मैथिली लोकगीत : लिखि आएल योग क पाँती हे मधुकर
maithili lokgit ha likhi aayel yog k panti he madhukar
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरह-वेदना।
लिखि आएल योग क पाँती हे मधुकर।।1।।
जब सौं स्याम गेल मधुपुर में,
निसिदिन कड़िकए छाती है मधुकर।।2।।
निसि नहिं चैन दिवस नहिं भावत,
कखन देखब भरि आँखी हे मधुकर।।3।।
सुंदर स्याम जुगल चरनागत,
कुबरि हरल हरि माती हे मधुकर।।4।।
एक गोपिका कहती है—हे मधुकर! योग की पत्रिका आई है।।1।।
जब से श्याम मथुरा गए, रातदिन छाती धड़का करती है।।2।।
मुझे रात में चैन नहीं मिलता और दिन अच्छा नहीं लगता। हे मधुकर! मैं उन्हें भर आँख कब देखूँगी।।3।।
लगता है, कुबड़ी ने हरि की मति हर ली है (तभी तो वे हमें योग की बातें लिखते हैं) फिर भी हम सुंदर श्याम के युगलचरणों में जाएँगी।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 30)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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