Font by Mehr Nastaliq Web

भोजपुरी लोकगीत : प्रथम मास अषार्ह हे सखि

bhojapuri lokgit ha pratham mas asharh he sakhi

रोचक तथ्य

संदर्भ—उद्धव के प्रति गोपी-कथन।

प्रथम मास अषार्ह हे सखि, साम अबहुं आवहीं।

गोखुला उजारि ऊधो, जाके मधुपुर छावही।।1।।

सावन सगुन सोहावन हे सखि! देखिके मन लोभही।

घर-घर सखि सभ झूले हिंडोला, पिया से करत कलोलहीं।।2।।

भादो रैनि भयावनि हे सखि, देखिके जियरा डरी।

चहुँ ओर चमकत बिजुली ऊधो, मेघ गरजत घन भारी।।3।।

आसिन मास अन्देस ऊधो, कवन बात धिरजा धरीं।

हम मरीं बिष खाइ ऊधो, जो मोहन नहिं आवहीं।।4।।

कातिक मास पुनीत ऊधो, सखिन सभ कौतुक करे।

हरि दुआरे पूजिके, ललित हो कल्हि आवहीं।।5।।

अगहन में सखि जाड़ लगत बा, जो पिया रहिते साथ ही।

दुख-सुख राम साथे गवँइतो, दिया बरितों अकासहीं।।6।।

पूस में सखि, परेला फुहेरा, धुँध काल सूझहीं।

अस पुरुष असि नारि नाहीं, और सों मन लावहीं।।7।।

माघ में घन भाग उनकर, जे पिया के साथहीं।

अंग में अंग मिलाइ ऊधो, बाँहि धरी सिरहानहीं।।8।।

फागुन में सखि खेलत होरी, रंगन भींजत सरीरहीं।

खेलत होरी राम करत बोली, पिया बिनु कसके करेजही।।9।।

चैत में चित चंचल ऊधो, भाग से पिया पावहीं।

अपना करम के बात ऊधो, दोष काहु लावहीं।।10।।

बैसाख में बहुत उछाह ऊधो, नारी मंगल गावहीं।

घर-घर में सखि मंगल गावें, हरषि झूमरि पारहीं।।11।।

जेठ में प्रभु भइ गइले भेंट, पूरल बारह मासहीं।

पूरल बारह मास ऊधो, पूजल मनवा के आसहीं।।12।।

एक गोपी दूसरी गोपी तथा कृष्ण-सखा उद्धव से कहती है—हे सखी! पहला मास आषाढ़ आया, किंतु अब भी श्याम नहीं आए। वे अपने विरह रूपी ताप से गोकुल को उजाड़कर उद्धवजी, श्रीकृष्ण अब जाकर मथुरा में विराजमान हैं।।1।।

हे सखी! भादौ की रात्रि बड़ी भयावह होती है, जिससे जी डरता है। हे उद्धव! चारों ओर बिजली चमकती है और बादल बड़ी गर्जना करते हैं।।3।।

हे उद्धव जी! आश्विन के महीने में आशंका होती है, मैं किस प्रकार धैर्य

धारण करूँ? उद्धव जी, श्रीकृष्ण नहीं आएँगे तो मैं विष खाकर मर जाऊँगी।।4।।

हे उद्धव जी! कार्तिक मास बड़ा पुनीत होता है। सब सखियाँ कौतुक करती हैं। वे मंदिरों में पूजा करके प्रसन्नचित्त घर लौटती है।।5।।

हे सखी! अगहन में जाड़ा लगता है। यदि प्रियतम साथ रहते तो मैं उन्हीं के साथ दुःख तथा सुख गुज़ारती और आकाश-दीप जलाती।।6।।

हे सखी! पौष मास में कुहरा पड़ता है, जिसमें धुँध के कारण समय

का पता नहीं चलता। ऐसे में कोई ऐसा पुरुष और कोई स्त्री नहीं, जो और किसी से मन लगाए।।7।।

हे उद्धव! माघ में उनके धन्य भाग्य हैं, जिनके प्रियतम उनके साथ हैं। वे अंग में अंग लगाकर अपनी बाँह सिर के नीचे रखकर सोती हैं।।8।।

हे सखी! फाल्गुन मास में सखियाँ होली खेलती हैं। उनके शरीर रंगों से भीग जाते हैं। वे होली खेलते हुए बोली (व्यंग्य) बोलती हैं और अपने प्रियतम के बिना मेरा हृदय कष्ट पाता है।।9।।

हे उद्धव! चैत्र में चित्त चंचल होता है, बड़े भाग्य से प्रियतम मिलते हैं। उद्धव जी, यह तो अपने-अपने भाग्य की बात है, किसे दोष दिया जाए (मेरे कृष्ण नहीं आए)।।10।।

हे उद्धव! वैशाख में बड़ी उमंग और उत्साह रहता है, स्त्रियाँ मंगल गीत

गाती हैं। घर-घर में सखियाँ मंगल गाती हैं और हर्ष में भर कर झूमती और झूमर गीत गाने लगती हैं।।11।।

ज्येष्ठ में मेरे स्वामी से भेंट हो गई और बारह महीने पूरे हो गए।। उद्धव जी, मन की आशा पूर्ण हो गई।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 114)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए