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पुस्तकें जो अमर हैं

pustken jo amar hain

मनोज दास

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पुस्तकें जो अमर हैं

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और अधिकमनोज दास

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    कोई दो हज़ार वर्ष हुए, सी ह्यांग ती नाम का एक चीनी सम्राट था। उसे अपनी प्रजा से एक अजीब नाराज़गी थी कि लोग इतना पढ़ते क्यों हैं, और जो लोग किताबें पढ़ नहीं सकते, वे उन्हें सुनते क्यों हैं? उसको विश्वास नहीं था कि अब तक जो पुस्तकें लिखी गई हैं—वे चाहे इतिहास की हों या दर्शनशास्त्र की या फिर कथा-कहानियों की—उनमें उसका और उसके पूर्वजों का ही गुणगान किया गया है। कौन जाने ऐसे लेखक भी हों जिन्होंने सम्राट को बुरा-भला कहने की हिम्मत की हो!

    सी ह्यांग ती का कहना था कि प्रजा को पढ़ने और उन बातों से क्या मतलब? उसे तो चाहिए कि कस कर मेहनत करे, चुपचाप राजा की आज्ञाओं का पालन करती जाए और कर चुकाती रहे। शांति तो बस ऐसे ही बनी रह सकती है।

    फिर क्या था! उसने आदेश दिया कि सब पुस्तकें नष्ट कर दी जाएँ। उन दिनों पुस्तकें ऐसी नहीं थी जैसी आज होती हैं तब छापेख़ाने तो थे नहीं, लकड़ी के टुकड़ों पर अक्षर खुदे रहते थे। ये ही पुस्तकें थीं। उन्हें छिपाकर रखना भी तो आसान नहीं था। सम्राट के आदमियों ने राज्य का चप्पा-चप्पा छान मारा नगर-नगर और गाँव-गाँव घूमकर जो पुस्तक हाथ लगी, उसकी होली जला दी। यह बात तब की है जब चीन की बड़ी दीवार का निर्माण हो रहा था। ढेर सारी पुस्तकें जो कि बड़े-बड़े लट्ठों के रूप में थी—पत्थरों की जगह दीवार में चिन दी गई। अगर किसी विद्वान ने अपनी पुस्तकें देने से इंकार किया तो उसे किताबों सहित बड़ी दीवार में दफ़ना दिया गया। ऐसा था पढ़ने वालों पर राजा का क्रोध!

    कई वर्ष बीत गए सम्राट की मृत्यु हो गई। उसके मरने के कुछ वर्ष बाद ही लगभग सभी पुस्तकें, जिनके बारे में सोचा जाता था कि नष्ट हो गई हैं, फिर से नए चमकदार लकड़ी के कुंदों के रूप में प्रकट हो गई। इन पुस्तकों में महान दार्शनिक कनफ़्यूशियस की रचनाएँ भी थीं, जिन्हें दुनिया भर के लोग आज भी पढ़ते हैं।

    किताबों को इस प्रकार नष्ट करने का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। छठी शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय उन्नति के शिखर पर था। उन दिनों प्रसिद्ध विद्वान एवं चीनी यात्री ह्वेन-त्सांग वहाँ अध्ययन करता था। एक रात सपने में उसने देखा कि विश्वविद्यालय का सुंदर भवन कहीं ग़ायब हो गया है और वहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के स्थान पर भैंसे बँधी हुई है। यह सपना लगभग सच ही हो गया, जब आक्रमणकारियों ने विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय के तीन विभागों को जलाकर राख कर दिया।

    एक समय था जब प्राचीन नगर सिकंदरिया में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था। इसमें अनेक देशों से जमा पांडुलिपियाँ थीं। अनेक देशों से सैकड़ों लोग, जिनमें भारतीय भी थे, अध्ययन करने वहाँ जाते थे। यह अनमोल पुस्तकालय सातवीं शताब्दी में जानबूझकर जला दिया गया। इसे नष्ट करने वाले आक्रमणकारी की दलील यह थी कि अगर इन अनगिनत ग्रंथों में वह नहीं लिखा है जो उसके धर्म की पवित्र पुस्तक में लिखा है, तो उन्हें पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं और अगर ये पुस्तकें वही कहती हैं जो उसके पवित्र ग्रंथ ने पहले ही कह रखा है तो उन पुस्तकों को रखने का कोई लाभ नहीं।

    इस प्रकार कई बार विद्या और ज्ञान के शत्रुओं ने पुस्तकों को नष्ट किया किंतु वही किताबें, जिनके बारे में सोचा जाता था कि वे हमेशा के लिए बर्बाद कर दी गईं हैं, फिर से अपने पुराने या नए रूपों में प्रकट होती रहीं। ठीक भी है पुस्तकें मनुष्य की चतुराई, अनुभव, ज्ञान, भावना, कल्पना और दूरदर्शिता, इन सबसे मिलकर बनती हैं। यही कारण है कि पुस्तकें नष्ट कर देने से मनुष्य में ये गुण समाप्त नहीं हो जाते। दूसरी शताब्दी में डेनिश पादरी बेन जोसफ अकीबा को उसकी पांडित्यपूर्ण पुस्तक के साथ जला दिया गया था। उसके अंतिम शब्द याद रखने योग्य हैं, “काग़ज़ ही जलता है, शब्द तो उड़ जाते हैं।”

    ऐसे भी लोग हैं जिन्हें पुस्तकें प्राणों से भी प्यारी होती हैं। अपनी मनपसंद पुस्तकों के लिए वे बड़े से बड़ा ख़तरा झेल सकते हैं।

    ऐसे भी लोग हैं जो अपनी प्रिय पुस्तक के खो जाने पर परेशान नहीं होते क्योंकि समूची पुस्तक उन्हें ज़बानी याद होती है। पुराने ज़माने में लिखे हुए को कंठस्थ कर लेने का लोगों का अनोखा ढंग था। यूनानी महाकवि होमर (जिसका काल ईसा से नौ सौ वर्ष पूर्व है) के महाकाव्य ‘इलियड’ तथा ‘ओडीसी’ पेशेवर गानेवालों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी को कंठस्थ थे। इन दोनों महाकाव्यों में कुल मिलाकर अट्ठाईस हज़ार पंक्तियाँ हैं। कुछ चारण तो इससे चौगुना याद कर सकते थे।

    भारत में सदा से कई भाषाएँ बोली जाती रही हैं किंतु पुराने ज़माने में संस्कृत का प्रयोग सारे भारत में होता था। भारत के कोने-कोने से कवियों और विद्वानों ने संस्कृत के ज़रिए ही भारतीय साहित्य का भंडार भरा। प्राचीन भारत का दर्शन तथा विज्ञान दूर-दूर के देशों तक फैला।

    हिमालय पर्वत और गहरे-गहरे सागरों को पार करके भारत की कहानियों का भंडार ‘कथा- सरितसागर’, ‘पंचतंत्र’ और ‘जातक’, दूर-दूर देशों तक पहुँचा।

    यह भी सब जानते हैं कि बाइबिल के अनेक दृष्टांतों, यूनानवासी ईसप के क़िस्सों, जर्मनी के ग्रिम बंधुओं और डेनमार्क के हैंस एंडर्सन की कथाओं के मूल भारत में ही हैं। साहित्य की दृष्टि से भारत का अतीत महान है, इसमें शक नहीं।

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    मनोज दास

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    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 34-38)
    • रचनाकार : मनोज दास
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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