मैथिली लोकगीत : तलफि तलफि उठय जियरा कोना बिधि बोधब हे
maithilii lokagiit : talphi talphi uThay jiyra kona bidhi bodhab he
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरहिणी की व्यथा।
तलफि तलफि उठय जियरा कोना बिधि बोधब हे।
ललना, हमरो पिया परदेस उदेस न पाओल हे।।1।।
चाँदनी रात इजोरिया से भेल अँधेरियान हे।
ललना, पापी पपीहा आधि रात त पिउ पिउ सुनावल हे।।2।।
सूतल रहलो में सेजिया त निंदियो ने आबय हे।
ललना, चमकि चमकि उठै गात हिया मोय सूल चुभय हे।।3।।
कोइ नहिं संग सहेलिनि घरवा अकेलिन हे।
ललना, छिनहिं बाहर छिन भीतर बलमु विरहमेन हे।।4।।
धीर धरु अचल सोहागिनि सासु समुझावहिं हे।
ललना, तोहरा बलमु फिरि अयताह मास कुँवारहिं हे।।5।।
विरहिणी अपनी एक सखी से कहती है—हे सखी! मेरा जी रह-रह कर
तलफ़ उठता है, मैं उसे कैसे बोध दूँ? मेरे प्राणप्रिय परदेश में हैं, उनका कोई समाचार नहीं मिला।।1।।
हे सखी! उजली चाँदनी रात से अँधेरा हो गया। पापी पपीहा आधी रात
को ‘पी-पी' सुनाता है।।2।।
हे सखी! मैं सेज पर सो रही थी, नींद नहीं आती थी। जाने क्यों मेरा शरीर चौंक उठता और हृदय में शूल-सा चुभता है।।3।।
हे ललना! कोई साथ में सहेली नहीं है, मैं घर में अकेली हूँ। मैं प्रियतम के विरह में घर के भीतर-बाहर व्याकुल सी चक्कर काटती हूँ।।4।।
सास उसे समझाती है—हे अचल सौभाग्यवती! धैर्य धारण करो, तुम्हारे
प्रियतम कुआर के माह में वापस आएँगे।।5।।
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