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लँगड़ा भूत

langDa bhoot

सुकमा नाम का एक बहुत छोटा-सा गाँव था। उस गाँव में एक पीपल का पेड़ था। उस पीपल के पेड़ पर एक भूत रहता था। भूत था लँगड़ा। वह लँगड़ा भूत दुष्ट प्रकृति का था। उसे मनुष्यों को मारकर खाने में आनंद आता था। लेकिन वह सुकमा गाँव के लोगों को मारकर नहीं खाता था। उसे डर था कि वह यदि सुकमा के लागों को मारकर खाएगा तो वे उस पीपल के पेड़ को काट देंगे जिस पर उसका बसेरा है। इसलिए वह आस-पास के गाँवों में जाता और कोई मृतक मिलने पर किसी भी मनुष्य को मारकर खा लेता।

पीपल के पेड़ के पास एक किसान का घर था। किसान को पता नहीं था कि उसके घर के पास वाले पीपल के पेड़ पर लँगड़ा भूत रहता है। किसान की एक बेटी थी। बेटी का नाम था जतनी। जतनी बहुत सुंदर थी और गृहकार्य में दक्ष थी। जब जतनी विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।

एक दिन किसान जतनी के विवाह को लेकर अपनी पत्नी से चर्चा कर रहा था।

‘हमारी बेटी अब विवाह के योग्य हो गई है अब उसके हाथ पीलेकर देने चाहिए।’ जतनी की माँ ने जतनी के पिता से कहा।

‘तुम सच कहती हो लेकिन हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम जतनी के लिए कोई अच्छा वर पा सकें’ जतनी के पिता ने चिंतित होते हुए कहा।

‘हमारी बेटी इतनी सुंदर है कि कोई भी लड़का उसे अपनी पत्नी बनाना चाहेगा।’ जतनी की माँ ने गर्व से कहा।

‘सुंदरता भर से कुछ नहीं होता है, विवाह के लिए पैसे भी चाहिए, पैसे भी।’ जतनी के पिता ने अपनी बात दोहराई।

‘हमारी बेटी घरेलू कामों में कुशल है। वह जिस घर में जाएगी उस घर के दिन फिर जाएँगे।’ जतनी की माँ विश्वासपूर्वक बोली।

‘तुम्हारा तो दिमाग़ ख़राब है।’ जतनी का पिता झुँझलाकर बोला,’ अरी जतनी की माँ! ये सच है कि हमारी बेटी लाखों में एक है और इसीलिए मैं चाहता हूँ कि हमारी बेटी को कोई अच्छा-सा वर मिले लेकिन हमारी ऐसी क़िस्मत कहाँ?’

जतनी के माता-पिता इसी प्रकार बहुत देर तक जतनी के विवाह को लेकर विचार-विमर्श करते रहे। उस समय लँगड़ा भूत पीपल के पेड़ पर अपने डेरे में बैठा हुआ था। उसने जतनी के माता-पिता की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं। लँगड़े भूत को लगा कि जतनी सचमुच बहुत सुंदर है, उसे उसके योग्य वर मिलना चाहिए। फिर उसके मन में विचार उठा कि क्यों वह स्वयं जतनी से विवाह कर ले। यूँ भी सौ बरस हो चुके थे उसे अकेले रहते-रहते। उसे लगा कि यदि जतनी जैसी जीवन-संगिनी उसे मिल जाए तो उसके सूने जीवन में वसंत जाएगा।

लँगड़े भूत के मन में जैसे ही जतनी से विवाह करने का विचार आया वैसे ही उसने एक स्वस्थ, सुंदर युवक का वेश धारण किया और जतनी के घर का दरवाज़ा खटखटाने लगा।

‘कौन है?’ जतनी के पिता ने घर के भीतर से पूछा।

‘पाहुना।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।

‘क्या चाहिए?’ जतनी के पिता ने फिर पूछा।

‘पीने को एक लोटा पानी।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।

‘धातु के लोटे में पियोगे कि मिट्टी के लोटे में?’ जतनी के पिता ने पूछा।

‘मिट्टी के लोटे मैं।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘मिट्टी के लोटे में क्यों? धातु के लोटे में क्यों नहीं?’ जतनी के पिता ने फिर पूछा।

