Font by Mehr Nastaliq Web

गुरु सखी बांधव भृत्य जन

guru sakhi bandhva bhritya jan

रत्नावली

अन्य

अन्य

रत्नावली

गुरु सखी बांधव भृत्य जन

रत्नावली

और अधिकरत्नावली

    गुरु सखी बांधव भृत्य जन, जथा जोग गुनि चित्त।

    रतन इनहिं सादर सदा, बरतहु वितरहु वित्त॥

    गुरु, मित्र, नातेदार और सेवकों को चित्त में यथायोग्य विचार कर इनके साथ आदर का व्यवहार करो और धन दो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नावली (पृष्ठ 36)
    • संपादक : वेदव्रत शास्त्री
    • रचनाकार : रत्नावली
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
    • संस्करण : 1990

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY