अवधी लोकगीत : चोरी पंचवटी माँ कीन्हा जाय रवनवा
awadhi lokgit ha chori panchawti man kinha jay rawanwa
रोचक तथ्य
संदर्भ—रावणवध।
चोरी पंचवटी माँ कीन्हा जाय रवनवा, दुसमनवा राजा राम कै बना।।टेक।।
कहैं मैंदोदरि, सुन पिया रावन, का मतिया गै मारी।
तीनि लोक के नारायन कै, किह्यो बड़ा अपमनवा।।
आइकै लंका अन्दर बइठेउ बड़े गुमनवा।।दुसमनवा०।।1।।
भाय भभीखन भल समझायो मान्यो ना तुम बतिया।
ककरी-खेत हस उजरन लागे, टेढ़ी लागी बतिया।।
बिनती करैं मँदोदरि, मान्य नहीं कहनवा।।दुसमनवा०।।2।।
रावन स्वाचै अपने मन माँ, हम जग के मरदनवा।
यक ते एक बीर दुनिया माँ, बड़े बीर बलवनवा।।
पहिले अपने घर कै फोर्यो संगठनवा।।दुसमनवा०।।3।।
भाय भभीखन बाइरी होइगे, राम ते भेद बतावा।
घर फूटे कै मिला नतीजा, कुल परिवार नसनवा।।
कहते ‘सिउकुमार’ रावन कै भवा मरनवा।।दुसमनवा०।।4।।
रावण ने पंचवटी में जाकर सीता का अपहरण किया और राम का शत्रु
बना।।टेक।।
रानी मंदोदरी कहती है कि प्रियतम सुनो! क्या आपकी बुद्धि मारी गई है! आपने तीनों लोकों के स्वामी का बड़ा अपमान किया है। आप लंका आकर बड़े अभिमान से बैठे हैं।।1।।
आपके भाई विभीषण ने आपको भलीभाँति समझाया, किंतु आपने बात नहीं मानी। हमारे यहाँ के सैनिक खेत में लगी ककड़ी की भाँति उजड़ने लगे, मानो दुष्ट बालकों ने यह काम किया हो! मंदोदरी विनती करती है, किंतु आपने कहना नहीं माना।।2।।
रावण अपने मन में सोचता था कि मैं संसार में सबसे बड़ा वीर हूँ, जबकि संसार में एक से एक वीर है। उसने तो सबसे पहले अपने ही घर का संगठन तोड़ दिया।।3।।
भाई विभीषणी वैरी हो गया, राम को भेद बताया और घर की फूट का परिणाम मिला कुल परिवार का विनाश। ‘शिवकुमार' कहते हैं कि रावण का मरण हुआ।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 199)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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