एक धुरवा बालक था फगनू। फगनू अपनी विधवा माँ के साथ मारेंगा गाँव में रहता था। वे लोग बहुत ग़रीब थे। फगनू की माँ मेहनत-मज़दूरी करके अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी। यह सब देखकर फगनू को अच्छा नहीं लगता था। वह जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने स्वयं काम करने का मन बनाया।
‘मैं खेती करना चाहता हूँ।’ फगनू ने अपनी माँ से कहा।
‘खेती करने के लिए ज़मीन की आवश्यकता होती है और वह तो हमारे पास है ही नहीं।’ माँ ने कहा।
तब फगनू ने सोचा कि क्यों न जंगल की ज़मीन में खेती की जाए।
‘लेकिन बेटा, अनाज उगाने के लिए बीज की भी आवश्यकता होती है जो कि हमारे पास नहीं हैं। हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि हम बीज ख़रीद सकें।’ माँ ने समझाया।
फगनू सोच में पड़ गया। दो पल सोचने के बाद फगनू ने माँ से कहा कि वह लुहार के पास जाए और उससे लोहे का एक टुकड़ा माँग लाए। लुहार नेकदिल है वह मना नहीं करेगा। माँ फगनू के कहने पर लुहार के पास गई और उससे लोहे का एक टुकड़ा माँग लाई। फगनू ने लोहे के टुकड़े को एक लंबे बाँस में फँसाया और फिर माँ से बोला, ‘माँ, अब जुलाहे से थोड़ा-सा सूत ला दो। जुलाहा भी अच्छा व्यक्ति है, वह भी बिना पैसे लिए सूत दे देगा।’
माँ जुलाहे के पास गई और उससे थोड़ा-सा सूत ले आई। फगनू ने बाँस में लोहे का जो टुकड़ा फँसा रखा था उसमें सूत का जाल बुनकर लगा दिया। फिर वह धान के खेत में गया और खेत में जाल बिछाकर बैठ गया। थोड़ी देर में चिड़ियाँ धान चुगने आईं और फगनू के जाल में फँस गईं। फगनू उन चिड़ियों को ले जाकर हाट में बेंच आया और बदले में चावल ले आया। उस दिन माँ-बेटे ने पेट भरकर भात खाया। दूसरे दिन फिर फगनू ने धान के खेत में जाल बिछाया, चिड़ियाँ पकड़ीं और हाट में बेचकर बदले में चावल ले आया। इसी तरह कई दिन बीत गए। फगनू चिड़ियों के बदले जितना चावल लाता उसमें से उसकी माँ एक मुट्ठी चावल अलग रख देती और शेष का भात पका लेती। इस प्रकार फगनू के घर में एक घड़ा चावल इकट्ठा हो गया।
एक दिन जब फगनू खेत में जाल बिछाकर बैठा तो एक चिड़िया उसके पास आई।
‘फगनू, ये बात ठीक नहीं है कि तुम हम चिड़ियों को पकड़कर बेंचते हो। तुम ऐसा क्यों करते हो?’ चिड़िया ने फगनू से पूछा।
‘मैं खेती करना चाहता हूँ। खेती करने के लिए मुझे बीज चाहिए। बीज ख़रीदने के लिए पैसे चाहिए। तुम लोगों को पकड़कर बेंचकर पैसे तो पा जाता हूँ लेकिन अभी तो पेट भरने लायक पैसे ही मिल पाए हैं। बीज ख़रीदने योग्य पैसे इकट्ठे हो जाएँ तो मैं तुम लोगों को पकड़ना बंद कर दूँगा।’ फगनू ने उत्तर दिया।
‘तो ऐसा करो कि तुम हमें पकड़कर बेचना बंद कर दो बदले में हम आज शाम तक इतना धान तुम्हारे घर पहुँचा देंगी कि तुम उनसे आराम से खेती कर सकोगे।’ चिड़िया ने कहा।
‘ठीक है। मुझे स्वीकार है।’ फगनू बोला।
चिड़िया ने जैसा कहा था, वैसा ही किया। शाम होते ही सैकड़ों चिड़ियाँ अपने मुँह में धान का एक-एक दाना लदबा कर लाई और फगनू के घर के आँगन में छोड़ गईं। अब फगनू के पास धान के बीज इकट्ठे हो गए थे।
‘माँ, हमारे पास अब बीज आ गए हैं। अब मैं खेती कर सकता हूँ।’ फगनू ने माँ से कहा।
‘लेकिन बेटा, बीज बोने के लिए मिट्टी को खोद कर खेती लायक बनाना होता है। उसके लिए हल और बैल की आवश्यकता होती है। हमारे पास तो ये दोनों नहीं हैं।’ माँ ने फगनू को याद दिलाया।
‘ठीक है माँ, मैं ऐसा करता हूँ कि साहूकार के पास जाता हूँ और उससे हल और बैल माँग लाता हूँ। सब उसी से हल और बैल लेकर खेत जोतते हैं।’ फगनू ने कहा।
‘लेकिन उसे हल और बैल के बदले पैसे देने पड़ेंगे।’ फगनू की माँ ने कहा।
‘पैसे तो हमारे पास नहीं हैं। ऐसा करता हूँ कि वो जो एक घड़ा चावल इकट्ठा हो गया है, उसे देकर बदले में हल और बैल ले आऊँगा।’ फगनू ने कहा।
माँ ने बचा-बचा कर रखा हुआ एक घड़ा चावल फगनू को दे दिया। चावल लेकर फगनू साहूकार के पास पहुँचा। उसने साहूकार से चावल के बदले हल और बैल कुछ दिनों के लिए माँगे।
‘जा-जा, मैं तेरे जैसे अभागे को अपना हल-बैल नहीं देता। तेरा तो पिता ही मर चुका है। तेरा क्या भरोसा, तू मेरा हल-बैल लेकर कहीं भाग जाए तो?’ इस प्रकार साहूकार ने फगनू को दुत्कार कर भगा दिया। फगनू को साहूकार की बात का बुरा तो लगा किंतु वह चुप रह गया और अपने घर लौट आया।
घर लौटकर उसने चावल का घड़ा माँ को दिया और स्वयं लुहार के पास पहुँचा। उसने लुहार से एक कुदाली माँगी। दरिद्र ही दरिद्र की पीड़ा समझता है। लुहार ने एक कुदाली बनाकर फगनू को दे दी। फगनू ने कुदाली सँभाली और निकल पड़ा जंगल की ओर। जंगल में पहुँचकर उसने एक अच्छी भूमि का चयन किया और उसमें कुदाली चलाना शुरू कर दिया। रात-दिन मेहनत करके उसने एक छोटा-सा खेत तैयार कर लिया। उस खेत में धान बो दिया। समय आने पर उसके खेत में धान की फसल लहलहा उठी। उसके खेत में चिड़ियाँ भी धान चुगने नहीं आती थीं क्योंकि धान के बीज स्वयं चिड़ियों ने दिए थे। इसलिए फगनू के खेत की फसल सबसे अच्छी थी।
एक दिन साहूकार किसी काम से दूसरे गाँव गया। वहाँ से लौटते समय वह भटककर उस ओर निकल आया जिधर फगनू का खेत था। उसने देखा कि फगनू अपने खेत में बैठा मस्ती से गीत गा रहा है और उसके खेत की फसल उसके गीत के धुन पर झूम रही है। यह दृश्य देखकर साहूकार के मन में खोट आ गया। उसने फगनू की फसल हड़पने की योजना बनाई। साहूकार ने गाँव में पहुँचकर गाँव वालों से कहा कि जंगल की भूमि पर पूरे गाँव का अधिकार होता है अत: फगनू के खेत की फसल पर भी पूरे गाँव का अधिकार है। उस पर साहूकार गाँव का मुखिया समान होता है इसलिए सबसे बड़ा हिस्सा उसका होगा। गाँव वाले साहूकार की बात मान गए। फगनू ने भी चुपचाप मान लिया क्यों कि उसका साथ देने वाला कोई नहीं था। फगनू के हिस्से में आधा घड़ा धान आया।
दूसरे दिन फगनू अपने खेत में बैठा सुबक रहा था कि एक चिड़िया आई और उसने फगनू से सुबकने का कारण पूछा। फगनू ने चिड़िया को साहूकार की बेईमानी के बारे में बताया।
‘तुम चिंता मत करो। हम लोग आज शाम तक तुम्हारे घर में बोरा भर धान पहुँचा देंगी जिनसे तुम एक चितकबरा बैल ख़रीदना।’ चिड़िया ने फगनू को आगे की योजना भी समझा दी।
शाम होते ही सैकड़ों चिड़ियाँ आई और उन्होंने फगनू के घर के आँगन में धान का ढेर लगा दिया। धान था पूरा एक बोरा। दूसरे दिन सुबह होते ही फगनू ने एक बोरा धान पीठ पर लादा और जा पहुँचा हाट में। वहाँ उसने धान बेचा और बदले में एक चितकबरा बैल ख़रीद लिया।
चितकबरा बैल लेकर वह अपने गाँव आया। गाँव पहुँचकर फगनू ने गाँववालों से कहा कि इस गाँव में मेरा ही बैल चितकबरा है अत: आज के बाद जिसकी गाय बछड़े चितकबरे होंगे वह मेरे बैल से उत्पन्न होंगे अत: उन पर मेरा अधिकार होगा।
