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मैथिली लोकगीत : जब माधो चललन मधुपुर नगरिया

maithili lokgit ha jab madho challan madhupur nagariya

रोचक तथ्य

संदर्भ—श्रीकृष्ण-वियोग।

जब माधो चललन मधुपुर नगरिया,

छाड़ि देल सकल समाज आहे सखिया।।1।।

एहो में जनितौं पिया मधुपुर जयता,

बाँधितो में रेसम डोर आहे सखिया।।2।।

रेसम बँधनमा टुटिए फाटि जएतइ,

बाँधितो में अँचरा लगाय आहे सखिया।।3।।

अँचरा के फारि फारिकगदा बनइतौं,

लिखित में पिया के सनेस आहे सखिया।।4।।

काते कुते लिखितौं हुनक कुसलिया,

बिचे में पिया बियोग आहे सखिया।।5।।

एक सखी दूसरी से कहती है—हे सखी! जब माधव मथुरा नगरी चलने लगे तो सकल समाज को छोड़ दिया।।1।।

हे सखी! यदि मैं जानती कि प्रिय कृष्ण मथुरा जाएँगे तो मैं रेशम की डोर से बाँधती।।2।।

हे सखी! यदि रेशम का बंधन टूट-फूट जाता तो मैं उन्हें आँचल में बाँधकर रखती।।3।।

हे सखी! मैं आँचल को फाड-फाड़ कर काग़ज़ बनाती और उस पर प्रिय को संदेश लिखती।।4।।

हे सखी! मैं काग़ज़ के किनारे इधर-उधर कुशल-क्षेम लिखती और बीच में प्रियतम का विरह वर्णन करती।।5।।

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