भोजपुरी लोकगीत : हम कातबि चरखवा, पिया मति जाहु बिदेसवा
bhojapuri lokgit ha hum katabi charakhwa, piya mati jahu bideswa
रोचक तथ्य
संदर्भ-स्त्री की पति से प्रार्थना।
हम कातबि चरखवा, पिया मति जाहु बिदेसवा।।टेक।।
हम कातबि चरखना सजन तुहु लाव,
मिलिहिं एही से सुरजवा, पिया०।।1।।
होइहें सुराज तबें सुख मिलिहें,
कटि जइहें सबके कलेसवा, पिया०।।2।।
कहता रे गाँधी जी कि चरखा चलावहु,
एही से हटिहे कलेसवा, पिया०।।3।।
एक स्त्री अपने पति से निवेदन करती है—हे सज्जन पुरुष (पति)! मैं चर्खा चलाऊँगी (सूत कातूँगी), अब आप परदेश कमाने न जाएँ। आप चर्खा लाएँ, मैं चलाऊँगी। इसी से स्वराज मिलेगा।।1।।
जब स्वराज होगा तभी सुख मिलेगा और सबके क्लेश दूर हो जाएँगे।।2।।
गाँधी जी कहते हैं कि चर्खा चलाओ, इसी से कष्ट दूर होगा।।3।।
टिप्पणी—प्रस्तुत लोकगीत की रचना भारतीय स्वत्रता संग्राम के समय हुई थी, जब गाँधी जी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी और सूत कात कर स्वदेशी वस्त्र पहनने की प्रेरणा दी थी। तभी से लोग खद्दर के कपड़े पहनने लगे थे। भारतीय नारियाँ भी गांधी जी के इस अभियान से प्रभावित थीं। इस लोकगीत से ऐसा ही ज्ञात होता है।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 131)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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