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हीरामन

hiraman

एक ग़रीब बहेलिया था। एक दिन उसकी बीवी ने उससे कहा, “जानते हो हम ग़रीब क्यों हैं? इसलिए कि जितने पक्षी तुम पकड़ते हो सब बेच देते हो। अगर इनमें से कुछ पक्षी हम खा जाएँ तो शायद हमारी क़िस्मत बदल जाए, ऐसा सयाने कहते हैं। क्यों आज हम जितने पक्षी पकड़ें उन्हें पकाकर खा जाएँ?” बहेलिया मान गया।

उन्होंने लसौटे और जाल उठाए और पंछी फँसाने के लिए निकल पड़े। उस दिन सूरज ढलने को आया, पर कोई पंछी नहीं फँसा। वे घर लौटने को ही थे कि मालूका द्वीप में रहने वाला गहरे हरे रंग का हीरामन तोता उनके जाल में फँस गया।

चिड़ीमार की बीवी ने डरे हुए तोते को हाथ में लिया और उसे सहलाते हुए बोली, “कितना छोटा तोता है! इसका तो एक निवाला भी नहीं होगा। इसे मारना फ़िज़ूल है।” हीरामन ने कहा, “माँ, मुझे मत मारो। मुझे राजा को बेच दो। तुम्हें बहुत पैसे मिलेंगे।” तोते को बोलते सुनकर वे हक्के-बक्के रह गए। थोड़ी देर बाद अचरज से कुछ उबरे तो पूछा कि वे उसकी कितनी क़ीमत माँगें। हीरामन ने कहा, “यह मुझ पर छोड़ दो। राजा क़ीमत पूछे तो कहना कि तोता अपनी क़ीमत ख़ुद बताएगा।”

अगले दिन बहेलिया हीरामन को राजमहल ले गया। पन्ने जैसे रंग के सुंदर तोते को देखकर राजा बहुत ख़ुश हुआ और बहेलिए से पूछा कि इसका क्या दाम लोगे। बहेलिए ने कहा, “ग़रीब परवर, तोते से ही पूछ लें। यह ख़ुद बता देगा।” “क्या यह बोलता है ?” राजा ने कहा और तोते की तरफ़ घूमकर पूछा, “अच्छा हीरामन, तुम्हारी क्या क़ीमत है?” राजा के लहज़े में कुछ व्यंग का पुट था। हीरामन ने कहा, “मेरी क़ीमत दस हज़ार रुपए है महाराज! ऐसा सोचें कि क़ीमत बहुत ज़्यादा है। बहेलिए को रुपए दे दीजिए। मैं आपके बहुत काम आऊँगा।” राजा हँसा, “एक नाकुछ तोता मेरे किस काम आएगा?” हीरामन ने कहा, “यह तो वक़्त आने पर ही पता चलेगा महाराज!” तोते के बात करने के तरीक़े से राजा चकित रह गया। उसने खंजाची को आदेश दिया कि वह बहेलिए को दस हज़ार रुपए गिन दे।

राजा के छह रानियाँ थी, पर वह हीरामन के साथ ऐसा घुल-मिल गया कि उन्हें भूल ही गया। रात-दिन वह हीरामन की संगत में रहने लगा। हीरामन हर सवाल का बुद्धिमानी से जवाब देता था। साथ ही वह उसे तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम सुनाता था।

राजा की उपेक्षा से रानियाँ हीरामन से डाह करने लगीं। उन्होंने उसे मारने का निश्चय किया। राजा हीरामन को कभी अपने से अलग नहीं करता था। वे मौक़े की ताक में रहने लगीं। एक बार राजा को शिकार के लिए दो दिन बाहर रहना पड़ा। रानियों को लगा कि हीरामन से छुटकारा पाने का यह अच्छा अवसर है। वे सर जोड़कर बैठीं और सलाह करने लगीं “हम तोते से पूछेंगी कि हममें सबसे बदसूरत कौन है। वह जिसे सबसे बदसूरत बताएगा वह उसकी गर्दन मरोड़ देगी।” वे उस कमरे में गईं जिसमें हीरामन का पिंजरा था। पर रानियाँ कुछ कहतीं उससे पहले ही हीरामन मधुर और भक्तिपूर्ण स्वर में तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम सुनाने लगा। रानियों की क्रूरता विलीन हो गई। हीरामन को कोई नुकसान पहुँचाए बिना वे वापस गईं।

पर अगली ईर्ष्या उन पर फिर हावी हो गई। उन्होंने अपनी मूर्खता को कोसा जो वे हीरामन के झाँसे में गईं। उन्होंने मन को कड़ा किया और यह पक्का इरादा करके हीरामन के कमरे में गईं कि आज वे उसे हरगिज़ नहीं छोड़ेंगी। कहने लगीं, “हीरामन, हमने सुना है कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। तुम्हारी बात कभी ग़लत नहीं होती। यह बताओ कि हममें सबसे सुंदर और सबसे कुरूप कौन है?” हीरामन उनकी चाल समझ गया। बोला पिंजरे में बंद रहते मैं क्या कह सकता हूँ! सही जवाब देने के लिए मुझे हरेक के अंग-अंग का ध्यान से मुआयना करना होगा-आगे से, पीछे से, हर तरफ़ से। अगर आप मेरी राय जानना चाहती हैं तो पहले मुझे बाहर निकालिए!”

रानियाँ डरीं कि बाहर निकालते ही यह उड़कर दूर चला गया तो? सो उसे पिंजरे से निकालने से पहले उन्होंने कमरे की खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद कर दिए। पर चतुर तोते ने तब तक कमरे को अच्छी तरह से देख लिया था। कमरे के एक कोने में पानी निकलने की मोरी थी। उससे वह निकल सकता था। रानियों ने कई बार अपना प्रश्न दोहराया तो हीरामन ने कहा, “ऊँह! तुम क्या ख़ाक सुंदर हो! तुम छहों की सुंदरता उस राजकुमारी के पाँव की चिट्टू अंगुली के बराबर नहीं है जो सात समंदर और तेरह नदियों के पार रहती है।” रानियों के एड़ी से चोटी तक आग लग गई। हीरामन के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए वे उस पर झपटीं। पर इससे पहले कि वे उस तक पहुँच पातीं वह मोरी के रास्ते कमरे से बाहर चला गया और एक सुथार की झोंपड़ी में जा घुसा।

शिकार से लौटकर राजा ने हीरामन को उसके अड्डे पर नहीं पाया तो उसने इसके बारे में रानियों से पूछा। रानियों ने कहा कि वे कुछ नहीं जानतीं। राजा ने महल का चप्पा-चप्पा छनवा डाला, पर हीरामन का कहीं पता नहीं चला। हीरामन के नहीं मिलने से राजा इतना दुखी हुआ कि वह दिन भर “मेरे हीरामन, हाय मेरे हीरामन, तुम कहाँ हो?” बड़बड़ाने लगा। मंत्रियों को उसके पागल हो जाने की चिंता सताने लगी। उन्होंने पूरे राज्य में डूंडी पिटवा दी कि जो राजा के पालतू तोते को ढूँढ़कर लाएगा उसे दस हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। सुथार ने भी यह घोषणा सुनी। वह ख़ुशी-ख़ुशी हीरामन को राजमहल ले गया और पुरस्कार प्राप्त किया। हीरामन से राजा को पता चला कि कैसे छहों रानियों ने उसे मारने का षड्यंत्र किया। राजा के ग़ुस्से का पार रहा। छहों रानियों को उसने घने वन में छुड़वा दिया। कुछ दिन बाद सुनने में आया कि उन अभागी औरतों को जंगली जानवर खा गए।

कुछ समय उपरांत राजा ने तोते से कहा, “हीरामन, तुमने कहा था कि कोई भी रानी उस राजकुमारी के पाँव की चिट्टू अंगुली के बराबर भी नहीं थी जो सात समंदर और तेरह नदियों के पार रहती है। तुम ज़रूर यह जानते होगे कि वह मेरी कैसे हो सकती है।”

हीरामन ने कहा, “बेशक, मैं जानता हूँ। मैं आपको राजकुमारी के महल तक पहुँचा सकता हूँ। मेरे कहे अनुसार चलेंगे तो जल्दी ही वह आपकी बाँहों में होगी। दरअसल वह आप का इंतज़ार कर रही है। हालाँकि यह उसे पता नहीं है।”

“जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही करूँगा। बताओ, सबसे पहले मुझे क्या करना होगा?”

“सबसे पहले आपको उड़ने वाला पाकशीराज घोड़ा हासिल करना चाहिए। पाकशीराज मिल जाए तो हम आनन-फानन में सात समंदर और तेरह नदियों के उस तरफ़ जा सकते हैं।”

“तुम्हें मालूम है कि मेरा अस्तबल बहुत बड़ा है। चलो, चलकर देखें। शायद उनमें पाकशीराज नस्ल का घोड़ा भी हो।”

वे शाही अस्तबल में गए। हीरामन ने एक-एक घोड़े को ग़ौर से देखा। लंबे-तगड़े सुंदर घोड़ों को छोड़कर उसकी नज़र एक मरियल भद्दे टट्टू पर अटक गई। बोला, “यही तो! यह वह घोड़ा है जो मैं चाहता था। यह असली पाकशीराज है। लेकिन इसे छह महीने बढ़िया दाना खिलाना होगा। तभी यह हमारे काम सकेगा।” राजा ख़ुद उसे एक अलग अस्तबल में ले गया और हर रोज़ यह देखता कि उसे बेहतरीन दाना दिया जा रहा है या नहीं। टट्टू तेज़ी से बदलने लगा। छह महीने में वह शानदार जंगी घोड़ा निकल आया। हीरामन ने उसे देखकर पाया कि वह मुहिम के लिए तैयार है। तब हीरामन ने राजा से कहा कि वह कुछ चाँदी के खेस यानी भुने हुए चावल के दाने बनवाए। राज स्वर्णकार रात-दिन काम में लग गए। कुछ ही दिनों में काफ़ी चाँदी के खेस बन गए। अब वे हवाई यात्रा के लिए जा सकते थे। रवाना होने से पहले हीरामन ने राजा से कहा, “एक बात का ख़ास ध्यान रखें। घोड़े को आप सिर्फ़ एक चाबुक मारें। अगर आपने एक से ज़्यादा चाबुक मारे तो हम बीच रास्ते में फँस जाएँगे।” राजा हीरामन और चांदी के खेसों के थैले के साथ घोड़े पर सवार हुआ और चाबुक को घोड़े से हलके-से छुआया। घोड़ा हवा में उठा और प्रकाश की गति से उड़ने लगा। कई मुल्कों को पीछे छोड़ते हुए सात समंदर और तेरह नदियों को पार करते हुए वह उसी शाम अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी के महल के सामने जा उतरा।

महल के दरवाज़े के पास एक विशाल वृक्ष था। हीरामन ने राजा से कहा कि वह घोड़े को अस्तबल में बाँध दे और फिर इस पेड़ पर छुपकर बैठ जाए। यह कहकर हीरामन अपने काम में लग गया। उसने पेड़ के तने से शुरू करके गलियारों और बरामदों में से होकर ठेठ निर्दोष सुंदरी के कमरे के द्वार तक चोंच से चाँदी के खेस एक के बाद एक रख दिए। यह काम निपटाकर वह भी राजा के पास पेड़ पर बैठा। आधी रात के दो एक घड़ी बाद राजकुमारी के कमरे में सोने वाली एक दासी किसी काम से बाहर आई। उसकी नज़र चाँदी के खेसों पर पड़ी। उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या है। सो उसने कुछ खेस उठाए और राजकुमारी को दिखाए। राजकुमारी अपनी उत्सुकता रोक सकी और बाहर आकर खेस बीनने लगी। उसने देखा कि उसके द्वार से उनकी कतार-सी बनी हुई है। उसे लगा कि कुछ रोमांचक घटित होने वाला है। खेस के चमकते टुकड़ों को वह चुनती चली गई। चुनते-चुनते बरामदों और गलियारों से होते हुए वह उस पेड़ के नीचे पहुँची। हीरामन के कहे अनुसार राजा पेड़ से कूदा और राजकुमारी को उठाकर पाकशीराज पर सवार हो गया। हीरामन राजा के कंधे पर बैठा। राजा के एक बार हलके-से चाबुक छुआते ही घोड़ा प्रकाश की गति से आकाश में पहुँच गया। राजकुमारी को पाने की ख़ुशी और उसके साथ जल्द से जल्द घर पहुँचने की कामना में राजा हीरामन की हिदायत भूल गया और उसने घोड़े से दूसरी बार चाबुक छुआ दिया। पलक झपकते घोड़ा एक घने जंगल के पास उतर गया। “ओह, यह आपने क्या किया?” हीरामन चीख़ पड़ा। “मैंने आपसे कहा था कि घोड़े को एक बार से ज़्यादा चाबुक लगाएँ। इसका नतीजा हमें भुगतना पड़ेगा। शायद जीवन भर हम यहाँ से निकल सकें।” पर जो हो गया वह हो गया। पाकशीराज शक्तिहीन हो गया था और वे बीच रास्ते में फँस गए थे। वे घोड़े से उतरे। वहाँ दूर-दूर तक कोई बस्ती थी। उन्होंने कुछ फलाहार किया और वहीं ज़मीन पर सो गए।

