को सिखवत कुलवधू
ko sikhwat kulawdhu
को सिखवत कुलवधू, लाज गृह-काज रंग रति।
हंसन को सिक्खवत, करन पय पान भिन्न गति॥
सुज्जन को सिक्खवत, दान अरु शील सुलच्छन॥
सिंहन को सिक्खवत, हनन गज कुंभ ततच्छन॥
विधि रच्यो जानि ‘नरहरि’ निरखि कुल सुभाव को मिट्टवै।
गुण धर्म अकब्बर साह सुन, को नर काको सिक्खवै॥
- पुस्तक : हिंदी नीति-काव्य-धारा (पृष्ठ 22)
- संपादक : भोलानाथ तिवारी
- रचनाकार : महापात्र नरहरि बंदीजन
- प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1984
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