Font by Mehr Nastaliq Web

कुहुकमंडल चिड़िया

kuhukmanDal chiDiya

अज्ञात

अज्ञात

कुहुकमंडल चिड़िया

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    एक महाजन था, उसके तीन लड़के थे। दो लड़कों की शादी हो चुकी थी। छोटे लड़के की शादी नहीं हुई थी। उसकी शादी से पहले ही महाजन की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद दोनों बड़े भाई व्यापार करने निकले। नाव को सजाया गया। मुहूर्त निकालकर जब चलने को हुए तो सभी से पूछा कि उनके लिए क्या लेकर आएँ। बड़ी बहू बोली, “मेरे लिए काले मेघ के रंग की एक सिल्क की भारी साड़ी लाना।” दूसरी बहू बोली, “मेरे लिए नीले रंग की साड़ी ला देना।” छोटे भाई से पूछा तो उसने कहा, “मेरे लिए कुहुकमंडल चिड़िया ला देना।” दोनों भाइयों ने नाव में सवार होकर यात्रा शुरू की।

    चलते-चलते एक राज्य में पहुँचे। वहाँ के राजा से मिलने गए और उन्हें उपहार में हीरा, मोती, माणिक दिए। उस राज्य में एक साल छह महीने तक व्यवसाय किया, ख़रीद-फ़रोख़्त की। वापस लौटते समय राजा से मिलकर इजाज़त ली। उसी राज्य से काले मेघ के रंग की और नीले रंग की साड़ी ख़रीदकर अपने मुल्क लौटने का इंतज़ाम करने लगे।

    नाव तैयार थी, तभी उन्हें याद आया कि छोटे भाई ने तो एक कुहुकमंडल चिड़िया लाने के लिए कहा था। अगर यह नहीं लेकर जाएँगे तो भाई उदास हो जाएगा। ऐसा सोचकर वे लौटे और राजा के पास पहुँचे। राजा ने उन लोगों को देखकर पूछा, “अरे तुम दोनों तो मुझसे इजाज़त लेकर जा चुके थे, फिर क्यों लौट आए?” दोनों भाइयों ने कहा, “महाराज, हमारे छोटे भाई ने कुहुकमंडल चिड़िया लेकर आने को कहा था। यहाँ हाट-बाज़ार हर जगह ढूँढा, पर कहीं भी वह चिड़िया हमें नहीं मिली। सभी ने यह सुनकर कहा कि अगर हम अपने देश में जाकर यह बात कहेंगे कि यहाँ कुहुकमंडल चिड़िया नहीं मिली तो हमारे राजा की बहुत बेइज़्ज़ती होगी। इसीलिए यह बात बताने के लिए फिर लौटकर आपके पास गए।”

    राजा भी था अड़ियल, बोला, “ठीक है, एक-दो दिन यहीं रुको। हम वह चिड़िया तुम्हें दिला देंगे।” उसके बाद राजा ने पूरे राज्य के जितने भी बहेलिये थे, सबको बुलावा भेजा और उनसे कहा, “दो दिन के अंदर अगर तुम लोग कुहुकमंडल चिड़िया पकड़कर नहीं लाओगे तो तुम लोगों के पूरे वंश का नाश कर दिया जाएगा।'' यह बात सुनकर सारे बहेलियों का ख़ून सूख गया। बहेलियों ने डंडा लेकर उसमें गोंद लगाया और जहाँ-जहाँ वह पक्षी मिलने की आशा थी, वहाँ-वहाँ ढूँढ़ते-ढूँढ़ते थक गए, पर कुहुकमंडल चिड़िया कहीं नहीं मिली।

    एक बूढ़ा बहेलिया पूरा जंगल, पहाड़, खोह घूम-घूमकर ढूँढ़कर, थक-हार कर भरी दुपहरी में कदंब के पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगा कि कल तो पूरा बहेलिया वंश निर्वंश हो जाएगा। उसी पेड़ में एक गिद्ध का घोंसला था। उस समय मादा गिद्ध अपने बच्चों के लिए आहार लेने गई थी। वह आहार लेकर लौटी और बच्चों को दिया, पर उससे बच्चों का पेट नहीं भरा तो वे चिल्लाने लगे। बोले, “माँ, हमारा पेट तो बिलकुल भी नहीं भरा। हमें कुछ और खाने के लिए दो। देखो हमारा पेट कैसे पिचका हुआ है।”

    मादा गिद्ध बोली, “अरे बच्चों, आज एक दिन और इंतज़ार कर लो। भूख दबा दो, कल सुबह भरपेट भोजन मिलेगा। और तीन दिन, क्या तीन पक्ष या फिर तीन महीने तक भी अगर खाओगे तो भी खाना ख़त्म नहीं होगा।” माँ की बात सुनकर बच्चों ने कहा, माँ तू हमें झूठ बोलकर बहला रही है।” माँ बोली, “नहीं, नहीं झूठ नहीं है। राजा ने आदेश दिया है कि कुहुकमंडल चिड़िया ढूँढ़कर लाने पर कल सुबह बहेलियों के पूरे वंश को मार दिया जाएगा। बहेलियों को वह चिड़िया कहाँ से मिलेगी? जब सब मर जाएँगे तो फिर जितना माँस खाना चाहो खा लेना।”

    बच्चों ने पूछा, “तो फिर वह चिड़िया है कहाँ माँ?” माँ बोली, “हमने जिस पेड़ पर अपना घोंसला बनाया है, उसी पेड़ की खोह में वह चिड़िया है। यह बात वे बहेलिये कहाँ जानते हैं कि उसे पकड़ लेंगे?” बूढ़े ने जैसे ही यह बात सुनी झट से वहाँ से उठा और चिल्लाकर सबको आवाज़ देने लगा। उसकी आवाज़ सुनकर सभी बहेलिये उसके पास पहुँच गए। तब उसने उन सबों से कहा, “इस पेड़ की खोह में घुसो। इसी में कुहुकमंडल चिड़िया ने अपना घोंसला बना रखा है। चलो उसे पकड़ते हैं और राजा को दे आते हैं।”

    सच ही खोह में हाथ डालकर टटोला तो वह चिड़िया वहीं मिल गई। अद्भुत थी वह चिड़िया। पल में कभी पतंगे की तरह छोटी हो जा रही है तो कभी गिद्ध की तरह बड़ी। बहेलियों ने उसे पकड़कर झोले में डाला और ले चले राजा के पास। राजा के पास पहुँचकर चिड़िया भेंट करके उन्हें सबने दंडवत प्रणाम किया। राजा ने चिड़िया को देखा। फिर सभी बहेलियों को सिर पर बाँधने के लिए पगड़ी दी। दोनों सौदागर भाइयों को वह चिड़िया भेंट में दी। दोनों भाई ख़ुशी के साथ नाव पर चढ़कर अपने देश रवाना हुए।

    नौका किनारे लगी तो दोनों बहुओं ने भाइयों की आरती उतारी। दोनों भाई नौका से रुपया, सोना लेकर घर पहुँचे। दोनों बहुओं को उनकी साड़ी दी और भाई को कुहुकमंडल चिड़िया दे दी। वह चिड़िया छोटे भाई के पास रहने लगी।

    एक दिन चिड़िया अपने स्वामी से बोली, “हुज़ूर! आपके दोनों भाइयों ने तो ब्याह करके घर बसा लिया, परंतु आप क्यों शादी नहीं कर रहे हैं?” छोटा बोला, “मेरे लायक़ लड़की ही नहीं मिली। इस बीच पिता जी का तो देहांत भी हो गया। अब मेरे लायक़ लड़की मिले तभी मेरा ब्याह होगा।” उसकी बात सुनकर चिड़िया बोली, “अच्छा तो यह बात है, ठीक है मैं जाऊँगी और तुम्हारे लिए लड़की ढूँढ़कर ले आऊँगी।” महाजन का बेटा बोला, “ठीक है तो तुम जाओ।” चिड़िया ने उड़ते हुए सारा मुल्क छान मारा। कहीं अगर कोई दिव्य सुंदरी लड़की दिखती तब जाकर अपने स्वामी से बताती। जब ढूँढ-ढूँढ़कर निराश हो गई तो सात समंदर पार उड़ते हुए लंका के उस पार एक टापू में जा पहुँची।

