कानन करनफूल कंचन के
kanan karanphul kanchan ke
कानन करनफूल कंचन के, दमकै प्रीत बरन के।
लोलक ललित कपोलन ऊपर, लटकत चित्त हरन के।
फिटियन ऊपर देख कनौती, जीब होत रन बन के।
हेम विचित्र बिचौली कंठन, छूटा कई तरन के।
‘अनुचर’ जलज माल हियराजें, सिब सिर गंगधरन के॥
- पुस्तक : बुंदेलखंड की फागें (पृष्ठ 106)
- संपादक : अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
- रचनाकार : अनुचर
- प्रकाशन : उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी
- संस्करण : 2000
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