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विधवा का बेटा और रोम की राजकुमारी

vidhva ka beta aur rom ki rajakumari

बहुत दिन हुए, किसी नगर में एक विधवा रहती थी। उसका पति मरते समय एक पुत्र छोड़ गया था। इकलौता पुत्र ही उस बेचारी का एकमात्र सहारा था। इसलिए वह अपने पुत्र को प्राणों से भी अधिक प्यार करती थी।

पढ़-लिखकर वह विद्वान बने, इसलिए विधवा ने लड़के को पाठशाला में दाख़िल करा दिया था।

लड़का नित्य नियमपूर्वक पाठशाला जाता और मन लगाकर पढ़ता।

धीरे-धीरे दिन बीतने लगे।

एक रात उस लड़के ने स्वप्न देखा कि उसका विवाह रोम की राजकुमारी के साथ हो गया। आँख खुलने पर उसे बड़ी ख़ुशी हुई और वह खिलखिलाकर हँसने लगा, किंतु दूसरे ही क्षण उसने सोचा-कहाँ रोम की राजकुमारी और कहाँ मैं ग़रीब विधवा का पुत्र! इसलिए यह स्वप्न झूठा है और वह सिसक-सिसक कर रोने लगा।

उसका हँसना-रोना सुनकर उसकी माँ ने पूछा, “क्या बात है बेटा, अभी तो तू हँस रहा था, इतने में ही रोने क्यों लगा?”

लड़के ने कोई उत्तर नहीं दिया। नित्य की तरह उस दिन भी वह पाठशाला गया तो वहाँ भी स्वप्न की याद करके हँसने-रोने लगा।

गुरु जी उसके हँसने और रोने का कारण पूछने लगे तो उन्हें भी उसने कुछ नहीं बताया। इस बात से गुरु जी नाराज़ हुए और दंड देकर कारण बताने को विवश करने लगे। परंतु लड़के ने कुछ भी नहीं बताया। शाम को जब छुट्टी हुई तो लड़का रोता हुआ घर आया। उसकी दशा देखकर विधवा बहुत दुखी हुई। उसने तुरंत ही राजा के पास जाकर पाठशाला के गुरु जी की शिकायत कर दी।

राजा ने गुरु जी को बुलाकर लड़के को दंड देने का कारण पूछा, तो गुरु जी बोले, “महाराज! जब मैं सभी लड़कों को पढ़ा रहा था तो यह लड़का हँसने और रोने लगा। मैंने इससे कारण बताने को कहा तो इसने इंकार कर दिया। इसलिए मैंने इसे दंड दिया। किंतु फिर भी हँसने और रोने का कारण नहीं बताया।”

राजा ने लड़के से पूछा, “क्यों लड़के तुम क्यों हँसने और रोने लगे थे?”

परंतु लड़के ने राजा को भी कुछ उत्तर नहीं दिया। राजा ने लड़के की धृष्टता से रुष्ट होकर उसे कारागार में बंद करने का हुक्म दे दिया।

राजा के आगे विधवा का क्या वश चलता, लाचार हो बेचारी रोती-पीटती घर चली आई।

इसके थोड़े दिनों बाद रोम का राजदूत राजा के दरबार में आया। रोम के राजदूत ने राजा को एक पत्र और तीन लकड़ी के टुकड़े दिए। राजा ने रोम के बादशाह का भेजा हुआ पत्र खोलकर पढ़ा। उसमें लिखा था कि इन तीनों लकड़ियों में कौन-सी लकड़ी सिरे की है? कौन-सी बीच की है? और कौन-सी नीचे की है? या तो इस प्रश्न का उत्तर दो, नहीं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।

राजा ने पत्र पढ़ा तो राज्य भर में डुग्गी पिटवा दी, “जो रोम के राजा के प्रश्न का उत्तर बताएगा उसे सौ रुपये पुरस्कार में दिए जाएँगे।”

राजा की इस घोषणा की चर्चा इधर-उधर होने लगी। लोग रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर सोचने लगे।

उसी रात जेल के पास से एक बूढ़ी दासी कुछ बड़बड़ाती हुई जा रही थी। जेल के सींखचों में से लड़के ने बुढ़िया को बुलाकर पूछा, “क्या बात है बुढ़िया, सारे राज्य में किस बात की चर्चा इतने ज़ोर से हो रही है?”

