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अवधी लोकगीत : स्याम को संदेसो ऊधो पाती यकु आई है

awadhi lokgit ha syam ko sandeso udho pati yaku i hai

रोचक तथ्य

संदर्भ—श्याम का संदेश।

स्याम को संदेसो ऊधो पाती यकु आई है।। टेक।।

पाती तौ अनोखि आई, बचइउ पाई है।

घुँघुटे के ओटे पाती छाती माँ लगाई है।। स्याम०।।1।।

कुबरी सनेह कीह्यो, राधा बिसराई है।

गोकुला उजार कीह्यो, मथुरा बसाई है।। स्याम०।।2।।

अपना तौ भोग करैं, हमहीं का जोग लिखैं।

जिअत खसम भसम कइसे रमाई है।। स्याम०।।3।।

एक गोपिका कहती है कि श्री कृष्ण के संदेश की पत्रिका उद्धवजी के हाथ आई है। वास्तव में वह पत्रिका अनोखी है, जिसे बाँच भी सकी, उसे लेकर घूँघट की आड़ में अपने वक्षः स्थल से लगा लिया।।1।।

वह आगे कहती है कि श्री कृष्ण ने कुबरी से स्नेह किया, राधा जी को विस्मृत कर दिया, गोकुल को उजाड़ दिया और मथुरा को आबाद किया।।2।।

स्वयं श्रीकृष्ण तो सभी प्रकार के भोग करते हैं और हमें योग करने की बात लिखते हैं। भला अपने पति के जीवित रहते हम सौभाग्य चिह्नों को त्यागकर भस्म कैसे रमाएँ।।3।।

टिप्पणी—वास्तव में यह महाकवि सूरदास जी के भ्रमर-गीत का ही प्रसंग

है, जिसे महिलाओं ने आत्मसात कर उसकी अभव्यक्ति अपने ढंग से की है। जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ ने अपने उद्धव शतक में इस विषय पर पर्याप्त लिखा है, जिसे पढ़कर काव्य-रसिकों को आनंदानुभूति होती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 165)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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