अवधी लोकगीत : गोकुल के बिहारी, लइके सब सखियन की सारी
awadhi lokgit ha gokul ke bihari, laike sab sakhiyan ki sari
रोचक तथ्य
संदर्भ—चीरहरण लीला।
गोकुल के बिहारी, लइके सब सखियन की सारी।
छिप के बइठे कदम की डारी।
गजब छल भारी कइले ना।।टेक।।
करि असनान लखा पनघट पर, चीर न परी लखाय।
गई निगाह कदम के ऊपर, स्याम दीन मुसकाय।।
लजानी गोप कुमारी ना।
कहिन कि दै दो चीर मुरारी।।गजब0।।1।।
हे बृजराज लाज ना लूटौ, साड़ी देउ गिराय।
कइसे निकरी जल के बाहर सरम से जी घबराय।।
बड़ी ठगहारी कइले ना।
जल के बीच मँ ठाढ़ी उघारी।।गजब0।।2।।
हँसि के स्याम कहैं गोपिन से, याही जतन लखाय।
बाहर निकरि हाथ फिर जोरौ, चीर तुम्हें मिलि जाय।।
सुनो सब कहनि हमारी ना।
इधर तनि आय के माँगौ अगारी।।गजब०।।3।।
पुरइन पात लपेटत निकरत, कहूँ-कहूँ खुलि जाय।
हँसे कन्हैया नगिन देखि के, सारी दिहिन बहाय।।
पहिरि सब भई सुखारी ना।
कइले द्विज जगदम्ब लबारी।।गजब०।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 212)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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