अवधी लोकगीत : आई मैं तुम्हरे द्वार, भवानी मोरी अरज सुनौ
awadhi lokgit ha i main tumhre dwar, bhawani mori araj sunau
रोचक तथ्य
संदर्भ—देवी से प्रार्थना।
आई मैं तुम्हरे द्वार, भवानी मोरी अरज सुनौ।।टेक।।
हमरे घरइया कै बाढ़ै उमिरिया, सुखी रहै परिवार। भवानी०।।1।।
दूध पूत घर आवै संपदा, अन्न से भरै भंडार। भवानी०।।2।।
कंचन थार कपूर की बाती', लेबै आरती उतारि। भवानी०।।3।।
अमर करौ मइया माँग कै सेंदुरा, यहै है बिनती हमारि। भवानी०।।4।।
एक नारी देवी जी के मंदिर में उनसे प्रार्थना कर रही है। वह कहती है—हे भवानी माता! मैं आपके द्वार पर आई हूँ। आप मेरी प्रार्थना सुनिए।।टेक।।
हे माता! मेरे पति की आयु में वृद्धि हो, वे दीर्घजीवी हों और सारा परिवार सुखी रहे।।1।।
हे भवानी माता! हमारे घर में दूध-पूत आए अर्थात् हमारे घर में दुधारू पशु रहें और पुत्र भी हों। साथ ही अन्न से भंडार भरा रहे।।2।।
हे माता! मैं सोने की थाल में कपूर की वर्तिका प्रज्वलित करूँगी और आपकी आरती उतारूँगी।।3।।
हे माता! मेरी माँग का सिंदूर अमर करो अर्थात् ऐसी कृपा करो कि मेरी
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 147)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.