मैथिली लोकगीत : जखन चलल हरि मधुपुर रे
maithili lokgit ha jakhan chalal hari madhupur re
रोचक तथ्य
संदर्भ—श्रीकृष्ण का मथुरा-गमन।
जखन चलल हरि मधुपुर रे,
व्रज भेले उदासे।
बिन जदुपति नहिं जीअब रे,
कर धूनब माथे।।1।।
दृग चित बदन मलिन भेल रे,
सिर फूजल केसे।
नागरि नयन बरसि गेल रे,
जनि जल असरेसे।।2।।
प्रेम परस पबि छुटि गेल रे,
पहुँ भय गेल चोरी।
आब जिवन नहिं जीअब रे,
विष पीअब घोरी।।3।।
‘धनपति’ मन धीरज धरु रे,
तोंहि भेटत सोहागे।
माधव मधुपुर आओत रे,
पुनि जागत भागे।।4।।
जिस क्षण श्रीकृष्ण मथुरा चलने लगे उस समय ब्रज उदास हो गया। वह
कहने लगा—यदुपति कृष्ण के बिना हम कैसे जीवित रहेंगे, केवल सिर धुनेंगे।।1।।
गोपियों के नेत्र, चित्त और मुख उदास हो गए। सिर के बाल बिखर गए। नारियों के नेत्र बरस गए, जैसे आश्लेषा नक्षत्र में जल बरस रहा हो।।2।।
प्रेम का पारस पत्थर छूट गया, प्रिय चोरी चले गए। अब मैं जीवित नहीं रहूँगी, विष पी लूँगी।।3।।
‘धनपति' कहते हैं—धीरज धरो। तुम्हें तुम्हारा पति मिलेगा, माधव मथुरा से आएँगे, तुम्हारा भाग्य जगेगा।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 56)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.