‘मिट्टी में लोटे का पानी अधिक ठंडा रहता है और पाहुना की प्यास ठंडे पानी से ही बुझती है।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।

लँगड़े भूत का उत्तर सुनकर जतनी का पिता बहुत प्रभावित हुआ और उसने झट से दरवाज़ा खोला। अपने सामने एक सुंदर, सुशील युवक को पाकर वह चकित रह गया। तब तक जतनी की माँ मिट्टी के लोटे में पानी भर लाई। लँगड़े भूत ने पानी पिया और जतनी की माँ को धन्यवाद दिया।

‘कहाँ से रहे हो और कहाँ जा रहे हो, बेटा?’ जतनी के पिता ने लँगड़े भूत के शिष्टाचार से प्रभावित होकर मधुर स्वर में पूछा।

‘महानदी के तट से रहा हूँ और नर्मदा किनारे जाऊँगा।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।

‘अरे इतनी दूर से रहे हो और इतनी दूर जाओगे?’ जतनी का पिता आश्चर्य से बोला।

‘काम-काज की तलाश में भटक रहा हूँ।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘ओह, तुम्हारे घर-परिवार में कौन-कौन हैं?’ जतनी की माँ ने पूछा।

‘कोई नहीं!' भूत ने कहा।

‘कोई नहीं?’ जतनी की माँ ने चकित होकर पूछा, ‘कोई तो होगा।’

‘मेरे माता-पिता महानदी की बाढ़ में डूबकर मर गए। होने को नाते-रिश्तेदार हैं लेकिन सब स्वार्थ के मीत हैं। मेरे पास कोई काम-काज नहीं था इसलिए सबने मुझे दुत्कार दिया। अब मुझे जहाँ भी काम मिल जाएगा वहाँ काम करूँगा, अपना घर बसाऊँगा और वहीं रह जाऊँगा। लौटकर वापस नहीं जाऊँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।

यह सुनकर जतनी का पिता बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली और घर बैठे एक योग्य युवक भेज दिया।

‘काम तो हमारे गाँव में भी मिल सकता है। तुम ऐसा करो कि हमारे गाँव के साहूकार के पास चले जाओ और उनको अपनी समस्या बताओ। वे तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे।’ जतनी के पिता ने कहा।

‘ठीक है। मैं साहूकार के पास जाता हूँ। यदि मुझे कोई काम मिल गया तो मैं यहीं रह जाऊँगा। यदि मैं आपके घर के पास उस पीपल के पेड़ के नीचे अपनी झोपड़ी बना लूँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी?’ लँगड़े भूत ने भोलेपन से पूछा।

‘अरे नहीं, भला मुझे कोई आपत्ति क्यों होने लगी? तुम पास में रहोगे तो हमें भी प्रसन्नता होगी।’ जतनी के पिता ने कहा।

इसके बाद लँगड़ा भूत साहूकार के पास गया। साहूकार ने उससे उसकी योग्यता पूछी।

‘तुम क्या काम कर सकते हो?’

‘मैं जीवित को मार सकता हूँ और मरे को जिला सकता हूँ।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।

‘क्या मतलब तुम्हारा?’ लँगड़े भूत का उत्तर सुनकर साहूकार चकराया।

‘मेरा मतलब है कि मैं फसल काट सकता हूँ और बीज से पौधे उगा सकता हूँ।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘बहुत बढ़िया! तुम खेती-किसानी कर सकते हो और बुद्धि में भी कम नहीं हो। मुझे तुम्हारे जैसा होनहार युवक चाहिए था।’ साहूकार ने कहा।

‘तो मेरी नौकरी पक्की?’

‘हाँ, पक्की।’ साहूकार ने कहा। फिर पूछा, ‘पगार कितनी लोगे?’

‘जितने में मैं और मेरी पत्नी आराम से रह सकें।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘हूँ! तो तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारे साथ है।’

‘अभी तो नहीं है मगर हो जाएगी यदि आप मेरी मदद करें तो!’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘मैं मदद करूँ? कैसी मदद?’ साहूकार ने पूछा।

‘जिस किसान ने मुझे आपके पास भेजा है, उस किसान की बेटी पर मैं मोहित हो गया हूँ। यदि आप किसान से कहकर उसकी बेटी के साथ मेरा विवाह करा दें तो मेरा जीवन सुखी हो जाए। किसान की बेटी का नाम है जतनी।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘ठीक है। तुम कुछ दिन काम करो। यदि मुझे लगा कि तुम जतनी के योग्य हो तो मैं तुम्हारा विवाह उसके साथ करा दूँगा।’ साहूकार ने आश्वासन दिया।

लँगड़े भूत के लिए कोई भी काम कठिन नहीं था। वह चुटकी बजाता, मंत्र फूँकता और काम हो जाता। साहूकार लँगड़े भूत के काम से अत्यंत प्रसन्न हुआ। उधर जतनी ने भी लँगड़े भूत को देखा तो उसे भी वह पसंद आया। जतनी को अब तक पता चल गया था कि उसके पिता पाहुना यानी लँगड़े भूत के साथ उसका विवाह करना चाहते हैं। यह कोई नहीं जानता था कि पाहुना कोई मनुष्य नहीं अपितु लँगड़ा भूत है।

एक दिन लँगड़े भूत ने साहूकार को उसका वचन याद दिलाया।

यदि मैं आपको जतनी के योग्य लगता हूँ तो मेरा उसके साथ विवाह करा दीजिए।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘ठीक है। तुम हर तरह से जतनी के योग्य हो। तुम इसी गाँव में रहोगे, यह भी अच्छी बात है क्योंकि जतनी अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। तुम्हारे यहाँ रहने से उन्हें भी सहारा मिलेगा।’ साहूकार ने कहा।

‘जतनी के माता-पिता मेरे माता-पिता के समान हैं। मैं उनका पूरा-पूरा रखूँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।

उचित समय देखकर साहूकार ने जतनी के पिता से जतनी और लँगड़े भूत विवाह के बारे में बात की। जतनी का पिता यह सोचकर और भी प्रसन्न हुआ कि जिस लड़के को वह जतनी का दूल्हा बनाना चाहता है उसकी सिफ़ारिश साहूकार भी कर रहा है। जतनी का पिता सहर्ष मान गया। शुभ मुहूर्त पर जतनी और लँगड़े भूत का विवाह हो गया। साहूकार ने लँगड़े भूत की झोपड़ी की जगह एक अच्छा घर बनवा दिया। उस घर में जतनी और लँगड़ा भूत सुखपूर्वक रहने लगे।

जतनी एक कुशल गृहणी सिद्ध हुई। वह घर की देख-भाल करती और लँगड़े भूत की सेवा करती। एक रात जतनी को लगा कि उसका पति रात को उठकर कहीं चला जाता है। पहले तो उसे लगा कि यह उसका भ्रम होगा। फिर दो-तीन रात उसने सोने का बहाना करके पता लगाया। उसने पाया कि उसका पति सचमुच रात को उठकर कहीं जाता है। उसे अपने पति का यह आचरण देखकर चिंता हुई।

‘आप रात को उठकर कहाँ जाते हैं?’ एक दिन उसने अपने पति से पूछ ही लिया।

‘तुम्हें कैसे पता कि मैं रात को कहीं जाता हूँ?’ लँगड़े भूत ने जतनी से पूछा। 'मैंने स्वयं देखा है।’ जतनी ने कहा।

‘मैं तुम्हें बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। बात यह है कि हमारे विवाह को तीन-चार साल होने को गए हैं और हमारा एक भी बच्चा नहीं हुआ है इसलिए मैं रात को उठकर अपने कुल देवता की पूजा करने जाता हूँ ताकि वे प्रसन्न होकर तुम्हारी गोद भर दें।’ लँगड़े भूत ने झूठ बोलते हुए कहा।

‘अरे, ऐसा है तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। मैं भी तुम्हारे कुल देवता की पूजा करूँगी।’ जतनी ने उत्साहपूर्वक कहा।

‘नहीं! तुम नहीं चल सकती हो। वे मेरे कुल देवता हैं।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘जब मेरा तुमसे विवाह हुआ है तो तुम्हारा कुल अब मेरा कुल है और तुम्हारे कुल देवता मेरे कुल देवता हैं। इसलिए मैं तो तुम्हारे साथ हर हाल में चलूँगी।’ जतनी ने हठ करते हुए कहा।

‘ठीक है, चलना।’ लँगड़े भूत ने जतनी की बात मान ली।

अगली रात जब लँगड़ा भूत उठा तो जतनी भी उठ बैठी। उसने पूजा की थाली सजाई और लँगड़े भूत के साथ हो ली। लँगड़ा भूत गाँव से निकलकर घने जंगल में जा पहुँचा। एक स्थान पर रुककर लँगड़े भूत ने कहा कि मैं कुल देवता का आह्वान करके उन्हें बुलाता हूँ तब तक तुम यहीं ठहरो।

‘इस भयानक जंगल में मुझे अकेली छोड़कर तुम कहीं मत जाओ।’ जतनी ने विनती की। उसे डर लग रहा था।

‘ऐसा करो कि तुम इस ऊँचे वट के वृक्ष पर चढ़कर बैठ जाओ। मेरे आने तक वहीं रुकना। नीचे मत उतरना।’ यह कहकर लगड़ा भूत अँधेरे में कहीं ग़ायब हो गया।

जतनी वट वृक्ष पर चढ़कर बैठ गई। जब बहुत देर तक उसका पति नहीं लौटा तो उसे चिंता सताने लगी। इतने में शेर के दहाड़ने की आवाज़ सुनाई दी। जतनी और डर गई। फिर उसे लगा कि कहीं शेर उसके पति को खा जाए। यह सोचते ही उसका डर दूर हो गया और वह झट से वृक्ष से नीचे उतरी और अपने पति को ढूँढ़ने लगी।

अभी वह कुछ दूर ही गई होगी कि लताओं की झुरमुट की दूसरी ओर उसे अपना पति दिखाई दिया। उसका पति ज़मीन में बैठकर मनुष्य का शव खा रहा था। यह दृश्य देखकर जतनी मूर्छित होते-होते बची। वह समझ गई कि उसका पति कोई मनुष्य नहीं अपितु एक भूत है। जतनी हड़बड़ा कर भागने को जैसे ही पलटी वैसे ही लंगडे भूत ने जतनी को देख लिया।

जतनी रुको! वह चिल्लाया, ‘मैं तुमको मारना नहीं चाहता था लेकिन अब तुमने मेरा असली रूप देख लिया है तो अब मैं तुम्हें मार डालूँगा जिससे तुम भी मेरी तरह भूत बन जाओगी। फिर हम आराम से रहेंगे और मनुष्यों को मार-मारकर खाया करेंगे।’

जतनी ने यह सुना तो वह और अधिक डर गई। वह और तेज़ भागने लगी। किंतु लँगड़ा भूत उससे अधिक तेज़ था। जब जतनी को लगा कि लँगड़ा भूत उसे पकड़ लेगा तो उसने एक पीपल के पेड़ से रक्षा करने की प्रार्थना की।

‘पीपल-पीपल! मुझे बचाओ! मेरा पति भूत है। मुझे खा जाएगा। मुझे छिपाओ!’

जतनी की प्रर्थाना सुनकर पीपल का पेड़ बीच से दो हिस्से में फट गया। जतनी उसमें जा बैठी। पीपल का पेड़ फिर पहले जैसा साबूत हो गया। लँगड़ा भूत चकित था कि जतनी कहाँ चली गई? वह जतनी को ढूँढ़ता-ढूँढ़ता दूर निकल गया।

जब जतनी आश्वस्त हो गई कि उसका पति दूर चला गया है तो उसने पीपल से फिर प्रार्थना की।

‘पीपल-पीपल! तुमने मेरे प्राण बचाए। मेरा पति भूत है। मुझे खा जाता। अब वह दूर चला गया है इसलिए तुम मुझे अब जाने दो! यह सुनकर पीपल का पेड़ फिर से दो फाँक हो गया। जतनी उसमें से बाहर निकली और जंगल में चल पड़ी।

जतनी भटकती-भटकती भूख-प्यास के मारे बेहाल हो गई। वह दो रात- दो दिन जंगल में भटकती रही। उसे दिशा का भी ज्ञान नहीं था। वह अपने घर का रास्ता भी नहीं जानती थी। उसे लग रहा था कि कोई जंगली जानवर उसे खा जाएगा और वह कभी अपने घर नहीं पहुँच पाएगी। तभी अचानक उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। वह झोपड़ी एक छोटे से गाँव में थी। गाँव में दस-पंद्रह घर थे। वह झोपड़ी गाँव के बाहर की ओर थी। इसलिए जतनी को वही सबसे पहले दिखाई दी। जतनी गिरती-पड़ती उस झोपड़ी में पहुँची। वह झोपड़ी एक बुढ़िया की थी। जैसे ही बुढ़िया ने जतनी को देखा तो उसका चेहरा खिल उठा।

‘आओ आओ बहू! मैं तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।’ उस बुढ़िया ने जतनी का स्वागत करते हुए कहा।

यह सुनकर जतनी चकित रह गई। उसे लगा कि जिस बुढ़िया से वह कभी मिली ही नहीं, जिसे उसने कभी देखा ही नहीं वह उसे ‘बहू’ कहकर क्यों प्रकार रही है? कहीं यह उस लँगड़े भूत की साथिन तो नहीं है? लेकिन अब जतनी इतनी थक गई थी कि वह वहाँ से भाग भी नहीं सकती थी। अत: उसने ऊपर से कुछ नहीं कहा।

‘लो पानी पी लो।’ बुढ़िया ने जतनी को प्रेम से पानी पिलाया। पानी पीकर जतनी को तनिक अच्छा लगा। उसकी थकान भी कम हो गई। तब जतनी का ध्यान गया कि बुढ़िया की झोपड़ी में ओखली और मूसल रखा हुआ था और ओखली के पास कुछ मानव खोपड़ियाँ पड़ी हुई थीं। जतनी को विश्वास हो गया कि यह बुढ़िया उस लँगड़े भूत की तरह मनुष्यों को मारकर खाती है या फिर उस भूत के लिए मनुष्यों को मारकर रखती है। उसे लगा कि वह एक मुसीबत से निकली तो दूसरी मुसीबत में फँस गई।

‘अम्मा, क्या कर रही थीं?’ जतनी ने प्रेमपूर्ण स्वर में बुढ़िया से पूछा।

‘ओखली में धान कूट रही थी।’ बुढ़िया ने उत्तर दिया।

‘अम्मा, अब मैं गई हूँ तो अब तुम्हें अकेले काम करने की आवश्यकता नहीं है। लाओ मैं धान कूट देती हूँ।’ जतनी ने मूसल पकड़ते हुए कहा।

‘तुम ठीक कहती हो। बहू के होते हुए सास को काम करने की क्या आवश्यकता? फिर भी मैं तुम्हें अकेली काम नहीं करने दूँगी। चलो, मैं ओखली में धान डालती हूँ और तुम कूटना।’ बुढ़िया चिकनी-चुपड़ी बातें करती हुई बोली।

जैसे ही बुढ़िया धान डालने को ओखली में झुकी वैसे ही जतनी ने मूसल उठाकर बुढ़िया को ही कूट डाला। मूसल से कुटने पर बुढ़िया की खाल अलग हो गई। इतने में लँगड़ा भूत गया। जतनी ने जल्दी से बुढ़िया के शव को छिपा दिया और स्वयं भी छिप गई। भूत ने बुढ़िया को पुकारा।

‘अम्मा, जतनी तो अब तक मिली नहीं उस पर आज कोई मनुष्य भी नहीं मिला। तुमने कोई मनुष्य मूर्ख बनाकर पकड़ा क्या?’ लँगड़े भूत ने पूछा।

बुढ़िया जीवित होती तो उत्तर देती। तब जतनी ने जल्दी से बुढ़िया की खाल पहन ली और बुढ़िया की आवाज़ बनाकर बोली, ‘बेटा, अब मुझे भी यहाँ कोई मनुष्य नहीं मिल पाता है इसलिए अब मैं दूसरी जगह जाने की सोच रही हूँ। हो सकता है कि आज ही मैं कहीं और चली जाऊँगी।’

‘ठीक है। जहाँ रहना, वहाँ से मुझे संदेश भेज देना। मैं वहीं जाया करूँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।

