सुकमा नाम का एक बहुत छोटा-सा गाँव था। उस गाँव में एक पीपल का पेड़ था। उस पीपल के पेड़ पर एक भूत रहता था। भूत था लँगड़ा। वह लँगड़ा भूत दुष्ट प्रकृति का था। उसे मनुष्यों को मारकर खाने में आनंद आता था। लेकिन वह सुकमा गाँव के लोगों को मारकर नहीं खाता था। उसे डर था कि वह यदि सुकमा के लागों को मारकर खाएगा तो वे उस पीपल के पेड़ को काट देंगे जिस पर उसका बसेरा है। इसलिए वह आस-पास के गाँवों में जाता और कोई मृतक न मिलने पर किसी भी मनुष्य को मारकर खा लेता।
पीपल के पेड़ के पास एक किसान का घर था। किसान को पता नहीं था कि उसके घर के पास वाले पीपल के पेड़ पर लँगड़ा भूत रहता है। किसान की एक बेटी थी। बेटी का नाम था जतनी। जतनी बहुत सुंदर थी और गृहकार्य में दक्ष थी। जब जतनी विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।
एक दिन किसान जतनी के विवाह को लेकर अपनी पत्नी से चर्चा कर रहा था।
‘हमारी बेटी अब विवाह के योग्य हो गई है अब उसके हाथ पीलेकर देने चाहिए।’ जतनी की माँ ने जतनी के पिता से कहा।
‘तुम सच कहती हो लेकिन हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम जतनी के लिए कोई अच्छा वर पा सकें’ जतनी के पिता ने चिंतित होते हुए कहा।
‘हमारी बेटी इतनी सुंदर है कि कोई भी लड़का उसे अपनी पत्नी बनाना चाहेगा।’ जतनी की माँ ने गर्व से कहा।
‘सुंदरता भर से कुछ नहीं होता है, विवाह के लिए पैसे भी चाहिए, पैसे भी।’ जतनी के पिता ने अपनी बात दोहराई।
‘हमारी बेटी घरेलू कामों में कुशल है। वह जिस घर में जाएगी उस घर के दिन फिर जाएँगे।’ जतनी की माँ विश्वासपूर्वक बोली।
‘तुम्हारा तो दिमाग़ ख़राब है।’ जतनी का पिता झुँझलाकर बोला,’ अरी जतनी की माँ! ये सच है कि हमारी बेटी लाखों में एक है और इसीलिए मैं चाहता हूँ कि हमारी बेटी को कोई अच्छा-सा वर मिले लेकिन हमारी ऐसी क़िस्मत कहाँ?’
जतनी के माता-पिता इसी प्रकार बहुत देर तक जतनी के विवाह को लेकर विचार-विमर्श करते रहे। उस समय लँगड़ा भूत पीपल के पेड़ पर अपने डेरे में बैठा हुआ था। उसने जतनी के माता-पिता की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं। लँगड़े भूत को लगा कि जतनी सचमुच बहुत सुंदर है, उसे उसके योग्य वर मिलना चाहिए। फिर उसके मन में विचार उठा कि क्यों न वह स्वयं जतनी से विवाह कर ले। यूँ भी सौ बरस हो चुके थे उसे अकेले रहते-रहते। उसे लगा कि यदि जतनी जैसी जीवन-संगिनी उसे मिल जाए तो उसके सूने जीवन में वसंत आ जाएगा।
लँगड़े भूत के मन में जैसे ही जतनी से विवाह करने का विचार आया वैसे ही उसने एक स्वस्थ, सुंदर युवक का वेश धारण किया और जतनी के घर का दरवाज़ा खटखटाने लगा।
‘कौन है?’ जतनी के पिता ने घर के भीतर से पूछा।
‘पाहुना।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।
‘क्या चाहिए?’ जतनी के पिता ने फिर पूछा।
‘पीने को एक लोटा पानी।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।
‘धातु के लोटे में पियोगे कि मिट्टी के लोटे में?’ जतनी के पिता ने पूछा।
‘मिट्टी के लोटे मैं।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘मिट्टी के लोटे में क्यों? धातु के लोटे में क्यों नहीं?’ जतनी के पिता ने फिर पूछा।
‘मिट्टी में लोटे का पानी अधिक ठंडा रहता है और पाहुना की प्यास ठंडे पानी से ही बुझती है।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।
लँगड़े भूत का उत्तर सुनकर जतनी का पिता बहुत प्रभावित हुआ और उसने झट से दरवाज़ा खोला। अपने सामने एक सुंदर, सुशील युवक को पाकर वह चकित रह गया। तब तक जतनी की माँ मिट्टी के लोटे में पानी भर लाई। लँगड़े भूत ने पानी पिया और जतनी की माँ को धन्यवाद दिया।
‘कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो, बेटा?’ जतनी के पिता ने लँगड़े भूत के शिष्टाचार से प्रभावित होकर मधुर स्वर में पूछा।
‘महानदी के तट से आ रहा हूँ और नर्मदा किनारे जाऊँगा।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।
‘अरे इतनी दूर से आ रहे हो और इतनी दूर जाओगे?’ जतनी का पिता आश्चर्य से बोला।
‘काम-काज की तलाश में भटक रहा हूँ।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘ओह, तुम्हारे घर-परिवार में कौन-कौन हैं?’ जतनी की माँ ने पूछा।
‘कोई नहीं!' भूत ने कहा।
‘कोई नहीं?’ जतनी की माँ ने चकित होकर पूछा, ‘कोई तो होगा।’
‘मेरे माता-पिता महानदी की बाढ़ में डूबकर मर गए। होने को नाते-रिश्तेदार हैं लेकिन सब स्वार्थ के मीत हैं। मेरे पास कोई काम-काज नहीं था इसलिए सबने मुझे दुत्कार दिया। अब मुझे जहाँ भी काम मिल जाएगा वहाँ काम करूँगा, अपना घर बसाऊँगा और वहीं रह जाऊँगा। लौटकर वापस नहीं जाऊँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।
यह सुनकर जतनी का पिता बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली और घर बैठे एक योग्य युवक भेज दिया।
‘काम तो हमारे गाँव में भी मिल सकता है। तुम ऐसा करो कि हमारे गाँव के साहूकार के पास चले जाओ और उनको अपनी समस्या बताओ। वे तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे।’ जतनी के पिता ने कहा।
‘ठीक है। मैं साहूकार के पास जाता हूँ। यदि मुझे कोई काम मिल गया तो मैं यहीं रह जाऊँगा। यदि मैं आपके घर के पास उस पीपल के पेड़ के नीचे अपनी झोपड़ी बना लूँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी?’ लँगड़े भूत ने भोलेपन से पूछा।
‘अरे नहीं, भला मुझे कोई आपत्ति क्यों होने लगी? तुम पास में रहोगे तो हमें भी प्रसन्नता होगी।’ जतनी के पिता ने कहा।
इसके बाद लँगड़ा भूत साहूकार के पास गया। साहूकार ने उससे उसकी योग्यता पूछी।
‘तुम क्या काम कर सकते हो?’
‘मैं जीवित को मार सकता हूँ और मरे को जिला सकता हूँ।’ लँगड़े भूत ने उत्तर दिया।
‘क्या मतलब तुम्हारा?’ लँगड़े भूत का उत्तर सुनकर साहूकार चकराया।
‘मेरा मतलब है कि मैं फसल काट सकता हूँ और बीज से पौधे उगा सकता हूँ।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘बहुत बढ़िया! तुम खेती-किसानी कर सकते हो और बुद्धि में भी कम नहीं हो। मुझे तुम्हारे जैसा होनहार युवक चाहिए था।’ साहूकार ने कहा।
‘तो मेरी नौकरी पक्की?’
‘हाँ, पक्की।’ साहूकार ने कहा। फिर पूछा, ‘पगार कितनी लोगे?’
‘जितने में मैं और मेरी पत्नी आराम से रह सकें।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘हूँ! तो तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारे साथ है।’
‘अभी तो नहीं है मगर हो जाएगी यदि आप मेरी मदद करें तो!’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘मैं मदद करूँ? कैसी मदद?’ साहूकार ने पूछा।
‘जिस किसान ने मुझे आपके पास भेजा है, उस किसान की बेटी पर मैं मोहित हो गया हूँ। यदि आप किसान से कहकर उसकी बेटी के साथ मेरा विवाह करा दें तो मेरा जीवन सुखी हो जाए। किसान की बेटी का नाम है जतनी।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘ठीक है। तुम कुछ दिन काम करो। यदि मुझे लगा कि तुम जतनी के योग्य हो तो मैं तुम्हारा विवाह उसके साथ करा दूँगा।’ साहूकार ने आश्वासन दिया।
लँगड़े भूत के लिए कोई भी काम कठिन नहीं था। वह चुटकी बजाता, मंत्र फूँकता और काम हो जाता। साहूकार लँगड़े भूत के काम से अत्यंत प्रसन्न हुआ। उधर जतनी ने भी लँगड़े भूत को देखा तो उसे भी वह पसंद आया। जतनी को अब तक पता चल गया था कि उसके पिता पाहुना यानी लँगड़े भूत के साथ उसका विवाह करना चाहते हैं। यह कोई नहीं जानता था कि पाहुना कोई मनुष्य नहीं अपितु लँगड़ा भूत है।
एक दिन लँगड़े भूत ने साहूकार को उसका वचन याद दिलाया।
यदि मैं आपको जतनी के योग्य लगता हूँ तो मेरा उसके साथ विवाह करा दीजिए।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘ठीक है। तुम हर तरह से जतनी के योग्य हो। तुम इसी गाँव में रहोगे, यह भी अच्छी बात है क्योंकि जतनी अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। तुम्हारे यहाँ रहने से उन्हें भी सहारा मिलेगा।’ साहूकार ने कहा।
‘जतनी के माता-पिता मेरे माता-पिता के समान हैं। मैं उनका पूरा-पूरा रखूँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।
उचित समय देखकर साहूकार ने जतनी के पिता से जतनी और लँगड़े भूत विवाह के बारे में बात की। जतनी का पिता यह सोचकर और भी प्रसन्न हुआ कि जिस लड़के को वह जतनी का दूल्हा बनाना चाहता है उसकी सिफ़ारिश साहूकार भी कर रहा है। जतनी का पिता सहर्ष मान गया। शुभ मुहूर्त पर जतनी और लँगड़े भूत का विवाह हो गया। साहूकार ने लँगड़े भूत की झोपड़ी की जगह एक अच्छा घर बनवा दिया। उस घर में जतनी और लँगड़ा भूत सुखपूर्वक रहने लगे।
जतनी एक कुशल गृहणी सिद्ध हुई। वह घर की देख-भाल करती और लँगड़े भूत की सेवा करती। एक रात जतनी को लगा कि उसका पति रात को उठकर कहीं चला जाता है। पहले तो उसे लगा कि यह उसका भ्रम होगा। फिर दो-तीन रात उसने सोने का बहाना करके पता लगाया। उसने पाया कि उसका पति सचमुच रात को उठकर कहीं जाता है। उसे अपने पति का यह आचरण देखकर चिंता हुई।
‘आप रात को उठकर कहाँ जाते हैं?’ एक दिन उसने अपने पति से पूछ ही लिया।
‘तुम्हें कैसे पता कि मैं रात को कहीं जाता हूँ?’ लँगड़े भूत ने जतनी से पूछा। 'मैंने स्वयं देखा है।’ जतनी ने कहा।
‘मैं तुम्हें बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। बात यह है कि हमारे विवाह को तीन-चार साल होने को आ गए हैं और हमारा एक भी बच्चा नहीं हुआ है इसलिए मैं रात को उठकर अपने कुल देवता की पूजा करने जाता हूँ ताकि वे प्रसन्न होकर तुम्हारी गोद भर दें।’ लँगड़े भूत ने झूठ बोलते हुए कहा।
‘अरे, ऐसा है तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। मैं भी तुम्हारे कुल देवता की पूजा करूँगी।’ जतनी ने उत्साहपूर्वक कहा।
‘नहीं! तुम नहीं चल सकती हो। वे मेरे कुल देवता हैं।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘जब मेरा तुमसे विवाह हुआ है तो तुम्हारा कुल अब मेरा कुल है और तुम्हारे कुल देवता मेरे कुल देवता हैं। इसलिए मैं तो तुम्हारे साथ हर हाल में चलूँगी।’ जतनी ने हठ करते हुए कहा।
‘ठीक है, चलना।’ लँगड़े भूत ने जतनी की बात मान ली।
अगली रात जब लँगड़ा भूत उठा तो जतनी भी उठ बैठी। उसने पूजा की थाली सजाई और लँगड़े भूत के साथ हो ली। लँगड़ा भूत गाँव से निकलकर घने जंगल में जा पहुँचा। एक स्थान पर रुककर लँगड़े भूत ने कहा कि मैं कुल देवता का आह्वान करके उन्हें बुलाता हूँ तब तक तुम यहीं ठहरो।
‘इस भयानक जंगल में मुझे अकेली छोड़कर तुम कहीं मत जाओ।’ जतनी ने विनती की। उसे डर लग रहा था।
‘ऐसा करो कि तुम इस ऊँचे वट के वृक्ष पर चढ़कर बैठ जाओ। मेरे आने तक वहीं रुकना। नीचे मत उतरना।’ यह कहकर लगड़ा भूत अँधेरे में कहीं ग़ायब हो गया।
जतनी वट वृक्ष पर चढ़कर बैठ गई। जब बहुत देर तक उसका पति नहीं लौटा तो उसे चिंता सताने लगी। इतने में शेर के दहाड़ने की आवाज़ सुनाई दी। जतनी और डर गई। फिर उसे लगा कि कहीं शेर उसके पति को न खा जाए। यह सोचते ही उसका डर दूर हो गया और वह झट से वृक्ष से नीचे उतरी और अपने पति को ढूँढ़ने लगी।
अभी वह कुछ दूर ही गई होगी कि लताओं की झुरमुट की दूसरी ओर उसे अपना पति दिखाई दिया। उसका पति ज़मीन में बैठकर मनुष्य का शव खा रहा था। यह दृश्य देखकर जतनी मूर्छित होते-होते बची। वह समझ गई कि उसका पति कोई मनुष्य नहीं अपितु एक भूत है। जतनी हड़बड़ा कर भागने को जैसे ही पलटी वैसे ही लंगडे भूत ने जतनी को देख लिया।
जतनी रुको! वह चिल्लाया, ‘मैं तुमको मारना नहीं चाहता था लेकिन अब तुमने मेरा असली रूप देख लिया है तो अब मैं तुम्हें मार डालूँगा जिससे तुम भी मेरी तरह भूत बन जाओगी। फिर हम आराम से रहेंगे और मनुष्यों को मार-मारकर खाया करेंगे।’
जतनी ने यह सुना तो वह और अधिक डर गई। वह और तेज़ भागने लगी। किंतु लँगड़ा भूत उससे अधिक तेज़ था। जब जतनी को लगा कि लँगड़ा भूत उसे पकड़ लेगा तो उसने एक पीपल के पेड़ से रक्षा करने की प्रार्थना की।
जतनी की प्रर्थाना सुनकर पीपल का पेड़ बीच से दो हिस्से में फट गया। जतनी उसमें जा बैठी। पीपल का पेड़ फिर पहले जैसा साबूत हो गया। लँगड़ा भूत चकित था कि जतनी कहाँ चली गई? वह जतनी को ढूँढ़ता-ढूँढ़ता दूर निकल गया।
जब जतनी आश्वस्त हो गई कि उसका पति दूर चला गया है तो उसने पीपल से फिर प्रार्थना की।
‘पीपल-पीपल! तुमने मेरे प्राण बचाए। मेरा पति भूत है। मुझे खा जाता। अब वह दूर चला गया है इसलिए तुम मुझे अब जाने दो! यह सुनकर पीपल का पेड़ फिर से दो फाँक हो गया। जतनी उसमें से बाहर निकली और जंगल में चल पड़ी।
जतनी भटकती-भटकती भूख-प्यास के मारे बेहाल हो गई। वह दो रात- दो दिन जंगल में भटकती रही। उसे दिशा का भी ज्ञान नहीं था। वह अपने घर का रास्ता भी नहीं जानती थी। उसे लग रहा था कि कोई जंगली जानवर उसे खा जाएगा और वह कभी अपने घर नहीं पहुँच पाएगी। तभी अचानक उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। वह झोपड़ी एक छोटे से गाँव में थी। गाँव में दस-पंद्रह घर थे। वह झोपड़ी गाँव के बाहर की ओर थी। इसलिए जतनी को वही सबसे पहले दिखाई दी। जतनी गिरती-पड़ती उस झोपड़ी में पहुँची। वह झोपड़ी एक बुढ़िया की थी। जैसे ही बुढ़िया ने जतनी को देखा तो उसका चेहरा खिल उठा।
‘आओ आओ बहू! मैं तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।’ उस बुढ़िया ने जतनी का स्वागत करते हुए कहा।
यह सुनकर जतनी चकित रह गई। उसे लगा कि जिस बुढ़िया से वह कभी मिली ही नहीं, जिसे उसने कभी देखा ही नहीं वह उसे ‘बहू’ कहकर क्यों प्रकार रही है? कहीं यह उस लँगड़े भूत की साथिन तो नहीं है? लेकिन अब जतनी इतनी थक गई थी कि वह वहाँ से भाग भी नहीं सकती थी। अत: उसने ऊपर से कुछ नहीं कहा।
‘लो पानी पी लो।’ बुढ़िया ने जतनी को प्रेम से पानी पिलाया। पानी पीकर जतनी को तनिक अच्छा लगा। उसकी थकान भी कम हो गई। तब जतनी का ध्यान गया कि बुढ़िया की झोपड़ी में ओखली और मूसल रखा हुआ था और ओखली के पास कुछ मानव खोपड़ियाँ पड़ी हुई थीं। जतनी को विश्वास हो गया कि यह बुढ़िया उस लँगड़े भूत की तरह मनुष्यों को मारकर खाती है या फिर उस भूत के लिए मनुष्यों को मारकर रखती है। उसे लगा कि वह एक मुसीबत से निकली तो दूसरी मुसीबत में फँस गई।
‘अम्मा, क्या कर रही थीं?’ जतनी ने प्रेमपूर्ण स्वर में बुढ़िया से पूछा।
‘ओखली में धान कूट रही थी।’ बुढ़िया ने उत्तर दिया।
‘अम्मा, अब मैं आ गई हूँ तो अब तुम्हें अकेले काम करने की आवश्यकता नहीं है। लाओ मैं धान कूट देती हूँ।’ जतनी ने मूसल पकड़ते हुए कहा।
‘तुम ठीक कहती हो। बहू के होते हुए सास को काम करने की क्या आवश्यकता? फिर भी मैं तुम्हें अकेली काम नहीं करने दूँगी। चलो, मैं ओखली में धान डालती हूँ और तुम कूटना।’ बुढ़िया चिकनी-चुपड़ी बातें करती हुई बोली।
जैसे ही बुढ़िया धान डालने को ओखली में झुकी वैसे ही जतनी ने मूसल उठाकर बुढ़िया को ही कूट डाला। मूसल से कुटने पर बुढ़िया की खाल अलग हो गई। इतने में लँगड़ा भूत आ गया। जतनी ने जल्दी से बुढ़िया के शव को छिपा दिया और स्वयं भी छिप गई। भूत ने बुढ़िया को पुकारा।
‘अम्मा, जतनी तो अब तक मिली नहीं उस पर आज कोई मनुष्य भी नहीं मिला। तुमने कोई मनुष्य मूर्ख बनाकर पकड़ा क्या?’ लँगड़े भूत ने पूछा।
बुढ़िया जीवित होती तो उत्तर देती। तब जतनी ने जल्दी से बुढ़िया की खाल पहन ली और बुढ़िया की आवाज़ बनाकर बोली, ‘बेटा, अब मुझे भी यहाँ कोई मनुष्य नहीं मिल पाता है इसलिए अब मैं दूसरी जगह जाने की सोच रही हूँ। हो सकता है कि आज ही मैं कहीं और चली जाऊँगी।’
‘ठीक है। जहाँ रहना, वहाँ से मुझे संदेश भेज देना। मैं वहीं आ जाया करूँगा।’ लँगड़े भूत ने कहा।
‘हाँ, ये ठीक रहेगा।’ बुढ़िया के वेश में जतनी ने कहा।
जब लँगड़े भूत ने देखा कि वहाँ भी उसके खाने के लिए कुछ नहीं है तो वह वापस चला गया। अब जतनी को लँगड़े भूत का डर नहीं था। उसने बुढ़िया की झोपड़ी की सफ़ाई की और वहीं आराम से रहने लगी। बुढ़िया का एक छोटा-सा खेत था। जतनी उस खेत में काम करने लगी। उसी गाँव में एक युवक अपने माता-पिता के साथ रहता था। उस युवक का नाम था ननकू। ननकू का खेत बुढ़िया के खेत के पास था। वह प्रति-दिन बुढ़िया को अपने खेत में आते-जाते देखा करता था।
एक दिन जतनी खेत जा रही थी कि रास्ते में उसकी रोटियाँ गिर गईं। ननकू ने देखा तो उसे लगा कि बुढ़िया की रोटियाँ गिर गई हैं अत: वह रोटियाँ उठाकर बुढ़िया को दे दे अन्यथा बुढ़िया को दुपहर में भूखा रहना पड़ेगा। ननकू ने रोटियाँ उठा लीं। फिर उसके मन में आया कि ये रोटियाँ वह दुपहर में ही देने जाएगा तब वह बुढ़िया के साथ बैठकर अपनी रोटियाँ भी खा लेगा। आख़िर बुढ़िया रोज़ अकेली रोटियाँ खाती है।
दुपहर होने पर ननकू रोटियाँ लेकर बुढ़िया के खेत पर पहुँचा। बुढ़िया उसे नहीं दिखी। तब वह बुढ़िया को खोजने लगा। बुढ़िया के खेत के पास से एक नदी बहती थी। ननकू को लगा कि कहीं बुढ़िया नदी में नहाने न गई हो। यह विचार करके वह नदी के पास पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक सुंदर युवती नदी में नहा रही है। वह युवती नहा कर नदी के पानी से बाहर आई और उसने बुढ़िया की खाल पहन ली। यह देखकर ननकू दंग रह गया। परंतु वह युवती पर इतना मोहित हो गया कि उसने उसी पल निश्चय कर लिया कि वह इस युवती से विवाह करके रहेगा।
ननकू जतनी की रोटियाँ उसके खेत में एक पेड़ के नीचे रखकर अपने खेत में लौट आया। शाम को जब वह अपने घर लौटा तो उसने घर पहुँचते ही अपने माता-पिता से कह दिया कि वह बुढ़िया से विवाह करना चाहता है। यह सुनकर उसके माता-पिता चकरा गए। वह बुढ़िया तो ननकू की माँ से भी अधिक आयु की थी।
ननकू के माता-पिता ने ननकू को समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन ननकू जानता था कि बुढ़िया की खाल के भीतर एक सुंदर युवती है। समस्या यह थी कि वह ये बात किसी से कह नहीं सकता था क्योंकि कोई भी उसकी इस बात पर विश्वास नहीं करता, उल्टे उसका मज़ाक ही उड़ाता। इसीलिए ननकू ने किसी को सच्चाई नहीं बताई। जब ननकू के माता-पिता उसे समझा-समझा कर हार गए तो उन्होंने बुढ़िया के साथ विवाह करने की अनुमति उसे दे दी।
बुढ़िया के रूप में रहने वाली जतनी से ननकू ने विवाह कर लिया। जतनी को भय था कि कहीं किसी दिन लँगड़ा भूत फिर से न आ जाए इसलिए उसने बुढ़िया की खाल पहनना नहीं छोड़ा। गाँव वालों ने जब देखा कि ननकू ने अपनी माँ से बड़ी आयु की बुढ़िया से विवाह कर लिया है तो उन्हें लगा कि वह बुढ़िया अवश्य कोई डायन होगी जिसने ननकू को अपने वश में कर लिया है। जब इस प्रकार की अफ़वाह चारों ओर फैली तो ननकू को चिंता हुई। उसे लगा कि कहीं गाँव वाले उसकी पत्नी को डायन समझकर मार न डालें। इसलिए एक दिन उसने अपनी बुढ़िया पत्नी का चुपचाप पीछा किया। जब उसकी पत्नी बुढ़िया की खाल उतार कर नदी में नहाने गई तो ननकू ने खाल उठा ली और उसे जला दिया। ननकू की पत्नी अर्थात् जतनी जब नहा कर नदी से बाहर आई और उसने पहनने को बुढ़िया की खाल उठानी चाही तो वहाँ उसे बुढ़िया की खाल की राख दिखाई दी। इतने में ननकू भी सामने आ गया।
‘तुम इतनी सुंदर होकर भी बुढ़िया की खाल में क्यों रहती थीं?’ ननकू ने पूछा।
‘लँगड़े भूत के डर से।’ जतनी ने कहा और फिर ननकू को अपना पूरा क़िस्सा सुना डाला।
‘अब तुम्हें लँगड़े भूत से डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं भूत-प्रेत भगाना जानता हूँ। अब लँगड़ा भूत तुम्हें कभी तंग नहीं कर सकेगा।’ ननकू ने जतनी को आश्वस्त कराया।
इसके बाद जतनी और ननकू गाँव लौट आए। गाँव लौटकर ननकू ने जतनी के बारे में पूरे गाँव वालों को बताया। गाँव वाले यह जानकर ख़ुश हो गए कि जतनी कोई डायन-वायन नहीं है, वह तो एक सुंदर युवती है।
जतनी और ननकू सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन गाँव में एक चूड़ी बेचने वाला आया। गाँव की सभी स्त्रियाँ उससे चूड़ी ख़रीदने पहुँचीं। जतनी भी गई। चूड़ीवाले ने सभी स्त्रियों से चूड़ी के पैसे लिए किंतु जतनी से पैसे नहीं लिए। इस पर जतनी को संदेह हुआ।
‘चूड़ीवाले तुम मुझसे पैसे क्यों नहीं ले रहे हो?’ जतनी ने पूछा।
‘तुम्हारी कलाइयाँ मेरी पत्नी की कलाइयों की तरह सुंदर हैं इसलिए मुझे उसकी याद आ गई और मैंने तुमसे पैसे नहीं लिए।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।
‘तुम्हारी पत्नी कहाँ है?’ जतनी ने पूछा।
‘वह खो गई है।’ चूड़ीवाले ने बताया।
अब जतनी का संदेह पक्का हो गया।
‘तुम्हारी पत्नी तुम्हें मिल जाए तो क्या करोगे?’ जतनी ने पूछा।
‘अपने साथ रखूँगा। सात जन्मों तक न छोडूँगा।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।
‘और जो तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ न रहना चाहे तो?’ जतनी ने पूछा।
'वह मनाकर ही नहीं पाएगी। उसे मैं अपने जैसा बना लूँगा और अपने साथ रखूँगा।’ चूड़ीवाले ने उत्तर दिया।
जतनी समझ गई कि वह चूड़ीवाला और कोई नहीं अपितु लँगड़ा भूत है और उसने जतनी को पहचान लिया है। जतनी डर गई। उसने लँगड़े भूत के आने के बारे में ननकू को बताया।
‘डरो मत! तुम आज से मेरी माँ के पास सोया करो। फिर देखो मैं उस लँगड़े भूत को कैसे भस्म करता हूँ।’ ननकू ने कहा।
उस दिन से जतनी रात के समय ननकू की माँ के पास सोने लगी। इधर ननकू ने मिट्टी से जतनी का प्रतिरूप बनाया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। ननकू उस मिट्टी की जतनी के साथ सोने लगा।
एक रात लँगड़ा भूत चुपके से ननकू के कमरे में घुसा। उसने समझा कि ननकू की बग़ल में जतनी सो रही है। लँगड़े भूत ने मिट्टी की जतनी को असली जतनी समझकर खाने का प्रयास किया। जिससे ननकू की नींद खुल गई और उसने मंत्र पढ़ कर सरसों के दाने लँगड़े भूत पर उछाल दिए। सरसों के दाने लँगड़े भूत पर गिरते ही लँगड़ा भूत भस्म हो गया। इस प्रकार जतनी को लँगड़े भूत के भय से सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल गई। लँगड़े भूत के भस्म हो जाने के बाद जतनी और ननकू सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
sukma naam ka ek bahut chhota sa gaanv tha. us gaanv mein ek pipal ka peD tha. us pipal ke peD par ek bhoot rahta tha. bhoot tha langDa. wo langDa bhoot dusht prkriti ka tha. use manushyon ko markar khane mein anand aata tha. lekin wo sukma gaanv ke logon ko markar nahin khata tha. use Dar tha ki wo yadi sukma ke lagon ko markar khayega to ve us pipal ke peD ko kaat denge jis par uska basera hai. isliye wo aas paas ke ganvon mein jata aur koi mritak na milne par kisi bhi manushya ko markar kha leta.
pipal ke peD ke paas ek kisan ka ghar tha. kisan ko pata nahin tha ki uske ghar ke paas vale pipal ke peD par langDa bhoot rahta hai. kisan ki ek beti thi. beti ka naam tha jatni. jatni bahut sundar thi aur grihakarya mein daksh thi. jab jatni vivah ke yogya hui to uske pita ko uske vivah ki chinta satane lagi.
ek din kisan jatni ke vivah ko lekar apni patni se charcha kar raha tha.