    उस टापू में एक राजा था और उसकी एक ही लड़की थी। उस राजकुमारी के लायक़ वर मिलने के कारण अब तक उसको तेल-हल्दी नहीं चढ़ा था। तीनों लोकों की रूपसी कन्याओं पर राजकुमारी का रूप भारी पड़ रहा था। सच में मानो कोई अप्सरा हो। तन का रंग चंपा के फूल की तरह पीला। कोमल इतना कि छू देने पर ख़ून निकल आए। चिड़िया ने उसे देखते ही सोचा कि जैसा वर है, वैसी ही कन्या है। विधाता ने मानो दोनों को एक-दूसरे के लिए ही बनाया है।

    राजकुमारी महल की छत पर बैठकर बाल संवार रही थी तभी वह चिड़िया रेशम की तरह चमकीले तोते का रूप धरकर राम-नाम लेते हुए राजकुमारी से कुछ दूरी पर जाकर बैठ गई। राजकुमारी ने उसे देखा तो एक नरम खीरा उसे दिखाकर पास बुलाते हुए बोली, “ओहो! कितना सुंदर तोता है।” चिड़िया बोली, “मुझे देखकर तुम इतना मोहित हो रही हो। मेरे स्वामी को देख लोगी तो जाने क्या हाल होगा? तुम अगर वादा करो कि पिंजरे में मुझे बंद नहीं करोगी तो मैं तुम्हारे पास जाऊँगी।”

    राजकुमारी ने जब तीन बार सत्य, सत्य, सत्य कहा तो तोता उड़कर उसके हाथ पर जाकर बैठ गया। तब राजकुमारी ने उससे पूछा, “तुम्हारा मालिक कौन है?” तोता बोला, “तुम जैसी कन्या के लिए विधाता ने उस जैसा वर तय कर रखा है।” राजकुमारी का मन व्याकुल होने लगा। वह बोली, “तुम्हारे मालिक को किसी तरह एक बार मैं देख पाती भला?” तोता बोला, “ठीक है, मैं जा रहा हूँ। अपने मालिक को लेकर आऊँगा। वह तो सात समंदर पार लंका के उस तरफ़ है। पर एक बात है। मैं उन्हें इस राजमहल के अंदर कैसे लाऊँगा? तुम पहले ऐसी कोई जगह बताओ जहाँ मैं पहले मालिक को लाकर रखूँगा, फिर तुम जाकर उनसे मिल लेना।”

    राजकुमारी ने उसे तालाब के किनारे मिलने के लिए कहा। तब कुहुकमंडल चिड़िया वहाँ से उड़ चली और उड़ते-उड़ते सात समंदर पार महाजन के बेटे के पास पहुँची और सारी बातें उसे बता दी। सब सुनकर महाजन का बेटा बोला, वह टापू तो यहाँ से ना जाने कितना दूर है। मैं इतनी दूर जाऊँगा कैसे?” चिड़िया बोली, “बस इतनी सी बात है। तुम मेरी पीठ पर बैठो। मैं चाहूँगी तो उड़ते हुए तुम्हें एक दिन एक रात के बाद उस टापू में पहुँचा दूँगी। तब तो समस्या नहीं रहेगी न?”