‘हाँ, ये ठीक रहेगा।’ बुढ़िया के वेश में जतनी ने कहा।

जब लँगड़े भूत ने देखा कि वहाँ भी उसके खाने के लिए कुछ नहीं है तो वह वापस चला गया। अब जतनी को लँगड़े भूत का डर नहीं था। उसने बुढ़िया की झोपड़ी की सफ़ाई की और वहीं आराम से रहने लगी। बुढ़िया का एक छोटा-सा खेत था। जतनी उस खेत में काम करने लगी। उसी गाँव में एक युवक अपने माता-पिता के साथ रहता था। उस युवक का नाम था ननकू। ननकू का खेत बुढ़िया के खेत के पास था। वह प्रति-दिन बुढ़िया को अपने खेत में आते-जाते देखा करता था।

एक दिन जतनी खेत जा रही थी कि रास्ते में उसकी रोटियाँ गिर गईं। ननकू ने देखा तो उसे लगा कि बुढ़िया की रोटियाँ गिर गई हैं अत: वह रोटियाँ उठाकर बुढ़िया को दे दे अन्यथा बुढ़िया को दुपहर में भूखा रहना पड़ेगा। ननकू ने रोटियाँ उठा लीं। फिर उसके मन में आया कि ये रोटियाँ वह दुपहर में ही देने जाएगा तब वह बुढ़िया के साथ बैठकर अपनी रोटियाँ भी खा लेगा। आख़िर बुढ़िया रोज़ अकेली रोटियाँ खाती है।

दुपहर होने पर ननकू रोटियाँ लेकर बुढ़िया के खेत पर पहुँचा। बुढ़िया उसे नहीं दिखी। तब वह बुढ़िया को खोजने लगा। बुढ़िया के खेत के पास से एक नदी बहती थी। ननकू को लगा कि कहीं बुढ़िया नदी में नहाने गई हो। यह विचार करके वह नदी के पास पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक सुंदर युवती नदी में नहा रही है। वह युवती नहा कर नदी के पानी से बाहर आई और उसने बुढ़िया की खाल पहन ली। यह देखकर ननकू दंग रह गया। परंतु वह युवती पर इतना मोहित हो गया कि उसने उसी पल निश्चय कर लिया कि वह इस युवती से विवाह करके रहेगा।

ननकू जतनी की रोटियाँ उसके खेत में एक पेड़ के नीचे रखकर अपने खेत में लौट आया। शाम को जब वह अपने घर लौटा तो उसने घर पहुँचते ही अपने माता-पिता से कह दिया कि वह बुढ़िया से विवाह करना चाहता है। यह सुनकर उसके माता-पिता चकरा गए। वह बुढ़िया तो ननकू की माँ से भी अधिक आयु की थी।

ननकू के माता-पिता ने ननकू को समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन ननकू जानता था कि बुढ़िया की खाल के भीतर एक सुंदर युवती है। समस्या यह थी कि वह ये बात किसी से कह नहीं सकता था क्योंकि कोई भी उसकी इस बात पर विश्वास नहीं करता, उल्टे उसका मज़ाक ही उड़ाता। इसीलिए ननकू ने किसी को सच्चाई नहीं बताई। जब ननकू के माता-पिता उसे समझा-समझा कर हार गए तो उन्होंने बुढ़िया के साथ विवाह करने की अनुमति उसे दे दी।

बुढ़िया के रूप में रहने वाली जतनी से ननकू ने विवाह कर लिया। जतनी को भय था कि कहीं किसी दिन लँगड़ा भूत फिर से जाए इसलिए उसने बुढ़िया की खाल पहनना नहीं छोड़ा। गाँव वालों ने जब देखा कि ननकू ने अपनी माँ से बड़ी आयु की बुढ़िया से विवाह कर लिया है तो उन्हें लगा कि वह बुढ़िया अवश्य कोई डायन होगी जिसने ननकू को अपने वश में कर लिया है। जब इस प्रकार की अफ़वाह चारों ओर फैली तो ननकू को चिंता हुई। उसे लगा कि कहीं गाँव वाले उसकी पत्नी को डायन समझकर मार डालें। इसलिए एक दिन उसने अपनी बुढ़िया पत्नी का चुपचाप पीछा किया। जब उसकी पत्नी बुढ़िया की खाल उतार कर नदी में नहाने गई तो ननकू ने खाल उठा ली और उसे जला दिया। ननकू की पत्नी अर्थात् जतनी जब नहा कर नदी से बाहर आई और उसने पहनने को बुढ़िया की खाल उठानी चाही तो वहाँ उसे बुढ़िया की खाल की राख दिखाई दी। इतने में ननकू भी सामने गया।

