कनौजी लोकगीत : चैत मास चिन्ता अति बाढी
kanauji lokgit ha chait mas chinta ati baDhi
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरहिणी की दशा।
चैत मास चिन्ता अति बाढी, प्रान रहे चित लेखे।
कइसे धीर धरौं मोरी सजनी, बिन पिय मोहन देखे।।1।।
बैसाख मास रितु लागी री सजनी, सब कोई मंडिल छाये।
हमरे तौ पिया परदेस छाय रहे, हमरो मंडिल को छावै।।2।।
जेठ मास रितु लागी री सजनी, चौलित पमन झकोरै।
अइसी पमन चलै निसबासर, अंग-अंग करि टोरै।।3।।
असाढ़ मास रितु लागी री सजनी, चौलित बादर घेरै।
बिजुली चमके कोई न सँदरखै, रिमिक झिमिक जल बरसै।।4।।
सावन मास रितु लागी री सजनी, सब सखि झूला झूलैं।
हमरे तौ सजन बिदेस छाय रहे, हम झुलुआ कइसे झूलैं।।5।।
भादौं मास रितु लागी री सजनी, चौलित अँधेरिया छाई।
मोर की बानि पपिहरा बोले, दादुल बचन सुनावै।।6।।
क्वाँर मास रितुलागी री सजनी, सब कोई दान लुटावै।।
हमरे तौ स्याम बिदेस छाय रहे, हमरे को दान लुटावै।।7।।
कातिक मास रितु लागी री सजनी, सब कोई गंगा हनाय।
हमरे तौ हरि परदेस बिराजे, हमरे को गंगा हनाय।।8।।
अगहन मास रितु लागी री सजनी, सब सखि गउने जायँ।
हमरे तौ पिया बिदेस छाय रहे, हमरो गउनो को लेय।।9।।
पूस मास रितु लागी री सजनी, जाड़ो बहुत सतावै।
हमरे तौ पिया बिदेस छाय रहे, हमरो जाड़ो को छुड़ावै।।10।।
महाँ मास रितु लागी री सजनी, सब सखि महाँ हनायँ।
हमरे तौ बलम बिदेस छाय रहे, हमरे सँग को हनाय।।11।।
फागुन मास रितु लागी री सजनी, सब सखि होरी खेलैं।
हमरे तौ बलम परदेस छाये रहे, हम कइसे होरी खेलैं।।12।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 249)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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