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नाई और ब्रह्मराक्षस

nai aur brahmarakshas

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बर्दमान के पास किसी गाँव में एक नाई रहता था। वह घोर आलसी था। काम करते उसकी नानी मरती थी। पूरे दिन वह पुराने आईने के सामने बैठा टूटे कंघे से बाल सँवारता था। उसकी बूढ़ी माँ इसके लिए उसे रात-दिन फटकारती थी, पर उसके कान में जूँ भी नहीं रेंगती थी। आख़िर एक दिन आजिज़ आकर माँ ने उसे झाड़ू से मारा। जवान बेटे ने अपने को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़कर चला गया। उसने क़सम खाई कि जब तक कुछ धन जमा नहीं कर लेगा वह घर नहीं लौटेगा। चलते-चलते वह जंगल में पहुँचा। वहाँ उसने सहायता के लिए भगवान से प्रार्थना करने का विचार किया। लेकिन वह प्रार्थना के लिए बैठता उससे पहले ही उसका एक ब्रह्मराक्षस से सामना हो गया। यह राक्षस पहले ब्राह्मण था। वह बेतहाशा नाच रहा था। उसे देखकर नाई के होश उड़ गए। पर उसने अपना डर ज़ाहिर नहीं होने दिया। उसने साहस बटोरा और राक्षस के साथ नाचने लगा। थोड़ी देर बाद उसने राक्षस से पूछा, “तुम क्यों नाच रहे हो? तुम्हें किस बात की ख़ुशी है?”

राक्षस हँसा, “मैं तुम्हारे सवाल का इंतज़ार कर रहा था। तुम निरे काठ के उल्लू हो। कारण, तुम ताड़ ही नहीं सकते। मैं इसलिए नाच रहा हूँ कि मुझे तुम्हारा नरम-नरम माँस खाने को मिलेगा। तुम बताओ, तुम क्यों नाच रहे हो?”

नाई ने कहा, “मेरे पास इससे भी बढ़िया कारण है। हमारा राजकुमार सख़्त बीमार है। चिकित्सकों ने उसे एक सौ एक ब्रह्मराक्षसों के हृदय का रक्त पिलाने को कहा है। महाराज ने मुनादी करवाई है कि जो कोई यह दवा लाकर देगा उसे वे अपना आधा राज्य देंगे। साथ ही उससे अपनी बेटी का विवाह भी करेंगे। बड़ी मुश्किल से मैंने एक सौ ब्रह्मराक्षस पकड़े हैं। तुम्हें मिलाकर एक सौ एक की संख्या पूरी हो जाएगी। तुम्हारी आत्मा को मैंने पहले ही क़ब्ज़े में कर लिया है। तुम मेरी जेब में हो।” यह कहते हुए उसने जेब से छोटा आईना उसकी आँखों के सामने किया। आतंकित राक्षस ने आईने में अपनी शक्ल देखी। चाँदनी रात में उसे अपना प्रतिबिंब साफ़ नज़र आया। उसे लगा वह वाक़ई उसकी मुट्ठी में है। थर-थर काँपते हुए उसने नाई से विनती की कि वह उसे छोड़ दे। पर नाई राज़ी नहीं हुआ। तब राक्षस ने उसे सात रियासतों के ख़ज़ाने के बराबर धन देने का लालच दिया। झुकने को अनिच्छुक होने का स्वांग करते हुए नाई ने कहा, “पर जिस धन का तुम वादा कर रहे हो वह है कहाँ? और इतनी रात गए उस धन को और मुझे घर कौन पहुँचाएगा?”

राक्षस ने कहा, “ख़ज़ाना तुम्हारे पीछे वाले पेड़ के नीचे गड़ा है। पहले तुम इसे अपनी आँखों से देख लो। फिर मैं तुम्हें और इस ख़ज़ाने को पलक झपकते तुम्हारे घर पहुँचा दूँगा। राक्षसों की शक्तियाँ तुमसे क्या छुपी हैं!”

कहने के साथ ही उसने पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया और हीरे-मोतियों से भरे सोने के सात कलश बाहर निकाले। ख़ज़ाने की चमक से नाई चौंधिया गया। पर अपनी भावनाओं को बड़ी होशियारी से छुपाते हुए उसने रोब से आदेश दिया कि वह उसे और ख़ज़ाने को तुरंत उसके घर पहुँचा दे। राक्षस ने आदेश का पालन किया। नाई को उसके घर पहुँचाकर राक्षस ने उससे अपनी मुक्ति की याचना की। पर नाई उसकी सेवाओं से इतनी जल्दी हाथ नहीं धोना चाहता था। सो उसने राक्षस को पहले उसके खेत की फसल काटकर लाने को कहा। बेचारे राक्षस को यक़ीन था कि वह नाई के शिकंजे में है। सो उसे फसल काटने के लिए राज़ी होना ही था।

वह फसल काट रहा था कि एक दूसरे राक्षस का उधर आना हुआ। उसने ब्रह्मराक्षस से पूछा कि वह क्या कर रहा है। ब्रह्मराक्षस ने उसे बताया कि कैसे वह दुर्योग से एक काइयाँ आदमी के चंगुल में फँस गया। उसके जाल से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता है कि वह उसका हुक्म बजाए। इसीलिए वह उसकी धान की फसल काट रहा है। दूसरा राक्षस ठठाकर हँसा। कहा, “पागल हो गए हो? राक्षस आदमी से कहीं अधिक शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं। आदमी की क्या औक़ात कि वह हमें हरा सके! उस आदमी का घर मुझे दिखा सकते हो?”

“दिखा दूँगा, पर दूर से। धान की कटाई पूरी किए बिना उसके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं।” यह कहकर उसने उसे नाई का घर दूर से दिखा दिया।

इस बीच धन मिलने की ख़ुशी में नाई भोज के लिए एक बड़ी मछली लेकर आया। पर बदक़िस्मती से एक बिल्ली टूटी हुई खिड़की से रसोई में घुसी और आधी से ज़्यादा मछली खा गई। नाई की बीवी ग़ुस्से से सुलगती हुई बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली टूटी हुई खिड़की से चंपत हो गई। नाइन ने सोचा-बिल्ली वापस आएगी और इसी रास्ते से आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी हाथ में लिए हुए बिल्ली के लौटने का इंतज़ार करने लगी। उधर दूसरा राक्षस चोर की तरह दबे पाँव नाई के घर की ओर बढ़ा। वह अपने दोस्त को फँसाने वाले नाई के घर की एक झलक देख लेना चाहता था। उसी टूटी हुई खिड़की में से उसने अपना झबरीला सर भीतर घुसाया। शैतान बिल्ली की ताक में खड़ी क्रुद्ध नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस का लंबा नाक आगे से कट गया। दर्द और भय से राक्षस बेतहाशा भागा। शर्म के मारे फिर वह अपने मित्र के पास भी नहीं गया।

पहले राक्षस ने धीरज के साथ पूरी फसल काटी और अपनी मुक्ति के लिए नाई के पास गया। धूर्त नाई ने इस बार उसे उलटा शीशा दिखाया। राक्षस ने बड़े ग़ौर से देखा। उसमें अपनी छवि नहीं पाकर उसने राहत की साँस ली और नाचता-गुनगुनाता चला गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 38)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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