    महाजन का लड़का पहले तो उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया, पर जब चिड़िया ने अपना विशाल रूप दिखाया तो वह तैयार हो गया। किसी से कुछ बोला नहीं, चिड़िया की पीठ पर बैठा और उड़ चला। चिड़िया उड़ते-उड़ते सात समंदर पार उस टापू में पहुँची। महाजन के लड़के को तालाब के किनारे बैठाकर, फिर तोता बनकर राजकुमारी के पास जाकर महाजन के बेटे के पहुँचने की ख़बर दी। ख़बर सुनकर राजकुमारी उसे देखने के लिए वहाँ पहुँची।

    वहाँ पहुँचकर महाजन के लड़के को देखते ही वह उस पर मोहित हो गई। वहाँ से लौटकर एक कमरे में लेट गई। किसी से कुछ बात नहीं की। रानी ने दासियों से कारण जानकर आने के लिए कहा। दासियों ने राजकुमारी के पास से लौटकर रानी से कहा, “तालाब के किनारे एक विदेशी आकर बैठा है। राजकुमारी का उससे ब्याह नहीं कराएँगे तो वह अपने प्राण त्याग देंगी।”

    यह बात राजा के कानों में पहुँची। राजा करते भी क्या, इकलौती बेटी की बात भला टालते कैसे? इसलिए कहा, “ठीक है चलो चलकर उस विदेशी को देख आते हैं।” राजा तालाब के किनारे महाजन के लड़के के रूप को देखकर मोहित हो गए। उसके बाद ब्याह की तैयारी करने लगे। दोनों का विवाह हो गया। तब कुहुकमंडल चिड़िया बोली, “मेरी पीठ पर बैठो। मैं सात समंदर पार कर तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा दूँगी।”

    महाजन का लड़का जाने की तैयारी करने लगा तो राजा ने उनसे कुछ दिन और रुकने का आग्रह किया। राजा ने दोनों के लिए एक महल बनवा दिया। उसमें पति-पत्नी और वह चिड़िया कुछ दिन ख़ूब आनंद से ठहरे। इसी तरह बीतते-बीतते कई महीने बीत गए। राजकुमारी ने एक बहुत सुंदर बालक को जन्म दिया। इस बीच कुहुकमंडल चिड़िया महाजन के लड़के से बार-बार देश लौट जाने की बात करती। समय बीतता रहा और वह शिशु अब तीन-चार साल का हो गया।

    राजकुमारी को फिर से गर्भ ठहर गया। तब चिड़िया बोली, “धीरे-धीरे मेरा बोझ तुम लोग बढ़ाने लगे हो। यहाँ रहना क्यों चाह रहे हो? चलो अपने देश वापस चलते हैं।” दामाद ने जब ससुर से जाकर इजाज़त देने की बात कही तो राजा ने उसे काफ़ी दान-दहेज़ देना चाहा। तब चिड़िया बोली, इतनी धन-संपत्ति कौन ढो कर ले जाएगा? सिर्फ़ हम चारों जाएँगे।” तब राजकुमारी, बेटा और महाजन का लड़का चिड़िया की पीठ पर बैठे। चिड़िया वहाँ से सबको पीठ पर बिठाकर उड़ चली। अभी वह आधे रास्ते पहुँचे थे, ऊपर बादल नीचे समुद्र। समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उछाल मार रही थीं। राजकुमारी तो पेट से थीं। उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। चिड़िया बोली, “बिलकुल चिंता मत करो। चुटकी बजाते ही मैं तुम्हें उस पार पहुँचा दूँगी।” वह इतना कहकर बहुत तेज़ गति से उड़ने लगी। उड़ते-उड़ते वे समुद्र के किनारे पहुँचे। तीनों उसकी पीठ पर से जैसे ही उतरे, राजकुमारी को दर्द उठा और उसने एक सुंदर लड़के को जन्म दिया।

    पर तीनों की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। समुद्र का किनारा राज्य से काफ़ी दूर था। चारों तरफ़ बालू ही बालू था। भरी दुपहरी की धूप, दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं रहा था। हवा धीरे-धीरे बह रही थी। महाजन का लड़का सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। चिड़िया बोली, “मालिक! ऐसे बैठे रहने से क्या होगा? देखते-देखते अँधेरा घिर जाएगा। बालू ठंडा हो जाएगा। तुम जाकर जंगल से कुछ सूखी लकड़ी लेकर आओ। मैं जाती हूँ आग लेने। यहीं आग जलाकर माँ, बेटे को सेंक देंगे। दोनों थोड़ा स्वस्थ हो जाएँ तो मैं सबको घर पहुँचा दूँगी।”

    चिड़िया इतना कहकर आग लेने चली गई। उड़ते-उड़ते उसने देखा कि हाथ-पैर नहीं बस माँस का लोथड़ा बना एक अपंग व्यक्ति एक पेड़ के नीचे बैठा है। जैसे ही उस चिड़िया के पंख की हवा उसके शरीर को लगी, वैसे ही उसके हाथ-पैर के घाव ठीक हो गए। उँगलियाँ उग आईं। तब अपंग ने सोचा कि जब इस चिड़िया के पंख की हवा लगने से ही मुझे इतना फ़ायदा हुआ है तो इसका माँस खाने से तो मैं निरोग हो जाऊँगा। यह सोचकर वह वहीं बैठा रहा।

    कुछ देर बाद जब चिड़िया आग लेकर उसी रास्ते से लौटने लगी तो उस अपंग ने उसे पुकारा, “हे भाई, मुझे बीड़ी सुलगानी है। ठंड के मारे शरीर जकड़ा जा रहा है। ज़रा मुझे आग तो देना।” जैसे ही चिड़िया आग रखकर एक तरफ़ बैठी वैसे ही उस मूर्ख ने उसे एक लाठी मार दी। चिड़िया बेचारी वहीं छटपटाकर मर गई। तब उस दुष्ट अपंग ने लकड़ी के टुकड़े को इकट्ठा कर आग लगाई और चिड़िया का पंख, पैर, सिर अलग कर उसके धड़ को आग में पकाकर खा गया और ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर चला गया।

    उधर जब महाजन का लड़का लकड़ी लेने जंगल पहुँचा, उस समय वहाँ के नि:संतान राजा की मौत हो गई थी। राज्य के मंत्रीपरिषद राजहाथी के सूँड़ में सोने के कलश में पानी भरकर सब तरफ़ घुमाने लगे। जिसके सिर पर हाथी कलश से पानी उड़ेल देगा उसी को राजा बनाया जाएगा। हाथी घूमते हुए जंगल पहुँचा तो वहाँ महाजन का लड़का उसके सामने गया। हाथी ने उसके सिर पर जैसे ही पानी उड़ेल दिया, मंत्री-सेनापति सब आकर उसे पकड़कर ले गए। यह सब देखकर महाजन के लड़के की बोलती बंद हो गई। उसे राजगद्दी पर बिठा दिया गया।

    उधर राजकुमारी के पास उसका बड़ा लड़का था और छोटा बच्चा रो रहा था। अपने पति और चिड़िया के वापस लौटने का रास्ता जोहते-जोहते उसकी आँखें पथरा गईं। साँझ घिरने लगी तो राजकुमारी बड़े बेटे से बोली, “तू यहीं बैठा रह। मैं जाकर दो-चार कपड़े धोकर ले आती हूँ।” बेटा बोला, “ठीक है जाओ।” राजकुमारी जाकर समुद्र के किनारे कपड़ा धोने लगी, तभी किनारे पर एक जहाज़ रुका।

    जहाज़ चालक राजकुमारी को देखकर बोला, “अरे यह स्त्री तो स्वर्ग की अप्सरा से भी ज़्यादा सुंदर है। हमारे जो नए राजा होंगे इसे हम उनकी पटरानी बनाएँगे।” कहकर अपने साथियों के साथ मिलकर वे राजकुमारी को जहाज़ में बैठाकर ले गए। राजकुमारी सोचने लगी कि मुझे तो इन दुष्टों ने पकड़ लिया है। मुझे जान से मार देंगे। उधर मेरे बच्चे बहुत दुःख-तकलीफ़ पाएँगे। यह सब बातें सोचते-सोचते राजकुमारी बेहोश हो गई।

