Font by Mehr Nastaliq Web

जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा

jo jaisa karega, vaisa bharega

एक राजा था जिसका नाम था सिंगवा। उसके सात पुत्र थे। सातों योग्य और प्रतिभावान थे। इसी प्रकार उसके पड़ोसी राजा, मँगवा की सात पुत्रियाँ थीं। एक बार सिंगवा ने मँगवा से कहा कि उसके पुत्रों के साथ अपनी पुत्रियों का विवाह कर दे। मँगवा ख़ुशी-ख़ुशी मान गया। एक अच्छे मुहूर्त्त पर सिंगवा ने अपने पुत्रों की बारात सजाई और उनके लिए दुल्हनें लाने की तैयारी करने लगा। सिंगवा के सबसे बड़े पुत्र ने यह कहकर जाने से मनाकर दिया कि सब के चले जाने से राज्य असुरक्षित हो जाएगा। राजा ने उसे समझाने का प्रयास किया किंतु वह नहीं माना। तब बड़े राजकुमार के बदले उसका धनुष-बाण बारात के साथ दूल्हे के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया।

जब बारात रवाना हुई तो बड़े राजकुमार ने अपने पिता से विनती की कि वे बारात को छोटे रास्ते से ले जाएँ क्योंकि उस रास्ते में एक राक्षस का वास है। राजा ने बड़े राजकुमार की सलाह मानते हुए बारात को लंबे रास्ते पर चलने का आदेश दिया। बारात सकुशल मँगवा के राज्य जा पहुँची। सभी राजकुमारों की अगवानी करने स्वयं राजकुमारियाँ द्वार पर आईं। बड़े राजकुमार को पाकर उसकी होने वाली पत्नी बड़ी दुखी हुई। फिर उसने यह सोचकर अपने मन को तसल्ली दी कि उसके भावी पति ने जो किया वह उचित है। राज्य को असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता था।

बड़ी राजकुमारी ने बड़े राजकुमार के धनुष-बाण के साथ विवाह रचा लिया।

विवाह समारोह समाप्त हो जाने के बाद छहों राजकुमार अपनी-अपनी दुल्हनों को लेकर वापस चल पड़े। बड़े राजकुमार के धनुष-बाण के साथ उसकी दुल्हन लौट रही थी। विवाह के बाद छहों राजकुमारों को अपने राज्य में पहुँचकर अपनी-अपनी दुल्हनों को अपना राज्य दिखाने की उत्सुकता जाग उठी। उन्होंने छोटे रास्ते से लौटने का निश्चय किया। राजा ने उन्हें समझाया कि ऐसा मत करो। बड़े राजकुमार ने छोटे रास्ते से आने-जाने से मना किया है। किंतु छहों राजकुमारों को राजा की सलाह पसंद नहीं आई और वे राजा सहित बारात लेकर छोटे रास्ते पर चल पड़े। जैसे ही वे अपने राज्य के समीप पहुँचे वैसे ही एक भयानक राक्षस सामने खड़ा हुआ।

‘अहा! आज तो पूरी बारात मुझे खाने को मिल रही है। आज तो मेरी चाँदी ही चाँदी है।’ कहते हुए राक्षस ने ज़ोर की हुँकार भरी और एक ही बार में पूरी बारात को निगल गया। राक्षस की हुँकार इतनी तीव्र थी कि उसकी ध्वनि सिंगवा के राज्य में बड़े राजकुमार के कानों तक पहुँची। बड़ा राजकुमार बारात के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था। हुँकार सुनकर वह तुरंत समझ गया कि राक्षस ने बारात को खा लिया है

बड़े राजकुमार ने तुरंत एक योजना बनाई। वह एक लुहार के पास गया। उसने लुहार से एक थैला लोहे के चने बनवाए। लोहे के चनों का थैला उसने अपने घोड़े की पीठ पर एक ओर लादा तथा दूसरी ओर असली भुने चनों का थैला लाद लिया। इसके बाद वह राक्षस का सामना करने निकल पड़ा।

राक्षस ने राजकुमार को आते देखा तो उसने एक बार फिर ज़ोर से हुँकार भरी।

‘अरे मूर्ख! तू मेरे क्षेत्र में क्यों आया है? क्या तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है?’ राक्षस ने दहाड़ कर पूछा।

‘मैं तो इसी रास्ते से जाऊँगा और तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे।’ बड़े राजकुमार ने निर्भीकता पूर्वक उत्तर दिया।

‘हें! देख, मैं तुझे अभी खा डालूँगा।’ राक्षस चकित होते हुए बोला। उसे बड़े राजकुमार के इस दुस्साहस पर बहुत आश्चर्य हुआ।

‘मुझे खाओगे? हुँह! पहले मेरे ये चने तो खाकर दिखा दो!’ बड़े राजकुमार ने कहा।

‘मैं चने नहीं खाता, मैं तो मनुष्यों को खाता हूँ।’ राक्षस ने कहा।

‘ठीक है, यदि तुम मेरे साथ चने खाकर दिखा दो तो मैं मान जाऊँगा कि तुम मनुष्यों को खा सकते हो। फिर तुम मुझे भी खा लेना।’ बड़े राजकुमार ने राक्षस को ताव दिलाते हुए कहा।

‘चलो, तुम कहते हो तो चने खाकर दिखा देता हूँ। ये तो मेरे लिए राई के दानों के समान हैं।’ राक्षस ने कहा और बड़े राजकुमार से चने ले लिए।