संयोग की बात कि अगले दिन सुबह वहाँ का राजा उस जंगल में शिकार के लिए आया। तीर से घायल हिरण का पीछा करते हुए वह मुसीबत में पड़े हमारे राजा और राजकुमारी के पास से गुज़रा। राजकुमारी के दिप-दिप करते सौंदर्य से उसकी आँखे चौंधिया गईं। उसे पाने की प्रबल कामना के वशीभूत उसने ज़ोर से सीटी बजाई। आन की आन में उसके अनुचरों ने उसे घेर लिया। राजकुमारी को उठाकर वह अपने साथ ले गया। पर जाने से पहले उसने राजा की आँखें फोड़ दी। जिसके लिए राजा ने सात समंदर और तेरह नदियाँ पार कीं वह मिलकर भी हाथ से निकल गई। अंधा राजा जंगल में अकेला रह गया। नहीं, अकेला नहीं। चतुर हीरामन जो उसके साथ था।

राजकुमारी को राजमहल ले जाया गया। पाकशीराज भी उसके साथ था। रात को राजा उसके पास गया तो राजकुमारी ने कहा कि उसे छह महीने तक उसके पास नहीं आना चाहिए, क्योंकि वह शिव का व्रत कर रही है। वह जानती थी कि पाकशीराज को वापस शक्ति ग्रहण करने में छह महीने लगेंगे। वह रात-दिन धार्मिक कर्मकांड में व्यस्त रहने का स्वांग करती। राजा ने उसे रहने के लिए अलग मकान दे दिया था। पाकशीराज को उसने अपने साथ रखा। उसे वह बढ़िया से बढ़िया दाना खिलाती। यहाँ से निकलने के लिए उसे हीरामन की मदद भी चाहिए थी। सो उसने अपने चाकरों को आदेश दिया कि वे उसकी छत पर चावल, गेहूँ और सब तरह की दालों के ढेर लगा दें। हर रोज़ हज़ारों पक्षी उसकी छत पर दाना चुगने के लिए आते। राजकुमारी हर रोज़ उनमें हीरामन को ढूँढ़ती। पर हीरामन जंगल का होकर ही रह गया था। उसे अपने साथ-साथ अंधे राजा की देखभाल भी करनी होती थी। दोनों कंदमूल खाकर गुज़ारा कर रहे थे।

जंगल के पक्षी उससे कहते, “ओ हीरामन, तुम यहाँ जंगल में बहुत दुखी हो। भली महिला के भोज में तुम भी हमारे साथ थोड़ी देर के लिए शामिल क्यों नहीं होते? वहाँ तुम्हें सभी तरह के धान और दालें खाने को मिलेंगी। हर सुबह वहाँ हज़ारों पक्षी आते हैं और जी भरकर दाना चुग़ते हैं।” सयाने हीरामन से यह छुपा रहा कि वह भली महिला कौन है और क्यों वह पक्षियों पर इतनी मेहरबान हो रही है। एक सुबह उसने उनके साथ वहाँ जाने का निश्चय किया। हीरामन ने राजकुमारी को देखा। उसने राजकुमारी को अँधे राजा के हालचाल सुनाए और बताया कि कैसे उनकी आँखें ठीक हो सकती हैं और कैसे राजकुमार और वे यहाँ से निकल सकते हैं। योजना यह थी—छह महीने पूरे होने को ही हैं। पाकशीराज जल्दी ही उड़ान के लिए तैयार हो जाएगा। राजा की आँखें भी ठीक हो सकती हैं अगर हीरामन सात समंदर और तेरह नदियों के पास राजकुमारी के महल के सामने जो पेड़ है उस पर रहने वाले बिहंगम पक्षी के बच्चों की ताज़ा बीट ला सके।

अगले दिन सुबह हीरामन उड़ा सो रात होने से पहले मंज़िल पर पहुँच गया और दिन निकलने का इंतज़ार करने लगा। भोर होने पर चोंच में पत्ता लिए हुए घोंसले के नीचे बड़े धीरज के साथ बिहंगम के बच्चों की बीट एकत्र की। समंदरों और नदियों को पारकर वह वापस आया और राजा के दृष्टिहीन कोटरों पर वह अनमाल विष्ठा लगाई। विष्ठा लगाते ही राजा की आँखें खुल गईं। उसे फिर दिखाई देने लगा। कुछ दिनों बाद पाकशीराज एकदम चंगा हो गया। नियत दिन राजकुमारी पाकशीराज पर बैठकर निकल भागी। जंगल से राजा और हीरामन को लिया और आन की आन में तीनों राजा की राजधानी जा पहुँचे। राजा और राजकुमारी की बहुत धूमधाम से शादी हुई। उन्होंने लंबी उम्र पाई और बेटे-बेटियों के संग सुख से रहे। हीरामन हमेशा उनके साथ रहा। वह उन्हें तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं के नाम गाकर सुनाता था।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 46)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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