बुढ़िया ने कहा, “अरे लड़के, तू क्या समझेगा? रोम के बादशाह ने हमारे महाराज के पास लकड़ी के तीन टुकड़े भेजे हैं और कहलाया है कि लकड़ी के इन तीनों टुकड़ों में कौन-सा टुकड़ा सिरे का है, कौन-सा बीच का है और कौन-सा नीचे का है? या तो इस प्रश्न का उत्तर दो, नहीं तो उसके साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। इस प्रश्न का उत्तर बताने वाले के लिए राजा ने सौ रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की है।”

लड़के ने कहा, “अरे यह कौन-सा मुश्किल प्रश्न है। यह तो मैं बता सकता हूँ।”

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, तू इसका उत्तर मुझे बता दे। मैं ग़रीब बुढ़िया हूँ। सौ रुपए इनाम में मिल जाएँगे तो जीवन आराम से कट जाएगा।”

लड़के ने कहा, “अच्छा, जा एक हौज़ में पानी भरवाकर उसमें तीनों लकड़ियों को बारी-बारी से डाल देना। जो लकड़ी तुरंत ही पानी में डूब जाए वह सिरे की होगी, जो थोड़ा तैरकर फिर डूबे वह बीच की होगी, सबसे बाद में काफ़ी देर तैरकर डूबने वाली लकड़ी सबसे नीचे की होगी।”

दूसरे दिन दरबार में पान का बीड़ा रखा गया। राजा ने कहा, “रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर जो बता सके, पान का बीड़ा उठा ले। प्रश्न का उत्तर बताने वाले को सौ रुपए पुरस्कार दिए जाएँगे।”

भीड़ में से बुढ़िया दासी निकली और लपककर पान का बीड़ा उठा लिया।

राजा ने उसे तीनों लकड़ी के टुकड़े देकर कहा, “बताओ, इनमें से कौन-सा टुकड़ा सिरे का है, कौन-सा बीच का है और कौन-सा नीचे का?”

बुढ़िया दासी एक घड़ी की मुहलत माँगकर दरबार से बाहर बाग़ में गई। वहाँ हौज़ में पानी भरा हुआ था। लकड़ी के टुकड़ों को उसने बारी-बारी पानी में डालकर निशान लगा दिए।

दूसरे ही क्षण बुढ़िया ने लकड़ी के टुकड़ों को राजा के सामने रखते हुए निशानों द्वारा बताया कि कौन-सी लकड़ी सिरे की है, कौन-सी बीच की और कौन-सी सबसे नीचे की।

राजा बुढ़िया दासी के उत्तर से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बुढ़िया को सौ रुपए इनाम देकर रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर भेज दिया। उत्तर के साथ-साथ राजा ने यह भी लिख भेजा कि तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मुझे सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ी। इसका उत्तर तो हमारी बुढ़िया दासी ने ही बता दिया।

रोम के बादशाह ने उत्तर पाने के तुरंत बाद ही राजदूत के द्वारा तीन गायें राजा के पास भेजीं। उनके साथ एक पत्र भी लिखकर भेजा कि इन तीनों गायों में कौन-सी माँ है? कौन-सी बेटी है? और कौन-सी बेटी की बेटी है? इस प्रश्न का उत्तर शीघ्र ही भेजो, नहीं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।

राजा ने फिर राज्य में घोषणा कर दी, कि जो रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर बताएगा, उसे सौ रुपए इनाम दिए जाएँगे।

राजा की इस घोषणा की चर्चा भी चारों ओर फैल गई। उसी रात फिर जब बुढ़िया दासी जेल के पास से गुज़र रही थी तो जेल के सींखचों में बंद लड़के ने पूछा, “बुढ़िया, आज राजा ने क्या घोषणा की है, जिसकी चर्चा चारों ओर हो रही है?”

