मैथिली लोकगीत : ऊधव पाती मोहि न सुहाती
maithili lokgit ha udhaw pati mohi na suhati
रोचक तथ्य
संदर्भ—गोपिका कथन उद्धव से।
ऊधव पाती मोहि न सुहाती।।1।।
तजि ब्रजबाला गेल हरि मधुपुर,
सरद समइया क राती।।2।।
हम सों बैर प्रीति कुबजा सों,
स्याम भेल सँघाती।।3।।
जा घर मदन गोपाल न आओत,
बिरह दगध हैत छाती।।4।।
सुजनदास प्रभु तोहर दरस बिन,
पाँती मोहि न सोहाती।।5।।
एक गोपी उद्धव जी से कहती है—हे उद्धव जी! आप जो श्रीकृष्ण की पत्रिका लेकर आए हैं, वह हमें अच्छी नहीं लगती।।1।।
ब्रज बालाओं को छोड़कर हरि मथुरा चले गए और अब शरद ऋतु की रात्रि है।।2।।
श्याम ने हम से वैर और कुब्जा से प्रीति जोड़ ली है।।3।।
यदि मदन गोपाल कृष्ण नहीं आए तो मेरी छाती विरहाग्नि में दग्ध हो जाएगी।।4।।
सुजनदास कहते हैं कि उन कृष्ण से मेरी ओर से निवेदन कर देना—हे प्रभो! तुम्हारे दर्शन के बिना मुझे यह पाती नहीं सुहाती है।।5।।
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