बड़े राजकुमार ने चालाकी से लोहे के चनों का थैला राक्षस को थमा दिया और स्वयं भुने चने खाने लगा। राक्षस ने बड़े राजकुमार को उन्मुक्त भाव से चना चबाते देखा तो उसने भी मुट्ठी भरकर लोहे के चने निकाले और अपने मुँह में डालकर चबाने लगा। लोहे के चने चबाना आसान नहीं था। राक्षस के दाँत टूटने लगे। वह अपना मुँह थाम कर बैठ गया। राक्षस जैसे ही बैठा वैसे ही बड़े राजकुमार ने लपककर तलवार चलाई और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। राक्षस के मरते ही बड़े राजकुमार ने तलवार से राक्षस के पेट को चीरा और उसमें से राजा सहित पूरी बारात को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। बड़े राजकुमार के साहस तथा बुद्धिमत्ता पर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने बड़े राजकुमार को अपने गले से लगा लिया।

बड़े राजकुमार के द्वारा जान बचाए जाने पर प्रसन्न होने के बदले उसके छहों भाई यह सोचकर चिंतित हो उठे कि अब उनके बड़े भाई का वर्चस्व बढ़ जाएगा। अत: उन्होंने बड़े राजकुमार से पीछा छुड़ाने की योजना बनाई। उन्होंने बड़े राजकुमार से कहा कि उसकी दुल्हन कुएँ के पास उसकी प्रतीक्षा कर रही है। यह सुनकर बड़ा राजकुमार कुएँ के पास पहुँचा। वहाँ उसे अपनी दुल्हन दिखाई नहीं दी। तब तक छहों भाई भी वहाँ पहुँचे।

‘मेरी दुल्हन कहाँ है?’ बड़े राजकुमार ने अपने भाइयों से पूछा।

‘तुम्हें आने में देर होते देखकर वह कुएँ में कूद गई है। अब तुम्हें कुएँ में उतरकर उसे बचाना होगा।’ भाइयों ने कहा।

भाइयों की बात सुनकर बड़े राजकुमार ने कुएँ में छलाँग लगा दी ताकि अपनी दुल्हन को निकाल सके।बड़े राजकुमार के कुएँ में कूदते ही छहों भाइयों ने कुएँ को एक बड़े पत्थर से ढाँक दिया और वापस चले गए। बड़ा राजकुमार सहायता के लिए पुकार लगाता रह गया।

राजा ने जब बड़े राजकुमार के बारे में पूछा तो छहों भाइयों ने कहा कि वह हमारी अगवानी के लिए राज्य लौट गया है। राजा ने उनकी बातों पर विश्वास कर लिया। जब बड़े राजकुमार की पत्नी को इस बात का पता चला तो उसे विश्वास नहीं हुआ। जब सब लोग अपने राज्य की ओर चल पड़े तो बड़े राजकुमार की पत्नी एक पेड़ के पीछे छिपकर वहीं ठहर गई। सब लोगों के जाने के बाद बड़े राजकुमार की पत्नी ने बड़े राजकुमार को ढूँढ़ना शुरू किया। कुछ देर बाद उसे बढ़े राजकुमार की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह सहायता के लिए पुकार रहा था। बड़े राजकुमार की पत्नी आवाज़ की दिशा में चलती हुई कुएँ के पास पहुँची। उसे समझ में गया कि उसका पति कुएँ में है और इसीलिए कुएँ का मुँह बड़े पत्थर से ढाँक दिया गया है।

बड़े राजकुमार की पत्नी ने कुएँ के मुँह से पत्थर को हटाने का प्रयास किया।

भारी-भर्कम पत्थर कोमल राजकुमारी से हिला तक नहीं। उसे लगा कि वह अपने पति को नहीं बचा पाएगी। वह घबरा कर रोने लगी। उसी समय उधर एक हाथी निकला। बड़े राजकुमार की पत्नी ने हाथी से प्रार्थना की कि वह अपनी सूँड़ से पत्थर को हटा दे।

राजकुमार को हाथी ने कुएँ के मुँह से पत्थर हटा दिया और अपनी सूँड़ कुएँ में डालकर बड़े बाहर निकाल लिया। बड़े राजकुमार की पत्नी ने हाथी को धन्यवाद दिया। बड़ा राजकुमार अपनी पत्नी से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ जबकि उसे अपने भाइयों की कृतघ्नता पर बहुत दुख हुआ।

‘मैं अपने भाइयों को दंडित करके रहूँगा।’ बड़े राजकुमार ने क्रोध से भरकर कहा।

‘जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा। आप क्रोध मत करिए। आप मेरे राज्य में चलिए।

मेरे पिता का कोई पुत्र नहीं है अत: आप उनका राज्य सम्हालिएगा और हम वहाँ सुखपूर्वक रहेंगे।’ बड़े राजकुमार की पत्नी ने कहा।

‘तुम ठीक कहती हो।‘ बड़े राजकुमार को अपनी पत्नी की बात उचित लगी। वह अपनी पत्नी के साथ उसके राज्य जा पहुँचा जहाँ उसके ससुर मँगवा ने दोनों का भारी स्वागत किया और बड़े राजकुमार को अपना उत्तराधिकारी एवं भावी राजा घोषित कर दिया।

बड़े राजकुमार के भाइयों ने जैसा किया था वैसा भरा भी, उनमें आपसी फूट पड़ गई और वे आपस में लड़ मरे तथा उनके राज्य पर एक दूसरे राजा ने अधिकार कर लिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 32)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए