बहुत समय पहले की बात है। दो राजा थे। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। एक राजा की एक बेटी थी और दूसरे राजा का एक बेटा था। दोनों राजाओं ने एक दिन तय किया कि अपने बच्चों का परस्पर विवाह करके अपनी मित्रता को वैवाहिक संबंध में बदल देना चाहिए। दोनों राजाओं के कहने पर शुभ मुहूर्त्त निकाला गया और राजकुमार और राजकुमारी का परस्पर विवाह हो गया।
राजा ने राजकुमारी को पुत्री-धन के रूप में कंगन और चूड़ियाँ दीं। राजकुमार राजकुमारी को विदा कराकर कंगन और चूड़ियों सहित अपने महल में ले आया। दोनों हँसी-ख़ुशी से रहने लगे।
एक दिन राजकुमारी और राजकुमार अपने महल की अटारी में बैठे प्रेमालाप कर रहे थे। बातों-बातों में राजकुमारी ने राजकुमार से कहा कि ‘यदि मैं किसी दिन मर जाऊँ तो तुम दूसरा विवाह मत करना।’
राजकुमार ने राजकुमारी को आश्वासन दिया कि वह दूसरा विवाह कभी नहीं करेगा। दुर्भाग्यवश, कुछ दिन बाद राजकुमारी की मृत्यु हो गई। राजकुमार बहुत दुखी हुआ। दोनों राजा भी बहुत दुखी हुए।
कुछ दिन बाद दोनों राजाओं ने राजकुमार को समझाया कि उसे दूसरा विवाह कर लेना चाहिए। राजकुमार को राजकुमारी से किया गया वादा याद आ गया और उसने दूसरा विवाह करने से मना कर दिया। तब दोनों राजाओं की रानियों ने राजकुमार को समझाया कि उसे दूसरा विवाह कर लेना चाहिए। बहुत समझाने-बुझाने पर राजकुमार विवाह करने को तैयार हो गया।
दूसरी पत्नी के महल में आने पर राजकुमार ने उसे राजकुमारी का कंगन और कुछ चूड़ियाँ उसे पहनने के लिए दे दीं। दूसरी पत्नी कंगन और चूड़ियाँ पाकर बहुत ख़ुश हुई। वह उन्हें अपने हाथों से कभी नहीं उतारती। हमेशा उन्हें पहने रहती। जब वह अपने मायके गई तो वही कंगन और चूड़ियाँ पहने रही। उसने अपने मायके में घूम-घूम कर सभी को कंगन और चूड़ियाँ दिखाईं। सभी ने कंगन और चूड़ियों की सुंदरता की बहुत प्रशंसा की। दूसरी पत्नी कंगन और चूड़ियों की प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समाई थी।
दूसरी पत्नी की मुँहलगी दासी से यह सब देखा नहीं गया और उसने दूसरी पत्नी के कान भरते हुए कहा कि—‘आपका कंगन और आपकी चूड़ियाँ हैं तो बहुत सुंदर और उनसे आपका हाथ भी बहुत सुंदर दिखता है लेकिन यह सुंदरता एक हाथ में ही है। आपके दूसरे हाथ में भी ऐसा ही कंगन और ऐसी ही चूड़ियाँ होतीं तो बात बनती।’
अपनी प्रिय दासी की बात सुनकर दूसरी पत्नी बहुत दुखी हो गई। वह जब अपनी ससुराल लौटी तो वहाँ उसने किसी से कोई बात नहीं की। वह अपने कमरे में जाकर चुपचाप लेट गई। जब उसे भोजन करने के लिए उठने को कहा गया तब भी नहीं उठी। दासियाँ उसे उठाने के सारे प्रयास करके थक गईं तो उन्होंने राजकुमार को सूचना दी। राजकुमार ने आकर अपनी दूसरी पत्नी से उठने को कहा मगर दूसरी पत्नी ने राजकुमार की भी नहीं सुनी। तब राजकुमार ने अपनी दूसरी पत्नी के रूठने का कारण उसकी दासियों से पूछा। इस पर दूसरी पत्नी की मुँहलगी दासी ने इतराते हुए कहा कि हमारी मालकिन इस बात से दुखी हैं कि आपने उनके एक हाथ के लिए तो कंगन और चूड़ियाँ दीं लेकिन दूसरा हाथ सूना रखा। अब बात तो तभी बनेगी जब आप दूसरे हाथ में भी ऐसा ही कंगन और चूड़ियाँ पहना देंगे।
दासी की बात सुनकर राजकुमार सोच में पड़ गया। दूसरा कंगन और चूड़ियाँ उसकी पहली पत्नी अर्थात् राजकुमारी के पिता के पास थीं। राजकुमार को लगा कि जब राजकुमारी ही नहीं रही तो उसके पिता से दूसरा कंगन और चूड़ियाँ कैसे माँगें। लेकिन अंतत: उसे अपनी दूसरी पत्नी के हठ के आगे झुकना पड़ा। राजकुमार अपने पहले श्वसुर के पास पहुँचा और उसने अपने पहले श्वसुर से कहा—‘मैं आपके चरणस्पर्श करते हुए आपसे विनती करता हूँ कि जैसा कंगन और जैसी चूड़ियाँ आपने मुझे पहले दी थीं, वैसी ही एक बार फिर दे दीजिए।’
‘किंतु वो कंगन और चूड़ियाँ तो मुझे चंद्र देव ने दी थीं। तुम्हें चंद्र देव के पास जाकर उनसे कंगन और चूड़ियाँ माँगनी होंगी।’ राजकुमार के श्वसुर ने कहा।
राजकुमार चंद्र देव के पास पहुँचा और उनसे निवेदन किया कि ‘जो कंगन और चूड़ियाँ आपने मेरे पहले श्वसुर को दी थीं वैसा ही कंगन और वैसी ही चूड़ियाँ मुझे भी दे दें।’
‘वो कंगन और चूड़ियाँ तो मुझे गुरूबाबा ने दी थीं। तुम उनसे जाकर माँगो।’ चंद्र देव ने राजकुमार से कहा।
यह सुनकर राजकुमार गुरूबाबा के पास पहुँचा। उसने गुरूबाबा को प्रणाम किया और उनसे विनती करता हुआ बोला—‘जैसा कंगन और जैसी चूड़ियाँ आपने चंद्र देव को दी थीं वैसा ही कंगन और वैसी ही चूड़ियाँ मुझे भी दे दीजिए।’
‘लेकिन वो कंगन और वो चूड़ियाँ तो मुझे यमदूत ने दी थीं। इसलिए तुम यमदूत के पास जाओ और उन्हीं से कंगन और चूड़ियाँ माँगो।’ गुरूबाबा ने राजकुमार को सलाह दी।
राजकुमार गुरुबाबा की सलाह मान कर यमदूत से मिलने के लिए स्वर्ग जा पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि उसकी पहली पत्नी अर्थात् राजकुमारी एक आम के वृक्ष के नीचे बैठी हुई है और उसके पास कंगन और चूड़ियों वाली एक पोटली रखी है।
राजकुमार राजकुमारी को देखकर बहुत ख़ुश हुआ। उसे लगा कि राजकुमारी उसे कंगन और चूड़ियाँ दे देगी। वह राजकुमारी के पास रखी पोटली के पास पहुँचा लेकिन राजकुमारी ने पोटली छूने नहीं दिया।
‘तुमने मुझसे किया गया वादा तोड़ा। दूसरा विवाह रचाया। अब यदि तुम मुझसे आज भी प्रेम करते हो तो इस पोटली को हाथ लगाओ वरना इसे छुओ भी नहीं।’ राजकुमारी ने राजकुमार से कहा।
राजकुमारी की बात सुनकर राजकुमार ने अपने दिल को टटोला। राजकुमार को राजकुमारी के साथ व्यतीत किए सुनहरे दिन याद आने लगे। उसे लगा कि वह आज भी राजकुमारी से बहुत प्रेम करता है। तब उसे अपना वादा तोड़ने पर पश्चाताप होने लगा और उसने वहीं राजकुमारी के साथ रह जाने का निश्चय किया।
‘राजकुमार, यदि तुम यहाँ स्वर्ग में राजकुमारी के साथ रहना चाहते हो तो तुम्हें मूँग की दाल का एक दाना और चावल का एक दाना खाना होगा।’ यमदूत ने राजकुमार से कहा।
राजकुमार ने यमदूत का दिया हुआ एक दाना मूँग-दाल और एक दाना चावल का खाया और राजकुमारी के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगा।
bahut samay pahle ki baat hai. do raja the. donon mein ghanishth mitrata thi. ek raja ki ek beti thi aur dusre raja ka ek beta tha. donon rajaon ne ek din tay kiya ki apne bachchon ka paraspar vivah karke apni mitrata ko vaivahik sambandh mein badal dena chahiye. donon rajaon ke kahne par shubh muhurtt nikala gaya aur rajakumar aur rajakumari ka paraspar vivah ho gaya.
raja ne rajakumari ko putri dhan ke roop mein kangan aur chuDiyan deen. rajakumar rajakumari ko vida karakar kangan aur chuDiyon sahit apne mahl mein le aaya. donon hansi khushi se rahne lage.
ek din rajakumari aur rajakumar apne mahl ki atari mein baithe premalap kar rahe the. baton baton mein rajakumari ne rajakumar se kaha ki ‘yadi main kisi din mar jaun to tum dusra vivah mat karna. ’
rajakumar ne rajakumari ko ashvasan diya ki wo dusra vivah kabhi nahin karega. durbhagyavash, kuch din baad rajakumari ki mrityu ho gai. rajakumar bahut dukhi hua. donon raja bhi bahut dukhi hue.
kuch din baad donon rajaon ne rajakumar ko samjhaya ki use dusra vivah kar lena chahiye. rajakumar ko rajakumari se kiya gaya vada yaad aa gaya aur usne dusra vivah karne se mana kar diya. tab donon rajaon ki raniyon ne rajakumar ko samjhaya ki use dusra vivah kar lena chahiye. bahut samjhane bujhane par rajakumar vivah karne ko taiyar ho gaya.
dusri patni ke mahl mein aane par rajakumar ne use rajakumari ka kangan aur kuch chuDiyan use pahanne ke liye de deen. dusri patni kangan aur chuDiyan pakar bahut khush hui. wo unhen apne hathon se kabhi nahin utarti. hamesha unhen pahne rahti. jab wo apne mayke gai to vahi kangan aur chuDiyan pahne rahi. usne apne mayke mein ghoom ghoom kar sabhi ko kangan aur chuDiyan dikhain. sabhi ne kangan aur chuDiyon ki sundarta ki bahut prshansa ki. dusri patni kangan aur chuDiyon ki prshansa sunkar phuli nahin samai thi.
dusri patni ki munhalagi dasi se ye sab dekha nahin gaya aur usne dusri patni ke kaan bharte hue kaha ki—‘apka kangan aur apaki chuDiyan hain to bahut sundar aur unse aapka haath bhi bahut sundar dikhta hai lekin ye sundarta ek haath mein hi hai. aapke dusre haath mein bhi aisa hi kangan aur aisi hi chuDiyan hotin to baat banti. ’
apni priy dasi ki baat sunkar dusri patni bahut dukhi ho gai. wo jab apni sasural lauti to vahan usne kisi se koi baat nahin ki. wo apne kamre mein jakar chupchap let gai. jab use bhojan karne ke liye uthne ko kaha gaya tab bhi nahin uthi. dasiyan use uthane ke sare prayas karke thak gain to unhonne rajakumar ko suchana di. rajakumar ne aakar apni dusri patni se uthne ko kaha magar dusri patni ne rajakumar ki bhi nahin suni. tab rajakumar ne apni dusri patni ke ruthne ka karan uski dasiyon se puchha. is par dusri patni ki munhalagi dasi ne itrate hue kaha ki hamari malkin is baat se dukhi hain ki aapne unke ek haath ke liye to kangan aur chuDiyan deen lekin dusra haath suna rakha. ab baat to tabhi banegi jab aap dusre haath mein bhi aisa hi kangan aur chuDiyan pahna denge.
dasi ki baat sunkar rajakumar soch mein paD gaya. dusra kangan aur chuDiyan uski pahli patni arthat rajakumari ke pita ke paas theen. rajakumar ko laga ki jab rajakumari hi nahin rahi to uske pita se dusra kangan aur chuDiyan kaise mangen. lekin anttah use apni dusri patni ke hath ke aage jhukna paDa. rajakumar apne pahle shvasur ke paas pahuncha aur usne apne pahle shvasur se kaha—‘main aapke charnasparsh karte hue aapse vinti karta hoon ki jaisa kangan aur jaisi chuDiyan aapne mujhe pahle di theen, vaisi hi ek baar phir de dijiye. ’
‘kintu wo kangan aur chuDiyan to mujhe chandr dev ne di theen. tumhein chandr dev ke paas jakar unse kangan aur chuDiyan mangni hongi. ’ rajakumar ke shvasur ne kaha.
rajakumar chandr dev ke paas pahuncha aur unse nivedan kiya ki ‘jo kangan aur chuDiyan aapne mere pahle shvasur ko di theen vaisa hi kangan aur vaisi hi chuDiyan mujhe bhi de den. ’
‘vo kangan aur chuDiyan to mujhe gurubaba ne di theen. tum unse jakar mango. ’ chandr dev ne rajakumar se kaha.
ye sunkar rajakumar gurubaba ke paas pahuncha. usne gurubaba ko prnaam kiya aur unse vinti karta hua bola—‘jaisa kangan aur jaisi chuDiyan aapne chandr dev ko di theen vaisa hi kangan aur vaisi hi chuDiyan mujhe bhi de dijiye. ’
‘lekin wo kangan aur wo chuDiyan to mujhe yamdut ne di theen. isliye tum yamdut ke paas jao aur unhin se kangan aur chuDiyan mango. ’ gurubaba ne rajakumar ko salah di.
rajakumar gurubaba ki salah maan kar yamdut se milne ke liye svarg ja pahuncha. vahan usne dekha ki uski pahli patni arthat rajakumari ek aam ke vriksh ke niche baithi hui hai aur uske paas kangan aur chuDiyon vali ek potli rakhi hai.
rajakumar rajakumari ko dekhkar bahut khush hua. use laga ki rajakumari use kangan aur chuDiyan de degi. wo rajakumari ke paas rakhi potli ke paas pahuncha lekin rajakumari ne potli chhune nahin diya.
‘tumne mujhse kiya gaya vada toDa. dusra vivah rachaya. ab yadi tum mujhse aaj bhi prem karte ho to is potli ko haath lagao varna ise chhuo bhi nahin. ’ rajakumari ne rajakumar se kaha.
rajakumari ki baat sunkar rajakumar ne apne dil ko tatola. rajakumar ko rajakumari ke saath vyatit kiye sunahre din yaad aane lage. use laga ki wo aaj bhi rajakumari se bahut prem karta hai. tab use apna vada toDne par pashchatap hone laga aur usne vahin rajakumari ke saath rah jane ka nishchay kiya.
‘rajakumar, yadi tum yahan svarg mein rajakumari ke saath rahna chahte ho to tumhein moong ki daal ka ek dana aur chaval ka ek dana khana hoga. ’ yamdut ne rajakumar se kaha.
rajakumar ne yamdut ka diya hua ek dana moong daal aur ek dana chaval ka khaya aur rajakumari ke saath khushi khushi rahne laga.
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स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 70)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।