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, इस बार भी रोम के बादशाह ने हमारे महाराज के पास पत्र भेजकर प्रश्न पूछा है। पत्र में लिखा है कि यदि प्रश्न का उत्तर भेजोगे युद्ध के लिए तैयार होना पड़ेगा।”

लड़के ने पूछा, “रोम के बादशाह ने इस बार कौन-सा प्रश्न पूछा है?”

बुढ़िया ने बताया, “रोम के बादशाह ने इस बार तीन गायों को भेजकर पूछा है कि इनमें कौन-सी माँ है, कौन-सी बेटी है, और कौन-सी बेटी की बेटी है? तीनों गायें देखने में बिलकुल एक जैसी ही लगती हैं।”

लड़के ने कहा, “यह तो बड़ा आसान प्रश्न है।”

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, यदि तू इस प्रश्न का उत्तर जानता है, तो मुझे बता दे। भगवान तेरा भला करेंगे।”

लड़के ने बताया, “अच्छा जा, एक जगह हरी घास का ढेर इकट्ठा करके उसके चारों ओर बाँस का घेरा बना देना। घेरा इतना ऊँचा हो कि गायें आसानी से कूद सकें। इससे पूर्व गायों को दो दिन भूखी रखना। तीसरे दिन उन्हें घास के ढेर के पास छोड़ देना। जो गाय पहले घेरा फाँदकर घास खाने के लिए अंदर घुस जाए, उसे बेटी की बेटी समझना। जो गाय ज़रा रुककर घेरा फाँदने की कोशिश करे, उसे बेटी समझना और जो सबसे आख़िर में घेरे को फाँदकर घास खाने को जाए, उसे माँ समझना।”

बुढ़िया दासी लड़के की बताई हुई विधि को दिमाग़ में रखकर घर चली गई। दूसरे दिन जब दरबार लगा और पान का बीड़ा रखकर राजा ने अपनी घोषणा फिर से दुहराई तो बुढ़िया दासी ने लपककर पान का बीड़ा उठा लिया। बोली, “महाराज, रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर मैं दूँगी, किंतु इसके लिए मुझे तीन दिन का समय चाहिए और तीनों गायों को मेरी इच्छानुसार एक अलग स्थान पर रखा जाए। उनकी देख-रेख मैं जैसा चाहूँगी, करूँगी।”

राजा ने दासी की शर्तें स्वीकार कर लीं और गायों को उसके हवाले कर तीन दिन का समय दे दिया।

तीसरे दिन दरबार लगने से पूर्व बुढ़िया ने बालक की बताई हुई विधि से प्रश्न का उत्तर निकाल लिया था। जब दरबार लगा तो बुढ़िया ने गायों को क्रमशः खड़ी करके उत्तर बता दिया।

इस बार भी राजा ने प्रसन्न होकर बुढ़िया को सौ रुपए इनाम दिए और रोम के बादशाह के प्रश्न का उत्तर लिखकर भेज दिया।

अपने दूसरे प्रश्न का उत्तर भी राजा द्वारा प्राप्त करने के बाद रोम के बादशाह ने तीसरा पत्र लिखकर भेजा।

रोम के राजदूत ने जब तीसरा पत्र राजा को दिया तो राजा ने खोलकर पढ़ा। उसमें बादशाह ने लिखा था, “मेरे पलंग के चारों पायों के नीचे चार सोने की ईंटें रखी हुई हैं। यदि आपके राज्य का कोई चोर इन्हें चुरा सकता है तो ले जाए, नहीं तो हमारे साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाइए।

राजा ने इस कार्य को करने वाले के लिए भी इनाम रखकर घोषणा कर दी। किंतु किसी ने भी इस कार्य के लिए बीड़ा नहीं उठाया। फलस्वरूप सारे राज्य में बेचैनी-सी फैल गई।

उस रात भी बुढ़िया दासी जब जेल के पास से जा रही थी तो लड़के ने पूछा, “क्या बात है बुढ़िया ? आज राजा ने कैसी घोषणा की है, जिसके कारण सारे राज्य में बेचैनी-सी फैली हुई है?”

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, कुछ मत पूछो। रोम के बादशाह का एक तीसरा पत्र और आया है उसमें उसने लिखा है कि मेरे पलंग के पायों के नीचे चार सोने की ईंटें रखी हैं। उन्हें यदि तुम्हारे राज्य का कोई चोर चुराकर ले जा सकता है तो ले जाए, नहीं तो युद्ध की धमकी दी है।”

लड़के ने कहा, “अरी बुढ़िया, यह भी भला कोई मुश्किल काम है! इसे तो मैं करके दिखा सकता हूँ।”

बुढ़िया तुरंत राजा के पास दौड़कर गई, और बोली, “महाराज, चिंता करने की कोई बात नहीं, रोम के बादशाह की सोने की ईंटें तो जेल में बंद विधवा का लड़का चुरा लाने को तैयार है।”

राजा ने पूछा, “सच?”

बुढ़िया ने बताया, “हाँ, महाराज! अभी-अभी उसने मुझसे कहा है कि वह रोम जाकर सोने की ईंटें चुराकर ला सकता है।”

राजा ने प्रसन्न होकर विधवा के लड़के को जेल से निकालकर दरबार में पेश करने को कहा।

विधवा का लड़का जब जेल से निकालकर लाया गया तो राजा ने पूछा, “क्या तुम रोम के बादशाह के पलंग के नीचे रखी हुई सोने की ईंटें चुराकर ला सकते हो?”

लड़के ने उत्तर दिया, “हाँ, महाराज! मैं रोम के बादशाह के पलंग के नीचे रखी सोने की ईंटें चुरा सकता हूँ। परंतु छह महीने के लिए दो नौकर और रास्ते का पूरा ख़र्च आपको देना होगा।”

बादशाह ने उसे दो नौकर और छह महीने के लिए पूरा मार्ग-व्यय दे दिया। दूसरे दिन लड़का रोम के लिए रवाना हो गया।

विधवा का लड़का जब रोम देश में पहुँचा तो उसे पता लगा कि बादशाह ने अपने महल के चारों ओर गहरे पानी की नहर खुदवा दी है जिससे चोर पानी पार करके आने लगे तो पता लग जाए। नौकरों-चाकरों के आने के लिए केवल एक छोटा-सा पुल बना हुआ था जिस पर हर वक्त सिपाहियों का कड़ा पहरा रहता था। इसके अतिरिक्त चोर का अता-पता बताने के लिए बादशाह ने एक ज्योतिषी भी बैठा रखा था।

विधवा का लड़का जब रोम के बाज़ारों में रहने लगा तो ज्योतिषी ने बादशाह को ख़बर कर दी कि चोर ने राज्य की सीमा में प्रवेश कर लिया है। राजा ने सिपाहियों को सतर्क रहने की आज्ञा दे दी।

विधवा के लड़के ने जब वहाँ की दशा अच्छी तरह देख ली तो एक तालाब में डूब-डूबकर कई दिनों तक साँस रोकने का अभ्यास करने लगा।

थोड़े ही दिनों में जब लड़के ने काफ़ी देर तक साँस रोकने का अभ्यास कर लिया तो एक दिन राजा के घोड़े के लिए घास ले जाने वाले से उसने बात की। लड़के ने उससे कहा, “घास वाले, तू यदि घास के गट्ठर में छिपाकर मुझे राजा के पास पहुँचा दे तो मैं तुझे मुँह-माँगा इनाम दूँगा।”

पहले तो घास वाला बहुत झुंझलाया किंतु जब लड़के ने ख़ूब लालच दिया तो वह तैयार हो गया।

दूसरे दिन रात को जब घोड़े के लिए घास लेकर वह पुल पार करने लगा तो गट्ठर में लड़के को भी बाँधकर ले गया।

इस तरह पुल पार होकर जब लड़का राजा के महल के पास पहुँचा तो ज्योतिषी ने राजा को फिर सचेत कर दिया, “महाराज, चोर महल के बिलकुल क़रीब गया है।”

राजा ने सिपाहियों को एकदम सतर्क रहने की आज्ञा दे दी। सिपाही एक-एक चीज़ को ध्यान से देखते हुए महल के चारों ओर पहरा देने लगे।

रात को जब राजा अपने पलंग पर सो गया तो लड़के ने महल के भीतर घुसने की कोशिश की किंतु सिपाही इतने सतर्क थे कि महल के आस-पास छुपकर रहना भी उसके लिए कठिन हो गया। आख़िर वह धीरे से नहर में घुसकर पानी में मुर्दा बनकर तैरने लगा। सुबह होने पर राजा ने फिर ज्योतिषी को बुलवाकर पूछा तो ज्योतिषी ने बतलाया कि चोर पानी में मुर्दा बनकर तैर रहा है।

ज्योतिषी की इस सूचना से राजा ने सिपाहियों को भेजकर जब पता करवाया तो वास्तव में एक लड़का पानी में तैर रहा था। राजा ने उसे पकड़ मँगवाया। परंतु वह बिलकुल मुर्दा बनकर दम साधे हुए था।

राजा ने आज्ञा दी कि इसे घोड़े की पूँछ में बाँधकर महल के चारों ओर घसीटा जाए। अगर यह ज़िंदा होगा तो सड़क पर जाने से ज़रूर चीख़े-चिल्लाएगा और यदि मुर्दा होगा तो कितनी भी चोट लगे पर यह ऐसे ही रहेगा।

बादशाह की आज्ञानुसार लड़के को रस्सी से बाँधकर घोड़े की पूँछ में बाँध दिया गया। घोड़े पर एक आदमी सवार होकर उसे महल के चारों ओर सड़क पर घसीटने लगा। लड़के की पीठ कंकरियों की रगड़ से कई स्थानों पर छिल भी गई पर वह टस से मस नहीं हुआ। अंत में बादशाह ने घोड़े की पूँछ से छुड़वाकर उसे फिर नहर में फेंक देने को कहा क्योंकि उसे विश्वास हो गया कि वह लड़का जीवित नहीं बल्कि मुर्दा है।

लड़के को नहर में फेंकवाकर बादशाह ने फिर ज्योतिषी को बुलवाकर पूछा, “ठीक-ठीक बताओ कि इस वक़्त चोर कहाँ है? अगर तुमने इस बार जैसा झूठ बोला तो तुम्हें जान से मरवा दूँगा।”

परंतु ज्योतिषी ने फिर बताया, “महाराज! आप चाहें जो करें मगर वह मुर्दा नहीं चोर है। उसने साँस रोककर अपने को मुर्दा जैसा बना रखा है। आप उसे फिर से एक बार मँगाकर परीक्षा करके देख लें।”

बादशाह ने ज्योतिषी की बात पर विश्वास तो नहीं किया परंतु उसके बलपूर्वक कहने के कारण उसने फिर से लड़के को नहर में से निकलवाकर मँगाया।

इस बार बादशाह ने लोहे की छड़ आग में लाल करके उसके शरीर में छुआने को कहा।

उसके नौकरों ने कई बार लोहे की छड़ आग में लाल कर-करके उसके शरीर पर रखी किंतु वह तो पहले ही जैसा दम साधे बिलकुल मुर्दा बना रहा।

अंत में जब वह बिल्कुल टस से मस नहीं हुआ तो बादशाह ने उसे पुनः नहर में फेंकवा कर क्रोध में आकर ज्योतिषी को जान से मरवा डाला।

इसके बाद बादशाह ने एक दूसरे ज्योतिषी को नियुक्त किया और उससे चोर का अता-पता बताने को कहा तो उसने भी पहले ज्योतिषी की तरह, पानी में मुर्दा बनकर तैरते हुए लड़के को ही चोर बताया।

बादशाह ने इस ज्योतिषी को भी नाकाब़िल समझकर पहले ज्योतिषी की तरह मरवा दिया। लड़का निरंतर साँस खींचे हुए नहर के पानी में मुर्दा बनकर तैरता जा रहा था।

दूसरे के बाद बादशाह ने एक तीसरा ज्योतिषी नियुक्त किया किंतु उसकी भी वही दशा हुई। अंत में बादशाह का विश्वास ही ज्योतिषियों पर से उठ गया और उसने ज्योतिषी रखने बंद करके केवल सिपाहियों को सतर्क रहकर पहरा देने को कहा।

चौथे दिन लड़का नहर से उस पार निकलकर अपने डेरे में पहुँच गया। दो-चार दिन शरीर की चोटों की मरहम-पट्टी करने के बाद एक दिन फिर वह घसियारे से मिला और बहुत सारा धन देकर उसके घास के गट्ठर में घुड़सवार तक पहुँचा देने को कहा।

घसियारा काफ़ी धन पाने के बाद उसे घास के गट्ठर में बाँधकर बादशाह के घुड़साल में छोड़ आया। ठीक आधी रात को जब राजा सो गया और सिपाही पहरा देने में निरत थे तो वह लड़का एक काला कपड़ा ओढ़कर नावदान के रास्ते महल के भीतर घुस गया। भीतर जाकर देखा कि एक सुंदर सजे हुए कमरे में दो पलंगों पर बादशाह और उसकी लड़की सोई हुई है।

लड़का चुपके से कमरे में घुसकर पहले बादशाह की लड़की के पास गया और उसे धीरे से जगाकर बोला, “मैं यमदूत हूँ। चलो, तुम्हें यमराज बुला रहे हैं।”

बादशाह की लड़की ने उसे काले कपड़ों में देखकर सचमुच यमदूत मान लिया और घबराकर बोली, “नहीं, नहीं, अभी मैं मरना नहीं चाहती। मेहरबानी करके मुझे छोड़ दो।”

लड़के ने कहा, “अच्छा, अगर तुम मरना नहीं चाहतीं तो एक तरकीब करो, जिससे तुम्हारी जान बच जाए, नहीं तो मेरे सिवा कोई और दूत आएगा और आज तुम्हें ज़रूर यमदूत के पास ले जाएगा।”

लड़की ने कहा, “मैं अपनी जान बचाने के लिए आप जो कहेंगे, सब कुछ करने को तैयार हूँ।”

लड़के ने कहा, “अच्छा, यह बड़ा संदूक़ खोलो और उसमें तुम बैठ जाओ। मैं बाहर से ताला बंद कर दूँगा। फिर कोई दूसरा दूत भी आएगा तो तुम्हें यहाँ देखकर वापस चला जाएगा।”

लड़की ने संदूक़ खोल दिया। उसके भीतर बैठ जाने पर लड़के ने बाहर से ताला बंद कर दिया।

इसके बाद उसने धीरे से बादशाह को जगाया और बोला, “जल्दी चलो! मैं यमदूत हूँ। तुम्हें यमराज ने बुलाया है।”

बादशाह के प्राण सूखने लगे, वह हाथ जोड़कर बोला, “नहीं, नहीं, मैं अभी मरना नहीं चाहता। मेहरबानी करके मुझे छोड़ दो।”

लड़के ने कहा, “अच्छा, अगर तुम अभी मरना नहीं चाहते तो एक काम करो, तब तो शायद तुम्हारी जान बच जाए, नहीं तो मेरे बाद कोई दूसरा दूत आएगा और वह अवश्य तुम्हारी जान निकालकर ले जाएगा।”

बादशाह ने गिड़गिड़ाकर कहा, “मैं अपनी जान बचाने के लिए आप जो कहेंगे, करने को तैयार हूँ।”

लड़के ने कहा, “अच्छा देर मत करो। तुम जल्दी से उस दूसरे संदूक़ में बैठ जाओ। मैं बाहर से ताला लगा दूँगा। फिर यदि मेरे बाद भी कोई यमदूत आएगा तो तुम्हें यहाँ देखकर वापस चला जाएगा।”

