चालाक लोमड़ी
एक गाँव में एक बूढ़ा और उसकी पत्नी रहते थे। बूढ़ा रोज़ खेत में काम करने जाता और उसकी पत्नी उसके लिए भोजन पहुँचाया करती थी। उसकी पत्नी की आँखें कमज़ोर तो थीं ही साथ ही दिमाग़ भी थोड़ा-सा कमज़ोर था। रास्ते में रहता था एक चतुर सियार। वह रोज़ बुढ़िया को भोजन ले जाते हुए देखता था। एक दिन उसने सोचा कि क्यों न बुढ़िया को मूर्ख बना कर वह भोजन स्वयं ही खाया जाए। ऐसा सोच एक दिन उसने उस बुढ़िया को रास्ते में रोका। फिर उससे अपनी पूँछ पकड़ने को कहा। बुढ़िया बेचारी दिमाग़ की कमज़ोर तो थी ही, सियार का आशय नहीं समझ पाई और पकड़ ली उसकी पूँछ। इतने में उस सियार ने उसका सारा भोजन चट कर लिया।
अब वह सियार प्रतिदिन यही करने लगा। बुढ़िया खाली बर्तन लेकर बूढ़े के पास जाती। इससे बूढ़ा उस पर बहुत नाराज रहने लगा। बुढ़िया से पूछा तो उसने सारी बातें कह सुनाईं। सारा माज़रा जान कर बूढ़े ने एक युक्ति सोची और बुढ़िया को अपने कपड़े पहना कर खेत भेज दिया और स्वयं बुढ़िया के कपड़े पहन थोड़ी देर बाद भोजन लेकर खेत की ओर चला। रोज़ की तरह सियार रास्ते में ताक पर था। बूढ़े को देख कर उसने फिर उससे अपनी पूँछ पकड़ने को कहा। बूढ़े ने उसकी पूँछ जम कर पकड़ ली तो छोड़ने का नाम ही नहीं लिया। अब सियार परेशान! बूढ़े ने छुरी निकाल कर उसकी पूँछ काट दी।
तब से उस सियार का नाम पूँछ कटा सियार हो गया।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 77)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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