाओ।

राजकुमार को कहते देर नहीं हुई। रस्सा और डंडा साधू की कुटी पर जा डटे और साधू को आवाज देकर बोले, “साधू जी, हम तुम्हारे गुरु के दिए राजकुमार के सहायक हैं। भलाई इसी में है कि पाँचों परियाँ वापस कर दो, नहीं तो हमें बरजोरी उन्हें ले जाना होगा।”

साधू रस्से और डंडे को देखते ही काँप उठा। उसने पाँचों परियों को उनके हवाले कर दिया।

जब परियाँ वापस आ गईं तो छोटा राजकुमार उन्हें साथ लेकर उस साधू के पास पहुँचा, जो कि छह महीने सोता और छह महीने जागता था।

इस साधू ने भी छोटे राजकुमार को सफलता पर बधाई और आशीर्वाद दिया और पाँचों परियों द्वारा स्वप्न-वृक्ष का बनना देखना चाहा।

परियों ने दो क्षणों में ही स्वप्न-वृक्ष बनाकर तैयार कर दिया। यह सारा कौतुक देखकर उसके मन में भी प्रलोभन उत्पन्न हुआ। अतः उसने भी राजकुमार से कहा, “बेटा, तुम इन परियों को मेरे पास छोड़ दो। इनके बदले में मैं तुम्हें यह कटोरा देता हूँ। इसमें यह करामात है कि तुम जब भी चाहो, इससे लाखों लोगों के लिए स्वर्गिक भोजन प्राप्त कर सकते हो।”

यहाँ भी राजकुमार को परियों को साधू के पास छोड़कर जाना पड़ा। कटोरा, लाठी और रस्सी उसके पास थे। कुछ दूर जाने के बाद राजकुमार ने फिर रस्से और डंडे को आज्ञा देकर कहा, “तुरंत जाकर साधू के यहाँ से परियों को वापस लाओ, नहीं तो मैं आगे नहीं जाऊँगा।”

रस्से और डंडे ने आज्ञा पाते ही साधू की कुटिया जा घेरी। यह साधू दूसरे साधू की मरम्मत की कहानी सुन चुका था। इसलिए रस्से और डंडे को देखते ही इसने परियों को उनके हवाले कर दिया।

अब दो वर्ष पूरे होने में कुछ ही दिन रह गए थे। छोटा राजकुमार परियों को साथ लेकर वापस उसी कुएँ पर पहुँचा जिसमें उसके चारों भाइयों ने उसे धकेल दिया था।

थोड़ी देर सुस्ताने और हाथ-मुँह धोकर पानी पीने के विचार से राजकुमार कुएँ के पास बैठ गया। उसे बैठे देर नहीं हुई थी कि एक ओर से उसके चारों भाई घोड़े पर सवार आते दिखाई दिए।

शीघ्र ही घोड़ा दौड़ाकर चारों राजकुमार भी कुएँ पर आ गए। उन चारों ने छोटे राजकुमार से पूछा, “कहो भाई, तुम कहाँ से लौटे हो? पिताजी के लिए स्वप्न-वृक्ष लाए हो या नहीं?”

छोटा राजकुमार सीधा-सादा था। वह छली नहीं था। उसने चारों भाइयों को अपनी सारी राम-कहानी कह सुनाई।

चारों भाइयों ने फिर छोटे राजकुमार को कुएँ में धकेल दिया और पाँचों परियों को साथ लेकर पिता के पास जा पहुँचे। किंतु परियाँ उनकी आज्ञा से स्वप्न-वृक्ष का प्रदर्शन करने को तैयार न थीं।

घर पहुँचते ही चारों राजकुमारों ने कहा, “पिताजी, हम एक बड़े ही विशाल नगर से कई लाख रुपया व्यय करके एक बड़े कुशल सुनार से स्वप्न-वृक्ष तैयार कराकर लाए हैं। आइए, हम आपको स्वप्न-वृक्ष दिखाते हैं।”

परंतु राजा ने कहा, “नहीं, अभी दो वर्ष पूरे होने में कल का दिन और शेष है। कल तक छोटे राजकुमार की भी प्रतीक्षा कर लो।”

स्वप्न-वृक्ष के प्रदर्शन का समय दूसरे दिन रखा गया।

उधर छोटा राजकुमार जब कुएँ में गिरा तड़प रहा था तो फिर वही चरवाहे उस कुएँ में पानी पीने आए, जिन्होंने उसे पिछली बार निकाला था।

इस बार भी चरवाहों ने छोटे राजकुमार को कुएँ से निकालकर पूछा, “भाई, तुम कौन हो और क्यों मरना चाहते हो? एक बार तुम और भी इसी कुएँ में गिरे थे तो कहा था कि भाइयों ने गिरा दिया। इस बार तुम्हें किसने गिराया?”

छोटे राजकुमार ने कहा, “भाइयों, इस बार भी मेरे चारों भाइयों ने मुझे इस कुएँ में धकेल दिया। मैं आप सबका बहुत आभारी हूँ। इस समय मैं आपकी और कोई सेवा नहीं कर सकता। किंतु पेट भरकर स्वर्गिक भोजन अवश्य कराऊँगा। आप सब अपने सभी साथी-संबंधियों को बुलाकर ले आइए। मैं सबको बहुत आनंदमय भोजन खिलाऊँगा।”

देखते-ही-देखते चरवाहों ने वहाँ पर सैकड़ों साथी-संबंधियों को इकट्ठा कर लिया। राजकुमार ने साधू के कटोरे को सबके सामने स्वर्गिक भोजन परोसने के लिए कहा।

दूसरे ही क्षण सभी के सामने स्वर्गिक भोजन आ गया। सभी चरवाहे और उनके साथी-संबंधी ख़ूब अच्छी तरह भोजन करके ख़ुशी-ख़ुशी घर गए।

छोटा राजकुमार भी लाठी, रस्सा और कटोरा लेकर पिता के पास आया। पिता को प्रणाम करके छोटे राजकुमार ने सारी आपबीती कह सुनाई।

चारों राजकुमारों के अत्याचार के बारे में सुनकर राजा बड़े क्रोधित हुए। किंतु फ़ैसला दूसरे दिन स्वप्न-वृक्ष के प्रदर्शन के बाद सुनाने को छोड़ दिया।

दूसरे दिन सैकड़ों अतिथि पूरी सजावट के साथ राजमहल में इकट्ठे हुए। राजमहल भी भिन्न-भिन्न प्रकार की सजावट से जगमगा रहा था।

राजा ने सबसे पहले चारों राजकुमारों को अपने स्वप्न-वृक्ष का प्रदर्शन करने को कहा।

चारों राजकुमारों ने लाखों रुपए से तैयार कराया स्वप्न-वृक्ष राजा के सामने लाकर रख दिया। उस वृक्ष की जड़ें और तना चाँदी के बने थे, शाखाएँ सोने की और पत्तियाँ हीरों की लगी थीं। फल के रूप में मोतियों के गुच्छे भी लटक रहे थे।

राजा ने कहा, “किंतु इस वृक्ष पर सुग्गी कहाँ बैठी है जिसके प्रसन्न होने से वृक्ष हरा-भरा रहे और उदास होने से मुरझा जाए।” चारों राजकुमारों ने असमर्थता प्रकट की।

राजा ने कहा, “मैंने स्वप्न-वृक्ष में जड़, तना, शाखाएँ, पत्तियाँ और फल क्रम से बनते देखे थे, तुम्हारा यह वृक्ष बना-बनाया है। इसलिए भी इसे मैं स्वप्न-वृक्ष मानने को तैयार नहीं। अब छोटे राजकुमार द्वारा लाए गए वृक्ष का प्रदर्शन होगा।”

छोटे राजकुमार ने पिता की आज्ञा पाते ही परियों से स्वप्न-वृक्ष का प्रदर्शन करने को कहा।

दूसरे ही क्षण चाँदी परी ने चाँदी की जड़ और तना बना दिया। इसके बाद स्वर्ण परी ने तने में सोने की शाखाएँ लगा दीं।

सभी दर्शक इस अत्यंत ही आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर स्तंभित हो रहे थे कि हीरा परी ने सोने की शाखाओं में हीरे की पत्तियाँ लगा दीं। अंत में मोती परी ने वृक्ष में फलों के रूप में मोतियों के गुच्छे लटका दिए। जब वृक्ष तैयार हो गया तो सुग्गी परी उड़कर आई और प्रसन्नता के साथ शाखा पर बैठ गई। उसकी प्रसन्नता से सारा वृक्ष हरा-भरा हो उठा। इसी बीच चारों राजकुमारों ने शोर मचाकर प्रदर्शन में बाधा डालने की कोशिश की तो सुग्गी कुछ उदास हुई जिससे स्वप्न-वृक्ष मुरझा गया।

यह सब देख सभी उपस्थित लोग छोटे राजकुमार को ‘धन्य-धन्य’ कहने लगे। सब लोगों के सामने ही राजा ने भी घोषणा कर दी कि आज से छोटा राजकुमार हमारा विशेष प्रेम-पात्र रहेगा और मेरे राज्य का उत्तराधिकारी भी यही होगा। चारों राजकुमारों को केवल जीवन-निर्वाह के लिए भत्ता मात्र मिलेगा।

इसके बाद छोटे राजकुमार ने सारी प्रजा को साधू के कटोरे की सहायता से स्वर्गिक भोजन खिलाया। उसी दिन से छोटे राजकुमार को सारे राज्य में महात्मा की तरह आदर मिलने लगा।

 

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 85)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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