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ब्रजी लोकगीत : मेरी लागे की बढ़ी बेल

vrajii lokagiit : merii laage kii baDhii bel

रोचक तथ्य

संदर्भ—वर कृष्ण पर व्यंग्य।

मेरी लागे की बढ़ी बेल,

कन्हैया हरे हरे साँवरे छोटे से।

एक सखी तो यों उठ बोली,

किस बिध कान्हा छोटे?

दूजी सखी तो यों उठ बोली,

मइया ने खैंच बढ़ाये॥

एक सखी तो यों उठ बोली,

किस विध कान्हा कारे?

दूजी सखी तो यों उठ बोली,

मइया ने उबटन लगाये॥

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 281)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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