सर सर हंस न होत
sar sar hans na hot
सर सर हंस न होत, बाजि गजराज न दर दर।
तर तर सुफर न होत, नारि पतिव्रता न घर घर॥
मन मन सुमति न होत, मलै गिर होत न बन बन।
फन फन मनि नहिं होत, मुक्त जल होत न घन-घन॥
रन रन सूर न होत हैं, जन जन होत न भक्ति हरि।
नर सुनो सकल ‘नरहरि’ कहत, सब नर होत न एक सरि॥
- पुस्तक : हिंदी नीति-काव्य-धारा (पृष्ठ 23)
- संपादक : भोलानाथ तिवारी
- रचनाकार : महापात्र नरहरि बंदीजन
- प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1984
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