अब ना करै काउँ सों यारी
ab na karai kaun son yari
अब ना करै काउँ सों यारी!
गरज कि दुनियाँ सारी!
गरज परे के भाइ बंद हैं, गरज के सब हितकारी॥
गरज परे के परमेसुर नों, गरज के बाप मतारी॥
गरदन दए नो गरज ‘ईसुरी’ गरज परे की प्यारी॥
अब कोई किसी से प्रेम न करे। दुनिया मतलब की है। भाई-बंधु स्वार्थी हैं। सभी हितैषी मतलबी हैं। स्वार्थ के कारण लोग ईश्वर और माँ-बाप को मानते हैं। सिर लेने तक स्वार्थ घेरे है। अरे ईसुरी, प्यारी भी पूरी मतलबी निकली।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 278)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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