भोजपुरी लोकगीत : दस पाँच नदिया रे बहे एक सोतिया
bhojapuri lokgit ha das panch nadiya re bahe ek sotiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—एक वियोगिनी की व्यथा।
दस पाँच नदिया रे बहे एक सोतिया।
ताहाँ हमार पियना नहाई मोर सखिया।।1।।
जाहुँ हम जनते रे लोभिया, जइबे बिदेसवा।
खींचि खींचि बिन्हतों रे लोभिया, रेसम के डोरिया।।2।।
रेसम के बान्हवाँ ए धनिया, टूटि फाटि जइहें।
बचन के बान्हवाँ ए धनिया, कबहूँ ना डोलिहें।।3।।
जल में रोवेला चकवा चकई, बाहर रे हरिनियाँ।
घरवा रोवेले घरीनिया, बिछोहवा कइले निरामोहिया।।4।।
एक स्त्री अपनी सखी से कहती है—एक स्रोत से दस-पाँच नदियाँ बहती हैं, हे मेरी सखी! वहीं मेरा पति स्नान करता है।।1।।
एक दिन स्नान के बहाने वह परदेश चला गया तो पत्नी ने उसे पत्र लिखाया—हे लोभी! यदि मैं जानती कि तुम बिना बताए (कमाने के लिए) परदेश चले जाओगे तो मैं आप को रेशम की डोर में खींच कर बाँध रखती।।2।।
पति ने उत्तर दिया—हे धना! रेशम का बंधन तो टूट जाएगा, किंतु वचन का बंधन कभी नहीं शिथिल होगा।।3।।
उसके वियोग में चकवा-चकवी रोते हैं, बाहर हरिणी रोती है और घर में उसकी गृहिणी रोती है, निर्मोही पति ने वियोग किया है अर्थात् उसके वियोग से सभी लोग व्यथित है।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 121)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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