मेैथिली लोकगीत : चारि पहर राति जल थल सेविलौं
meaithili lokgit ha chari pahar rati jal thal sewilaun
रोचक तथ्य
संदर्भ—छठी माँ से प्रार्थना।
चारि पहर राति जल थल सेविलौं,
सेविलौं छठि गोरथारि छठी माता।।
परसन होउ न सहाय छठी माता।।1।।
अपना ला माँगिलौं अनधन लछमी,
जुगे जुगे माँगु अहिबात छठी माता।
परसन होउ न सहाय छठी माता।।2।।
घोड़ा चढ़न लागि बेटा माँगिलौं।
माँगिलौं घर सचिनि पतोहु छठी माता।
परसन होउ न सहाय छठी माता।।3।।
बयना बहुरे लागि बेटी माँगिलौं।
पंडित माँगिलौं दमाद छठी माता।
परसन होउ न सहाय छठी माता।।4।।
एक स्त्री छठी माता से कहती है—हे छठी माता! मैं चारों पहर जल और स्थल में बैठकर तुम्हारे चरणों की सेवा करती हूँ। मुझ पर प्रसन्न होकर सहाय होओ।।1।।
हे छठी माता! मैं अपने लिए अन्न-धन और लक्ष्मी माँगती हूँ। साथ ही अपने लिए युग-युग तक मेरा अहिबात बना रहे, यह प्रार्थना करती हूँ। आप मुझ पर प्रसन्न होओ।।2।।
हे माता! मैं घोड़े पर चढ़ने के लिए पुत्र माँगती हूँ और घर को सिरजने-सँभालने वाली बहू माँगती हूँ। मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।3।।
हे माँ! मैं बयना बाँटने के लिए बेटी माँगती हूँ और विद्वान् दामाद। आप मुझ पर प्रसन्न हों।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 37)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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