एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत ग़रीब थी और जैसे-तैसे अपना भरण-पोषण करती थी। एक बार गाँव में एक मेला लगने वाला था। बुढ़िया ने सोचा कि यदि मैं इस मेले में अच्छी-अच्छी मिठाइयाँ बनाकर बेचूँ तो अच्छी आमदनी होगी और कुछ दिन आराम से कट जाएँगे। यह विचार करके बुढ़िया ने साहूकार से उधार लिया और सामान ख़रीदकर ढेर सारी अच्छी-अच्छी मिठाइयाँ बना डालीं।
मिठाइयाँ बनाने के बाद बुढ़िया ने विचार किया कि नदी में जाकर नहा लूँ फिर दो रोटियाँ खा लूँ, उसके बाद मिठाइयाँ लेकर मेले में चली जाऊँ। इधर बुढ़िया नदी में नहाने गई और उधर एक दुष्ट मेढ़ा बुढ़िया की झोपड़ी में घुस गया। उसने झोपड़ी में अच्छी-अच्छी मिठाइयाँ रखी देखीं तो उसके मुँह में पानी आ गया। उसने कुछ मिठाइयाँ खा लीं। तभी बुढ़िया नहाकर लौट आई। उसे अपनी झोपड़ी में किसी की आहट मिली तो वह डर गई।
‘मेरी झोपड़ी में कौन है? बाहर निकल नहीं तो मैं बहुत मारूँगी।’ बुढ़िया ने साहस करके चिल्लाकर कहा।
‘तू मुझे क्या मारेगी बुढ़िया? तू मेरी ताक़त के बारे में नहीं जानती है। मैं हाथी के दोनों दाँत तोड़ सकता हूँ।
मैं शेर की मूँछें उखाड़ सकता हूँ और साँप को रस्सी बनाकर उससे कुएँ से पानी निकाल सकता हूँ। चल, अब भाग जा यहाँ से।’ दुष्ट मेढ़े ने बुढ़िया को डराते हुए कहा।
मेढ़े की बात सुनकर बुढ़िया डर गई। उसे यह समझ में नहीं आया कि यह मेढ़ा है, उसे लगा कि उसकी झोपड़ी में कोई राक्षस घुस गया है। बुढ़िया ने गाँव वालों से मदद माँगा किंतु जो भी जाता उसे मेढ़ा डींगें हाँककर डरा देता। निराश होकर बुढ़िया मदद माँगने दूसरे गाँव चली। रास्ते में उसे एक हाथी मिला।
‘क्यों बुढ़िया, दुखी क्यों हो?’ हाथी ने बुढ़िया से पूछा।
‘मैंने पकाई ढेर मिठाई, जाने कैसी आफ़त आई इक दानव ने हड़प ली लेकिन, मेरी सारी की सारी मिठाई।’ बुढ़िया ने हाथी से कहा।
हें? ऐसा है तो चलो, अभी मैं उस राक्षस को भगा देता हूँ।’ कहता हुआ हाथी बुढ़िया के साथ उसकी झोपड़ी के पास पहुँचा।
‘कौन है? बाहर निकल! नहीं तो मैं तुझे सूँड़ से पकड़कर चीर दूँगा।’ हाथी ने मेढ़े को ललकारा।
मेढ़ा था चालाक। उसने पास ही रखा एक ख़ाली घड़ा उठाया। और घड़े के मुँह में सिर डालकर गूँजती हुई आवाज़ में बोला, ‘तू मुझे क्या मारेगा हाथी? तू मेरी ताक़त के बारे में नहीं जानता है। मैं तेरे दोनों दाँत तोड़ सकता हूँ। मैं शेर की मूँछें उखाड़ सकता हूँ और साँप को रस्सी बनाकर उससे कुएँ से पानी निकाल सकता हूँ। चल, अब भाग जा यहाँ से।’
हाथी ने मेढ़े की भयानक आवाज़ सुनी तो वह डर गया। उसे लगा कि यदि इस राक्षस ने मेरे दोनों दाँत उखाड़ दिए तो मैं पेड़ों को कैसे हिलाऊँगा? नहीं, इससे उलझना ठीक नहीं है। यह सोचकर हाथी वहाँ से भाग खड़ा हुआ। बेचारी बुढ़िया एक बार फिर दूसरे गाँव की ओर चल पड़ी।
रास्ते में उसे एक शेर मिला।
‘क्यों बुढ़िया, दुखी क्यों हो?’ शेर ने बुढ़िया से पूछा।
‘मैंने पकाई ढेर मिठाई, जाने कैसी आफ़त आई इक दानव ने हड़प ली लेकिन, मेरी सारी की सारी मिठाई।
दानव भगाने हाथी लाई, हाथी की भी चल न पाई।’ बुढ़िया ने शेर से कहा।
‘हैं? ऐसा है तो चलो, अभी मैं उस राक्षस को भगा देता हूँ।’ कहता हुआ शेर बुढ़िया के साथ उसकी झोपड़ी के पास पहुँचा।
‘कौन है? बाहर निकल! नहीं तो मैं तुझे खा जाऊँगा।’ शेर ने मेढ़े को ललकारा।
मेढ़ा ने घड़े के मुँह में सिर डालकर गूँजती हुई आवाज़ में कहा, ‘तू मुझे क्या मारेगा शेर? तू मेरी ताक़त के बारे में नहीं जानता है। मैं तेरी मूँछें उखाड़ सकता हूँ और साँप को रस्सी बनाकर उससे कुएँ से पानी निकाल सकता हूँ। चल, अब भाग जा यहाँ से।’
शेर ने मेढ़े की भयानक आवाज़ सुनी तो वह डर गया। उसने सोचा कि यदि इस राक्षस ने मेरी मूँछें उखाड़ दीं तो फिर भला कौन मुझसे डरेगा? कौन मुझे राजा मानेगा? नहीं, इससे उलझना ठीक नहीं है। यह सोचकर शेर भी भाग खड़ा हुआ।
बुढ़िया एक बार फिर मदद माँगने दूसरे गाँव की ओर चली।
इस बार रास्ते में उसे साँप मिला।
‘क्यों बुढ़िया, दुखी क्यों हो?’ साँप ने बुढ़िया से पूछा।
‘मैंने पकाई ढेर मिठाई, जाने कैसी आफ़त आई इक दानव ने हड़प ली लेकिन, मेरी सारी की सारी मिठाई।
दानव भगाने हाथी लाई, हाथी की भी चल न पाई।
फिर मैं जा, इक शेर को लाई, उसने भी थी दुम दबाई।’ बुढ़िया ने साँप से कहा।
‘हैं? ऐसा है तो चलो, अभी मैं उस राक्षस को भगा देता हूँ।’ कहता हुआ साँप लहराता हुआ बुढ़िया के साथ उसकी झोपड़ी के पास पहुँचा।
‘कौन है? बाहर निकल! नहीं तो मैं तुझे डँस लूँगा।’ साँप ने मेढ़े को ललकारा।
मेढ़ा ने घड़े के मुँह में सिर डालकर गूँजती हुई आवाज़ में कहा, ‘तू मुझे क्या डँसेगा, साँप? तू मेरी ताक़त के बारे में नहीं जानता है। मैं तो तुझे रस्सी बनाकर उससे कुएँ से पानी निकाल सकता हूँ। चल, अब भाग जा यहाँ से।’
साँप ने मेढ़े की भयानक आवाज़ सुनी तो वह डर गया। उसने सोचा कि यदि इस राक्षस ने यदि मुझे रस्सी बनाकर कुएँ से पानी निकाला तो मेरे प्राण ही निकल जाएँगे। नहीं, इससे उलझना ठीक नहीं है। यह सोचकर साँप भी भाग खड़ा हुआ।
अब बुढ़िया बहुत परेशान हुई। उसे लगा कि वह दूसरे गाँव तक जाएगी और यदि वहाँ के लोगों ने भी मदद नहीं की तो जाना और आना ही हाथ आएगा। यदि मिठाई नहीं बेच पाई तो न तो पैसे मिलेंगे और न साहूकार का उधार चुकता कर सकूँगी। फिर साहूकार मेरी झोपड़ी हड़प लेगा और मैं बेघर हो जाऊँगी।
इस सारी मुसीबत की जड़ यह राक्षस है। बुढ़िया ने सोचा और उसे उस राक्षस रूपी मेढ़े पर क्रोध आने लगा। उसने आव देखा न ताव और एक मोटा-सा डंडा उठाकर अपनी झोपड़ी में घुस गई। जैसे ही उसे मेढ़ा दिखाई दिया उसने मेढ़े पर दनादन-दनादन डंडे बरसाने शुरू कर दिए। दस-बारह डंडे खाकर ही मेढ़े के प्राण-पखेरू उड़ गए।
मेढ़े के मरने के बाद बुढ़िया ने बची हुई मिठाइयाँ समेटीं और उन्हें मेले में बेचने निकल पड़ी। मेले में पहुँचकर वह मिठाइयाँ बेचती जाती और गाना गाती जाती—
मैंने पकाई ढेर मिठाई, जाने कैसी आफ़त आई
इक दानव ने हड़प ली लेकिन, मेरी सारी की सारी मिठाई।
दानव भगाने हाथी लाई, हाथी की भी चल न पाई।
फिर मैं जा, इक शेर को लाई, उसने भी थी दुम दबाई।
फिर इक साँप भी आया लेकिन चली न उसकी हिम्मत, भाई।
इसीलिए कहती हूँ सुन लो! जो करना हो ख़ुद ही करना,
नहीं किसी से कभी भी डरना...
लोग उसका गाना सुनते रहते और उसके गाने से प्रभावित होकर दूने दाम में उसकी मिठाइयाँ ख़रीदते रहे। इस प्रकार बुढ़िया के साहस ने दुष्ट मेढ़े से उसे बचा लिया और उसे घाटा भी नहीं होने दिया।
ek gaanv mein ek buDhiya rahti thi. wo bahut gharib thi aur jaise taise apna bharan poshan karti thi. ek baar gaanv mein ek mela lagne vala tha. buDhiya ne socha ki yadi main is mele mein achchhi achchhi mithaiyan banakar benchun to achchhi amdani hogi aur kuch din aram se kat jayenge. ye vichar karke buDhiya ne sahukar se udhaar liya aur saman kharid kar Dher sari achchhi achchhi mithaiyan bana Dalin.
mithaiyan banane ke baad buDhiya ne vichar kiya ki nadi mein jakar nha loon phir do rotiyan kha loon, uske baad mithaiyan lekar mele mein chali jaun. idhar buDhiya nadi mein nahane gai aur udhar ek dusht meDha buDhiya ki jhopDi mein ghus gaya. usne jhopDi mein achchhi achchhi mithaiyan rakhi dekhin to uske munh mein pani aa gaya. usne kuch mithaiyan kha leen. tabhi buDhiya nha kar laut aai. use apni jhopDi mein kisi ki aahat mili to wo Dar gai.
‘meri jhopDi mein kaun hai? bahar nikal nahin to main bahut marungi. ’ buDhiya ne sahas karke chillakar kaha.
‘tu mujhe kya maregi buDhiya? tu meri taqat ke bare mein nahin janti hai. main hathi ke donon daant toD sakta hoon.
main sher ki munchhen ukhaaD sakta hoon aur saanp ko rassi banakar usse kuen se pani nikal sakta hoon. chal, ab bhaag ja yahan se. ’ dusht meDhe ne buDhiya ko Darate hue kaha.
meDhe ki baat sunkar buDhiya Dar gai. use ye samajh mein nahin aaya ki ye meDha hai, use laga ki uski jhopDi mein koi rakshas ghus gaya hai. buDhiya ne gaanv valon se madad manga kintu jo bhi jata use meDha Dingen hankakar Dara deta. nirash hokar buDhiya madad mangne dusre gaanv chali. raste mein use ek hathi mila.
‘kyon buDhiya, dukhi kyon ho?’ hathi ne buDhiya se puchha.
‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai. ’ buDhiya ne hathi se kaha.
hen? aisa hai to chalo, abhi main us rakshas ko bhaga deta hoon. ’ kahta hua hathi buDhiya ke saath uski jhopDi ke paas pahuncha.
‘kaun hai? bahar nikal! nahin to main tujhe soonD se pakaD kar cheer dunga. ’ hathi ne meDhe ko lalkara.
meDha tha chalak. usne paas hi rakha ek khali ghaDa uthaya. aur ghaDe ke munh mein sir Dalkar gunjti hui avaz mein bola, ‘tu mujhe kya marega hathi? tu meri taqat ke bare mein nahin janta hai. main tere donon daant toD sakta hoon. main sher ki munchhen ukhaaD sakta hoon aur saanp ko rassi banakar usse kuen se pani nikal sakta hoon. chal, ab bhaag ja yahan se. ’
hathi ne meDhe ki bhayanak avaz suni to wo Dar gaya. use laga ki yadi is rakshas ne mere donon daant ukhaaD diye to main peDon ko kaise hilaunga? nahin, isse ulajhna theek nahin hai. ye sochkar hathi vahan se bhaag khaDa hua. bechari buDhiya ek baar phir dusre gaanv ki or chal paDi.
raste mein use ek sher mila.
‘kyon buDhiya, dukhi kyon ho?’ sher ne buDhiya se puchha.
‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai.
danav bhagane hathi lai, hathi ki bhi chal na pai. ’ buDhiya ne sher se kaha.
‘hain? aisa hai to chalo, abhi main us rakshas ko bhaga deta hoon. ’ kahta hua sher buDhiya ke saath uski jhopDi ke paas pahuncha.
‘kaun hai? bahar nikal! nahin to main tujhe kha jaunga. ’ sher ne meDhe ko lalkara.
meDha ne ghaDe ke munh mein sir Dalkar gunjti hui avaz mein kaha, ‘tu mujhe kya marega sher? tu meri taqat ke bare mein nahin janta hai. main teri munchhen ukhaaD sakta hoon aur saanp ko rassi banakar usse kuen se pani nikal sakta hoon. chal, ab bhaag ja yahan se. ’
sher ne meDhe ki bhayanak avaz suni to wo Dar gaya. usne socha ki yadi is rakshas ne meri munchhen ukhaaD deen to phir bhala kaun mujhse Darega? kaun mujhe raja manega? nahin, isse ulajhna theek nahin hai. ye sochkar sher bhi bhaag khaDa hua.
buDhiya ek baar phir madad mangne dusre gaanv ki or chali.
is baar raste mein use saanp mila.
‘kyon buDhiya, dukhi kyon ho?’ saanp ne buDhiya se puchha.
‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai.
danav bhagane hathi lai, hathi ki bhi chal na pai.
phir main ja, ik sher ko lai, usne bhi thi dum dabai. ’ buDhiya ne saanp se kaha.
‘hain? aisa hai to chalo, abhi main us rakshas ko bhaga deta hoon. ’ kahta hua saanp lahrata hua buDhiya ke saath uski jhopDi ke paas pahuncha.
‘kaun hai? bahar nikal! nahin to main tujhe Dans lunga. ’ saanp ne meDhe ko lalkara.
meDha ne ghaDe ke munh mein sir Dalkar gunjti hui avaz mein kaha, ‘tu mujhe kya Dansega, saanp? tu meri taqat ke bare mein nahin janta hai. main to tujhe rassi banakar usse kuen se pani nikal sakta hoon. chal, ab bhaag ja yahan se. ’
saanp ne meDhe ki bhayanak avaz suni to wo Dar gaya. usne socha ki yadi is rakshas ne yadi mujhe rassi banakar kuen se pani nikala to mere praan hi nikal jayenge. nahin, isse ulajhna theek nahin hai. ye sochkar saanp bhi bhaag khaDa hua.
ab buDhiya bahut pareshan hui. use laga ki wo dusre gaanv tak jayegi aur yadi vahan ke logon ne bhi madad nahin ki to jana aur aana hi haath ayega. yadi mithai nahin bech pai to na to paise milenge aur na sahukar ka udhaar chukta kar sakungi. phir sahukar meri jhopDi haDap lega aur main beghar ho jaungi.
is sari musibat ki jaD ye rakshas hai. buDhiya ne socha aur use us rakshas rupi meDhe par krodh aane laga. usne aav dekha na taav aur ek mota sa DanDa utha kar apni jhopDi mein ghus gai. jaise hi use meDha dikhai diya usne meDhe par danadan danadan DanDe barsane shuru kar diye. das barah DanDe khakar hi meDhe ke praan pakheru uD ge.
meDhe ke marne ke baad buDhiya ne bachi hui mithaiyan sametin aur unhen mele mein bechne nikal paDi. mele mein pahunchakar wo mithaiyan bechti jati aur gana gati jati—
mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai
ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai.
danav bhagane hathi lai, hathi ki bhi chal na pai.
phir main ja, ik sher ko lai, usne bhi thi dum dabai.
phir ik saanp bhi aaya lekin chali na uski himmat, bhai.
isiliye kahti hoon sun lo! jo karna ho khud hi karna,
nahin kisi se kabhi bhi Darna. . .
log uska gana sunte rahte aur uske gane se prabhavit hokar dune daam mein uski mithaiyan kharidte rahe. is prakar buDhiya ke sahas ne dusht meDhe se use bacha liya aur use ghata bhi nahin hone diya.
ek gaanv mein ek buDhiya rahti thi. wo bahut gharib thi aur jaise taise apna bharan poshan karti thi. ek baar gaanv mein ek mela lagne vala tha. buDhiya ne socha ki yadi main is mele mein achchhi achchhi mithaiyan banakar benchun to achchhi amdani hogi aur kuch din aram se kat jayenge. ye vichar karke buDhiya ne sahukar se udhaar liya aur saman kharid kar Dher sari achchhi achchhi mithaiyan bana Dalin.
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‘kyon buDhiya, dukhi kyon ho?’ hathi ne buDhiya se puchha.
‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai. ’ buDhiya ne hathi se kaha.
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‘kyon buDhiya, dukhi kyon ho?’ sher ne buDhiya se puchha.
‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai.
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‘mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai ik danav ne haDap li lekin, meri sari ki sari mithai.
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phir main ja, ik sher ko lai, usne bhi thi dum dabai. ’ buDhiya ne saanp se kaha.
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mainne pakai Dher mithai, jane kaisi aafat aai
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danav bhagane hathi lai, hathi ki bhi chal na pai.
phir main ja, ik sher ko lai, usne bhi thi dum dabai.
phir ik saanp bhi aaya lekin chali na uski himmat, bhai.
isiliye kahti hoon sun lo! jo karna ho khud hi karna,
nahin kisi se kabhi bhi Darna. . .
log uska gana sunte rahte aur uske gane se prabhavit hokar dune daam mein uski mithaiyan kharidte rahe. is prakar buDhiya ke sahas ne dusht meDhe se use bacha liya aur use ghata bhi nahin hone diya.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 76)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।