‘तुम इतनी सुंदर होकर भी बुढ़िया की खाल में क्यों रहती थीं?’ ननकू ने पूछा।

‘लँगड़े भूत के डर से।’ जतनी ने कहा और फिर ननकू को अपना पूरा क़िस्सा सुना डाला।

‘अब तुम्हें लँगड़े भूत से डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं भूत-प्रेत भगाना जानता हूँ। अब लँगड़ा भूत तुम्हें कभी तंग नहीं कर सकेगा।’ ननकू ने जतनी को आश्वस्त कराया।

इसके बाद जतनी और ननकू गाँव लौट आए। गाँव लौटकर ननकू ने जतनी के बारे में पूरे गाँव वालों को बताया। गाँव वाले यह जानकर ख़ुश हो गए कि जतनी कोई डायन-वायन नहीं है, वह तो एक सुंदर युवती है।

जतनी और ननकू सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन गाँव में एक चूड़ी बेचने वाला आया। गाँव की सभी स्त्रियाँ उससे चूड़ी ख़रीदने पहुँचीं। जतनी भी गई। चूड़ीवाले ने सभी स्त्रियों से चूड़ी के पैसे लिए किंतु जतनी से पैसे नहीं लिए। इस पर जतनी को संदेह हुआ।

‘चूड़ीवाले तुम मुझसे पैसे क्यों नहीं ले रहे हो?’ जतनी ने पूछा।

‘तुम्हारी कलाइयाँ मेरी पत्नी की कलाइयों की तरह सुंदर हैं इसलिए मुझे उसकी याद गई और मैंने तुमसे पैसे नहीं लिए।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।

‘तुम्हारी पत्नी कहाँ है?’ जतनी ने पूछा।

‘वह खो गई है।’ चूड़ीवाले ने बताया।

अब जतनी का संदेह पक्का हो गया।

‘तुम्हारी पत्नी तुम्हें मिल जाए तो क्या करोगे?’ जतनी ने पूछा।

‘अपने साथ रखूँगा। सात जन्मों तक छोडूँगा।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।

‘और जो तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ रहना चाहे तो?’ जतनी ने पूछा।

'वह मनाकर ही नहीं पाएगी। उसे मैं अपने जैसा बना लूँगा और अपने साथ रखूँगा।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।

जतनी समझ गई कि वह चूड़ीवाला और कोई नहीं अपितु लँगड़ा भूत है और उसने जतनी को पहचान लिया है। जतनी डर गई। उसने लँगड़े भूत के आने के बारे में ननकू को बताया।

‘डरो मत! तुम आज से मेरी माँ के पास सोया करो। फिर देखो मैं उस लँगड़े भूत को कैसे भस्म करता हूँ।’ ननकू ने कहा।

उस दिन से जतनी रात के समय ननकू की माँ के पास सोने लगी। इधर ननकू ने मिट्टी से जतनी का प्रतिरूप बनाया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। ननकू उस मिट्टी की जतनी के साथ सोने लगा।

एक रात लँगड़ा भूत चुपके से ननकू के कमरे में घुसा। उसने समझा कि ननकू की बग़ल में जतनी सो रही है। लँगड़े भूत ने मिट्टी की जतनी को असली जतनी समझकर खाने का प्रयास किया। जिससे ननकू की नींद खुल गई और उसने मंत्र पढ़ कर सरसों के दाने लँगड़े भूत पर उछाल दिए। सरसों के दाने लँगड़े भूत पर गिरते ही लँगड़ा भूत भस्म हो गया। इस प्रकार जतनी को लँगड़े भूत के भय से सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल गई। लँगड़े भूत के भस्म हो जाने के बाद जतनी और ननकू सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 121)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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