बादशाह ने एक भी क्षण की देर नहीं लगाई। उसे भी जब संदूक़ में बंद कर दिया तो लड़के ने अपने ऊपर का काला कपड़ा फेंककर झटपट राजा का भेष बना लिया। राजा का भेष बनाकर वह महल के बाहर इधर-उधर घूमने निकला तो सभी सिपाही उसे झुक-झुककर सलाम करने लगे। उसने सिपाहियों को डाँटकर कहा, “ख़बरदार! अगर एक चींटी भी महल के भीतर घुसी तो सवेरे तुम सबका सिर धड़ से अलग करवा दिया जाएगा और देखो, मैं कुछ देर के लिए नगर में सैर करने के लिए जा रहा हूँ, इसलिए तुम सब और भी होशियारी से पहरा देते रहना। कोचवान को कहो, जल्दी से गाड़ी ठीक करके महल के दरवाज़े पर लाए।”

एक सिपाही दौड़कर कोचवान को बुला लाया। गाड़ी महल के दरवाज़े पर खड़ी कर दी गई। कोचवान से कहकर लड़के ने दोनों संदूक़ों को गाड़ी में रखवा दिया और सोने की चारों ईंटें बगल में रखकर गाड़ी में बैठ गया।

धीरे-धीरे गाड़ी पुल के बाहर हुई। सभी सिपाही बार-बार उसे राजा समझकर सलाम करते जा रहे थे। पुल पार हो जाने के बाद उसने कोचवान से गाड़ी को तेज़ हाँकने को कहा। शहर में आकर लड़के ने दोनों नौकरों को भी गाड़ी पर बैठा लिया।

तेज़ से तेज़ रफ़्तार से गाड़ी हाँककर कोचवान ने सवेरा होते-होते उन्हें रोम राज्य की सीमा पर पहुँचा दिया। सीमा पर पहुँचकर लड़के ने कोचवान को आज्ञा दी कि हमें जल्दी-से-जल्दी दिल्ली के राजा के पास पहुँचना है। इसलिए कुछ खा-पीकर थोड़ा आराम कर लो। रास्ते में फिर मौक़ा नहीं मिलेगा।

वहीं लड़का बादशाह का भेष उतारकर अपने असली रूप में गया। कोचवान उसकी तरफ़ देखे बिना जल्दी-जल्दी गाड़ी पर बैठ घोड़े को हाँकने लगा।

कुछ ही समय में विधवा का लड़का अपने देश में पहुँचकर राजा के दरबार में हाज़िर हुआ और रोम के बादशाह के पलंग के नीचे की चारों सोने की ईंटें उसके सामने रख दीं।

राजा शाबाशी देने लगा तो लड़के ने संदूक़ों की चाबी देते हुए कहा, “महाराज! इन संदूक़ों को भी खोलकर देखिए। शायद इसमें भी कुछ माल-टाल निकले।”

राजा को संदूक़ों की चाबी देकर लड़का अपनी माता से मिलने चला गया। राजा ने दोनों संदूक़ों को खोला।

उनमें रोम के बादशाह और उसकी लड़की को देखकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना रहा। रोम का बादशाह संदूक़ से बाहर निकलते ही राजा के पैरों पर गिरकर बोला, “महाराज, आप बड़े योग्य और निपुण हैं। हम हार मानकर अपनी लड़की की शादी उस युवक के साथ करना चाहते हैं, जिसने यह सब कौतुक किया है।”

राजा ने विधवा के लड़के को बुलाकर रोम के बादशाह की बात मान लेने को कहा। रोम के बादशाह ने जब अपनी लड़की की शादी उसके साथ कर दी तो लड़के ने राजा से बताया, “महाराज, अब मैं अपने हँसने और रोने का कारण आपको बताता हूँ।”

“एक रात मैंने स्वप्न में देखा था कि मेरी शादी रोम के बादशाह की लड़की के साथ हुई है। इस स्वप्न को सोचकर मैं ख़ुशी के मारे हँस पड़ता था किंतु दूसरे ही क्षण जब मैं अपनी ग़रीबी पर विचार करता था तो तुरंत ही रो पड़ता था। अब क्योंकि मेरा स्वप्न साकार हो गया है, इसलिए मैंने आपको बता दिया।”

राजा ने विधवा के लड़के की प्रशंसा की और अपने किए पर बहुत पछताया। उसने हमेशा के लिए उसे सुख-साधन देते रहने का वचन दिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 109)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019

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