गाँव वालों ने फगनू की बात मान ली। साहूकार ने भी बात मान ली क्यों कि उसके पास सभी गाय-बैल एक रंग के थे अत: उसे इस बात का डर नहीं था कि उसकी गायों में से कोई भी चितकबरा बछड़ा जन्मेगी। संयोगवश दो दिन बाद साहूकार की एक गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया जो चितकबरा था। फगनू ने बछड़े की माँग की। साहूकार को बछड़ा फगनू को दे देना पड़ा। इसके बाद गाँव भर में जिसकी भी गाय ने चितकबरे बछड़े को जन्म दिया उन्हें अपने बछड़े फगनू को देने पड़े। इस प्रकार धीरे-धीरे फगनू के पास बहुत सारे मवेशी हो गए और फगनू उनका दूध-घी बेंच-बेंच कर साहूकार के समान धनी हो गया। किंतु वह गाँव वालों की सहायता करता, साहूकार की भाँति उनका शोषण नहीं करता। धनी हो जाने पर भी फगनू की चिड़ियों से मित्रता सदा बनी रही।
ek dhurva balak tha phagnu. phagnu apni vidhva maan ke saath marenga gaanv mein rahta tha. ve log bahut gharib the. phagnu ki maan mehnat mazduri karke apna aur apne bete ka pet palti thi. ye sab dekhkar phagnu ko achchha nahin lagta tha. wo jab thoDa baDa hua to usne svayan kaam karne ka man banaya.
‘main kheti karna chahta hoon. ’ phagnu ne apni maan se kaha.
‘kheti karne ke liye zamin ki avashyakta hoti hai aur wo to hamare paas hai hi nahin. ’ maan ne kaha.
tab phagnu ne socha ki kyon na jangal ki zamin mein kheti ki jaye.
‘lekin beta, anaj ugane ke liye beej ki bhi avashyakta hoti hai jo ki hamare paas nahin hain. hamare paas itne paise bhi nahin hain ki hum beej kharid saken. ’ maan ne samjhaya.
phagnu soch mein paD gaya. do pal sochne ke baad phagnu ne maan se kaha ki wo luhar ke paas jaye aur usse lohe ka ek tukDa maang laye. luhar nekadil hai wo mana nahin karega. maan phagnu ke kahne par luhar ke paas gai aur usse lohe ka ek tukDa maang lai. phagnu ne lohe ke tukDe ko ek lambe baans mein phansaya aur phir maan se bola, ‘maan, ab julahe se thoDa sa soot la do. julaha bhi achchha vyakti hai, wo bhi bina paise liye soot de dega. ’
maan julahe ke paas gai aur usse thoDa sa soot le aai. phagnu ne baans mein lohe ka jo tukDa phansa rakha tha usmen soot ka jaal bun kar laga diya. phir wo dhaan ke khet mein gaya aur khet mein jaal bichha kar baith gaya. thoDi der mein chiDiyan dhaan chugne ain aur phagnu ke jaal mein phans gain. phagnu un chiDiyon ko le jakar haat mein bench aaya aur badle mein chaval le aaya. us din maan bete ne petabharkar bhaat khaya. dusre din phir phagnu ne dhaan ke khet mein jaal bichhaya, chiDiyan pakDin aur haat mein bech kar badle mein chaval le aaya. isi tarah kai din beet ge. phagnu chiDiyon ke badle jitna chaval lata usmen se uski maan ek mutthi chaval alag rakh deti aur shesh ka bhaat paka leti. is prakar phagnu ke ghar mein ek ghaDa chaval ikattha ho gaya.
ek din jab phagnu khet mein jaal bichha kar baitha to ek chiDiya uske paas aai.
‘phagnu, ye baat theek nahin hai ki tum hum chiDiyon ko pakaDkar benchte ho. tum aisa kyon karte ho?’ chiDiya ne phagnu se puchha.
‘main kheti karna chahta hoon. kheti karne ke liye mujhe beej chahiye. beej kharidne ke liye paise chahiye. tum logon ko pakaD kar benchkar paise to pa jata hoon lekin abhi to pet bharne layak paise hi mil pae hain. beej kharidne yogya paise ikatthe ho jayen to main tum logon ko pakaDna band kar dunga. ’ phagnu ne uttar diya.
‘to aisa karo ki tum hamein pakaD kar bechna band kar do badle mein hum aaj shaam tak itna dhaan tumhare ghar pahuncha dengi ki tum unse aram se kheti kar sakoge. ’ chiDiya ne kaha.
‘theek hai. mujhe svikar hai. ’ phagnu bola.
chiDiya ne jaisa kaha tha, vaisa hi kiya. shaam hote hi saikDon chiDiyan apne munh mein dhaan ka ek ek dana ladba kar lai aur phagnu ke ghar ke angan mein chhoD gain. ab phagnu ke paas dhaan ke beej ikatthe ho ge the.
‘maan, hamare paas ab beej aa ge hain. ab main kheti kar sakta hoon. ’ phagnu ne maan se kaha.
‘lekin beta, beej bone ke liye mitti ko khod kar kheti layak banana hota hai. uske liye hal aur bail ki avashyakta hoti hai. hamare paas to ye donon nahin hain. ’ maan ne phagnu ko yaad dilaya.
‘theek hai maan, main aisa karta hoon ki sahukar ke paas jata hoon aur usse hal aur bail maang lata hoon. sab usi se hal aur bail lekar khet jotte hain. ’ phagnu ne kaha.
‘lekin use hal aur bail ke badle paise dene paDenge. ’ phagnu ki maan ne kaha.
‘paise to hamare paas nahin hain. aisa karta hoon ki wo jo ek ghaDa chaval ikattha ho gaya hai, use dekar badle mein hal aur bail le auunga. ’ phagnu ne kaha.
maan ne bacha bacha kar rakha hua ek ghaDa chaval phagnu ko de diya. chaval lekar phagnu sahukar ke paas pahuncha. usne sahukar se chaval ke badle hal aur bail kuch dinon ke liye mange.
‘ja ja, main tere jaise abhage ko apna hal bail nahin deta. tera to pita hi mar chuka hai. tera kya bharosa, tu mera hal bail lekar kahin bhaag jaye to?’ is prakar sahukar ne phagnu ko dutkar kar bhaga diya. phagnu ko sahukar ki baat ka bura to laga kintu wo chup rah gaya aur apne ghar laut aaya.
ghar lautkar usne chaval ka ghaDa maan ko diya aur svayan luhar ke paas pahuncha. usne luhar se ek kudali mangi. daridr hi daridr ki piDa samajhta hai. luhar ne ek kudali banakar phagnu ko de di. phagnu ne kudali sambhali aur nikal paDa jangal ki or. jangal mein pahunchakar usne ek achchhi bhumi ka chayan kiya aur usmen kudali chalana shuru kar diya. raat din mehnat karke usne ek chhota sa khet taiyar kar liya. us khet mein dhaan bo diya. samay aane par uske khet mein dhaan ki phasal lahlaha uthi. uske khet mein chiDiyan bhi dhaan chugne nahin aati theen kyonki dhaan ke beej svayan chiDiyon ne diye the. isliye phagnu ke khet ki phasal sabse achchhi thi.