‘hamari beti ab vivah ke yogya ho gai hai ab uske haath pilekar dene chahiye. ’ jatni ki maan ne jatni ke pita se kaha.
‘tum sach kahti ho lekin hamare paas itna paisa nahin hai ki hum jatni ke liye koi achchha var pa saken’ jatni ke pita ne chintit hote hue kaha.
‘hamari beti itni sundar hai ki koi bhi laDka use apni patni banana chahega. ’ jatni ki maan ne garv se kaha.
‘sundarta bhar se kuch nahin hota hai, vivah ke liye paise bhi chahiye, paise bhi. ’ jatni ke pita ne apni baat dohrai.
‘hamari beti gharelu kamon mein kushal hai. wo jis ghar mein jayegi us ghar ke din phir jayenge. ’ jatni ki maan vishvaspurvak boli.
‘tumhara to dimagh kharab hai. ’ jatni ka pita jhunjhlakar bola,’ ari jatni ki maan! ye sach hai ki hamari beti lakhon mein ek hai aur isiliye main chahta hoon ki hamari beti ko koi achchha sa var mile lekin hamari aisi qismat kahan?’
jatni ke mata pita isi prakar bahut der tak jatni ke vivah ko lekar vichar vimarsh karte rahe. us samay langDa bhoot pipal ke peD par apne Dere mein baitha hua tha. usne jatni ke mata pita ki sari baten dhyanapurvak sunin. langDe bhoot ko laga ki jatni sachmuch bahut sundar hai, use uske yogya var milna chahiye. phir uske man mein vichar utha ki kyon na wo svayan jatni se vivah kar le. yoon bhi sau baras ho chuke the use akele rahte rahte. use laga ki yadi jatni jaisi jivan sangini use mil jaye to uske sune jivan mein vasant aa jayega.
langDe bhoot ke man mein jaise hi jatni se vivah karne ka vichar aaya vaise hi usne ek svasth, sundar yuvak ka vesh dharan kiya aur jatni ke ghar ka darvaza khatkhatane laga.
‘kaun hai?’ jatni ke pita ne ghar ke bhitar se puchha.
‘pahuna. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘kya chahiye?’ jatni ke pita ne phir puchha.
‘pine ko ek lota pani. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘dhatu ke lote mein piyoge ki mitti ke lote men?’ jatni ke pita ne puchha.
‘mitti ke lote main. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘mitti ke lote mein kyon? dhatu ke lote mein kyon nahin?’ jatni ke pita ne phir puchha.
‘mitti mein lote ka pani adhik thanDa rahta hai aur pahuna ki pyaas thanDe pani se hi bujhti hai. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
langDe bhoot ka uttar sunkar jatni ka pita bahut prabhavit hua aur usne jhat se darvaza khola. apne samne ek sundar, sushil yuvak ko pakar wo chakit rah gaya. tab tak jatni ki maan mitti ke lote mein pani bhar lai. langDe bhoot ne pani piya aur jatni ki maan ko dhanyavad diya.
‘kahan se aa rahe ho aur kahan ja rahe ho, beta?’ jatni ke pita ne langDe bhoot ke shishtachar se prabhavit hokar madhur svar mein puchha.
‘mahanadi ke tat se aa raha hoon aur narmada kinare jaunga. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘are itni door se aa rahe ho aur itni door jaoge?’ jatni ka pita ashcharya se bola.
‘kaam kaaj ki talash mein bhatak raha hoon. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘oh, tumhare ghar parivar mein kaun kaun hain?’ jatni ki maan ne puchha.
‘koi nahin! bhoot ne kaha.
‘koi nahin?’ jatni ki maan ne chakit hokar puchha, ‘koi to hoga. ’
‘mere mata pita mahanadi ki baaDh mein Dubkar mar ge. hone ko nate rishtedar hain lekin sab svaarth ke meet hain. mere paas koi kaam kaaj nahin tha isliye sabne mujhe dutkar diya. ab mujhe jahan bhi kaam mil jayega vahan kaam karunga, apna ghar basaunga aur vahin rah jaunga. lautkar vapas nahin jaunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
ye sunkar jatni ka pita bahut prasann hua. use laga ki bhagvan ne uski pararthna sun li aur ghar baithe ek yogya yuvak bhej diya.
‘kaam to hamare gaanv mein bhi mil sakta hai. tum aisa karo ki hamare gaanv ke sahukar ke paas chale jao aur unko apni samasya batao. ve tumhari sahayata avashya karenge. ’ jatni ke pita ne kaha.
‘theek hai. main sahukar ke paas jata hoon. yadi mujhe koi kaam mil gaya to main yahin rah jaunga. yadi main aapke ghar ke paas us pipal ke peD ke niche apni jhopDi bana loon to aapko koi apatti to nahin hogi?’ langDe bhoot ne bholepan se puchha.
‘are nahin, bhala mujhe koi apatti kyon hone lagi? tum paas mein rahoge to hamein bhi prasannata hogi. ’ jatni ke pita ne kaha.
iske baad langDa bhoot sahukar ke paas gaya. sahukar ne usse uski yogyata puchhi.
‘tum kya kaam kar sakte ho?’
‘main jivit ko maar sakta hoon aur mare ko jila sakta hoon. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘kya matlab tumhara?’ langDe bhoot ka uttar sunkar sahukar chakraya.
‘mera matlab hai ki main phasal kaat sakta hoon aur beej se paudhe uga sakta hoon. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘bahut baDhiya! tum kheti kisani kar sakte ho aur buddhi mein bhi kam nahin ho. mujhe tumhare jaisa honhar yuvak chahiye tha. ’ sahukar ne kaha.
‘jitne mein main aur meri patni aram se rah saken. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘hoon! to tumhari patni bhi tumhare saath hai. ’
‘abhi to nahin hai magar ho jayegi yadi aap meri madad karen to!’ langDe bhoot ne kaha.
‘main madad karun? kaisi madad?’ sahukar ne puchha.
‘jis kisan ne mujhe aapke paas bheja hai, us kisan ki beti par main mohit ho gaya hoon. yadi aap kisan se kahkar uski beti ke saath mera vivah kara den to mera jivan sukhi ho jaye. kisan ki beti ka naam hai jatni. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘theek hai. tum kuch din kaam karo. yadi mujhe laga ki tum jatni ke yogya ho to main tumhara vivah uske saath kara dunga. ’ sahukar ne ashvasan diya.
langDe bhoot ke liye koi bhi kaam kathin nahin tha. wo chutki bajata, mantr phunkta aur kaam ho jata. sahukar langDe bhoot ke kaam se atyant prasann hua. udhar jatni ne bhi langDe bhoot ko dekha to use bhi wo pasand aaya. jatni ko ab tak pata chal gaya tha ki uske pita pahuna yani langDe bhoot ke saath uska vivah karna chahte hain. ye koi nahin janta tha ki pahuna koi manushya nahin apitu langDa bhoot hai.
ek din langDe bhoot ne sahukar ko uska vachan yaad dilaya.
yadi main aapko jatni ke yogya lagta hoon to mera uske saath vivah kara dijiye. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘theek hai. tum har tarah se jatni ke yogya ho. tum isi gaanv mein rahoge, ye bhi achchhi baat hai kyon ki jatni apne mata pita ki iklauti santan hai. tumhare yahan rahne se unhen bhi sahara milega. ’ sahukar ne kaha.
‘jatni ke mata pita mere mata pita ke saman hain. main unka pura pura rakhunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
uchit samay dekhkar sahukar ne jatni ke pita se jatni aur langDe bhoot vivah ke bare mein baat ki. jatni ka pita ye sochkar aur bhi prasann hua ki jis laDke ko wo jatni ka dulha banana chahta hai uski sifarish sahukar bhi kar raha hai. jatni ka pita saharsh maan gaya. shubh muhurt par jatni aur langDe bhoot ka vivah ho gaya. sahukar ne langDe bhoot ki jhopDi ki jagah ek achchha ghar banva diya. us ghar mein jatni aur langDa bhoot sukhpurvak rahne lage.
jatni ek kushal grihni siddh hui. wo ghar ki dekh bhaal karti aur langDe bhoot ki seva karti. ek raat jatni ko laga ki uska pati raat ko uthkar kahin chala jata hai. pahle to use laga ki ye uska bhram hoga. phir do teen raat usne sone ka bahana karke pata lagaya. usne paya ki uska pati sachmuch raat ko uthkar kahin jata hai. use apne pati ka ye achran dekhkar chinta hui.
‘aap raat ko uthkar kahan jate hain?’ ek din usne apne pati se poochh hi liya.
‘tumhen kaise pata ki main raat ko kahin jata hoon?’ langDe bhoot ne jatni se puchha. mainne svayan dekha hai. ’ jatni ne kaha.
‘main tumhein batakar dukhi nahin karna chahta tha. baat ye hai ki hamare vivah ko teen chaar saal hone ko aa ge hain aur hamara ek bhi bachcha nahin hua hai isliye main raat ko uthkar apne kul devta ki pujakarne jata hoon taki ve prasann hokar tumhari god bhar den. ’ langDe bhoot ne jhooth bolte hue kaha.
‘are, aisa hai to main bhi tumhare saath chalungi. main bhi tumhare kul devta ki puja karungi. ’ jatni ne utsahapurvak kaha.
‘nahin! tum nahin chal sakti ho. ve mere kul devta hain. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘jab mera tumse vivah hua hai to tumhara kul ab mera kul hai aur tumhare kul devta mere kul devta hain. isliye main to tumhare saath har haal mein chalungi. ’ jatni ne hath karte hue kaha.
‘theek hai, chalna. ’ langDe bhoot ne jatni ki baat maan li.
agli raat jab langDa bhoot utha to jatni bhi uth baithi. usne puja ki thali sajai aur langDe bhoot ke saath ho li. langDa bhoot gaanv se nikal kar ghane jangal mein ja pahuncha. ek sthaan par rukkar langDe bhoot ne kaha ki main kul devta ka ahvan karke unhen bulata hoon tab tak tum yahin thahro.
‘is bhayanak jangal mein mujhe akeli chhoDkar tum kahin mat jao. ’ jatni ne vinti ki. use Dar lag raha tha.
‘aisa karo ki tum is uunche vat ke vriksh par chaDhkar baith jao. mere aane tak vahin rukna. niche mat utarna. ’ ye kahkar lagDa bhoot andhere mein kahin ghayab ho gaya.
jatni vat vriksh par chaDhkar baith gai. jab bahut der tak uska pati nahin lauta to use chinta satane lagi. itne mein sher ke dahaDne ki avaz sunai di. jatni aur Dar gai. phir use laga ki kahin sher uske pati ko na kha jaye. ye sochte hi uska Dar door ho gaya aur wo jhat se vriksh se niche utri aur apne pati ko DhunDhane lagi.
abhi wo kuch door hi gai hogi ki lataon ki jhurmut ki dusri or use apna pati dikhai diya. uska pati zamin mein baithkar manushya ka shav kha raha tha. ye drishya dekhkar jatni murchhit hote hote bachi. wo samajh gai ki uska pati koi manushya nahin apitu ek bhoot hai. jatni haDbaDa kar bhagne ko jaise hi palti vaise hi langDe bhoot ne jatni ko dekh liya.
jatni ruko! wo chillaya, ‘main tumko marana nahin chahta tha lekin ab tumne mera asli roop dekh liya hai to ab main tumhein maar Dalunga jisse tum bhi meri tarah bhoot ban jaogi. phir hum aram se rahenge aur manushyon ko maar markar khaya karenge. ’
jatni ne ye suna to wo aur adhik Dar gai. wo aur tez bhagne lagi. kintu langDa bhoot usse adhik tez tha. jab jatni ko laga ki langDa bhoot use pakaD lega to usne ek pipal ke peD se raksha karne ki pararthna ki.
jatni ki prarthana sunkar pipal ka peD beech se do hisse mein phat gaya. jatni usmen ja baithi. pipal ka peD phir pahle jaisa sabut ho gaya. langDa bhoot chakit tha ki jatni kahan chali gai? wo jatni ko DhunDhata DhunDhata door nikal gaya.
jab jatni ashvast ho gai ki uska pati door chala gaya hai to usne pipal se phir pararthna ki.
‘pipal pipal! tumne mere praan bachaye. mera pati bhoot hai. mujhe kha jata. ab wo door chala gaya hai isliye tum mujhe ab jane do!ta ye sunkar pipal ka peD phir se do phaank ho gaya. jatni usmen se bahar nikli aur jangal mein chal paDi.
jatni bhatakti bhatakti bhookh pyaas ke mare behal ho gai. wo do raat do din jangal mein bhatakti rahi. use disha ka bhi gyaan nahin tha. wo apne ghar ka rasta bhi nahin janti thi. use lag raha tha ki koi jangli janvar use kha jayega aur wo kabhi apne ghar nahin pahunch payegi. tabhi achanak use ek jhopDi dikhai di. wo jhopDi ek chhote se gaanv mein thi. gaanv mein das pandrah ghar the. wo jhopDi gaanv ke bahar ki or thi. isliye jatni ko vahi sabse pahle dikhai di. jatni girti paDti us jhopDi mein pahunchi. wo jhopDi ek buDhiya ki thi. jaise hi buDhiya ne jatni ko dekha to uska chehra khil utha.
‘ao aao bahu! main to tumhari hi prtiksha kar rahi thi. ’ us buDhiya ne jatni ka svagat karte hue kaha.
ye sunkar jatni chakit rah gai. use laga ki jis buDhiya se wo kabhi mili hi nahin, jise usne kabhi dekha hi nahin wo use ‘bahu’ kahkar kyon prakar rahi hai? kahin ye us langDe bhoot ki sathin to nahin hai? lekin ab jatni itni thak gai thi ki wo vahan se bhaag bhi nahin sakti thi. atah usne uupar se kuch nahin kaha.
‘lo pani pi lo. ’ buDhiya ne jatni ko prem se pani pilaya. pani pikar jatni ko tanik achchha laga. uski thakan bhi kam ho gai. tab jatni ka dhyaan gaya ki buDhiya ki jhopDi mein okhli aur musal rakha hua tha aur okhli ke paas kuch manav khopDiyan paDi hui theen. jatni ko vishvas ho gaya ki ye buDhiya us langDe bhoot ki tarah manushyon ko markar khati hai ya phir us bhoot ke liye manushyon ko markar rakhti hai. use laga ki wo ek musibat se nikli to dusri musibat mein phans gai.
‘amma, kya kar rahi theen?’ jatni ne prempurn svar mein buDhiya se puchha.
‘amma, ab main aa gai hoon to ab tumhein akele kaam karne ki avashyakta nahin hai. lao main dhaan koot deti hoon. ’ jatni ne musal pakaDte hue kaha.
‘tum theek kahti ho. bahu ke hote hue saas ko kaam karne ki kya avashyakta? phir bhi main tumhein akeli kaam nahin karne dungi. chalo, main okhli mein dhaan Dalti hoon aur tum kutna. ’ buDhiya chikni chupDi baten karti hui boli.
jaise hi buDhiya dhaan Dalne ko okhli mein jhuki vaise hi jatni ne musal utha kar buDhiya ko hi koot Dala. musal se kutne par buDhiya ki khaal alag ho gai. itne mein langDa bhoot aa gaya. jatni ne jaldi se buDhiya ke shav ko chhipa diya aur svayan bhi chhip gai. bhoot ne buDhiya ko pukara.
‘amma, jatni to ab tak mili nahin us par aaj koi manushya bhi nahin mila. tumne koi manushya moorkh banakar pakDa kyaa?’ langDe bhoot ne puchha.
buDhiya jivit hoti to uttar deti. tab jatni ne jaldi se buDhiya ki khaal pahan li aur buDhiya ki avaz banakar boli, ‘beta, ab mujhe bhi yahan koi manushya nahin mil pata hai isliye ab main dusri jagah jane ki soch rahi hoon. ho sakta hai ki aaj hi main kahin aur chali jaungi. ’
‘theek hai. jahan rahna, vahan se mujhe sandesh bhej dena. main vahin aa jaya karunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘haan, ye theek rahega. ’ buDhiya ke vesh mein jatni ne kaha.
jab langDe bhoot ne dekha ki vahan bhi uske khane ke liye kuch nahin hai to wo vapas chala gaya. ab jatni ko langDe bhoot ka Dar nahin tha. usne buDhiya ki jhopDi ki safai ki aur vahin aram se rahne lagi. buDhiya ka ek chhota sa khet tha. jatni us khet mein kaam karne lagi. usi gaanv mein ek yuvak apne mata pita ke saath rahta tha. us yuvak ka naam tha nanku. nanku ka khet buDhiya ke khet ke paas tha. wo prati din buDhiya ko apne khet mein aate jate dekhakarta tha.
ek din jatni khet ja rahi thi ki raste mein uski rotiyan gir gain. nanku ne dekha to use laga ki buDhiya ki rotiyan gir gai hain atah wo rotiyan uthakar buDhiya ko de de anyatha buDhiya ko dopahar mein bhukha rahna paDega. nanku ne rotiyan utha leen. phir uske man mein aaya ki ye rotiyan wo dopahar mein hi dene jayega tab wo buDhiya ke saath baithkar apni rotiyan bhi kha lega. akhir buDhiya roz akeli rotiyan khati hai.
dopahar hone par nanku rotiyan lekar buDhiya ke khet par pahuncha. buDhiya use nahin dikhi. tab wo buDhiya ko khojne laga. buDhiya ke khet ke paas se ek nadi bahti thi. nanku ko laga ki kahin buDhiya nadi mein nahane na gai ho. ye vichar karke wo nadi ke paas pahuncha. vahan usne dekha ki ek sundar yuvati nadi mein nha rahi hai. wo yuvati nha kar nadi ke pani se bahar aai aur usne buDhiya ki khaal pahan li. ye dekhkar nanku dang rah gaya. parantu wo yuvati par itna mohit ho gaya ki usne usi pal nishchay kar liya ki wo is yuvati se vivah karke rahega.
nanku jatni ki rotiyan uske khet mein ek peD ke niche rakhkar apne khet mein laut aaya. shaam ko jab wo apne ghar lauta to usne ghar pahunchte hi apne mata pita se kah diya ki wo buDhiya se vivah karna chahta hai. ye sunkar uske mata pita chakra ge. wo buDhiya to nanku ki maan se bhi adhik aayu ki thi.
nanku ke mata pita ne nanku ko samjhane ka bahut prayas kiya. lekin nanku janta tha ki buDhiya ki khaal ke bhitar ek sundar yuvati hai. samasya ye thi ki wo ye baat kisi se kah nahin sakta tha kyonki koi bhi uski is baat par vishvas nahin karta, ulte uska mazak hi uData. isiliye nanku ne kisi ko sachchai nahin batai. jab nanku ke mata pita use samjha samjha kar haar ge to unhonne buDhiya ke saath vivah karne ki anumti use de di.
buDhiya ke roop mein rahne vali jatni se nanku ne vivah kar liya. jatni ko bhay tha ki kahin kisi din langDa bhoot phir se na aa jaye isliye usne buDhiya ki khaal pahanna nahin chhoDa. gaanv valon ne jab dekha ki nanku ne apni maan se baDi aayu ki buDhiya se vivah kar liya hai to unhen laga ki wo buDhiya avashya koi Dayan hogi jisne nanku ko apne vash mein kar liya hai. jab is prakar ki afvah charon or phaili to nanku ko chinta hui. use laga ki kahin gaanv vale uski patni ko Dayan samajh kar maar na Dalen. isliye ek din usne apni buDhiya patni ka chupchap pichha kiya. jab uski patni buDhiya ki khaal utaar kar nadi mein nahane gai to nanku ne khaal utha li aur use jala diya. nanku ki patni arthat jatni jab nha kar nadi se bahar aai aur usne pahanne ko buDhiya ki khaal uthani chahi to vahan use buDhiya ki khaal ki raakh dikhai di. itne mein nanku bhi samne aa gaya.
‘tum itni sundar hokar bhi buDhiya ki khaal mein kyon rahti theen?’ nanku ne puchha.
‘langDe bhoot ke Dar se. ’ jatni ne kaha aur phir nanku ko apna pura qissa suna Dala.
‘ab tumhein langDe bhoot se Darne ki avashyakta nahin hai. main bhoot pret bhagana janta hoon. ab langDa bhoot tumhein kabhi tang nahin kar sakega. ’ nanku ne jatni ko ashvast karaya.
iske baad jatni aur nanku gaanv laut aaye. gaanv lautkar nanku ne jatni ke bare mein pure gaanv valon ko bataya. gaanv vale ye jankar khush ho ge ki jatni koi Dayan vayan nahin hai, wo to ek sundar yuvati hai.
jatni aur nanku sukhpurvak jivan vyatit karne lage.
ek din gaanv mein ek chuDi bechne vala aaya. gaanv ki sabhi striyan usse chuDi kharidne pahunchin. jatni bhi gai. chuDivale ne sabhi striyon se chuDi ke paise liye kintu jatni se paise nahin liye. is par jatni ko sandeh hua.
‘chuDivale tum mujhse paise kyon nahin le rahe ho?’ jatni ne puchha.
‘tumhari kalaiyan meri patni ki kalaiyon ki tarah sundar hain isliye mujhe uski yaad aa gai aur mainne tumse paise nahin liye. ’ chuDivale ne uttar diya.
‘tumhari patni kahan hai?’ jatni ne puchha.
‘vah kho gai hai. ’ chuDivale ne bataya.
ab jatni ka sandeh pakka ho gaya.
‘tumhari patni tumhein mil jaye to kya karoge?’ jatni ne puchha.
‘apne saath rakhunga. saat janmon tak na chhoDunga. ’ chuDivale ne uttar diya.
‘aur jo tumhari patni tumhare saath na rahna chahe to?’ jatni ne puchha.
wo mana kar hi nahin payegi. use main apne jaisa bana lunga aur apne saath rakhunga. ’ chuDivale ne uttar diya.
jatni samajh gai ki wo chuDivala aur koi nahin apitu langDa bhoot hai aur usne jatni ko pahchan liya hai. jatni Dar gai. usne langDe bhoot ke aane ke bare mein nanku ko bataya.
‘Daro mat! tum aaj se meri maan ke paas soya karo. phir dekho main us langDe bhoot ko kaise bhasm karta hoon. ’ nanku ne kaha.
us din se jatni raat ke samay nanku ki maan ke paas sone lagi. idhar nanku ne mitti se jatni ka pratirup banaya aur use bistar par lita diya. nanku us mitti ki jatni ke saath sone laga.
ek raat langDa bhoot chupke se nanku ke kamre mein ghusa. usne samjha ki nanku ki baghal mein jatni so rahi hai. langDe bhoot ne mitti ki jatni ko asli jatni samajh kar khane ka prayas kiya. jisse nanku ki neend khul gai aur usne mantr paDh kar sarson ke dane langDe bhoot par uchhaal diye. sarson ke dane langDe bhoot par girte hi langDa bhoot bhasm ho gaya. is prakar jatni ko langDe bhoot ke bhay se sada sada ke liye mukti mil gai. langDe bhoot ke bhasm ho jane ke baad jatni aur nanku sukhpurvak apna jivan vyatit karne lage.
sukma naam ka ek bahut chhota sa gaanv tha. us gaanv mein ek pipal ka peD tha. us pipal ke peD par ek bhoot rahta tha. bhoot tha langDa. wo langDa bhoot dusht prkriti ka tha. use manushyon ko markar khane mein anand aata tha. lekin wo sukma gaanv ke logon ko markar nahin khata tha. use Dar tha ki wo yadi sukma ke lagon ko markar khayega to ve us pipal ke peD ko kaat denge jis par uska basera hai. isliye wo aas paas ke ganvon mein jata aur koi mritak na milne par kisi bhi manushya ko markar kha leta.
pipal ke peD ke paas ek kisan ka ghar tha. kisan ko pata nahin tha ki uske ghar ke paas vale pipal ke peD par langDa bhoot rahta hai. kisan ki ek beti thi. beti ka naam tha jatni. jatni bahut sundar thi aur grihakarya mein daksh thi. jab jatni vivah ke yogya hui to uske pita ko uske vivah ki chinta satane lagi.
ek din kisan jatni ke vivah ko lekar apni patni se charcha kar raha tha.
‘hamari beti ab vivah ke yogya ho gai hai ab uske haath pilekar dene chahiye. ’ jatni ki maan ne jatni ke pita se kaha.
‘tum sach kahti ho lekin hamare paas itna paisa nahin hai ki hum jatni ke liye koi achchha var pa saken’ jatni ke pita ne chintit hote hue kaha.
‘hamari beti itni sundar hai ki koi bhi laDka use apni patni banana chahega. ’ jatni ki maan ne garv se kaha.
‘sundarta bhar se kuch nahin hota hai, vivah ke liye paise bhi chahiye, paise bhi. ’ jatni ke pita ne apni baat dohrai.
‘hamari beti gharelu kamon mein kushal hai. wo jis ghar mein jayegi us ghar ke din phir jayenge. ’ jatni ki maan vishvaspurvak boli.
‘tumhara to dimagh kharab hai. ’ jatni ka pita jhunjhlakar bola,’ ari jatni ki maan! ye sach hai ki hamari beti lakhon mein ek hai aur isiliye main chahta hoon ki hamari beti ko koi achchha sa var mile lekin hamari aisi qismat kahan?’
jatni ke mata pita isi prakar bahut der tak jatni ke vivah ko lekar vichar vimarsh karte rahe. us samay langDa bhoot pipal ke peD par apne Dere mein baitha hua tha. usne jatni ke mata pita ki sari baten dhyanapurvak sunin. langDe bhoot ko laga ki jatni sachmuch bahut sundar hai, use uske yogya var milna chahiye. phir uske man mein vichar utha ki kyon na wo svayan jatni se vivah kar le. yoon bhi sau baras ho chuke the use akele rahte rahte. use laga ki yadi jatni jaisi jivan sangini use mil jaye to uske sune jivan mein vasant aa jayega.
langDe bhoot ke man mein jaise hi jatni se vivah karne ka vichar aaya vaise hi usne ek svasth, sundar yuvak ka vesh dharan kiya aur jatni ke ghar ka darvaza khatkhatane laga.
‘kaun hai?’ jatni ke pita ne ghar ke bhitar se puchha.
‘pahuna. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘kya chahiye?’ jatni ke pita ne phir puchha.
‘pine ko ek lota pani. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘dhatu ke lote mein piyoge ki mitti ke lote men?’ jatni ke pita ne puchha.
‘mitti ke lote main. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘mitti ke lote mein kyon? dhatu ke lote mein kyon nahin?’ jatni ke pita ne phir puchha.
‘mitti mein lote ka pani adhik thanDa rahta hai aur pahuna ki pyaas thanDe pani se hi bujhti hai. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
langDe bhoot ka uttar sunkar jatni ka pita bahut prabhavit hua aur usne jhat se darvaza khola. apne samne ek sundar, sushil yuvak ko pakar wo chakit rah gaya. tab tak jatni ki maan mitti ke lote mein pani bhar lai. langDe bhoot ne pani piya aur jatni ki maan ko dhanyavad diya.
‘kahan se aa rahe ho aur kahan ja rahe ho, beta?’ jatni ke pita ne langDe bhoot ke shishtachar se prabhavit hokar madhur svar mein puchha.
‘mahanadi ke tat se aa raha hoon aur narmada kinare jaunga. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘are itni door se aa rahe ho aur itni door jaoge?’ jatni ka pita ashcharya se bola.
‘kaam kaaj ki talash mein bhatak raha hoon. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘oh, tumhare ghar parivar mein kaun kaun hain?’ jatni ki maan ne puchha.
‘koi nahin! bhoot ne kaha.
‘koi nahin?’ jatni ki maan ne chakit hokar puchha, ‘koi to hoga. ’
‘mere mata pita mahanadi ki baaDh mein Dubkar mar ge. hone ko nate rishtedar hain lekin sab svaarth ke meet hain. mere paas koi kaam kaaj nahin tha isliye sabne mujhe dutkar diya. ab mujhe jahan bhi kaam mil jayega vahan kaam karunga, apna ghar basaunga aur vahin rah jaunga. lautkar vapas nahin jaunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
ye sunkar jatni ka pita bahut prasann hua. use laga ki bhagvan ne uski pararthna sun li aur ghar baithe ek yogya yuvak bhej diya.
‘kaam to hamare gaanv mein bhi mil sakta hai. tum aisa karo ki hamare gaanv ke sahukar ke paas chale jao aur unko apni samasya batao. ve tumhari sahayata avashya karenge. ’ jatni ke pita ne kaha.
‘theek hai. main sahukar ke paas jata hoon. yadi mujhe koi kaam mil gaya to main yahin rah jaunga. yadi main aapke ghar ke paas us pipal ke peD ke niche apni jhopDi bana loon to aapko koi apatti to nahin hogi?’ langDe bhoot ne bholepan se puchha.
‘are nahin, bhala mujhe koi apatti kyon hone lagi? tum paas mein rahoge to hamein bhi prasannata hogi. ’ jatni ke pita ne kaha.
iske baad langDa bhoot sahukar ke paas gaya. sahukar ne usse uski yogyata puchhi.
‘tum kya kaam kar sakte ho?’
‘main jivit ko maar sakta hoon aur mare ko jila sakta hoon. ’ langDe bhoot ne uttar diya.
‘kya matlab tumhara?’ langDe bhoot ka uttar sunkar sahukar chakraya.
‘mera matlab hai ki main phasal kaat sakta hoon aur beej se paudhe uga sakta hoon. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘bahut baDhiya! tum kheti kisani kar sakte ho aur buddhi mein bhi kam nahin ho. mujhe tumhare jaisa honhar yuvak chahiye tha. ’ sahukar ne kaha.
‘jitne mein main aur meri patni aram se rah saken. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘hoon! to tumhari patni bhi tumhare saath hai. ’
‘abhi to nahin hai magar ho jayegi yadi aap meri madad karen to!’ langDe bhoot ne kaha.
‘main madad karun? kaisi madad?’ sahukar ne puchha.
‘jis kisan ne mujhe aapke paas bheja hai, us kisan ki beti par main mohit ho gaya hoon. yadi aap kisan se kahkar uski beti ke saath mera vivah kara den to mera jivan sukhi ho jaye. kisan ki beti ka naam hai jatni. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘theek hai. tum kuch din kaam karo. yadi mujhe laga ki tum jatni ke yogya ho to main tumhara vivah uske saath kara dunga. ’ sahukar ne ashvasan diya.
langDe bhoot ke liye koi bhi kaam kathin nahin tha. wo chutki bajata, mantr phunkta aur kaam ho jata. sahukar langDe bhoot ke kaam se atyant prasann hua. udhar jatni ne bhi langDe bhoot ko dekha to use bhi wo pasand aaya. jatni ko ab tak pata chal gaya tha ki uske pita pahuna yani langDe bhoot ke saath uska vivah karna chahte hain. ye koi nahin janta tha ki pahuna koi manushya nahin apitu langDa bhoot hai.
ek din langDe bhoot ne sahukar ko uska vachan yaad dilaya.
yadi main aapko jatni ke yogya lagta hoon to mera uske saath vivah kara dijiye. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘theek hai. tum har tarah se jatni ke yogya ho. tum isi gaanv mein rahoge, ye bhi achchhi baat hai kyon ki jatni apne mata pita ki iklauti santan hai. tumhare yahan rahne se unhen bhi sahara milega. ’ sahukar ne kaha.
‘jatni ke mata pita mere mata pita ke saman hain. main unka pura pura rakhunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
uchit samay dekhkar sahukar ne jatni ke pita se jatni aur langDe bhoot vivah ke bare mein baat ki. jatni ka pita ye sochkar aur bhi prasann hua ki jis laDke ko wo jatni ka dulha banana chahta hai uski sifarish sahukar bhi kar raha hai. jatni ka pita saharsh maan gaya. shubh muhurt par jatni aur langDe bhoot ka vivah ho gaya. sahukar ne langDe bhoot ki jhopDi ki jagah ek achchha ghar banva diya. us ghar mein jatni aur langDa bhoot sukhpurvak rahne lage.
jatni ek kushal grihni siddh hui. wo ghar ki dekh bhaal karti aur langDe bhoot ki seva karti. ek raat jatni ko laga ki uska pati raat ko uthkar kahin chala jata hai. pahle to use laga ki ye uska bhram hoga. phir do teen raat usne sone ka bahana karke pata lagaya. usne paya ki uska pati sachmuch raat ko uthkar kahin jata hai. use apne pati ka ye achran dekhkar chinta hui.
‘aap raat ko uthkar kahan jate hain?’ ek din usne apne pati se poochh hi liya.
‘tumhen kaise pata ki main raat ko kahin jata hoon?’ langDe bhoot ne jatni se puchha. mainne svayan dekha hai. ’ jatni ne kaha.
‘main tumhein batakar dukhi nahin karna chahta tha. baat ye hai ki hamare vivah ko teen chaar saal hone ko aa ge hain aur hamara ek bhi bachcha nahin hua hai isliye main raat ko uthkar apne kul devta ki pujakarne jata hoon taki ve prasann hokar tumhari god bhar den. ’ langDe bhoot ne jhooth bolte hue kaha.
‘are, aisa hai to main bhi tumhare saath chalungi. main bhi tumhare kul devta ki puja karungi. ’ jatni ne utsahapurvak kaha.
‘nahin! tum nahin chal sakti ho. ve mere kul devta hain. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘jab mera tumse vivah hua hai to tumhara kul ab mera kul hai aur tumhare kul devta mere kul devta hain. isliye main to tumhare saath har haal mein chalungi. ’ jatni ne hath karte hue kaha.
‘theek hai, chalna. ’ langDe bhoot ne jatni ki baat maan li.
agli raat jab langDa bhoot utha to jatni bhi uth baithi. usne puja ki thali sajai aur langDe bhoot ke saath ho li. langDa bhoot gaanv se nikal kar ghane jangal mein ja pahuncha. ek sthaan par rukkar langDe bhoot ne kaha ki main kul devta ka ahvan karke unhen bulata hoon tab tak tum yahin thahro.
‘is bhayanak jangal mein mujhe akeli chhoDkar tum kahin mat jao. ’ jatni ne vinti ki. use Dar lag raha tha.
‘aisa karo ki tum is uunche vat ke vriksh par chaDhkar baith jao. mere aane tak vahin rukna. niche mat utarna. ’ ye kahkar lagDa bhoot andhere mein kahin ghayab ho gaya.
jatni vat vriksh par chaDhkar baith gai. jab bahut der tak uska pati nahin lauta to use chinta satane lagi. itne mein sher ke dahaDne ki avaz sunai di. jatni aur Dar gai. phir use laga ki kahin sher uske pati ko na kha jaye. ye sochte hi uska Dar door ho gaya aur wo jhat se vriksh se niche utri aur apne pati ko DhunDhane lagi.
abhi wo kuch door hi gai hogi ki lataon ki jhurmut ki dusri or use apna pati dikhai diya. uska pati zamin mein baithkar manushya ka shav kha raha tha. ye drishya dekhkar jatni murchhit hote hote bachi. wo samajh gai ki uska pati koi manushya nahin apitu ek bhoot hai. jatni haDbaDa kar bhagne ko jaise hi palti vaise hi langDe bhoot ne jatni ko dekh liya.
jatni ruko! wo chillaya, ‘main tumko marana nahin chahta tha lekin ab tumne mera asli roop dekh liya hai to ab main tumhein maar Dalunga jisse tum bhi meri tarah bhoot ban jaogi. phir hum aram se rahenge aur manushyon ko maar markar khaya karenge. ’
jatni ne ye suna to wo aur adhik Dar gai. wo aur tez bhagne lagi. kintu langDa bhoot usse adhik tez tha. jab jatni ko laga ki langDa bhoot use pakaD lega to usne ek pipal ke peD se raksha karne ki pararthna ki.
jatni ki prarthana sunkar pipal ka peD beech se do hisse mein phat gaya. jatni usmen ja baithi. pipal ka peD phir pahle jaisa sabut ho gaya. langDa bhoot chakit tha ki jatni kahan chali gai? wo jatni ko DhunDhata DhunDhata door nikal gaya.
jab jatni ashvast ho gai ki uska pati door chala gaya hai to usne pipal se phir pararthna ki.
‘pipal pipal! tumne mere praan bachaye. mera pati bhoot hai. mujhe kha jata. ab wo door chala gaya hai isliye tum mujhe ab jane do!ta ye sunkar pipal ka peD phir se do phaank ho gaya. jatni usmen se bahar nikli aur jangal mein chal paDi.
jatni bhatakti bhatakti bhookh pyaas ke mare behal ho gai. wo do raat do din jangal mein bhatakti rahi. use disha ka bhi gyaan nahin tha. wo apne ghar ka rasta bhi nahin janti thi. use lag raha tha ki koi jangli janvar use kha jayega aur wo kabhi apne ghar nahin pahunch payegi. tabhi achanak use ek jhopDi dikhai di. wo jhopDi ek chhote se gaanv mein thi. gaanv mein das pandrah ghar the. wo jhopDi gaanv ke bahar ki or thi. isliye jatni ko vahi sabse pahle dikhai di. jatni girti paDti us jhopDi mein pahunchi. wo jhopDi ek buDhiya ki thi. jaise hi buDhiya ne jatni ko dekha to uska chehra khil utha.
‘ao aao bahu! main to tumhari hi prtiksha kar rahi thi. ’ us buDhiya ne jatni ka svagat karte hue kaha.
ye sunkar jatni chakit rah gai. use laga ki jis buDhiya se wo kabhi mili hi nahin, jise usne kabhi dekha hi nahin wo use ‘bahu’ kahkar kyon prakar rahi hai? kahin ye us langDe bhoot ki sathin to nahin hai? lekin ab jatni itni thak gai thi ki wo vahan se bhaag bhi nahin sakti thi. atah usne uupar se kuch nahin kaha.
‘lo pani pi lo. ’ buDhiya ne jatni ko prem se pani pilaya. pani pikar jatni ko tanik achchha laga. uski thakan bhi kam ho gai. tab jatni ka dhyaan gaya ki buDhiya ki jhopDi mein okhli aur musal rakha hua tha aur okhli ke paas kuch manav khopDiyan paDi hui theen. jatni ko vishvas ho gaya ki ye buDhiya us langDe bhoot ki tarah manushyon ko markar khati hai ya phir us bhoot ke liye manushyon ko markar rakhti hai. use laga ki wo ek musibat se nikli to dusri musibat mein phans gai.
‘amma, kya kar rahi theen?’ jatni ne prempurn svar mein buDhiya se puchha.
‘amma, ab main aa gai hoon to ab tumhein akele kaam karne ki avashyakta nahin hai. lao main dhaan koot deti hoon. ’ jatni ne musal pakaDte hue kaha.
‘tum theek kahti ho. bahu ke hote hue saas ko kaam karne ki kya avashyakta? phir bhi main tumhein akeli kaam nahin karne dungi. chalo, main okhli mein dhaan Dalti hoon aur tum kutna. ’ buDhiya chikni chupDi baten karti hui boli.
jaise hi buDhiya dhaan Dalne ko okhli mein jhuki vaise hi jatni ne musal utha kar buDhiya ko hi koot Dala. musal se kutne par buDhiya ki khaal alag ho gai. itne mein langDa bhoot aa gaya. jatni ne jaldi se buDhiya ke shav ko chhipa diya aur svayan bhi chhip gai. bhoot ne buDhiya ko pukara.
‘amma, jatni to ab tak mili nahin us par aaj koi manushya bhi nahin mila. tumne koi manushya moorkh banakar pakDa kyaa?’ langDe bhoot ne puchha.
buDhiya jivit hoti to uttar deti. tab jatni ne jaldi se buDhiya ki khaal pahan li aur buDhiya ki avaz banakar boli, ‘beta, ab mujhe bhi yahan koi manushya nahin mil pata hai isliye ab main dusri jagah jane ki soch rahi hoon. ho sakta hai ki aaj hi main kahin aur chali jaungi. ’
‘theek hai. jahan rahna, vahan se mujhe sandesh bhej dena. main vahin aa jaya karunga. ’ langDe bhoot ne kaha.
‘haan, ye theek rahega. ’ buDhiya ke vesh mein jatni ne kaha.
jab langDe bhoot ne dekha ki vahan bhi uske khane ke liye kuch nahin hai to wo vapas chala gaya. ab jatni ko langDe bhoot ka Dar nahin tha. usne buDhiya ki jhopDi ki safai ki aur vahin aram se rahne lagi. buDhiya ka ek chhota sa khet tha. jatni us khet mein kaam karne lagi. usi gaanv mein ek yuvak apne mata pita ke saath rahta tha. us yuvak ka naam tha nanku. nanku ka khet buDhiya ke khet ke paas tha. wo prati din buDhiya ko apne khet mein aate jate dekhakarta tha.
ek din jatni khet ja rahi thi ki raste mein uski rotiyan gir gain. nanku ne dekha to use laga ki buDhiya ki rotiyan gir gai hain atah wo rotiyan uthakar buDhiya ko de de anyatha buDhiya ko dopahar mein bhukha rahna paDega. nanku ne rotiyan utha leen. phir uske man mein aaya ki ye rotiyan wo dopahar mein hi dene jayega tab wo buDhiya ke saath baithkar apni rotiyan bhi kha lega. akhir buDhiya roz akeli rotiyan khati hai.
dopahar hone par nanku rotiyan lekar buDhiya ke khet par pahuncha. buDhiya use nahin dikhi. tab wo buDhiya ko khojne laga. buDhiya ke khet ke paas se ek nadi bahti thi. nanku ko laga ki kahin buDhiya nadi mein nahane na gai ho. ye vichar karke wo nadi ke paas pahuncha. vahan usne dekha ki ek sundar yuvati nadi mein nha rahi hai. wo yuvati nha kar nadi ke pani se bahar aai aur usne buDhiya ki khaal pahan li. ye dekhkar nanku dang rah gaya. parantu wo yuvati par itna mohit ho gaya ki usne usi pal nishchay kar liya ki wo is yuvati se vivah karke rahega.
nanku jatni ki rotiyan uske khet mein ek peD ke niche rakhkar apne khet mein laut aaya. shaam ko jab wo apne ghar lauta to usne ghar pahunchte hi apne mata pita se kah diya ki wo buDhiya se vivah karna chahta hai. ye sunkar uske mata pita chakra ge. wo buDhiya to nanku ki maan se bhi adhik aayu ki thi.
nanku ke mata pita ne nanku ko samjhane ka bahut prayas kiya. lekin nanku janta tha ki buDhiya ki khaal ke bhitar ek sundar yuvati hai. samasya ye thi ki wo ye baat kisi se kah nahin sakta tha kyonki koi bhi uski is baat par vishvas nahin karta, ulte uska mazak hi uData. isiliye nanku ne kisi ko sachchai nahin batai. jab nanku ke mata pita use samjha samjha kar haar ge to unhonne buDhiya ke saath vivah karne ki anumti use de di.
buDhiya ke roop mein rahne vali jatni se nanku ne vivah kar liya. jatni ko bhay tha ki kahin kisi din langDa bhoot phir se na aa jaye isliye usne buDhiya ki khaal pahanna nahin chhoDa. gaanv valon ne jab dekha ki nanku ne apni maan se baDi aayu ki buDhiya se vivah kar liya hai to unhen laga ki wo buDhiya avashya koi Dayan hogi jisne nanku ko apne vash mein kar liya hai. jab is prakar ki afvah charon or phaili to nanku ko chinta hui. use laga ki kahin gaanv vale uski patni ko Dayan samajh kar maar na Dalen. isliye ek din usne apni buDhiya patni ka chupchap pichha kiya. jab uski patni buDhiya ki khaal utaar kar nadi mein nahane gai to nanku ne khaal utha li aur use jala diya. nanku ki patni arthat jatni jab nha kar nadi se bahar aai aur usne pahanne ko buDhiya ki khaal uthani chahi to vahan use buDhiya ki khaal ki raakh dikhai di. itne mein nanku bhi samne aa gaya.
‘tum itni sundar hokar bhi buDhiya ki khaal mein kyon rahti theen?’ nanku ne puchha.
‘langDe bhoot ke Dar se. ’ jatni ne kaha aur phir nanku ko apna pura qissa suna Dala.
‘ab tumhein langDe bhoot se Darne ki avashyakta nahin hai. main bhoot pret bhagana janta hoon. ab langDa bhoot tumhein kabhi tang nahin kar sakega. ’ nanku ne jatni ko ashvast karaya.
iske baad jatni aur nanku gaanv laut aaye. gaanv lautkar nanku ne jatni ke bare mein pure gaanv valon ko bataya. gaanv vale ye jankar khush ho ge ki jatni koi Dayan vayan nahin hai, wo to ek sundar yuvati hai.
jatni aur nanku sukhpurvak jivan vyatit karne lage.
ek din gaanv mein ek chuDi bechne vala aaya. gaanv ki sabhi striyan usse chuDi kharidne pahunchin. jatni bhi gai. chuDivale ne sabhi striyon se chuDi ke paise liye kintu jatni se paise nahin liye. is par jatni ko sandeh hua.
‘chuDivale tum mujhse paise kyon nahin le rahe ho?’ jatni ne puchha.
‘tumhari kalaiyan meri patni ki kalaiyon ki tarah sundar hain isliye mujhe uski yaad aa gai aur mainne tumse paise nahin liye. ’ chuDivale ne uttar diya.
‘tumhari patni kahan hai?’ jatni ne puchha.
‘vah kho gai hai. ’ chuDivale ne bataya.
ab jatni ka sandeh pakka ho gaya.
‘tumhari patni tumhein mil jaye to kya karoge?’ jatni ne puchha.
‘apne saath rakhunga. saat janmon tak na chhoDunga. ’ chuDivale ne uttar diya.
‘aur jo tumhari patni tumhare saath na rahna chahe to?’ jatni ne puchha.
wo mana kar hi nahin payegi. use main apne jaisa bana lunga aur apne saath rakhunga. ’ chuDivale ne uttar diya.
jatni samajh gai ki wo chuDivala aur koi nahin apitu langDa bhoot hai aur usne jatni ko pahchan liya hai. jatni Dar gai. usne langDe bhoot ke aane ke bare mein nanku ko bataya.
‘Daro mat! tum aaj se meri maan ke paas soya karo. phir dekho main us langDe bhoot ko kaise bhasm karta hoon. ’ nanku ne kaha.
us din se jatni raat ke samay nanku ki maan ke paas sone lagi. idhar nanku ne mitti se jatni ka pratirup banaya aur use bistar par lita diya. nanku us mitti ki jatni ke saath sone laga.
ek raat langDa bhoot chupke se nanku ke kamre mein ghusa. usne samjha ki nanku ki baghal mein jatni so rahi hai. langDe bhoot ne mitti ki jatni ko asli jatni samajh kar khane ka prayas kiya. jisse nanku ki neend khul gai aur usne mantr paDh kar sarson ke dane langDe bhoot par uchhaal diye. sarson ke dane langDe bhoot par girte hi langDa bhoot bhasm ho gaya. is prakar jatni ko langDe bhoot ke bhay se sada sada ke liye mukti mil gai. langDe bhoot ke bhasm ho jane ke baad jatni aur nanku sukhpurvak apna jivan vyatit karne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 121)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।