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मैथिली लोकगीत : कोवर लिखल कोसिला रानी

maithili lokgit ha kowar likhal kosila rani

रोचक तथ्य

संदर्भ—वधू के विचार।

कोवर लिखल कोसिला रानी

अओरो सुमित्रा रानी हे।

आम के घौंद लिखल केकइया रानी

बड़ रे यतन सये हे।।1।।

ताहि कोवर सुतलन्हि कोन दुलहा।

संगे कन्या सुहवे हे।

मुहमा उघारि जब प्रभु देखलन्हि

किय किय अभरन हे।।2।।

माँग के टीका प्रभु तोहे छहु

देवरा संखा चुड़ि हे।

चन्द्रहार सासु दुलरइतिन

बाजुबन्द देवरानी है।।3।।

पुत मोरा नयना के इजोरवाई

ननद नवरंग चोलि हे।

भँइसुर माँग के टिकुलिया

हो रे सब अभरन हे।।4।।

रानी कौसल्या और रानी सुमित्रा ने कोहबर को तैयार किया और रानी

कैकेई ने बडे यत्न से आम के घौद से उसे सजाया।।1।।

उस कोहबर में दूल्हा सोया, साथ में कन्या दूल्हन भी थी। दूल्हे ने जब मुँह खोलकर उसे देखा तो पूछा—तुम्हारे कौन-कौन से आभूषण हैं।।2।।

उसने बताया—हे स्वामी! आप मेरी माँग के टीका हो और देवर जी शंख

की चूड़ी (छैलचूडी) हैं। मेरी प्यारी सास जी चंद्रहार और देवरानी बाजूबंद

हैं।।3।।

मेरे जो पुत्र होगा, वह मेरे नेत्रों की ज्योति और ननद नवरंगों वाली चोली है। मेरे ससुर जी मेरी माँग की टिकुली हैं। ये ही सब मेरे गहने हैं।।4।।

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