मेैथिली लोकगीत : अजोध्या नगरिया माइ हे दउरा बुनाइछई
meaithili lokgit ha ajodhya nagariya mai he daura bunaichhi
संदर्भ—सूर्य से प्रार्थना।
अजोध्या नगरिया माइ हे दउरा बुनाइछई।
दउरो न मिलइछइ माइ हे कवने अवगुनमे।।
दीनानाथ न उगथिन माइ हे कवने अवगुनमे।।1।।
उगु उगु दीनानाथ हे लगएलि बड़ देरिया।
अहाँक उगइते दीनानाथ हे दुनिया होएत इजोरिया।।
अहाँक डुबइते दीनानाथ हे दुनिया होएत अन्हरिया।।2।।
हे माई! अयोध्या नगरी में दउरा बुना जाता है, किंतु न जाने किस अवगुण के कारण दउरा नहीं मिलता है। हे माँ! सूर्यदेव किस अवगुण के कारण नहीं निकल रहे हैं?।।1।।
हे दीनानाथ सूर्यदेव! उगो, आपने बड़ी देर लगा दी। आपके उगने से ही
दुनिया में प्रकाश होगा और डूबने से संसार में अँधेरा हो जाएगा।।2।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 37)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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