ek din sahukar kisi kaam se dusre gaanv gaya. vahan se lautte samay wo bhatak kar us or nikal aaya jidhar phagnu ka khet tha. usne dekha ki phagnu apne khet mein baitha masti se geet ga raha hai aur uske khet ki phasal uske geet ke dhun par jhoom rahi hai. ye drishya dekhkar sahukar ke man mein khot aa gaya. usne phagnu ki phasal haDapne ki yojna banai. sahukar ne gaanv mein pahuncha kar gaanv valon se kaha ki jangal ki bhumi par pure gaanv ka adhikar hota hai atah phagnu ke khet ki phasal par bhi pure gaanv ka adhikar hai. us par sahukar gaanv ka mukhiya saman hota hai isliye sabse baDa hissa uska hoga. gaanv vale sahukar ki baat maan ge. phagnu ne bhi chupchap maan liya kyon ki uska saath dene vala koi nahin tha. phagnu ke hisse mein aadha ghaDa dhaan aaya.
dusre din phagnu apne khet mein baitha subak raha tha ki ek chiDiya aai aur usne phagnu se subakne ka karan puchha. phagnu ne chiDiya ko sahukar ki beimani ke bare mein bataya.
‘tum chinta mat karo. hum log aaj shaam tak tumhare ghar mein bora bhar dhaan pahuncha dengi jinse tum ek chitkabra bail kharidna. ’ chiDiya ne phagnu ko aage ki yojna bhi samjha di.
shaam hote hi saikDon chiDiyan aai aur unhonne phagnu ke ghar ke angan mein dhaan ka Dher laga diya. dhaan tha pura ek bora. dusre din subah hote hi phagnu ne ek bora dhaan peeth par lada aur ja pahuncha haat mein. vahan usne dhaan becha aur badle mein ek chitkabra bail kharid liya.
chitkabra bail lekar wo apne gaanv aaya. gaanv pahunchakar phagnu ne ganvvalon se kaha ki is gaanv mein mera hi bail chitkabra hai atah aaj ke baad jiski gaay bachhDe chitkabre honge wo mere bail se utpann honge atah un par mera adhikar hoga.
gaanv valon ne phagnu ki baat maan li. sahukar ne bhi baat maan li kyon ki uske paas sabhi gaay bail ek rang ke the atah use is baat ka Dar nahin tha ki uski gayon mein se koi bhi chitkabra bachhDa janmegi. sanyogvash do din baad sahukar ki ek gaay ne ek bachhDe ko janm diya jo chitkabra tha. phagnu ne bachhDe ki maang ki. sahukar ko bachhDa phagnu ko de dena paDa. iske baad gaanv bhar mein jiski bhi gaay ne chitkabre bachhDe ko janm diya unhen apne bachhDe phagnu ko dene paDe. is prakar dhire dhire phagnu ke paas bahut sare maveshi ho ge aur phagnu unka doodh ghi bench bench kar sahukar ke saman dhani ho gaya. kintu wo gaanv valon ki sahayata karta, sahukar ki bhanti unka shoshan nahin karta. dhani ho jane par bhi phagnu ki chiDiyon se mitrata sada bani rahi.
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gaanv valon ne phagnu ki baat maan li. sahukar ne bhi baat maan li kyon ki uske paas sabhi gaay bail ek rang ke the atah use is baat ka Dar nahin tha ki uski gayon mein se koi bhi chitkabra bachhDa janmegi. sanyogvash do din baad sahukar ki ek gaay ne ek bachhDe ko janm diya jo chitkabra tha. phagnu ne bachhDe ki maang ki. sahukar ko bachhDa phagnu ko de dena paDa. iske baad gaanv bhar mein jiski bhi gaay ne chitkabre bachhDe ko janm diya unhen apne bachhDe phagnu ko dene paDe. is prakar dhire dhire phagnu ke paas bahut sare maveshi ho ge aur phagnu unka doodh ghi bench bench kar sahukar ke saman dhani ho gaya. kintu wo gaanv valon ki sahayata karta, sahukar ki bhanti unka shoshan nahin karta. dhani ho jane par bhi phagnu ki chiDiyon se mitrata sada bani rahi.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 60)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।