गुरु सखी बांधव भृत्य जन
guru sakhi bandhva bhritya jan
गुरु सखी बांधव भृत्य जन, जथा जोग गुनि चित्त।
रतन इनहिं सादर सदा, बरतहु वितरहु वित्त॥
गुरु, मित्र, नातेदार और सेवकों को चित्त में यथायोग्य विचार कर इनके साथ आदर का व्यवहार करो और धन दो।
- पुस्तक : रत्नावली (पृष्ठ 36)
- संपादक : वेदव्रत शास्त्री
- रचनाकार : रत्नावली
- प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
- संस्करण : 1990
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