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चतुर बूढ़ा सयाना

chatur buDha sayana

एक गाँव था। जहाँ के युवाओं ने निश्चय किया कि वे बूढ़े सयानों को तो कहीं साथ ले जाएँगे और उनसे कोई सलाह लिया करेंगे। बूढ़े सयानों को युवाओं का यह निर्णय अच्छा तो नहीं लगा लेकिन वे अपने बच्चों की मोह-माया में चुप रह गए।

एक बार एक युवक का विवाह बहुत दूर तय हुआ। इतना दूर कि रस्ते में पहाड़, तालाब, जंगल और रेगिस्तान सभी कुछ पड़ते थे। बूढ़े सयानों ने इतनी दूर विवाह तय करने से मना किया लेकिन युवाओं ने बूढ़े सयानों का कहना मानने का निश्चय कर रखा था।

शुभदिन बारात गाँव से चली। बारातियों में एक ऐसा लड़का भी था जो अपने बूढ़े पिता से बहुत प्यार करता था तथा चोरी-चुपके उनसे सलाह भी ले लिया करता था। पिता ने उससे कहा कि वह उसे भी अपने साथ ले चले। लड़के ने पिता को एक टोकरे में छिपाया और सामानों के साथ एक बैलगाड़ी पर चढ़ा दिया।

लंबे रास्ते में जब जंगल आया तब तक सभी बहुत थक चुके थे। बैलों के थकने के कारण और सामानों के बोझ के कारण उनकी गति धीमी हो गई थी। युवकों ने सोचा कि हम व्यर्थ ही पानी के घड़े ढो रहे हैं। अभी तक के पूरे रास्ते में जगह-जगह पर पानी मिलता रहा है। अतः घड़े ख़ाली कर देना चाहिए। इससे बैलों का भार कम हो जाएगा और वे तेज़ी से चल सकेंगे। सभी युवकों ने अपनी-अपनी बैलगाड़ी से पानी के घड़े ख़ाली कर दिए। लेकिन छिपे हुए बूढ़े सयाने ने अपने बेटे को ऐसा करने से मना किया। बेटे ने पिता का कहना माना और पानी के घड़े को कपड़ों में छिपाकर रख लिया।

जंगल समाप्त होने पर रेगिस्तान शुरू हो गया। धीरे-धीरे सभी को प्यास लगने लगी। पानी वे पहले ही फेंक चुके थे। जब वे प्यास के कारण एक-एक करके गिरने लगे तब बूढ़े सयाने ने अपने बेटे से कहा कि सबको एक-एक घूँट पानी दे दो और उनसे वापस चलने को कहो। बेटे ने ऐसा ही किया।

उस लड़के के पास पानी देखकर सभी युवक उससे पूछने लगे कि तुमने अपना पानी क्यों नहीं फेंका? पहले तो लड़के ने छिपाना चाहा लेकिन बहुत ज़ोर डालने पर उसने अपने पिता के बारे में बता दिया। इस पर युवकों ने सोचा कि यदि यह बूढ़ा सयाना हमारे साथ आज होता तो हम आज प्यास से मर गए होते। उन्हें बूढ़े सयानों के होने का महत्व समझ में आया और उन्होंने अपने गाँव लौटकर बूढ़े सयानों से क्षमा माँगी और भविष्य में उनकी अवहेलना करने की शपथ ली।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 310)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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