    उधर वह छोटा बच्चा भूख से चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा। उसके इस तरह रोने से बड़े बेटे के कान फटने लगे। देखते-देखते साँझ और घिरने लगी। माँ क्यों नहीं लौटी, पापा क्यों नहीं लौटे, सोच-सोच कर बड़ा बेटा भी उन्हें याद करते रोने लगा। तभी जंगल में से काली गाय निकली। उस नन्हें से बच्चे के पास आकर सामने के दोनों पैर मोड़कर अपना थन उसके मुँह के ऊपर रख दिया। भूख-प्यास से तड़प रहा बच्चा थन का स्पर्श पाते ही जल्दी-जल्दी चूसकर दूध पीने लगा। भरपेट दूध पीकर वह शांत हो गया। रोते-रोते थक गया था। अब पेट भर जाने पर गहरी नींद में सो गया। उसके बाद गाय बड़े बेटे के पास आकर खड़ी हो गई। बड़े बेटे का भी भूख से बुरा हाल था। उसने भी भरपेट दूध पीया तो उसकी जान में जान आई। वह गाय दोनों बच्चों की रखवाली करते हुए रातभर उनके साथ रही।

    वह गाय एक ग्वाले की थी। जब गाय वापस नहीं लौटी तो ग्वाला यह सोचकर परेशान हुआ कि क्या पता जंगल में उसे कहीं बाघ खा गया या फिर साँप ने डस लिया। रातभर सबके खेत-बग़ीचों में ढूँढ़ा पर उसकी कोई खोज-ख़बर उसे नहीं मिली। सुबह जंगल की तरफ़ जाकर ढूँढ़ने लगा। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते समंदर के किनारे फैले बालू के मैदान में गाय को सोता हुआ पाया। उससे सटकर दो बच्चों को भी सोता हुआ पाया। वह ग्वाला निःसंतान था। सोचा षष्ठी माता ने तो मुझे संतान नहीं दी। इन्हीं दो बालकों को ले जाकर अपने बेटों की तरह पालूँगा।

    यह सोचकर दोनों बच्चों को साथ लिया और गाय को हाँकते हुए घर पहुँचा ग्वालिन को जाकर सारी बातें बताईं। ग्वालिन दोनों बच्चों को पाकर निहाल हो गई। दोनों बच्चों को बहुत लाड़-प्यार के साथ, हल्दी-चंदन लगाकर, दूध-दही-घी खिलाकर पालने लगी। दोनों बच्चे बड़े लाड़-प्यार से पलने लगे। उधर महाजन के लड़के का राज्यभिषेक हो जाने के बाद जहाज़ चालक राजकुमारी को लेकर राजा के पास पहुँचे। राजा समुद्र के उस इलाक़े में आदमी भिजवाकर बच्चों को ढूँढ़ने पहुँचा जहाँ वह उन्हें छोड़ आया था। पर वहाँ बच्चे नहीं मिले। दोनों ने सोचा कि बच्चे अब ज़िंदा कहाँ होंगे। बाघ या भालू खा गए होंगे। माता-पिता दोनों बच्चों को याद करके ख़ूब रोए।

    राजा के दोनों बच्चे ग्वाले के घर खाते-पीते बढ़ने लगे। जब दोनों का हाथ सिर को छूने लगा तो वे ग्वाले का हाथ बँटाने लगे। उस राजा के घर रोज़ ग्वाले के यहाँ से तीन डब्बा भर दूध जाता। एक दिन दूध लेकर राजा के यहाँ जाने के लिए ग्वाला तैयार हुआ तो बड़ा बेटा बोला, “बाबा मैं भी तुम्हारे साथ राजा के यहाँ जाऊँगा।” ग्वाले ने मना किया, “नहीं बेटा, तू अभी छोटा है। वह राजमहल है। तू वहाँ क्यों जाएगा? जाने कौन क्या कह दे, कुछ कर दे। तू मत जा।” तब बेटा बोला, “कभी तुम्हें सुविधा ना हो और तुम नहीं जा पाओ तो यदि मैंने पहले से राजा का घर देखा होगा तो तुम्हारी जगह दूध पहुँचा आऊँगा।” उसकी बात सुनकर ग्वाला उसे अपने साथ ले गया।

