भोजपुरी लोकगीत : मोरी धानी चुनरिया इतर गमके
bhojapuri lokgit ha mori dhani chunariya itar gamke
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरहिणी की उक्ति।
मोरी धानी चुनरिया इतर गमके,
धनि बारी उमिरिया नइहर तरसे।।टेक।।
सोने की थारी में जेवना परोसलों,
मोर जेंवनवाला बिदेस तरसे।।1।।
झंझरे गेडुववा गंगाजल पानी,
मोर घूँटनवाला बिदेस तरसे।।2।।
लवँगा इलयची के बीड़ा लगवली,
मोर कूचनवाला बिदेस तरसे।।3।।
कलिया चुनि-चुनि सेजिया उसवलों,
मोर सूतनवाला बिदेस तरसे।।4।।
एक स्त्री दूसरी से कहती है कि मेरी धानी रँग की चूनर है, जिस पर लगा हुआ इत्र महक रहा है। मेरी अभी नई उम्र है, जो नैहर के लिए तरसती रहती है।।टेक।।
मैंने सोने की थाली में सुस्वादु भोजन परोसा, किंतु मेरा भोजन करने वाला प्रियतम विदेश में उसके लिए तरस रहा है।।1।।
मैंने झाँझर गेडुवा में गंगाजल रखा, किंतु वह किस काम का? उसे घूँट-घूँट कर पीनेवाला मेरा पति तो उसके लिए विदेश में तरस रहा है।।2।।
मैंने बडे प्रेम से लौंग-इलायची युक्त पान का बीड़ा लगाया, किंतु उसे प्रेम से कुँचनेवाला मेरा पति बिदेस में उसे पाने के लिए तरस रहा है।।3।।
मैने फूल की कलियों को चुन-चुन कर सेज बिछाई, किंतु उस सेज पर सोने वाला मेरा पति विदेश में उसके लिए तरस रहा है।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 141)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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