जाकी मरज़ी जब तक ठैरो
jaakii marज़.ii jab tak Thairo
परमलाल कुशवाहा ‘परम’
Paramlaal Kushwaha 'param'
जाकी मरज़ी जब तक ठैरो
jaakii marज़.ii jab tak Thairo
Paramlaal Kushwaha 'param'
परमलाल कुशवाहा ‘परम’
और अधिकपरमलाल कुशवाहा ‘परम’
जाकी मरज़ी जब तक ठैरो, चौकी लगी न पैरो।
पतौ परत नईं कैसो पंछी, अंधरा है कै बैरो।
सबई दुआरे खुले डरे रत, कड़तन मिलत न ऐरो।
‘परम’ काऊ नें थाँय न पाई, अगम अथाँयें गैरो॥
- पुस्तक : बुंदेलखंड की फागें (पृष्ठ 84)
- संपादक : अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
- रचनाकार : परमलाल कुशवाहा ‘परम’
- प्रकाशन : उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी
- संस्करण : 2000
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