    ग़रीब के घर में जैसे हीरा हो, उसी तरह ग्वाले के यहाँ इतना सुंदर लड़का देखकर सभी आश्चर्य करने लगे। उस बालक को देखकर जाने क्यों राजा का मन व्याकुल सा होने लगा। उनके मन में ख़ून का मोह जगा तो उन्होंने ग्वाले से कहा, “हे ग्वाले क्या तेरा यह बालक हमारे यहाँ नौकरी करेगा?” तब ग्वाले ने कहा, “महाराज यह तो बच्चा है, अभी तो उसे अपनी धोती में गाँठ लगाना भी नहीं आया है। वह आपके यहाँ नहीं चल पाएगा।” राजा ने कहा, “अरे हम उसकी हर भूल-चूक में उसे सिखाते हुए उससे काम निकलवा लेंगे।” ग्वाला यह बात सुनकर रो पड़ा। लड़का बोला, “बाबा तुम इतने परेशान क्यों हो रहे हो? तुम तो हर दिन दूध लेकर राजमहल आओगे ही, तब तुम मुझसे भेंट कर लेना। राजा ने जब कहा है तो उनको क्यों मना करोगे?” तब ग्वाले ने हामी भर दी। ग्वाला हर दिन दूध लेकर आता, बेटे से हाल-चाल पूछ लेता। घर जाकर बेटे के कुशल-मंगल की ख़बर ग्वालिन को देता।

    इसी तरह कुछ दिन बीत गए। तब एक दिन छोटा लड़का बोला, “बाबा, मैं भी तुम्हारे साथ आज राजमहल जाकर भाई से मिल आता। मेरा मन बहुत व्याकुल हो रहा है।” ग्वाला बोला, “भाई गया तो राजा ने वहीं उसे रख लिया, अगर तू भी उधर रह जाएगा तो हम माँ-बाप दोनों अंधे हो जाएँगे! फिर भी तू चाहता है तो चल।” बाबा के यह कहने पर छोटा बेटा तैयार होकर साथ चला। राजा ने उसे देखा तो फिर उनका मन व्यग्र होने लगा। राजा-रानी दोनों बच्चों को देखकर अपने दोनों बेटों की याद करके ख़ूब रोए। जब ग्वाला और छोटा बेटा जाने के लिए तैयार हुए तो राजा ने कहा, “आज एक दिन के लिए छोटा बेटा यहाँ राजमहल में रुक जाए, कल चला जाएगा। तब छोटे बेटे ने भी कहा, “बाबा मैं आज रात भाई के पास रुक जाता हूँ। कल सुबह जब तुम दूध लेकर आओगे, तब तुम्हारे साथ मैं घर चला जाऊँगा।” तब ग्वाला बोला, “ठीक है। तुम रुक जाओ।”

    ग्वाला अपने घर चला गया। दोनों भाई राजमहल में रुके।

    रानी को इन दोनों भाइयों के ऊपर ख़ूब प्यार आया। रानी ने ख़ुद अपने हाथों से कई तरह के व्यंजन परोसकर उन्हें खिलाए। रात में दोनों राजा-रानी अपने बेटे को याद करते रहे, रोते रहे और सोए नहीं।

    राजा-रानी के बग़ल वाले कमरे में दोनों भाई ठहरे थे। छोटा बोला, “भाई मुझे नींद नहीं रही है, तुम मुझे कहानी सुनाओ।” तब बड़ा भाई बोला, “सुख कहूँ या दुःख कहूँ या फिर जो ख़ुद अनुभव किया है उसे कहूँ।” छोटे भाई ने कहा, “तुम कितने दिन के बूढ़े हो कि अपने अनुभव की बात कहोगे?” बड़ा भाई बोला, “अरे बच्चा हूँ तो क्या हुआ। इस उम्र में भी मैंने जो कुछ सहा उसे कहूँ तो एक पोथी लिख जाएगी।” छोटा भाई बोला, “ठीक है कहो फिर।”

    बड़े भाई ने कहना शुरू किया। हमें बाबा ने पाला ज़रूर है, पर हम एक राजा के नाती हैं। बाबा, माँ और मैं कुहुकमंडल चिड़िया की पीठ पर बैठकर सात समंदर पार करके जा रहे थे, तभी माँ के पेट में दर्द उठा। समंदर के किनारे जैसे ही उतरे, तेरा जन्म हुआ। बाबा तब आग जलाने के लिए लकड़ी लेने जंगल की तरफ़ गए तो उधर ही रह गए। कुहुकमंडल चिड़िया गई आग लाने को तो उधर ही रह गई और माँ कपड़े धोने गई तो उधर ही रह गईं। कोई नहीं लौटा। तभी एक काली गाय गई। हम दोनों ने उसका दूध पीया। रातभर उसने हमारी रखवाली की। सुबह ग्वाला आया और हम दोनों को ले जाकर अपने लड़के की तरह पाला।” राजा-रानी ने उनकी बात सुनी तो तुरंत पलंग से उतरकर उनके कमरे में पहुँचे और दोनों को गले लगाकर ख़ूब रोए। फिर दोनों को अपने कमरे में ले जाकर पलंग पर बिठाया। सुबह अपने मंत्री, सेनापति, सारे राज-दरबारियों से यह बात बताई। ग्वाला आया तो उसे बहुत धन-संपत्ति दी।

    राजा-रानी दोनों बेटों को लेकर ख़ुश थे। मन में सोचते रहते कि हम सब तो बिछुड़ गए थे और अब मिल भी गए। लेकिन उस कुहुकमंडल चिड़िया का क्या हुआ, जिसने हमारा इतना उपकार किया था; वह कहाँ गई? वह तो नहीं लौटी!

    एक दिन दोनों राजकुमार शिकार करने गए। रास्ते में एक बूढ़ा बहेलिया सिर पर एक गुच्छा पंख खोंसकर अपनी गोंद लगी लाठी लिए जा रहा था। राजकुमारों को देखकर सिर झुकाकर जैसे ही प्रणाम किया, सिर पर से कुछ पंख गिर गए। पंख देखकर बड़ा राजकुमार पहचान गया कि यह कुहुकमंडल चिड़िया के पंख हैं।

    बहेलिये से पूछा, “अरे, ये पंख तू कहाँ से लाया?” उस बहेलिये ने कहा, “हुज़ूर, समंदर के मैदानी इलाक़े में एक बरगद का पेड़ है। उसी के नीचे ये पंख मिले। पंद्रह-बीस साल हो गए ये पंख मिले हुए। ये पंख नीचे गिरते ही उछलने लगते हैं। इन्हें सिर पर खोंस लेने के बाद मैं जिस पक्षी पर भी निशाना साधता हूँ, वह पक्षी ज़रूर फँसता है। इन पंखों के कारण ही मैं अपना पेट पाल रहा हूँ।”

    राजकुमार बोला, “मैं तुम्हें मुँहमाँगा दाम दूँगा। तुम इन पंखों को हमें दे दो।” “जैसी आपकी आज्ञा”- कहकर बहेलिये ने पंख दे दिए। राजकुमार ने पंखों को लेकर राजा को दिखाया तो राजा बोले, “चरणामृत लाकर ज़रा छींट दो।” शिव-पार्वती का नाम लेकर पानी का छींटा जैसे ही पंखों पर पड़ा कुहुकमंडल चिड़िया ज़िंदा हो गई। उसके बाद सब मिल-जुलकर आनंदपूर्वक रहने लगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 11)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY