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बहन और उसका बड़ा भाई

अन्य

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एक बूढ़ा और बुढ़िया थे। उनके एक लड़की और एक लड़का था। लड़का बड़ा था। एक बार की बात है,गाँव के लोग कहीं गए थे। उनके साथ वे दोनों भाई-बहन भी गए। वापसी में वे दोनों भाई-बहन थकान के कारण नदी के किनारे सो गए। गाँव वाले उन्हें वहाँ सोता छोड़ कर गाँव वापस गए। घर वापस कर उन्होंने बूढ़े और बुढ़िया को बताया कि उनके दोनों बच्चे जाने कहाँ भाग गए। यह सुन कर उनके माता-पिता चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा, इन लोगों ने ऐसा क्यों किया? कहीं वे दोनों आपस में विवाह का इरादा तो नहीं रखते? यदि ऐसा हुआ तो समाज उन्हें क्या कहेगा? ऐसा विचार कर वे दोनों अपने लड़के-लड़की के प्रति क्रोध करते हुए उनकी खोज में चल पड़े।

उधर उन दोनों भाई-बहन की नींद जब खुली तब तक शाम हो चुकी हो चुकी थी। उन्हें अंधकार में बड़ा डर लगा। फिर भी हिम्मत बाँधी उन लोगों ने और इधर-उधर रास्ता तलाशने लगे। किंतु अंधकार में कुछ-भी सुझाई नहीं पड़ता था। अंत में थक-हार कर वे दोनों उसी स्थान पर फिर से सो गए। इसी समय उनके माता-पिता वहाँ पहुँचे। उन्हें एक ही जगह सोया हुआ देख कर उन्हें बड़ा क्रोध आया। उन्होंने क्रोध में कर उन दोनों भाई-बहन को लकड़ी के एक संदूक में डाल कर नदी में बहा दिया और स्वयं घर वापस हो गए।

उन दोनों भाई-बहन के पालतू कुत्ता और मैना पक्षी उनके साथ थे। उन लोगों ने यह सब देखा और स्वयं भी उस संदूक पर जा बैठे। संदूक नदी में बहता रहा,कुत्ता और मैना उस पर बैठे आपस में बतियाने लगे। भाई-बहन की नींद खुली तो अपने आप को संदूक के भीतर पाया। वे दोनों भीतर से ही कुत्ता और मैना की बातें सुनते रहे। बीच-बीच में उनसे बातें भी करने लगे। संदूक नदी में बहता चला जा रहा था। रास्ते में शायद कोई गाँव था। घाट पर एक बूढ़ा और बुढ़िया मछली पकड़ने के लिए जाल डाले हुए थे। संयोग से संदूक उसी जाल में फँस गई। बूढ़े ने जाल खींचा और संदूक खोला। संदूक खोलने पर दोनों भाई-बहन बाहर निकले। दोनों ने अपनी आप बीती उन्हें सुनाई। इसके बाद वे दोनों वहाँ से चल पड़े। उनके साथ कुत्ता और मैना भी चले। चलते-चलते वे एक निर्जन स्थान में पहुँचे। वहाँ उन्हें एक क़िला और महल दिखलाई पड़ा। वे वहाँ गए। किंतु उन्हें वहाँ कोई भी मनुष्य नहीं मिला। तभी एक भृंगराज पक्षी वहाँ आया। उस पक्षी ने उन्हें बतलाया कि इस क़िले में एक भयानक राक्षस रहता है,जो सभी को तंग करता है। उसके प्रकोप से वहाँ कोई मानव-प्राणी नहीं रहता। यह बतलाकर उस पक्षी ने उन्हें सलाह दी कि वे कहीं दूसरी जगह चले जाएँ। किंतु भाई ने कहा कि जब हमारी मृत्यु ही होनी है तब डरने से क्या लाभ? यह कह कर वे दोनों भाई-बहन उसी महल में रहने लगे।

एक दिन,किसी गाँव के युवक-युवतियाँ किसी दूसरे गाँव से दियारी नाच कर अपने सिर पर सामान लादे उधर से गुजर रहे थे। उनमें से एक नवयुवती ने दीर्घशंका के ख़्याल से अपना गट्ठर एक पेड़ पर टाँग दिया और जंगल में चली गई। तभी वह बांडा (पूँछ कटा) कुत्ता उस नवयुवती का गट्ठर अपने मुँह में दबा कर महेल की ओर चला गया। नवयुवती ने यह देखा तो वह उस कुत्ते का पीछा करने लगी। पीछा करते वह महल तक चली आई। यहाँ उसकी मुलाकात उसी लड़के से हुई। दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति प्यार उमड़ पड़ा। दोनों आपस में विवाह करने के लिए राज़ी हो गए और विवाह कर वहीं सुखपूर्वक रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 50)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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