भोजपुरी लोकगीत : आरे देस बखानों अजोधिया
bhojapuri lokgit ha aare des bakhanon ajodhiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—राम का जन्म और उसका कारण।
आरे देस बखानों अजोधिया,
जहाँ रे राजा दसरथ हो।
आरे कोखिया बखानों कौसिल्या रानी,
जहाँ राम जनम ले ले हो।।1।।
सुनहु सखिया सहेलरि,
अवरु सहेलरि हो।
सखिया, मिलि जुलि चल रानी घरे,
रामहि देखि आवहु हो।।2।।
देखि के कौसिल्या मुसुकइलीं,
दूर से पइयाँ परेली हो।
ए सखिया, बइठ न हमरी ओसरिया,
मंगल एक गावहु हो।।3।।
ए रानी, कवन कवन तप कइलू
रमइया जी के पवेलू हो।।4।।
बरत हम कइली एकादसी,
दुआदसी के पारन हो।
सखिया, भूखी रहली अतवार,
रमइया जनम ले ले हो।।5।।
माघहि गंगा नहइनी
अगिनि नाहीं तापेलिनि हो।
ए सखि, तिल चाउर नित दान,
रमइया जनम ले ले हो।।6।।
एक स्त्री दूसरी से कहती है—यदि किसी नगर की प्रशंसा करती हो तो अयोध्या की करो, जहाँ राजा दशरथ हैं और यदि किसी की कोख की प्रशंसा करनी हो तो रानी कौशल्या की करो, जिससे राम ने जन्म लिया।।1।।
फिर वह अन्य स्त्रियों से कहती है—हे सखियो! सुनो। चलो, सब लोग रानी के घर चलें और राम को देख आएँ।।2।।
उन स्त्रियों को देखकर कौसल्या मुस्काईं और दूर से ही झुक कर प्रणाम
किया एवं उनसे कहा—हे सखियों! आप लोग ओसारे में बैठिए और एक मंगल गीत गाइए।।3।।
स्त्रियों ने कौसल्या जी से पूछा—हे रानी! आपने कौन-कौन-सा तप-साधन
किया, जिससे रामजी को पाया।।4।।
रानी कौसल्या ने उन्हें बताया—मैंने एकादशी व्रत किया, द्वादशी को उसकी पारणा की। हे सखियो! मैं रविवार को नियम से भूखी रही, राम ने जन्म लिया।।5।।
वे आगे बताती हैं—मैं माघ भर गंगाजी में नहाई और अग्नि नहीं तापी। हे सखियो! मैंने नित्य तिल और चावल का दान किया, जिससे राम ने जन्म लिया।।6।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 87)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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